महिला संगठनों ने विवाह नियम (संशोधन) बिल 2010 में प्रस्तावित महिला हित के लिये हानिकारक परिवर्तनों का विरोध किया

अधिकतम हिन्दोस्तानी महिलाओं के लिये, जो विवाहित जीवन में अत्याचार, अपमान, धोखा, दहेज की लगातार मांग और दूसरे प्रकार की प्रताड़नाओं से छुटकारा पाना चाहती हैं, विवाह भंग करने का फैसला आसान नहीं है। भंग विवाह को समाज में बुरी नजरों से देखा जाता है; इसके अलावा पति पर पत्नी और उसके बच्चों की आर्थिक निर्भरता अक्सर एक बहुत बड़ी रुकावट होती है। पर्याप्त भरण-पोषण और वैवाहिक संपत्ति में पर्याप्त हिस्सा

अधिकतम हिन्दोस्तानी महिलाओं के लिये, जो विवाहित जीवन में अत्याचार, अपमान, धोखा, दहेज की लगातार मांग और दूसरे प्रकार की प्रताड़नाओं से छुटकारा पाना चाहती हैं, विवाह भंग करने का फैसला आसान नहीं है। भंग विवाह को समाज में बुरी नजरों से देखा जाता है; इसके अलावा पति पर पत्नी और उसके बच्चों की आर्थिक निर्भरता अक्सर एक बहुत बड़ी रुकावट होती है। पर्याप्त भरण-पोषण और वैवाहिक संपत्ति में पर्याप्त हिस्सा न मिलने पर, महिला और उसके बच्चों को अक्सर कंगाली का सामना करना पड़ता है या अपने परिजनों पर बोझ बनना पड़ता है। इन हालतों के चलते, अनेक महिलाएं चुपचाप विवाहित जीवन का अत्याचार सहती रहती हैं क्योंकि विवाह को भंग करने के अंजाम बहुत ही कठिन होते हैं।

विवाह भंग करना आसान और महिलाओं के लिये ज्यादा सुविधाजनक बनाने की तथाकथित कोशिश बतौर, 17 मई, 2012 को सरकार ने विवाह नियम (संशोधन) बिल 2010 में कुछ नये परिवर्तन लाने की अनुमति दी, जिनके अनुसार पत्नी को पति की स्थाई रिहायशी संपत्तिा का निर्धारित हिस्सा मिलेगा। यह बिल बीते दो वर्षों से राज्य सभा में स्थगित पड़ा था।

इसी महीने के आरंभ में, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक सभा में, केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने एक ऐसे प्रावधान की भी अनुमति दी, जिसके अनुसार अगर पति और पत्नी दोनों सहमति से विवाह भंग करना चाहते हैं तो उन्हें बाध्यकारी 6 महीने की अलग रहने की अवधि को घटाने के लिये मिलकर याचिका दर्ज करनी पड़ेगी।

यह बिल का मसौदा हिन्दू विवाह कानून 1955, जो हिन्दू धर्म मानने वालों के बीच विवाह का कानून है, और विशेष विवाह कानून 1954, जो विशेष मामलों में विशेष प्रकार के विवाह का कानून है, इन दोनों में परिवर्तन लाने का प्रस्ताव करता है।

बिल के अनुसार, विवाह भंग करने के कारणों में ''अप्रतिनयित विवाह भंग''को जोड़ दिया जायेगा। ''अप्रतिनयित विवाह भंग''का दावा पति या पत्नी में से कोई भी एक कर सकता है। अगर यह कानून बन जाता है तो विवाह भंग करने के लिये किसी भी पक्ष को ''अत्याचार'', ''वैवाहिक अशांति'', ''गैर वैवाहिक संबंध'', इत्यादि का सबूत नहीं देना पड़ेगा, जैसा कि इस समय देना पड़ता है।

विवाह भंग करने के लिये दोनों पक्षों की सहमति भी जरूरी नहीं होगी। किसी भी एक पक्ष द्वारा ''अप्रतिनयित विवाह भंग''के दावे को विवाह भंग करने का पर्याप्त आधार माना जायेगा।

सरकार ने अब यह प्रस्ताव किया है कि इसका दुरूपयोग रोकने के लिये बिल में ऐसा संशोधन लाया जाये जिसके अनुसार अदालत को पत्नी और बच्चों को ''स्थाई रिहायसी संपत्तिा समेत विवाह के दौरान प्राप्त सभी संपत्ति का सु-निर्धारित हिस्सा''दिलाना होगा।

