फौजीकरण बड़े पूंजीपतियों के साम्राज्यवादी मंसूबे को दर्शाता है!

अप्रैल 2012 के बीच में, हिन्दोस्तान ने परमाणु अस्त्र वाहक लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि-5 का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। अग्नि-5 को एक अन्तर महाद्वीप बैलिस्टिक मिसाइल (आई.सी.बी.एम.) बताया गया है। उसे आंध्र प्रदेश के समुद्र तट से छोड़ा गया और वह 5000 कि.मी.

अप्रैल 2012 के बीच में, हिन्दोस्तान ने परमाणु अस्त्र वाहक लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, अग्नि-5 का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। अग्नि-5 को एक अन्तर महाद्वीप बैलिस्टिक मिसाइल (आई.सी.बी.एम.) बताया गया है। उसे आंध्र प्रदेश के समुद्र तट से छोड़ा गया और वह 5000 कि.मी. से अधिक दूरी पर दक्षिणी हिंद महासागर में सफलतापूर्वक गिरा। इजारेदार पूंजीपतियों की मीडिया दो कारणों से फौरन उत्तेजित हो गयी। पहला, कि इस मिसाइल को छोड़ कर हिन्दोस्तान ऐसी मिसाइलों से युक्त कुछ गिन-चुने देशों – अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन और इस्राइल के छोटे से गिरोह का सदस्य बन गया। दूसरा, कि अब हिन्दोस्तान परमाणु अस्त्रों से सिर्फ पूरे पाकिस्तान पर ही नहीं बल्कि पूरे चीन पर भी निशाना साध सकता है।

अग्नि-5 के परीक्षण पर अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया में विभिन्न देशों की रणनीतियों की झलक मिलती है। अमरीका ने हिन्दोस्तान द्वारा आई.सी.बी.एम. के परीक्षण की आलोचना नहीं की, बल्कि हिन्दोस्तान को एक ''जिम्मेदारपरमाणु ताकत'' बताया। यह उत्तर कोरिया और ईरान के खिलाफ़ अमरीकी साम्राज्यवाद के बेरोक अभियान का बिल्कुल उल्टा है। किसी भी ताकत ने इस परीक्षण के लिये औपचारिक तौर पर हिन्दोस्तान की आलोचना नहीं की। कई हिन्दोस्तानी और विदेशी टिप्पणीकारों ने इस बात को उठाया है कि हिन्दोस्तान द्वारा इस परीक्षण पर अमरीका की प्रतिक्रिया के पीछे एक कारण यह है कि अमरीका चीन के खिलाफ़ रणनैतिक सैनिक गठबंधन में हिन्दोस्तान को अपना मित्र बनाना चाहता है। चीन और पाकिस्तान में मीडिया ने इस बात पर ध्यान दिया है और अमरीका की प्रतिक्रिया की आलोचना की है।

2012-13 के लिये केन्द्र सरकार द्वारा घोषित बजट में सेना के लिये निर्धारित धन राशि को 193,408 करोड़ रु. तक बढ़ाया गया है। यह पिछले वर्ष से 17 प्रतिशत वृध्दि है। पिछले वर्ष की निर्धारित धन राशि, 164,000 करोड़ रु., 2010-11 की निर्धारित राशि से 11.6 प्रतिशत अधिक थी। यह स्पष्ट है कि बड़ी तेज़ी से फौजीकरण किया जा रहा है।

एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरता जब मीडिया में ऐसी कहानियां नहीं छपतीं, कि हमारी सेना के पास चीन से लड़ने के लिये पर्याप्त आधुनिक हथियार नहीं हैं, कि सेना के अस्त्रागार को फौरन और बढ़ाने की जरूरत है। हालांकि इस वर्ष के रक्षा बजट, का बहुत बड़ा हिस्सा 113,829 करोड़ रुपये, ''राजस्व'' खर्च (यानि वेतन और दैनिक खर्च) के लिये निर्धारित है, परन्तु इसके बावजूद नये हथियार खरीदने के लिये लगभग 79,579 करोड़ रुपये बचते हैं। हाल के वर्षों में यह माना जाता है कि हिन्दोस्तान दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है। कई रिपोर्टों से जाना जाता है कि हिन्दोस्तान इसी वित्त वर्ष में कई मुख्य लड़ाकू विमान, हैलिकॉप्टर और हाविट्ज़र आदि के सौदे करने वाला है।

