28 फरवरी, 2002 की भयानक रात और उसके बाद के दिनों में हुआ हत्याकांड आज भी गुजरात के लोगों और इंसाफ के लिये संघर्ष कर रहे लोगों को तड़पाता है।
28 फरवरी, 2002 की भयानक रात और उसके बाद के दिनों में हुआ हत्याकांड आज भी गुजरात के लोगों और इंसाफ के लिये संघर्ष कर रहे लोगों को तड़पाता है।
गोधरा स्टेशन में 50 कारसेवकों समेत टे्रन का जलना, उसके बाद मुसलमान लोगों का जनसंहार, बेरहमी से की गई हत्याएं, बलात्कार और तरह-तरह के भयानक अत्याचार में जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खोये थे, वे आज भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं। गुनहगारों को आज भी सज़ा नहीं दी गयी है। शासक भाजपा और सरकारी अफसर, जिन्होंने उस जनसंहार का आयोजन किया था और जिनकी देख-रेख में उसे अंजाम दिया गया था, उन पर कोई जिम्मेदारी नहीं डाली गयी है।जिन्होंनेजनसंहार को आयोजित किया था, वे सत्ता में बैठे हैं और उन्हें केन्द्रीय राज्य का पूरा समर्थन प्राप्त है।
जनसंहार की घटनाओं, मुख्यमंत्री समेत राज्य सरकार के ऊंचे से ऊंचे अफसरों और पुलिस की भूमिका की जांच करने के लिये बहुत सारे ''जांच आयोग'' नियुक्त किये गये हैं (देखिये बॉक्स)। इन आयोगों ने अपना असली मकसद पूरा कर लिया है। उनका असली मकसद है लम्बे समय तक कार्यवाहियों को खींचकर इंसाफ का इंतजार करने वाले लोगों के गुस्से को ठण्डा कर देना, ताकि लोग यह न समझ पायें कि वह जनसंहार राज्य द्वारा आयोजित था और इस भ्रम में रहें कि राज्य गुनहगारों को सज़ा देगा।
इस महीने के आरंभ में गुजरात के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) ने नरेन्द्र मोदी को बेकसूर बताया। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच में मदद करने के लिये नियुक्त अधिवक्ता ने ऐलान कर दिया कि मोदी की भूमिका की और जांच की जानी चाहिये, कि मोदी पर मुकदमा चलाने की वजह हो सकती है। इसका यह मतलब है कि गुजरात के जनसंहार को आयोजित करने वालों का बाल तक बांका नहीं होगा, कि केन्द्र में शासन कर रही कांग्रेस पार्टी अपने ही तंग हितों के लिये गुजरात जनसंहार का इस्तेमाल करके, मोदी और भाजपा पर निशाना साधती रहेगी। और लोग ''इंसाफ'' के दिन का इंतजार करते रहेंगे!
पर हिन्दोस्तान के लोगों ने बहुत पहले ही कौन गुनहगार है, इस पर अपना फैसला सुना दिया है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा कौन गुनहगार है, इसकी घोषणा का इंतजार नहीं कर रहे हैं! बीते 10 वर्षों में पीड़ितों के बयानों, मानव अधिकारदलों के प्रयासों, स्वतंत्र मीडिया रिपोर्टों और एस.आई.टी. की अपनी खोज से यह स्पष्ट हो चुका है कि गुजरात का जनसंहार राज्य द्वारा आयोजित था। बहुत सारे दलों ने जांच किये हैंजिसमें, अप्रैल 2002 में जस्टिस कृष्णा अय्यर की प्रधानता में एक कनसर्नंड सिटिजंस ट्रिब्यूनल, जिसमें सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस सावंत और बॉम्बे हाई कोर्ट के सेवानिवृत्ता जज जस्टिस सुरेश भी शामिल थे, ने नरेन्द्र मोदी और उनके मंत्रियों को जनसंहार में उनकी भूमिका के लिये दोषी ठहराया था।
बीते 10 वर्षों के अनुभव ने यह दिखाया है कि पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के नागरिक दलों के प्रयासों को किस तरह बार-बार खारिज़ कर दिया गया, किस तरह अदालतों और पुलिस पर दांवपेच किया गया है, कैसे अपराधी अफसरों को इनाम दिये गये हैं जबकि हत्याओं का विरोध करने वाले अफसरों को सज़ा दी गयी है, कैसे सरकारी रिकार्ड और सबूत नष्ट किये गये हैं।
2002 में गुजरात का जनसंहार कुछ उसी भयानक तरीके से आयोजित और लागू किया गया था जिस तरीके से नवम्बर 1984 में दिल्ली और अन्य शहरों में तत्कालीन शासक कांग्रेस पार्टी द्वारा सिखों का कत्लेआम किया गया था। जैसा कि सभी जानते हैं, उस कत्लेआम के अपराधी भी आज तक, 27 वर्ष बाद खुले घूम रहे हैं!
1984, 1992 और 2002 के हत्याकांडों के गुनहगारों को सज़ा दिलाने के संघर्ष में हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी हमेशा आगे रही है। हमने गुनहगारों को सज़ा दिलाने के लिये संघर्ष करने वालों को बार-बार यह समझाया है कि लोग सांप्रदायिक जनसंहार के आयोजकों से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे इंसाफ दिलायेंगे या आने वाले समय में इस प्रकार के जनसंहार को होने से रोकेंगे। हम हिन्दोस्तानी राज्य और कांग्रेस पार्टी या भाजपा जैसी राजनीतिक पार्टियों से यह उम्मीद नहीं कर सकते। हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि अपराध को आयोजित करने और अंजाम देने वाला खुद को ही इसके लिये सज़ा देगा।
मजदूर एकता लहरहमारी जनता पर इस प्रकार के भयानक अपराध करने वाले सभी गुनहगारों की सज़ा हेतु संघर्ष को तेज़ करने के लिये मजदूर वर्ग और मेहनतकशों को एकजुट होने का आह्वान देती है। हम जनता के हाथों में राज्य सत्ता लाने के लिये संघर्ष को तेज़ करें, ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि कमान के पदों पर अफसर सांप्रदायिक हत्या और हिंसा को रोकने की अपनी जिम्मेदारी के प्रति जवाबदेह हों, कि इस प्रकार के भयानक अपराधों के गुनहगारों को सज़ा मिले, चाहे समाज में उनका कोई भी रुतबा हो।
अपराधियों और कातिलों के बचाव में
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