इस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवादी साज़िश और दखलंदाजी की निंदा करें!
मई के आरंभ में जब अमरीकी विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन ने हिन्दोस्तान की यात्रा की, तो अमरीकी साम्राज्यवादियों ने उस अवसर का फायदा उठाकर, अपने दुष्ट इरादों को पूरे करने के उद्देश्य से, हिन्दोस्तान पर और दबाव डालने और हमारे अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी करने व साजिश रचने और इस इलाके के मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश
इस इलाके में अमरीकी साम्राज्यवादी साज़िश और दखलंदाजी की निंदा करें!
मई के आरंभ में जब अमरीकी विदेश सचिव हिलेरी क्लिंटन ने हिन्दोस्तान की यात्रा की, तो अमरीकी साम्राज्यवादियों ने उस अवसर का फायदा उठाकर, अपने दुष्ट इरादों को पूरे करने के उद्देश्य से, हिन्दोस्तान पर और दबाव डालने और हमारे अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी करने व साजिश रचने और इस इलाके के मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की।
क्लिंटन ने इस बात को छिपाने की कोई कोशिश नहीं की कि वह हिन्दोस्तान पर ईरान से तेल खरीदना बंद करने के लिये दबाव डालने आयी थी। ईरान हिन्दोस्तान को तेल का एक मुख्य आपूर्तिकर्ता है। क्लिंटन ठीक उन्हीं दिनों हिन्दोस्तान आयी, जब ईरान सरकार का एक व्यापार प्रतिनिधिमंडल हिन्दोस्तान आया हुआ था। अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान के खिलाफ़ युध्द भड़काने पर तुले हुये हैं। इसकी यह वजह है कि एशिया और फारस की खाड़ी क्षेत्र में अमरीकी आधिपत्यवादी इरादों के रास्ते में ईरान की सरकार और जनता एक रुकावट बन कर खड़ी हैं। ईरान हमारे पड़ौस के इलाके में एक महत्वपूर्ण देश है और हिन्दोस्तान की सरकार व जनता का ईरान के साथ कोई झगड़ा नहीं है। परन्तु अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान के साथ हिन्दोस्तान के संबंधों में एक के बाद दूसरी रुकावट डालते जा रहे हैं। कुछ समय पहले तक हिन्दोस्तान ईरान से अपने 16 प्रतिशत तेल की आयात करता था, परन्तु अब उसे सिर्फ 7 प्रतिशत तक घटा दिया गया है। यह अमरीका के सीधे दबाव के कारण तथा ईरान के साथ व्यापार करने वाले देशों पर अमरीका द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों की वजह से इस आर्थिक संबंध को बनाये रखने में मुश्किलों के कारण किया गया। ईरान के साथ हमारे संबंधों को कम करना हिन्दोस्तानी लोगों व ईरानी लोगों, दोनों के हितों के खिलाफ़ है। इसी मुद्दे को केन्द्र बिन्दू बनाकर हिलेरी क्लिंटन की यह यात्रा एक अमित्रतापूर्ण कदम था जो हमारी जनता के हितों के खिलाफ़ है।
संप्रग सरकार पर ईरान के साथ संबंध रोकने का दबाव डालने की अपनी कोशिशों से ध्यान हटाने के लिये, क्लिंटन ने हिन्दोस्तान के उस प्रचार का समर्थन किया कि पाकिस्तान हिन्दोस्तान के खिलाफ़ आतंकवाद और आतंकवादी हरकतों को रोकने के लिये ''पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है''। हिन्दोस्तान की धरती पर खड़ी होकर क्लिंटन ने यह मांग की कि पाकिस्तानी सरकार हाफीज़ मोहम्मद सईद का पीछा करे, जिसे संप्रग सरकार मुंबई आतंकवादी हमले के लिये जिम्मेदार मानती है, हालांकि पाकिस्तान सरकार यह दावा करती है कि उनके पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पाकिस्तान की अदालतों में हाफीज़ मोहम्मद सईद पर मुकदमा चलाया जा सके। इस पूरे अभियान का मकसद था हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी की आग को भड़काना, ऐसे समय पर जब दोनों पक्ष आपसी बातचीत को फिर से शुरू करने की कुछ-कुछ कोशिशें कर रहे हैं। अमरीका और दूसरे साम्राज्यवादियों ने हमेशा हिन्दोस्तान और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी से लाभ उठाया है और दोनों देशों में अपनी उपस्थिति और प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया है। अत: हिन्दोस्तान की धरती पर पाकिस्तान के खिलाफ़ प्रचार करने की क्लिंटन की यह हरकत भी हमारे इलाके में शान्ति और पड़ौसियों के बीच अच्छे संबंध बनाने की कोशिशों के खिलाफ़ है।