जब विवाह भंग हो जाता है तो महिला को अपने पति की संपत्ति का हिस्सा पाने के लिये अर्जी भरनी पडेग़ी।

विदित है कि इस समय विवाह भंग होने पर महिला को मात्र भरण-पोषण मिलता है जिसके मूल्य का फैसला अदालत द्वारा प्रत्येक अलग-अलग मामले में किया जाता है।

महिला संगठनों ने विवाह भंग के मामले में महिला के भरण-पोषण के संबंधित मौजूदे कानूनों को मजबूत किये बिना, इन प्रस्तावित संशोधनों का विरोध किया है। उन्होंने समझाया कि अगर इन प्रस्तावित संशोधनों को पास किया जाता है तो अधिकतर मामलों में वे महिलाओं के हितों के खिलाफ़ जायेंगे। वैवाहिक संपत्तिा का कितना हिस्सा महिला को मिलेगा, यह फैसला अभी भी हर मामले में अदालत ही करेगी। अदालतों के साथ अनुभव यही बताता है कि अधिकतर अदालतें महिला और बच्चों को भरण-पोषण दिलाने में महिलाओं के खिलाफ़ भारी पूर्वधारणा लेकर चलती हैं। जब महिला भरण-पोषण के लिये अदालत के पास जाती है तो उसे आम तौर पर पति की आमदनी का 5प्रतिशत से 35प्रतिशत मात्र मिलता है, हालांकि अक्सर महिला के साथ बच्चे भी होते हैं जिनका भरण-पोषण महिला का दायित्व होता है!

अदालत जिसे ''पर्याप्त भरण-पोषण''मानती है, वह अक्सर बहुत कम होता है और उसके साथ महिला तथा उसके बच्चे उन हालतों में नहीं जी सकते हैं जो विवाह भंग होने से पहले उनकी हालत थी। इसीलिये वैवाहिक संपत्तिा का कितना हिस्सा महिला को मिलेगा, इसका फैसला अदालत पर छोड़ने से कोई गारंटी नहीं है कि महिला को अपना जायज़ हिस्सा मिलेगा।

महिला संगठनों ने बताया कि जिन देशों में ''अप्रतिनयित विवाह भंग''विवाह भंग करने का आधार माना जाता है, वहां संपूर्ण वैवाहिक संपत्तिा के समान बंटवारे के कानून भी मौजूद हैं। उन समाजों में परिवार को बनाने तथा बच्चों की देखभाल करने में महिला की भूमिका और योगदान को कानूनी मान्यता दी गयी है और घर के बाहर के काम के बराबर आर्थिक महत्व दिया जाता है। परन्तु हिन्दोस्तानी समाज में, जहां विवाह में महिला को समान दर्जा नहीं मिलता है और जहां समाज में कानून व न्याय व्यवस्था महिलाओं के खिलाफ़ पूर्वधारणा से ग्रस्त है, वहां विवाह भंग के कारणों को और उदारवादी बनाने के कदमों से महिलाओं के साथ भेदभाव और बढ़ेगा।

महिला संगठनों ने यह मांग की है कि ''अप्रतिनयित विवाह भंग''को विवाह भंग करने के आधार बतौर संशोधन लाने से पहले यह सुनिश्चित किया जाये कि विवाह भंग होने पर वैवाहिक संपत्तिा में महिला को समान अधिकार देने वाला कानून पास हो। उन्होंने मांग की है कि महिला और उसके बच्चों के भरण-पोषण से संबंधित कानूनों को मजबूत किया जाये ताकि उन्हें अपना उचित हिस्सा मिले। जब तक ऐसे कानून नहीं हैं और उन्हें सख्ती से लागू नहीं किया जाता है, तब तक महिला और उसके बच्चों को ''विवाह के दौरान प्राप्त सभी संपत्तिा का सु-निर्धारित हिस्सा''के नाम पर क्या मिलेगा, यह अदालतों की मर्जी पर छोड़ दिया जायेगा।

इस बिल को अब स्थगित कर दिया गया है और सरकार ने महिला संगठनों की चिन्ताओं पर ध्यान देकर इसे फिर से संशोधित करने का वादा किया है। यह महिला संगठनों के लगातार संघर्ष और महिलाओं के अधिकारों की हिफ़ाज़त में उनकी सतर्कता का परिणाम है।

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