नाटो शिखर सम्मेलन का विरोध

हजारों लोग शिकागो शहर में 18 मई से 21 मई के बीच नाटो शिखर सम्मेलन के विरोध में जुलूस निकाल रहे थे। इन प्रदर्शनों में भाग लेने के लिये पूरे अमरीका से और दूसरे देशों से लोग आये थे।

हजारों लोग शिकागो शहर में 18 मई से 21 मई के बीच नाटो शिखर सम्मेलन के विरोध में जुलूस निकाल रहे थे। इन प्रदर्शनों में भाग लेने के लिये पूरे अमरीका से और दूसरे देशों से लोग आये थे।

उनकी मांग थी कि 63 वर्ष पुराने इस सैनिक गठबंधन, जो द्वितीय विश्व युध्द के पश्चात सोवियत रूस को और नये जन लोकतंत्र के देशों को धमकी देने के लिये, और मज़दूर वर्ग व लोगों की क्रांति, राष्ट्रीय मुक्ति व समाजवाद की चाहत को कुचलने के लिये बनाया गया था, अब उसको खत्म किया जाये। इस दौरान, नाटो सबसे निष्ठुर आक्रमणों व युध्दों में अग्रिम भूमिका निभाता आया, और लोगों के खिलाफ़ अनेक अपराधों के लिये जिम्मेदार है। 1950 के दशक में कोरिया पर हमले से आज तक, नाटो का इस्तेमाल अमरीकी साम्राज्यवाद व उसके मित्रों के हित में होता आया है।

मुख्य प्रदर्शन रविवार 20 मई, 2012 को हुआ जिसमें मज़दूरों, विद्यार्थियों, शांति कार्यकर्ताओं और पुराने सिपाहियों ने, तथा सभी व्यवसाय के लोगों ने भाग लिया। जुलूस के 3 कि.मी. से लंबे रास्ते पर कई बार उन्हें पुलिस के साथ जूझना पड़ा। पुलिस ने 50 लोगों को हिरासत में लिया जबकि इसके पहले भी करीब 50लोगों को पुलिस हिरासत में ले चुकी थी।

20 मई के दिन शिकागो के एक मुख्य चौराहे पर पुराने सैनिकों ने, जिन्होंने अफग़ानिस्तान और इराक के अभियानों में भाग लिया था, उन्होंने नाटो की कब्ज़ाकारी फौज़ के बारे में सच्चाई बयान की। नाटो अधिकारियों के खिलाफ़ अपना विरोध प्रकट करने के लिये उन्होंने अपने मैडल फैंके। इसी तरह के विरोध प्रदर्शन वियतनाम युध्द के समय भी देखने को आये थे। रिपोर्टों के अनुसार एक 28 वर्ष के मेकेनिकल इंजीनियर ने, जिसने 2005 और 2006 में इराक में सर्विस की थी, उसने कहा, कि ''मैंने आम नागरिकों को मारे जाते और गिरफ्तार होते देखा है। मैं इसे एक संप्रभु राष्ट्र पर अवैध कब्ज़ा मानता हूं।'' 2003में इराक पर आक्रमण में और 2011में अफग़ानिस्तान में सर्विस करने वाले सेना के एक पूर्व हवलदार ने कहा कि ''इन युध्दों में कोई शान की बात नहीं है …इनमें तो सिर्फ शर्म की बात है।''

ये प्रदर्शन अमरीकी साम्राज्यवाद और साम्राज्यवादी युध्द के प्रति मज़दूर वर्ग और नौजवानों की बढ़ती घृणा को दर्शाते हैं।

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