दिल्ली में पानी के निजीकरण पर यहां के निवासियों के साथ-साथ, दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारी भी अपना विरोध जाहिर कर रहे हैं। सरकार ने निजी कंपनियों के मुनाफों की भरपाई के लिए पानी पर हर साल 10 प्रतिशत शुल्क वसूलने की घोषणा की है। मजदूर एकता लहर के संवाददाता दिल्ली जल बोर्ड में कार्यरत यूनियन के कार्यकर्ताओं से पानी के निजीकरण के खिलाफ़, उनके विचारों से आपको अवगत करा रही है :
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का. तरसपाल तोमर : निजीकरण का विरोध हम इसलिये कर रहे हैं ताकि पानी सभी को आसानी से और सस्ती लागत पर मिले। दिल्ली की जनता के लिये निजीकरण विष के समान है। जल बोर्ड जिन निजी हाथों को यह काम सौंप रहा है, उनका मूल लक्ष्य हमारी जनता को पानी पिलाना नहीं है बल्कि मुनाफा कमाना है।
म.ए.ल. : कौन-कौन से प्लांट निजी हाथों में सौंपे जा चुके हैं?
का. तरसपाल तोमर : शहादरा स्थित, भागीरथी जल संशोधन प्लांट लार्सन एंड टूब्रो (एल एंड टी) को पूरी तरह से सरकार सौंप चुकी है। नांगलोई और चंद्रावल प्लांट का खाका तैयार है। इसे किस कंपनी को सौंपा जायेगा, स्पष्ट नहीं।
जल वितरण केन्द्र – मालवीय नगर, वसंतकुंज और वसंत विहार को निजी कंपनियों को सौंपने की निविदा जारी की जा चुकी है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि हम अभी इन तीनों को देकर प्रयोग कर रहे हैं कि अगर सफल रहे तो बाकी केंद्रों को भी निजी हाथों में सौंपा जायेगा। रख-रखाव का काम निजी हाथों में देने का ट्रायल चल रहा है। यह ट्रायल भी असीम मुनाफा कमाने वाले संभावित क्षेत्रों पर चल रहा है।
म.ए.ल. : विश्व बैंक को दिल्ली जल बोर्ड में क्या रुचि है?
का. तरसपाल तोमर : विश्व बैंक से दिल्ली जल बोर्ड में बुनियादी सुधार हेतु लिये गए उधार की पहली शर्त है – इसे चलाने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों को सौंपना। कर्जदार यह तय नहीं करेगा कि उसे सुधार किस प्रकार करना है, उसे विश्व बैंक के मुताबिक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सुझाव को लागू करना है।
म.ए.ल. : बिजली के निजीकरण के बाद, पानी का निजीकरण लोगों पर एक बहुत बड़ा हमला है, इस पर आपकी राय क्या है?
का. तरसपाल तोमर : दिल्ली विद्युत बोर्ड और जल बोर्ड एक समान कभी नहीं देखे जा सकते हैं। बिजली इंसान के द्वारा पैदा की जाती है। इसके बिना मनुष्य जिंदा रह सकता है। पानी कुदरत की दी हुई चीज़ है। इसके बिना मनुष्य जिंदा नहीं रह सकता है।
दिल्ली विद्युत बोर्ड के निजीकरण से जनता को खून के आंसू रोना पड़ रहा है। मीटर तेज दौड़ते हैं। आज स्थिति यह है कि जरा सा स्पार्क हो जाये तो कंपनी के लोग मीटर को ले जाते हैं। कहते हैं कि लैब से रिपोर्ट आई है कि आपने मीटर से छेड़छाड़ की है। 25000 रुपये तक का जुर्माना लगा देते हैं।
जल बोर्ड के निजीकरण से इस शहर में ग़रीबों, मजदूरों और आम लोगों का रहना दूभर हो जायेगा।
म.ए.ल. : कुछ आर.डब्ल्यू.ए. ने पानी के निजीकरण को सही कहा है?
का. तरसपाल तोमर : कुछ गिने-चुने आर.डब्ल्यू.ए., जिनमें इन बड़ी-बड़ी पार्टियों के लोग ही हैं, वे कहते हैं कि पानी के निजीकरण से हम खुश हैं। लेकिन हम कहते हैं कि दिल्ली की 1 करोड़ 70 लाख जनता से सर्वे कराया जाना चाहिये।
म.ए.ल. : पूरी दिल्ली में जल बोर्ड की कितनी संपत्ति है?
