शिकागो में नाटो शिखर वार्ता :

अफगानिस्तान में किसी भी प्रकार की साम्राज्यवादी उपस्थिति मंजूर नहीं!

अमरीका के शिकागो शहर में 18-21 मई को नाटो सांझेदारों और मित्रों की जो शिखर वार्ता हुई, उसमें मुख्य मुद्दा यह था कि अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्र किस तरह अलग-अलग तरीकों से अफगानिस्तान में अपनी दखलंदाजी और कब्ज़े को बनाये रखेंगे।

अफगानिस्तान में किसी भी प्रकार की साम्राज्यवादी उपस्थिति मंजूर नहीं!

अमरीका के शिकागो शहर में 18-21 मई को नाटो सांझेदारों और मित्रों की जो शिखर वार्ता हुई, उसमें मुख्य मुद्दा यह था कि अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्र किस तरह अलग-अलग तरीकों से अफगानिस्तान में अपनी दखलंदाजी और कब्ज़े को बनाये रखेंगे।

लगभग एक दशक पहले अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्रों ने अफगानिस्तान पर हमला किया था। हालांकि उस समय न्यू यॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 11 सितम्बर, 2001 को किये गये आतंकवादी हमले के प्रति हमले का औचित्य देकर अफगानिस्तान पर हमला किया गया था, परन्तु उस हमले के पीछे अमरीका के रणनैतिक लक्ष्य अब काफी समय से स्थापित हो चुके हैं। शीत युध्द के बाद की अवधि में अमरीकी साम्राज्यवाद ने मध्य और दक्षिण एशिया पर अपना प्रभुत्व फैलाने की लगातार कोशिश की है। इन दोनों इलाकों के मध्य में स्थित, रणनैतिक महत्व वाले देश, अफगानिस्तान पर नियंत्रण करना अमरीका के इरादों के लिये निर्णायक था।

10 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद, अब ''आतंकवाद पर जंग'' के नाम पर अमरीका और उसके मित्रों द्वारा चलाया गया अफगानिस्तान अभियान भारी कठिनाइयों में फंसा हुआ है और पूरी दुनिया में तथा अमरीका व नाटो देशों के अन्दर भी अधिक से अधिक लोग उसका विरोध कर रहे हैं। सैकड़ों-हजारों सैनिकों को लागू करने के बावजूद, नाटो ताकतें अफगानिस्तान के अन्दर अपने कब्जे क़ा विरोध करने वाली ताकतों को हरा नहीं सकी हैं। यह विरोध दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इस जंग की भारी मानवीय और भौतिक खर्च के चलते, भिन्न नाटो सरकारों को अपनी जनता के बढ़ते प्रतिरोधों का सामना करना पड़ रहा है।

इन हालातों में नाटो के घटक और मित्र दल शिकागो में इकट्ठे हुये, ताकि दूसरे तरीकों से उस इलाके पर अपना प्रभुत्व जारी रखने की व्यवस्थाएं तैयार की जा सकें। अमरीकी साम्राज्यवाद यह उम्मीद कर रहा है कि अफगानिस्तान में करज़ाई सरकार के सहारे वह अपने उद्देश्यों को हासिल कर पायेगा और हाल ही में उसने करज़ाई सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है।

यह कहा जा रहा है कि अमरीका और नाटो अफगानिस्तान को ''दीर्घ कालीन राजनीतिक और अभ्यासिक समर्थन'' देंगे, प्रतिवर्ष 4 अरब डालर से अधिक धन देंगे और 2014 तक अपनी प्रत्यक्ष हमलावर भूमिका को समाप्त कर देंगे। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने साफ-साफ कह दिया कि अफगानिस्तान में अमरीकी दखलंदाजी खत्म नहीं होगी। ''मैं नहीं समझता कि कभी भी ऐसा कोई वक्त आयेगा जब हम 'वहां हमारा काम पूरा हो गया है' कह सकेंगे'', ऐसा ओबामा ने शिकागो में कहा।

शिकागो शिखर वार्ता का एक महत्वपूर्ण पहलू पाकिस्तान के साथ बढ़ता झगड़ा था। बीते 10 वर्षों में अफगानिस्तान पर साम्राज्यवादी हमले में पाकिस्तान को एक निर्णायक भूमिका अदा करने को मजबूर किया गया है। पाकिस्तान के सभी लोग इससे बहुत नाराज हैं, पाकिस्तान के लोगों की इस नाराजगी के कारण अमरीकी साम्राज्यवाद और पाकिस्तान की सरकार वलोगों के बीच काफी आमना-सामना होता रहा है। हाल में जब नाटो ताकतों द्वारा पाकिस्तान में एक वायु सेनाअड्डेपर ''दुर्घटनावश'' बमबारी के कारण 24 पाकिस्तानी सैनिक मारे गये, तो पाकिस्तान ने अपने इलाके के अन्दर से अफगानिस्तान तक जाने वाले नाटो की सप्लाई के रास्तों को बंद कर दिया था। पाकिस्तान से माफी मांगने की बजाय, ओबामा सरकार उस पर दबाव डालती रही है। अमरीका ने आखिरी क्षण तक पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़रदारी को शिखर वार्ता का निमंत्रण नहीं दिया और जब दिया तो शिकागो में अपने ''मित्र'' की बड़े दिखावटी तरीके से उपेक्षा की। इस प्रकार अपमानजनक बर्ताव करके अमरीकी साम्राज्यवाद यह दिखाना चाहता था कि कहीं भी, कुछ भी करने का उसे पूरा अधिकार है और उसके मित्रों को भी यह बर्दाश्त करने के सिवाय कोई और चारा नहीं है।

अफगानिस्तान, पाकिस्तान, अमरीका और अन्य नाटो देशों समेत पूरी दुनिया में लोग बढ़चढ़कर मांग कर रहे हैं कि सभी विदेशी ताकतों को हमेशा के लिये अफगानिस्तान से निकल जाना चाहिये। अफगानिस्तान के लोगों को अपना भविष्य खुद तय करने की आज़ादी मिलनी चाहिये। अलग-अलग तरीकों से अफगानिस्तान में साम्राज्यवादी उपस्थिति को बनाये रखने की योजनाओं का हमें डटकर विरोध करना होगा।

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