सभी मुख्य सैनिक हथियार निर्यात करने वाले देशों ने हिन्दोस्तान के साथ सौदा करने के लिये अपने प्रतिनिधि मंडल भेजे हैं। अमरीकी रक्षा सचिव पैनेटा 6 जून, 2012 को दिल्ली आ रहा है, जहां वह हमारे दोनोंदेशों के बीच रणनैतिक सहकार्य को और बढ़ायेगा तथा दो मुख्य हथियारों के सौदों पर हस्ताक्षर करेगा। यह नया नियुक्त रक्षा सचिव दिल्ली आने से पहले सिंगापुर में 28 एशिया-प्रशांत महासागर राज्यों के अन्तर-सरकारी सुरक्षा मंच, शांग्री ला वार्ता को संबोधित करेगा और फिर वियतनाम की यात्रा भी करेगा। अमरीका ने ऐलान किया है कि वह खुद को प्रशांत महासागर का देश मानता है और खास रणनैतिक महत्व को ध्यान में रखते हुये यह रक्षा सचिव वियतनाम और हिन्दोस्तान की यात्रा करने वाला है, जिन दोनों देशों की चीन के साथ समस्या है।

''अमरीका-हिन्दोस्तान का संबंध विकसित करना अमरीकी सरकार के लिये बहुत बड़ी प्राथमिकता है और अमरीका के लिये हमारा दोतरफा संबंध 21वीं सदी को परिभाषित करने वाले संबंधों में से एक है'', ऐसा पेंटागन के प्रेस सचिव जॉर्ज लिटल ने रक्षा सचिव पैनेटा की हिन्दोस्तान यात्रा के बारे में मीडिया को बताया।

इससे पूर्व, हिन्दोस्तान में अमरीकी राजदूत नैंसी पावल ने अप्रैल के अन्त में घोषित किया था कि अमरीकी कंपनियां कुल 8 अरब डालर के रक्षा सौदों पर हस्ताक्षर करने वाली हैं। ''हम प्रत्यक्ष व्यवसायिक और विदेशी सैनिक बिक्री में अतिरिक्त 8 अरब डालर के सौदों पर हस्ताक्षर करने जा रहे हैं'', पावल ने कहा। ''जैसे-जैसे हम आपस में हथियारों की लेन-देन बढ़ायेंगे, वैसे-वैसे हमारे दोतरफा रक्षा संबंध और मजबूत होते जायेंगे।'' बोइंग कंपनी, लाकहीड मारटिन कॉरपोरेशन और रेथेयन कंपनी समेत कई अमरीकी कंपनियां हिन्दोस्तान की इस प्रस्तावित सैनिक खरीदारी में अपना हिस्सा सुरक्षित करने की कोशिश कर रही हैं। औद्योगिक समुदाय हनीवेल इंटरनेशनल इंक हिन्दोस्तान की वायु सेना के जैगुवार लड़ाकू विमानों के लिये इंजन बेचना चाहता है।