का. तरसपाल तोमर : जल बोर्ड के पास 6 हजार एकड़ जमीन है। उस पर इन कंपनियों की गिध्ददृष्टि है। सरकार उसे कौड़ियों के दाम पर बेचने की कोशिश कर रही है। उदाहरण के लिए, हमारे झंडेवालान की ज़मीन की कीमत इन दुष्टों ने मात्र 80 लाख रुपये लगाई थी। जबकि यह अरबों की जमीन है। दिल्ली के अंदरूनी और बाहरी क्षेत्रों, चारों ओर जल बोर्ड की ज़मीन है। बुराड़ी में भी काफी ज़मीन है, जिस पर निरंकारी बाबा के आश्रम ने कब्जा जमा रखा है। लाजपत नगर, ग्रेटर कैलाश, नांगलोई और नजफगढ़ में जमीन और बिल्डिंग है।
म.ए.ल. : क्या जल बोर्ड में नये कर्मचारी भर्ती किये जा रहे हैं?
का. तरसपाल तोमर : 1997 से भर्ती बंद है। 1997 में जल बोर्ड में 32000 कर्मचारी और अधिकारी थे। 2012 में ये घटकर 18000 रह गये हैं। जबकि हर महीने 40-42 कर्मचारी रिटायर हो जाते हैं। कुछ की काम के दौरान मौत भी हो जाती है। हर साल लगभग 1000 लोग कम हो जाते हैं। 1998 में प्रति हजार उपभोक्ता पर जल बोर्ड के पास 28.44 कर्मचारी होते थे। जबकि 2010में ये घटकर 13.05 कर्मचारी हो गये हैं। यूनियनों के संघर्ष करने के बाद अभी कुछ दिनों पहले 900 मृत कर्मचारियों के आश्रितों को नौकरी पर रखा गया है, लेकिन सभी की बहाली नहीं हुई है।
म.ए.ल. : सरकार कह रही है कि जल बोर्ड घाटे में चल रहा है!
का. तरसपाल तोमर : कोई यह साबित नहीं कर सकता है कि जल बोर्ड घाटे में चल रहा है। घाटे की मुख्य वजह यह है कि जब-जब बोर्ड की मीटिंग होती है तो इसमें 6 से 7 लाख रुपये का तो सिर्फ लंच आता है। इसके अलावा, बदली होकर आने वाला हर बड़ा अधिकारी, अपने आफिस को नये लुक देने के नाम पर लाखों रुपये जल बोर्ड के खाते से खर्च करता है।
अधिकारी विदेश भ्रमण करते हैं, यह बहाना देकर कि हम जल बोर्ड के विकास के लिये उन देशों की व्यवस्था देखने जा रहे हैं। विदेश भ्रमण करने वाले बड़े अधिकारी अभी तक जल बोर्ड के विकास के लिए कोई योजना नहीं बना पाये, अलबत्ता निजी कंपनियों के मुनाफों को सुनिश्चित करने की योजना अवश्य बनाने में लगे हुए हैं।
म.ए.ल. : सरकार द्वारा कर्मचारियों पर अकर्मण्यता के आरोप कहां तक सही है?
का. तरसपाल तोमर : जल बोर्ड अपने निर्दिष्ट उद्देश्य में प्रगति कर रहा है या नहीं, यह सरकार की नीति और उनकी तरफ से नियुक्त कमांड अधिकारी तय करता है। हम कर्मचारी अधिकारियों के मातहत काम करते हैं। कर्मचारी अपनी क्षमता के अनुसार बहुत मेहनत से काम करता है। हमारे इंजीनियर बहुत अच्छे और बहुत ही काबिल हैं।
उदाहरण के लिए हमारा इंजीनियर जो लाईन डालता है, वह 50साल चलती है जबकि निजी कंपनी द्वारा डाली गई लाईन 5साल चलती है। इसका प्रमाण आप देख सकते हैं।
जल बोर्ड में सुधार के लिए हमारे इंजीनियरों की सलाह क्यों नहीं ली गई, जिनके पास वर्षों का अनुभव है, डिग्रियां हैं। क्या, दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारियों से ज्यादा अनुभव एक निजी कंपनी रखती होगी? लेकिन नहीं, वे निजी कंपनियों से ही सलाह लेंगे और उनको करोड़ों रुपये देंगे।
ठेके पर कर्मचारियों की नियुक्ति के एवज में आला अधिकारी पैसा खाते हैं। हमारे पास साधन मौजूद होने के बावजूद, हर काम को बाहर से ठेके पर करवाया जाता है, जिससे उन्हें मोटा कमीशन मिलता है।
म.ए.ल. : क्या आप जल बोर्ड के निजीकरण को 1990 में, जब मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे, तब शुरू की गई निजीकरण, उदारीकरण की नीति की निरंतरता के रूप में देखते हैं?
का. तरसपाल तोमर : हां, ये बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत में लाने के काम को तेज करने की दिशा में कदम है। बिजली बेची, शिक्षा बेची अब भी न जागे तो पानी बेचने की तैयारी है।
म.ए.ल. : इन कंपनियों के हाथों हमारा पानी किस प्रकार असुरक्षित है?
का. तरसपाल तोमर : निजी कंपनियां, हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करेगी, यह गारंटी नहीं दे सकती है। निजी कंपनी का सर्वोपरि धर्म, उसका मुनाफा होता है।
म.ए.ल. : निजीकरण से कर्मचारियों की हालतों पर क्या असर पड़ रहा है?
