महाराष्ट्र सरकार के श्रमिक विरोधी काले कानून की भर्त्सना करें!

 महाराष्ट्र की विधान परिषद ने अप्रैल 2012 को श्रमिक विरोधी फासीवादी महाराष्ट्र आवश्यक सेवा सुरक्षा कानून (मेस्मा) पारित कर दिया। अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों तथा ट्रेड यूनियनों एवं दूसरे श्रमिक संगठनों के विरोध के बावजूद यह कानून पारित किया गया। हड़ताल करने के श्रमिकों के अधिकार पर कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस सरकार के इस खूंखार हमले का मजदूर एकता लह

 महाराष्ट्र की विधान परिषद ने अप्रैल 2012 को श्रमिक विरोधी फासीवादी महाराष्ट्र आवश्यक सेवा सुरक्षा कानून (मेस्मा) पारित कर दिया। अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों तथा ट्रेड यूनियनों एवं दूसरे श्रमिक संगठनों के विरोध के बावजूद यह कानून पारित किया गया। हड़ताल करने के श्रमिकों के अधिकार पर कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस सरकार के इस खूंखार हमले का मजदूर एकता लहर कड़ी निन्दा करती है। मेस्मा के इससे पहले के अवतार ''मेस्मा 2005'' की अवधि मई 2010 में समाप्त हुई थी। तबसे इसे पुन: लागू न किया जाये, ऐसी माँग श्रमिक संगठन कर रहे थे।

अप्रैल से संघर्ष कर रहे महाराष्ट्र के सीनियर कॉलेज तथा यूनिवर्सिटी के शिक्षकों को महाराष्ट्र सरकार ने इस कानून द्वारा धमकाया कि अगर वे अपना असहयोग आंदोलन ख़ारिज नहीं करते तो इस कानून के तहत उनको हिरासत में लिया जायेगा तथा नौकरी से निकाला जायेगा। महाराष्ट्र फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन से संबंधित दसियों-हजारों शिक्षकों ने परीक्षा की उत्तार पुस्तिकाओं को जाँचने से इन्कार कर दिया। कई वर्षों से लंबित मांग के समर्थन के लिए उन्होंने यह संघर्ष छेड़ा था। 1991 से 1998 के दौरान जो शिक्षक नियुक्त किये गए थे उन्हें स्थाई किया जाये जिससे उनके वेतन में काफी वृध्दि होगी, यही प्रमुख माँग थी। यातायात से संबंधित, ट्रक मालिक तथा चालक, टैक्सी तथा ऑटोरिक्शा चालक, बी.ई.एस.टी. तथा महाराष्ट्र राज्य परिवहन मंडल के कर्मचारी, आदि अपनी माँग के लिए हड़ताल करने की सोच रहे थे। उन्हें भी राज्य सरकार ने ''मेस्मा'' लगाने की धमकी दी।

निजीकरण तथा उदारीकरण के ज़रिये भूमंडलीकरण के खिलाफ़, खाद्य वस्तुओं, बिजली तथा पानी की बढ़ती कीमतों के खिलाफ़, बढ़ती ठेका मजदूरी के खिलाफ़, राशन व्यवस्था को खत्म करने की करतूतों के खिलाफ़, ट्रेड यूनियन अधिकारों पर हमलों के खिलाफ़, अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों के मजदूर तथा कर्मचारी तीखे संघर्ष कर रहे हैं। ''मेस्मा'' को पारित करने की गतिविधि को इस पार्श्वभूमि पर समझना होगा। गत दो वर्षों से महाराष्ट्र के अलग-अलग क्षेत्रों के श्रमिकों ने बड़ी-बड़ी हड़तालें व संघर्ष किये हैं। एयर इंडिया तथा निजी एयरलाइन्स कम्पनियों के पायलट, विमान परिचारिकाओं, तथा दूसरे कर्मचारियों ने, रेल इंजन ड्राईवरों, सरकारी तथा निजी अस्पतालों के रेजिडेंस डाक्टरों तथा नर्सों ने, महानगरपालिका कर्मचारियों ने, टैक्सी तथा रिक्शा चालकों ने, यूनिवर्सिटी तथा कॉलेज अध्यापकों ने, तेल क्षेत्र तथा बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों ने, पानी वितरण तथा साफ-सफाई करने वाले मजदूरों ने तथा अन्य कई क्षेत्रों के श्रमिकों ने अपने हकों के लिए बार-बार सड़क पर उतर कर संघर्ष छेड़ा है। उन संघर्षों को गैरकानूनी करार देने के लिए, उन मजदूरों तथा उनके नेताओं को जेल में डालने तथा धमकाने के लिए, उनके संघर्षों को कुचलने के लिए ''मेस्मा 2005'' का कई बार इस्तेमाल किया गया है।

गत दो वर्षों में, अपनी साँझा माँगों के लिए, अलग-अलग पार्टियों तथा ट्रेड यूनियनों के देशभर के श्रमिकों ने एकजुट होकर संघर्ष किया है। महाराष्ट्र एक ऐसा राज्य है जिसके श्रमिक दूसरे कई राज्यों के मुकाबले ज्यादा संगठित हैं और उन्होंने इन सभी संघर्षों में बढ़कर हिस्सा लिया है। ''मेस्मा'' को महाराष्ट्र में पुन: लागू करने का मकसद इन बढ़ते संघर्षों को कुचलना है।