हिन्दोस्तान की हथियारों की खरीदारी की लंबी सूची में 20 अरब डालर की कीमत के लड़ाकू जेट विमान, 1.5 अरब डालर की कीमत के रिफ्यूएलिंग विमान, कई अरबों डालर के पनडुब्बी, विमान वाहक, टैंक, बंदूक व तोप और अन्य हथियार शामिल हैं। यह सब अगले 5 वर्षों में हथियारों पर 80 अरब डालर के अनुमानित खर्च का हिस्सा है। मार्च 2012 के अंत में दिल्ली में डेफेक्सपो नामक रक्षा हथियारों का जो व्यापार मेला हुआ था, उसमें भारी सैनिक हथियारों का उत्पादन करने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों के फ्रांसीसी, बर्तानवी, अमरीकी, इस्राइली और रूसी हथियार सौदागर अच्छे से अच्छे सौदों की तलाश में, आपस में होड़ लगा रहे थे। चाहे वे निजी कंपनियां हों या राजकीय, हथियारों की सप्लाई करने वाली सभी मुख्य कंपनियां अपने-अपने देशों की नीतियों को निर्धारित करती हैं। उनके देशों की सरकारों के प्रधान नियमित तौर पर उन कंपनियों के पक्ष में सौदा करने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार, जब हिन्दोस्तानी सरकार ने इस वर्ष कुछ महीने पहले, फ्रांस के राफायेल लड़ाकू विमान को 20 अरब डालर के विशाल सौदे के लिये चुना, तो इससे पूर्व तत्कालीन सभी दूसरे साम्राज्यवादियों की तरह, हिन्दोस्तानी साम्राज्यवाद को ऊर्जा और कच्चे माल की जरूरत है तथा अपने उत्पादित माल व सेवाओं के लिये बाजार की जरूरत है। हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपति विदेश में अपने आर्थिक और रणनैतिक हितों को हथियारों के बल से सुरक्षित रखने की क्षमता चाहते हैं। वे न सिर्फ यह चाहते हैं कि दुनिया की दूसरी बड़ी साम्राज्यवादी ताकतें हिन्दोस्तान को एक मुख्य ताकत मानें, बल्कि वे यह भी चाहते हैं कि अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को पूरा करने के लिये उन्हें पूरी सैनिक ताकत से लैस किया जाये। लाखों-करोड़ों रुपये के नये-नये सैनिक हथियारों की तेज़ गति से खरीदारी और आधुनिक, अत्यंत हमलावर मिसाइलों के विकास के पीछे यही मुख्य कारण है।

हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपति हिन्द महासागर क्षेत्र और उसके तटवर्ती राज्यों को अपना ''जायज़ प्रभाव क्षेत्र'' मानते हैं। इस समय उसका सैनिक असूल है दक्षिण एशिया (जिसे वह ''अपना ही आंगन'' मानता है) में सबसे प्रधान ताकत बतौर अपने रुतबे को बनाये रखना और दक्षिण-पूर्वी एशिया, अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के संपूर्ण इलाके में अपने प्रतिस्पर्धियों को चुनौती देना। साथ ही साथ, हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपति और भी दूर-दूर तक अपने पंख पसारने के हर मौके का इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसे कि वे प्रशांत महासागर में वियतनाम के साथ, उसके समुद्र तट पर संयुक्त तेल खोज कर रहे हैं। हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपतियों द्वारा तेजी से फौजीकरण, सैन्य बलों की सभी शाखाओं – सेना, नौसेना और वायु सेना – के विस्तार पर खास ध्यान दिया जाना और इसके साथ-साथ, भूमि, समुद्र या वायु के ज़रिये, अलग-अलग दुनिया तक पहुंचायी जाने वाली परमाणु अस्त्र युक्त मिसाइलों का विकास, इन सब कदमों को इस इलाके के विभिन्न देशों में हिन्दोस्तानी रणनैतिक निवेशों के विस्तार के साथ नज़दीकी से संबंधित परिप्रेक्ष्य में समझना होगा।

सैनिक हथियारों की खरीदारी में हिन्दोस्तान के पूंजीपतियों ने अपने पास उपलब्घ सभी रास्तों को खुला रखा है। उन्होंने अपने लिये रणनैतिक तौर से सबसे अच्छे सौदे पाने के लिये विभिन्न देशों के सैनिक हथियार निर्माताओं के बीच के अंतर-विरोधों का पूरा फायदा उठाया है। इसका यह मतलब है कि हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने यह सुनिश्चित किया है कि वे किसी एक देश से ही खरीदारी करने को मजबूर न हों और जिस कंपनी से यंत्र खरीदा गया है उसी पर पुर्जों के लिये निर्भर न हों। इसके बजाय, उन्होंने प्रौद्योगिकी के स्थानांतरण (ट्रांस्फर) की मांग की है, ताकि पुर्जे और बाद में पूरे यंत्र भी हिन्दोस्तान में ही उत्पादित किये जा सकें। हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने यह भी सुनिश्चित किया कि हिन्दोस्तान में विनिर्माण के लिये विदेशी हथियार कंपनियों के साथ सांझेदारी बनाने में, हिन्दोस्तानी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को इन सौदों से पूरा फायदा हो सके। यह स्पष्ट है कि मध्यकालीन और दीर्घकालीन योजना में, सैनिक हथियार उत्पादन करने वाली हिन्दोस्तानी कंपनियां खुद अपनी क्षमता बनाने का उद्देश्य रखती हैं, ताकि वे खुद दुनिया के विभिन्न देशों को सैनिक हथियारों की सप्लाई कर सकें।