का. तरसपाल तोमर : 1963 के एक्ट में यह लिखा है कि कोई भी कर्मचारी 18 वर्ष की आयु से कम नहीं होगा। प्लांटों के सेफ्टी के मापदंड लागू होंगे। लेकिन एल एंड टी ने जो एग्रीमेंट किया है, उनमें से किसी भी शर्त को पूरा नहीं कर रही है। उदाहरण के लिए, मुनाफा ज्यादा बनाने के लिए जरूरत से बहुत ही कम संख्या में कंपनी ने फोरमैंन और सुपरवाईजर रखा हुआ है। कंपनी 65लोगों की जगह पर दस लोगों से काम को करवा रही है। इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले एक्शन इंजीनियरों को छुट्टी देकर घर भेज दिया जाता है।
कंपनी में नाबालिग, अप्रशिक्षित, अनपढ़ और अनुभवहीन लोगों को ठेके पर रखा गया है। वह इनसे फिल्टर हाउस, कच्चे पानी की सफाई, स्टोर आदि का काम करवाती है। पानी की क्वालिटी ठीक नहीं है। आप देश के किसी भी लैब में चेक करवा सकते हैं। पानी में रसायनों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जा रहा है जिससे किडनी के फेल होने, केंसर या दिल के दौरे की संभावना बढ़ जाती है। पानी की जांच करने के लिये लैब पर तैनात कर्मचारी ने बात उठाई तो कंपनी ने प्रशासन के साथ मिलकर उस लैब को ही वहां से हटवाकर गीता कालोनी में भिजवा दिया। यह एक ब्लेक लिस्ट कंपनी है। हमारे जल बोर्ड के जेई, एई और एक्शन इंजीनियर जब कंपनी के सामने बात उठाते हैं तो वे कहते हैं कि छोड़ो हमारे यहां तो ऐसे ही चलता है।
म.ए.ल. : कुछ लोगों का कहना है कि दिल्ली जल बोर्ड को विदेशी कंपनियों के हाथों नहीं बेचना चाहिये पर देशी कंपनियों को बेचना ठीक है। इस पर आपकी क्या राय है?
का. तरसपाल तोमर : निजीकरण तो निजीकरण है। पूंजीपति देशी हो या विदेशी, दोनों ही हमारा खून चूसेंगी। उदाहरण के लिए सांप तो सांप ही है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा दोनों ही विष छोड़ते हैं। इनका काम है मजदूर वर्ग की मेहनत को लूटकर अपना मुनाफा बनाना। ये मजदूर को 100 रुपये देंगे तो 1000 रुपये का काम लेंगे।
म.ए.ल. : निजीकरण की इस प्रक्रिया में क्या सरकार सिर्फ प्लांटों का ही निजीकरण कर रही है या सप्लाई का भी?
का. तरसपाल तोमर : मैं आपको बताना चाहता हूं कि 1मई से सरकार ने रेवेन्यू विभाग में टाटा के अफसरों को तैनात किया है। उन्हें 11रुपये प्रति सैकड़ा के हिसाब से धन उगाही करने का काम दिया गया है। निजी कंपनी को कमीशन देकर ग्राहक का मीटर लगवाया जा रहा है।
यहां कच्चे पानी की सफाई से लेकर पीने लायक बनाकर सप्लाई करने के बीच, काम आने वाले सभी साधन और मानव संसाधन जल बोर्ड के पास उपलब्ध थे। मीटर तथा बिजली की मोटरों की रिपेयरिंग की वर्कशाप थी। अब ये सारे काम देशी/विदेशी निजी कंपनियों से ठेके पर करवाये जा रहे हैं। उदाहरण के लिए चंद्रावल प्लांट पर बाइंडिंग की वर्कशाप थी, जो अब बंद है। रिपेयरिंग का काम अब बाहर से करवाया जाता है।
म.ए.ल. : क्या जल बोर्ड अपनी जमीनें भी कंपनियों को सौंप रही है?
का. तरसपाल तोमर : अभी सरकार अपनी नीति का पूरा खुलासा नहीं कर रही है।
दिल्ली में पानी के निजीकरण पर यहां के निवासियों के साथ-साथ, दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारी भी अपना विरोध जाहिर कर रहे हैं। सरकार ने निजी कंपनियों के मुनाफों की भरपाई के लिए पानी पर हर साल 10 प्रतिशत शुल्क वसूलने की घोषणा की है। मजदूर एकता लहर के संवाददाता दिल्ली जल बोर्ड में कार्यरत यूनियन के कार्यकर्ताओं से पानी के निजीकरण के खिलाफ़, उनके विचारों से आपको अवगत करा रही है :
म.ए.ल. : आप दिल्ली जल बोर्ड के निजीकरण का विरोध क्यों कर रहे हैं?