आवश्यक सेवा सुरक्षा कानून 1981 (एस्मा) को केन्द्र में मौजूद इंदिरा गाँधी नीत सरकार ने कायम किया था। उस सरकार ने श्रमिक वर्ग के खिलाफ़ जो आक्रामक रुख़ अपनाया था उसके खिलाफ़ तथा अपनी जीविका एवं हकों की रक्षा के लिए अपने देश के श्रमिक वर्ग ने तीखे हड़ताल तथा संघर्ष छेड़ दिए थे। इसी तरह का कानून 1968 में भी जारी किया गया था जब पूरे देशभर में हड़तालों तथा संघर्षों की लहर उठी थी। 1974 के रेल मजदूरों के ऐतिहासिक संघर्ष को इंदिरा गाँधी ने बेरहमी से कुचला तथा देश में आपातकाल यानि एमरजेंसी लागू की। 1975 से 1977 के आपातकाल के दौरान सभी मजदूर संघर्षों पर खूंखार हमला हुआ। 1977 में आपातकाल समाप्त होते ही एक बार फिर हड़तालों तथा संघर्षों की लहर पूरे देश में फैल गई। उन हालातों में सरमायदारों ने एक बार फिर इंदिरा गाँधी तथा उसकी कांग्रेस पार्टी को सत्ता पर बिठाया। श्रमिक वर्ग पर हमला करना, उसकी एकता को तोड़ना एवं सरमायदारों के आधुनिकीकरण के कार्यक्रम को लागू करना यही काम उस सरकार को सौंपा गया। 1981 में संसद ने ''एस्मा'' पारित किया। रेल/सड़क/हवाई/जल सभी यातायात क्षेत्र, बैंक, गोदी, बिजली उत्पादन, वितरण तथा पारेषण, डाक तथा संचार के दूसरे माध्यम, पेट्रोलियम, अस्पताल, रक्षा मंत्रालय से संबधित उत्पादन आदि कुल 16आर्थिक क्षेत्र उस कानून के दायरे में थे।

उस ''एस्मा'' के आधार पर अलग-अलग राज्य सरकारों ने अपने कानून बनाये। ''एस्मा'' के तहत सरकार किसी भी क्षेत्र को ''आवश्यक सेवा'' करार कर सकती है और फिर उस क्षेत्र के श्रमिकों पर हमला कर सकती है। एक बार किसी क्षेत्र को सरकार ने आवश्यक सेवा घोषित कर दिया तो फिर उस क्षेत्र में हड़ताल या दूसरी कोई कार्यवाही पर पाबंदी लगा सकती है, हड़ताली श्रमिकों को हिरासत में ले सकती है, या उन्हें नौकरी से भी निकाल सकती है। केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने ''एस्मा'' का इस्तेमाल करके अलग-अलग क्षेत्रों के मजदूरों पर और सरकारी कर्मचारियों पर भी कई बार हमला किया है। विदित हो कि सबसे बड़ा हमला 2003में तामिलनाडु की जयललिता की सरकार ने किया था जब उसने संघर्ष करने वाले हजारों राज्य सरकार के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था।

1981 में जब केन्द्र में ''एस्मा'' जारी किया गया तब तुरंत देशभर में वर्ग संघर्ष की लहर चलाकर श्रमिक वर्ग ने उसका जबाब दिया था। 23 नवंबर, 1981 के दिन संसद पर मोर्चा, तथा 19 जनवरी, 1982 के दिन सफल सर्व हिंद सार्वजनिक हड़ताल उसी लहर की दो बड़ी घटनायें थीं। महंगाई खत्म की जाये, ट्रेड यूनियन के हकों की रक्षा की जाये तथा ''एस्मा'' जैसे सभी फासीवादी कानून ख़ारिज किये जायें, ऐसी माँगें उस संघर्ष में की गई थीं। श्रमिक वर्ग के इन एकजुट संघर्षों को कुचलने के लिए तथा आधुनिकीकरण के सरमायादारी कार्यक्रम को जबरन लागू करने के लिए सरमायदारों ने जातिवादी तथा फासीवादी हिंसा एवं दहशत का सहारा लिया। मगर फिर भी मजदूरों के संघर्षों तथा सरमायदार वर्ग की राजनीतिक पार्टियों के आपसी झगड़ों की वजह से, सरमायदार ''एस्मा'' की अवधि 1989 में खत्म होने के बाद, उसे फिर से केन्द्र में लागू नहीं कर सके।

उसके बाद ''एस्मा'' के आधार पर अलग-अलग राज्य सरकारों ने गत दो दशकों में अपने-अपने कानून जारी किये हैं। अपने-अपने राज्य के श्रमिकों पर हमला करने के लिए उनका इस्तेमाल किया गया है। इसीलिए हर राज्य के श्रमिकों के लिए जरूरी है कि वे अपने राज्य से तथा दूसरे राज्यों से इस फासीवादी खूंखार कानून को खारिज करने के लिए एकजुट संघर्ष करें।

महाराष्ट्र के सभी ट्रेड यूनियनों तथा श्रमिकों से मजदूर एकता लहर आह्वान करती है कि ''मेस्मा 2011'' को खारिज करने के लिए एकजुट होकर संघर्ष करें।

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