अमरीका और इस्राइल ने ईरान के खिलाफ़ जंग की धमकी तेज़ की

ईरान द्वारा परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम जारी रखने के लिये अमरीका और इस्राइल ने, यह दावा करके कि, इस कार्यक्रम का इस्तेमाल परमाणु हथियारों की क्षमता पाने के लिये किया जा सकता है, उसके खिलाफ़ जंग की धमकी नियमित तौर पर तेज़ की है।

ईरान द्वारा परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम जारी रखने के लिये अमरीका और इस्राइल ने, यह दावा करके कि, इस कार्यक्रम का इस्तेमाल परमाणु हथियारों की क्षमता पाने के लिये किया जा सकता है, उसके खिलाफ़ जंग की धमकी नियमित तौर पर तेज़ की है।

अप्रैल 2012 के अंत में, इस्राइली राज्य की स्थापना की 64वीं सालगिरह के अवसर पर, वहां के सशस्त्र सेना प्रमुख, लेफ्टिनेंट जनरल बैनी गेन्ट्स ने कहा कि जरूरत होने पर इस्राइल ईरान, लेबनान और गाज़ा पर हमला करने के लिये तैयार है। उन्होंने आगे कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिये 2012 का साल बहुत ही ''निर्णायक'' होगा।

इस के कुछ ही दिनों बाद, 17 मई, 2012 को, इस्राइल में वॉशिंगटन के दूत ने कहा कि अगर ''दूसरे तरीकों से परमाणु हथियारों का विकास नहीं रुकता है'', तो अमरीका के पास पहले से ही ईरान पर हमला करने की योजना तैयार है। उन्होंने कहा कि वे आशा करते हैं कि अमरीकी कूटनीति और बंदिशों से ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को बदलने की जरूरत को समझ जायेगा, नहीं तो सैनिक विकल्प तो ''तैयार'' है ही।

परमाणु हथियारों के सबसे बड़े भंडार रखने और इन्हें मानवीय निशानों पर दागने वाली इकलौती ताकत होने के बावजूद, अमरीकी साम्राज्यवाद पाखंडपूर्ण तरीके से दावा करता है कि उसके आलावा किसी और ताकत को, खास तौर पर ऐसी किसी ताकत को, जो विश्व मामलों में अमरीका से भिन्न मत रखती है, परमाणु क्षमता विकसित करने का कोई अधिकार नहीं है।

अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और जरमनी, ये छ: बड़ी ताकतें तेहरान को समझाने की कोशिश कर रही हैं कि उसे यूरेनियम की परिष्कृति कम करनी होगी और अपने परमाणु संयंत्र अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आई.ए.ई.ए.) द्वारा निरीक्षण के लिये खोलने होंगे। ईरान की इन छ: ताकतों के साथ वार्ता 23 मई 2012 से बगदाद में फिर शुरू होने वाली है। इस संदर्भ में अमरीकी दूत और इस्राइली सेना प्रमुख की टिप्पणियां साफ तौर पर वार्ता के पहले ईरान को डराने-धमकाने के मकसद से की गयी हैं। सभी शांति और इंसाफ पसंद लोगों को अमरीकी दूत और इस्राइली सेना प्रमुख के युध्दखोर बयानों की कड़ी निंदा करनी चाहिये।

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