11 मई, 2012 को पांच सदस्यों की एक जूरी ने कुआलालम्पुर युद्ध अपराध अधिकरण की 7 मई 2012 से चल रही सुनवाई का एकमत फैसला सुनाया कि अमरीकी राष्ट्रपति और उसके सहयोगी दोषी हैं।
11 मई, 2012 को पांच सदस्यों की एक जूरी ने कुआलालम्पुर युद्ध अपराध अधिकरण की 7 मई 2012 से चल रही सुनवाई का एकमत फैसला सुनाया कि अमरीकी राष्ट्रपति और उसके सहयोगी दोषी हैं।
अधिकरण ने जॉर्ज डब्ल्यू बुश और उसके सहयोगी – पूर्व उप राष्ट्रपति रिचर्ड चीनी, पूर्व रक्षा सचिव डोनाल्ड रम्सफेल्ड, राष्ट्रपति के तब के सलाहकार अल्बेर्तो गोंजालेस, उप राष्ट्रपति के तब के सलाहकार डेविड एडिंगटन, रक्षा सचिव के तब के सलाहकार विलियम हेंस द्वितीय, तब के सहायक महान्यायवादी जे. बायबी तथा तब के उपसहायक महान्यायवादी जॉन चून यू को इलज़ाम के मुताबिक दोषी पाया और उन्हें युद्ध अपराध पीडि़त शिकायतकर्ताओं को यातनायें देने व उन पर क्रूर अमानवीय तथा अपमानजनक व्यवहार के लिये अपराधी ठहराया।
इसके पहले के सप्ताह में, अधिकरण ने यातनाओं के शिकार तीन व्यक्तियों अब्बास आबिद, मओज्जम बेग, तथा जमीलाह हमीदी की गवाही सुनी थी। उन्होंने दिल दहला देने वाली कैद में यातनाओं की आपबीती सुनाई। दो इराकी नागरिकों अली शलाल व रुहेल अहमद तथा एक ब्रिटिश नागरिक की गवाही भी अधिकरण ने सुनी थी।
अब्बास आबिद, जो इराक के विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय में 48 वर्षीय मुख्य अभियंता थे, उनकी उंगली के नाखूनों को प्लायर्स से उखाड़ दिया गया था। अली शलाल पर नंगे बिजली के तार लगाये गये थे और उसे दीवार पर लटकाया गया था। मओज्जम बेग को जमकर पीटा गया था और उसे एकांत कारावास में रखा गया था। जमीलाह को लगभग नग्न अवस्था में रखा गया था और उनको अपमानित किया गया और एक मानव ढाल के जैसे इस्तेमाल किया गया जब उन्हें हैलीकॉप्टर से ले जाया जा रहा था। इन सभी गवाहों के जख्म आज तक दिखते हैं।
इन गवाहों को अफगानिस्तान के बग्राम जेल, इराक के अबू घरेब व बग़दाद अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे में कैदी बनाया गया था। अन्य दो, मओज्जम बेग और रुहेल अहमद, को गुंआतानामो खाड़ी में ले जाया गया था।
यह साबित किया गया था कि वकीलों व दूसरे कमांडरों के साथ सी.आई.ए. के अफसरों के द्वारा सहायता तथा दुस्साहसी उकसावे के साथ सबसे उच्च स्तर के फैसले लेने वाले – राष्ट्रपति बुश, उप राष्ट्रपति रिचर्ड चेनी, रक्षा सचिव डोनाल्ड रम्सफेल्ड – सब ने मिल कर काम किया था। यातनायें योजनाबद्ध तरीके से दी गयी थी और उनकी कार्यवाइयों में ये एक मानक बन गयी थीं।
दो घंटों की सोच-विचार के बाद अधिकरण के अध्यक्ष टेन श्री दातो लमिन बीन हाजी मोहम्मद युनुस लमिन ने फैसला पढ़ कर सुनाया। फैसले में कहा कि अभियोग पक्ष ने शंका के पर्याप्त पर यह सिद्ध कर दिया है कि मुलजिमों ने आदेशों, ज्ञापनों, दिशा-निर्देशों, कानूनी सलाहों व कार्यवाइयों के एक जाल के ज़रिये, अफगानिस्तान और इराक में अमरीका व दूसरे देशों ने, “आतंक के खिलाफ़ जंग” संबंधित यातनाओं और युद्ध अपराधों की एक सांझी योजना व उद्देश्य, संयुक्त उद्यम और/या षडयंत्र को अंजाम दिया था।