हर एक मुख्य हथियार सौदे में, सभी पक्षों के मुनाफे या नुकसान बहुत ही ज्यादा कीमत के हैं। सभी साम्राज्यवादी ताकतें 'अपनी' कंपनियों के पक्ष में पूरा जोर लगाती हैं। अपनी-अपनी कंपनियों के लिये अभियान चलाने और उनके हितों को बढ़ावा देने का काम खुलेआम, ललचाकर या दबाव डालकर, दोनों तरीकों से किया जाता है। अधिक पूंजी निवेश का वादा, ललचाने वाले विशेष देन, सभी पक्षों को रिश्वत, कर्ज़ा और अंतर्राष्ट्रीय मंचों में हिन्दोस्तानी सरकार को समर्थन देने का वादा – इस प्रकार के कुछ तरीके अक्सर इस्तेमाल किये जाते हैं। दूसरी ओर, अंदरूनी सौदों का खुलासा करने की धमकी, अंतर्राष्ट्रीय मंचों में हिन्दोस्तानी सरकार से समर्थन हटाना, इत्यादि – इस प्रकार के तरीकों से खरीदार, यानि हिन्दोस्तानी सरकार पर दबाव भी डाला जाता है।

जैसे-जैसे फौजीकरण बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे विभिन्न हथियार विक्रेताओं और उनके राज्यों के बीच, सबसे अच्छा सौदा किसे मिलेगा, इस बात को लेकर अंतर-विरोध भी तेज़ होते जा रहे हैं। करोड़ों-अरबों डालरों के इस गंदे खेल के खिलाड़ी अपने मकसद को पूरा करने के लिये कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटते। मिसाल के तौर पर कोई कंपनी अपनी प्रतिस्पर्धी कंपनियों द्वारा बेचे जा रहे हथियारों की कमियों के बारे में सूचना 'लीक' कर देती है या उनकी खरीदारी में तथाकथित घूसखोरी या घोटालों के बारे में 'खुलासा' कर देती है।

हथियारों, सैनिक यंत्रों और प्रणालियों पर इतने बड़े पैमाने के खर्चे के पीछे हिन्दोस्तानी शासक वर्ग की प्रसारवादी, अमिट भूख और एक विश्वस्तरीय ताकत बनने की उसकी दौड़ है। विभिन्न प्रतिस्पर्धी हथियार सप्लायरों और हिन्दोस्तानी शासक संस्थाओं में उनके अपने-अपने पक्षधरों के बीच तीक्ष्ण स्पर्धा के कारण, काफी हद तक सैनिक खरीदारी से संबंधित तरह-तरह के घोटालों का पर्दाफाश हो रहा है।

हमारे शासक पूंजीपतियों द्वारा यह बढ़ता फौजीकरण इस इलाके केलोगों की शांति, सुरक्षा और खुशहाली के लिये एक गंभीर खतरा है। इसकी वजह से इस इलाके में हथियारों की दौड़ ज्यादा तेज़ हो जाती है तथा देश के दुर्लभ संसाधनों को अनुत्पादक सैनिक खर्च पर नष्ट किया जाता है। इसके अलावा, दुनिया को फिर से बांटने के लिये बढ़ती अंतर-साम्राज्यवादी स्पर्धा में हमारा देश और ज्यादा फंसता जाता है। अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके मित्र हिन्दोस्तान को अमरीका के साथ गठबंधन बनाकर, चीन को चुनौती देने को प्रेरित कर रहे हैं। पश्चिम एशिया और मध्य एशिया में अमरीकी रणनैतिक हितों का समर्थन करने के लिये भी हिन्दोस्तान को प्रेरित किया जा रहा है। प्रतिक्रियावादी जंग में हमारे लोगों के फंसने का खतरा बढ़ता जा रहा है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *