आयरलैंड घोर संकट में : एक और पूंजीवादी हीरो ढेर हुआ

यूनान के बाद आयरलैंड दूसरी यूरोपीय सरकार है जिसने दिवालियेपन की घोषणा कर दी है और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से विशेष बचाव ऋण खोज रहा है।
पिछले दो दशकों में, यूरोपीय अर्थव्यवस्था में आयरलैंड के कामकाज की बड़ी प्रशंसा की गयी थी। दूसरे यूरोपीय देशों के मुकाबले, आयरलैंड में पूंजीवादी निगमों के लिये आयकर और ब्याज की दर काफी कम थी। इसके जरिये यहां पर पूंजी को खूब आकर्षित करन

यूनान के बाद आयरलैंड दूसरी यूरोपीय सरकार है जिसने दिवालियेपन की घोषणा कर दी है और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से विशेष बचाव ऋण खोज रहा है।
पिछले दो दशकों में, यूरोपीय अर्थव्यवस्था में आयरलैंड के कामकाज की बड़ी प्रशंसा की गयी थी। दूसरे यूरोपीय देशों के मुकाबले, आयरलैंड में पूंजीवादी निगमों के लिये आयकर और ब्याज की दर काफी कम थी। इसके जरिये यहां पर पूंजी को खूब आकर्षित करने में मदद मिली। तेजी से विदेशी पूंजी आने से पूंजीवादी संवर्धन की दर में बहुत वृध्दि हुयी, जिसकी वजह से बहुत से विदेशी श्रमिक आयरलैंड में नौकरी के लिये आये।
आयरलैंड में तेज पूंजीवादी संवर्धन से 90 के दशक और 21वीं शताब्दी की शुरुवात में निवेशकों को जबरदस्त मुनाफा मिला। इसका सबसे बड़ा भाग वित्तीय संस्थानों को प्राप्त हुआ – बड़े बैंकों, बीमा कंपनियों, उपक्रमी पूंजी (वेंचर केपिटल) कंपनियों, आदि को। एंग्लो-आयरिश बैंक के बाद दूसरे ऐसे संस्थानों का संवर्धन, सकल घरेलू उत्पाद से कहीं ज्यादा तेजी से हुआ।
पूंजीवादी मुनाफे की ऊंची दर से वहां के शहरों में भूमि-भवनों की कीमतें तेजी से बढ़ीं। उत्पादक निवेशों की शुरुवाती तीव्र गति के बाद, वित्तीय पूंजी भूमि-भवनों में जाने लगी। इससे शहरी भूमि बजार में एक बुलबुला बन गया। भूमि-भवनों के लिये वित्तीय संस्थानों ने सट्टेबाजी ऋण देने शुरु कर दिये जबकि उत्पादन में मंदी आने लगी क्योंकि, न केवल आयरलैंड में बल्कि पूरे यूरोप में, मेहनतकश लोगों की खरीदी क्षमता बहुत सीमित थी। इसके साथ ही 2008 में विश्वव्यापी मंदी छायी और आयरलैंड की भूमि-भवनों की कीमतों के साथ उसकी सफलता की कहानी भी धराशायी हो गयी।
सितंबर 2008 में आयरलैंड की सरकार ने घोषित कर दिया कि उसकी अर्थव्यवस्था विकट संकट की अवस्था में है। 2009 तक इसे आर्थिक संकट कहा गया। 2009 की पहली तिमाही में, पिछले वर्ष की इसी तिमाही के मुकाबले, आयरलैंड का सकल घरेलू उत्पाद 8.5 प्रतिशत घटा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बेरोजगारी में 11 प्रतिशत की वृध्दि हुयी। 2009 में 65,000 मेहनतकश लोग आयरलैंड छोड़ कर बाहर गये। 2010 के अनुमान के अनुसार यह संख्या अब 1,20,000 तक पहुंच गयी है।
2009 के बजट में आयकर की दर बढ़ाने और लड़कियों के लिये मुफ्त टीकाकरण कार्यक्रम को वापिस लेने के प्रस्ताव थे। यानि कि, बड़े बैंकों के सट्टेबाजी मुनाफों को बरकरार रखने के लिये, मेहनतकश लोगों पर बोझ डाला जा रहा था।
2009 की शुरुवात से आयरलैंड की सड़कों पर, बढ़ती बेरोजगारी, सामाजिक खर्चे में कटौती, मज़दूरों की पेन्शन की डकैती और वित्तीय बैंकों को बचाव सहायता और शिक्षा के अधिकार पर हमलों के खिलाफ जबरदस्त विरोध होता आया है। दसियों हजारों मज़दूरों, सरकारी कर्मचारियों और विद्यार्थियों ने बार-बार सड़कों पर आकर प्रदर्शन किये हैं। विद्यार्थियों के प्रदर्शनों में ”न कटौतियां, न फीस” और ”शिक्षा कुछ गिनेचुने लोगों का विशेषाधिकार नहीं है बल्कि सब का मौलिक अधिकार है” आम नारे बन गये हैं।
पूंजीवादी बैंकों के मुनाफों को बचाने से सरकार का कर्जा बहुत बढ़ गया था। अब सरकार खुद को बचाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और दूसरी यूरोपीय संस्थाओं के पास पहुंची। इससे आयरलैंड में राजनीतिक संकट और गहराया है और सत्ताधारी पार्टी की विश्वसनीयता पूरी तरह से खत्म हो चुकी है।
आयरलैंड न तो पहला, और न ही अंतिम पूंजीवादी हीरो है जो धराशायी हुआ है। अस्सी के दशक में और नब्बे के शुरुवाती वर्षों में पूर्वी एशिया के शेरों की अर्थव्यवस्था का, सफलता की कहानी बतौर, प्रचार किया गया था, जो 1997 में फेल हो गये। इसके पहले के भी बहुत से ऐसे उदाहरण दिये जा सकते हैं। ये सारे मिलकर दिखाते हैं कि पूंजीवाद स्वभावत: एक संकट से भरी हुयी व्यवस्था है। ये दिखाते हैं कि दुनिया भर से पूंजी के आने के आधार पर किसी भी देश का तीव्र गति का पूंजीवादी संवर्धन होना, मेहनतकश लोगों के लिये एक भयंकर सिलसिला है।
वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में, जितनी तेजी से पूंजीवाद बढ़ता है उतनी ही तीव्रता से सामाजिक उत्पादन और निजी मुनाफा हड़पने के बीच का अंतर्विरोध बढ़ता है। उत्पादन के साधनों की जितनी ज्यादा सघनता बढ़ती है उतना ही ज्यादा अमीर और अमीर होते हैं और सबसे ज्यादा अमीर सबसे तेजी से, जबकि अधिकांश लोगों को गरीबी और अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। हर संकट का नतीजा और भी भयंकर होता जा रहा है क्योंकि समय बीतने पर पूंजी की सघनता और इजारेदारी की दशा और आगे बढ़ती रहती है।
दुनियाभर के निवेशकों के लिये अनुकूल माहौल बनाने के आधार पर किसी अर्थव्यवस्था या देश में तीव्र गति के पूंजीवादी संवर्धन का मतलब वैश्विक पूंजी के अतिशोषण के केन्द्र बनने के सिवाय और कुछ नहीं है। वह इलाका श्रम के शोषण और प्राकृतिक संसाधनों की लूट के लिये उपयुक्त बन जाता है। ऐसा देश कुछ समय के लिये तो जरूर चमकता है। परन्तु, इसमें अनिवार्यत: एक विस्फोटक परिस्थिति बन जाती है और एक दिन पूरी अर्थव्यवस्था धराशायी हो जाती है। हर बार ऐसा होना, पहले से ज्यादा तरह से, मेहनतकश लोगों की रोजी-रोटी और सुख के लिये विनाशकारी होता है।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का पूंजी के लिये एक अतिशोषण का केन्द्र बन कर संवर्धन, एक खतरनाक रास्ता है। आयरलैंड का अनुभव, आज के पूंजीवादी संवर्धन के हीरो, चीन और हिन्दोस्तान के लिये एक चेतावनी है, जो आज वैश्वी पूंजी के अतिशोषण के केंद्र हैं।

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