बड़े दुख के साथ मजदूर एकता लहर यह घोषणा करती है कि हमारे प्यारे कामरेड प्रो. दलीप सिंह का 22 अप्रैल, 2012 को मुम्बई में देहान्त हो गया वे 78 वर्ष के थे।
बड़े दुख के साथ मजदूर एकता लहर यह घोषणा करती है कि हमारे प्यारे कामरेड प्रो. दलीप सिंह का 22 अप्रैल, 2012 को मुम्बई में देहान्त हो गया वे 78 वर्ष के थे।
प्रो. दलीप सिंह इंसाफ और मानव अधिकारों के बहादुर रक्षक और राजकीय आतंकवाद के विरोधी थे। ओपरेशन ब्लू स्टार और 1984 में सिखों के जनसंहार के बाद, प्रो. दलीप सिंह ने राज्य और कांग्रेस पार्टी द्वारा फैलाये गये सिख विरोधी साम्प्रदायिक उन्माद का पर्दाफाश करने और राजकीय आतंकवाद तथा राज्य द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक जनसंहारों के खिलाफ़ लोगों की एकता बनाने में हमारी पार्टी के संगठनों के साथ नजदीकी के साथ काम किया। मुम्बई में खालसा कॉलेज के उपप्रधानाचार्य बतौर और मुम्बई में सिख समुदाय के एक जाने-माने सदस्य बतौर वे गुरुद्वारों को सिख समुदाय के अपने संस्थानों बतौर सुरक्षित रखने के लिये, सिखों के संघर्ष में हमेशा आगे रहे, ऐसे समय पर जब मुम्बई की पुलिस आतंकवाद को रोकने के बहाने गुरुद्वारों पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रही थी।
1988 में प्रो. दलीप सिंह टाडा नामक काले कानून के तहत गिरफ्तार किये गये। उस समय उनकी उम्र 57 वर्ष थी और उन्हें पंजाब के नभा जेल में 4महीने बंद रहना पड़ा। उसके बाद सबूत न मिलने के कारण उन्हें जमानत पर रिहा किया गया। जैसे ही उन्होंने कॉलेजमें राजनीतिक विज्ञान पढ़ाने की अपनी ड्यूटी शुरू की, वैसे ही उन्हें फिर से टाडा के तहत गिरफ्तार किया गया। इस बार यह आरोप लगाया गया कि वे भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से संबंधित ”बड़ी साजि़श“ के भाग थे। प्रो. दलीप सिंह को तिहाड़ जेल में अकेला कमरे में बंद रखा गया, उस जगह पर जहां मृत्यु दंड के कैदियों को रखा जाता है। उन्हें कम्बल, बर्तन और रक्तचाप की दवाइयों से वंचित किया गया। जब जेलर ने कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करके उन्हें गुरुग्रंथ साहब देने से इंकार किया तो उन्होंने तीन दिन भूख हड़ताल करके जेलर को अपनी मांग मानने को मजबूर किया। इस बार प्रो. दलीप सिंह को जेल में 8महीने बिताने पड़े।
प्रो. दलीप सिंह के जेल में बंद होने के दौरान पूरे देश में लोगों ने उनकी हिफ़ाज़त में तथा उनकी रिहाई के लिये आवाज़ उठाई। लोगों को यह पूरा विश्वास था कि प्रो. दलीप सिंह पर लगाये गये आरोप झूठे थे, कि विरोध की आवाज़ को कुचलने के लिये हिन्दोस्तानी राज्य ने प्रो. दलीप सिंह को गिरफ्तार किया था। हमारी पार्टी और देश के अन्य जाने-माने मानव अधिकार कार्यकर्ता प्रो. दलीप सिंह की हिफ़ाज़त में आगे आये। हमारे लोगों के इस संघर्ष से यह स्पष्ट हुआ कि प्रो. दलीप सिंह पर आरोप राजनीतिक मकसद से लगाये गये थे। अंत में प्रो. दलीप सिंह रिहा हुये क्योंकि राज्य को उनके खिलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला।
प्रो. दलीप सिंह पूरी आशावादिता और जनता पर भरोसे के साथ, इस महान संघर्ष से निकले। उन्हें हमेशा पार्टी पर पूरा विश्वास था और उन्होंने पार्टी के फैसलों को बहादुरी से लागू किया। 90 के दशक में उन्होंने कमेटी फ़ॉरपीपल्स एम्पावरमेंट की स्थापना करने में खूब योगदान दिया। वे लोक राज संगठन के स्थापक सदस्य थे। पुणे में लोक राज संगठन के स्थापना अधिवेशन में उन्हीं ने ”लोक राज संगठन“ का नाम प्रस्तावित किया था जिसे सभी ने एकमत से स्वीकार किया। कॉलेज से सेवानिवृत्ति के बाद, प्रो. दलीप सिंह ने लोक राज संगठन के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाई।
प्रो. दलीप सिंह के असामयिक देहान्त की खबर मिलने पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी ने मुम्बई में उनके सम्मान में एक स्मारक सभा आयोजित की। पार्टी के कामरेडों ने इस स्मारक सभा में कामरेड दलीप सिंह को श्रद्धांजली दी।
प्रो. दलीप सिंह का देहान्त हमारी पार्टी के लिये और मानव अधिकारों तथा लोगों को सत्ता में लाने के लिये संघर्ष करने वाले सभी लोगों के लिये एक भारी क्षति है। इस दुख भरे अवसर पर मजदूर एकता लहर प्रो. दलीप सिंह के परिवार को अपना गहरा शोक प्रकट करती है।