अपनी यात्रा के दौरान, क्लिंटन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी से मिलने कोलकाता गयी। वहां क्लिंटन ने पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट शासन को हराने के लिये बार-बार ममता बैनर्जी की तारीफ की। हमारे देश की अंदरूनी राजनीति में पक्ष लेने का किसी दूसरे देश के अफसर का क्या अधिकार है? क्लिंटन किसी पाक इरादे से अपने मेज़बान की तारीफ नहीं कर रही थी।
हालांकि विदेशी नेताओं द्वारा हिन्दोस्तान में दिल्ली के अलावा अन्य जगहों पर यात्रा करना कोई नई बात नहीं है, परन्तु अंदरूनी राजनीति पर टिप्पणी करना सभी कायदों के खिलाफ़ है। अमरीकी साम्राज्यवादी हिन्दोस्तान के विभिन्न राजनीतिक नेताओं के साथ अपने संबंध बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि कुछ नेताओं को दूसरे नेताओं के खिलाफ़ भड़काया जाये और इस तरह उनके बीच में फूट डाली जाये तथा हिन्दोस्तानी राजनीतिक संस्थान में दांव-पेच करने की उनकी शक्ति बढ़ाई जाये। यह एक खतरनाक खेल है जो अमरीकी साम्राज्यवादी खेल रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के साथ अपनी मुलाकात के दौरान हिलेरी क्लिंटन ने हिन्दोस्तान और बांग्लादेश के बीच तीस्ता जल विवाद का मुद्दा उठाया। विदित है कि यह हमारे दोनों देशों के बीच लंबे अरसे से चलता आ रहा विवाद है, जो देश के विभाजन का परिणाम है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कुछ महीने पहले, हमारे प्रधान मंत्री के साथ बांग्लादेश की प्रधान मंत्री शेख हसीना से मिलने से इंकार कर दिया था और इस तरह दर्शाया था कि इस मुद्दे पर उनका केन्द्र सरकार से मतभेद है। तीस्ता जल विवाद पर अमरीकी साम्राज्यवादी नेता क्लिंटन ममता बैनर्जी के साथ क्यों बातचीत करना चाहती है? क्या यह इस समय अमरीकी साम्राज्यवाद के हितों को बढ़ावा देने के मकसद से, हिन्दोस्तान में व हमारे पड़ौस के इलाके में शत्रुता भड़काने की अमरीका की सोची-समझी कोशिश नहीं है? हिन्दोस्तान के मजदूर-मेहनतकश इस बात को भी नजरंदाज नहीं कर सकते कि पिछली बार जब क्लिंटन हिन्दोस्तान आयी थी, तब वह तामिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता से मिली थी और उसकी खूब तरीफ की थी।
उसके बाद उसने श्री लंका में तामिल लोगों के मुद्दे पर जयललिता से चर्चा की थी। यह कोई इत्तेफ़ाक नहीं माना जा सकता कि इसके कुछ ही समय बाद, जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र संघ मानव अधिकार आयोग द्वारा श्रीलंका में मानव अधिकार हनन के विषय पर चर्चा करने के लिये आयोजित बैठक में, श्रीलंका को फटकार लगाने में, हिन्दोस्तानी सरकार ने अमरीका और यूरोप का समर्थन किया। ऐसा करके उसने ''विशेष देशों पर प्रस्तावों'' का विरोध करने के अपने पूर्व रवैये से अलग रास्ता चुना। यह बात भी छुपी नहीं है कि श्रीलंका पर संयुक्त राष्ट्र संघ मानव अधिकार आयोग की बैठक से पूर्व, तामिलनाडु की राजनीतिक पार्टियां, मुख्यत: अन्ना द्रमुक व द्रमुक अमरीका-समर्थित प्रस्तावों का समर्थन करने में, आपस में होड़ लगा रही थीं और संप्रग सरकार को धमकी दे रही थीं कि अगर उसने श्री लंका की निंदा नहीं की तो वे सरकार को गिरा देंगी।
हिन्दोस्तान के अंदरूनी मामलों में तथा अन्य देशों के साथ हिन्दोस्तान के संबंधों में हस्तक्षेप करने का अमरीका व दूसरे साम्राज्यवादियों को कोई अधिकार नहीं है। इस बात की हमें निंदा करनी चाहिये कि संप्रग सरकार और पूंजीवादी विपक्ष की मुख्य पार्टियां क्लिंटन की इस यात्रा के दौरान इन गतिविधियों पर चुप्पी साधी हुई हैं। हिन्दोस्तान के मजदूर-मेहनतकश साम्राज्यवादी ताकतों के प्रतिनिधियों द्वारा इस तरह की यात्राओं को पसंद नहीं करते। ये सभी साम्राज्यवादी ताकतें हमारे देश व लोगों और हमारे पड़ौस के देशों व लोगों की संप्रभुता व हितों के खिलाफ़ काम करती हैं। हिलेरी क्लिंटन की यात्रा और यहां आकर उसकी हरकतों की मजदूर एकता लहर कड़ी निंदा करती है।