इस प्रक्रिया में उन्होंने 1984 की यातनाओं के खिलाफ़ करार, 1949 के जिनेवा करार 3 और 4, 1949 के जिनेवा करार की धारा 3, मानवाधिकारों पर सर्वव्यापी घोषणा, तथा संयुक्त राष्ट्र के संविधान सहित सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किया है। अधिकरण ने पाया कि अंतर्राष्ट्रीय सैनिक अधिकरण के (न्यूरमबर्ग) कायदे की धारा 6 में स्थापित सिद्धांत के अनुसार बुश और उसके साथी व्यक्तिगत और सामूहिक तरीके से सभी अपराधों के लिये जिम्मदार हैं (न्यूरमबर्ग करार कहता है कि, “नेता, संयोजक, उकसाने वाला और जुर्म में सहयोगी, जो युद्ध अपराधों की किसी सांझी योजना या षडयंत्र के सूत्रण या कार्यवाई में भाग लेते हैं, वे ऐसी योजना के लागू होने में स्वयं जिम्मेदार होंगे चाहे इसे अंजाम देने वाला कोई भी क्यों न हो।”)
अधिकरण ने पाया कि आरोपी वकीलों ने यह “सलाह” दी कि “जिनेवा करार (अल कायदा के संदिग्धों और तालिबान के बंदियों पर) लागू नहीं होता है; कि यातनाओं के खिलाफ़ करार की परिभाषा में उनके कृत्यों को यातनायें नहीं कहा जा सकता है, और परिष्कृत पूछताछ की तकनीकें (क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार) स्वीकृत हैं।”इन वकीलों को मालूम था कि उनकी सलाहों पर अमल किया जायेगा और उनसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, जिनेवा करारों और यातनाओं के खिलाफ़ करार का उल्लंघन होगा।
अधिकरण ने आदेश दिया कि पीडि़तों को अपूरणीय क्षति, जख्म, पीड़ा और दुःख पहुंचाने के लिये दोषियों और उनकी सरकार को उचित भरपाई देनी होगी। अधिकरण ने स्वीकार किया कि दुनिया की मौजूदा स्थिति में, ज्यादा से ज्यादा उसके फैसले सिफारिशी हैं और उनको लागू करने के कोई यंत्र नहीं हैं। उसने आशा व्यक्त की कि अधिकरण के निष्कर्षों से लैस होकर, पीडि़त कोई राज्य या अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक संस्था खोज पायेंगे जो अधिकरण के फैसले को आठ दोषियों पर लागू करने में रुचि लेगा और इस काम के लिये सक्षम होगा।
अध्यक्ष लमिन ने पढ़ा, “ज़मीरयुक्त होने के नाते, अधिकरण को पूरी तरह मालूम है कि इसका फैसला सिर्फ घोषणात्मक है। अधिकरण के पास इसको लागू करने की कोई ताकत नहीं है और न ही उसके पास आठों दोषी व्यक्तियों में से एक को भी गिरफ्तार करवाने की क्षमता है। हम जो कर सकते हैं वह है कि संविधान के दूसरे भाग के छठे अध्याय की 31वीं धारा के अंतर्गत हम कुवालालम्पुर युद्ध अपराध आयोग को सिफारिश कर सकते हैं कि अधिकरण के दोष सिद्ध करने के फैसले के साथ उसकी कार्यवाइयों के रिकार्ड को वे अंतर्राष्ट्रीय फौजदारी न्यायालय को और संयुक्त राष्ट्र संघ व सुरक्षा परिषद को भेजें।
“अधिकरण कुवालालम्पुर युद्ध अपराध आयोग को एक और सिफारिश दे रहा है कि आठों दोषियों के नाम आयोग के युद्ध अपराधियों के रजिस्टर में दर्ज किये जायें और उन्हें प्रसारित किया जाये।
“अधिकरण युद्ध अपराध आयोग से सिफारिश करता है कि दोष सिद्धी को सबसे व्यापक तौर पर फैलाया जाये और भरपाई दी जाये क्योंकि ये व्यापक अपराध हैं जिनके लिये सभी देशों को मुकदमा चलाना चाहिये अगर इनमें से कोई भी मुलजिम उनके न्यायक्षेत्र के अंदर आता है तो।”
मज़दूर एकता लहर समझता है कि कुवालालम्पुर युद्ध अपराध आयोग ने दुनियाभर के साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्ष में बड़ा योगदान दिया है और सभी शांति पसंद ताकतों को अफगानिस्तान और इराक में लोगों के खिलाफ़ हुये युद्ध अपराधों के लिये जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाने, और अमरीकी साम्राज्यवाद व उसके सहयोगियों की युद्ध दौड़ को रोकने में मदद दी है।