दुनिया भर में उत्साह के साथ मई दिवस मनाया गया

1 मई, 2012 को दुनिया भर में मज़दूरों ने रैलियों व प्रदर्शनों में भाग ले कर, अधिकारों पर हो रहे सबतरफे हमलों के प्रतिरोध में आवाज़ें उठाईं। उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करके एक शोषणमुक्त समाज बनाने के अपने संकल्प को दोहराया।

1 मई, 2012 को दुनिया भर में मज़दूरों ने रैलियों व प्रदर्शनों में भाग ले कर, अधिकारों पर हो रहे सबतरफे हमलों के प्रतिरोध में आवाज़ें उठाईं। उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करके एक शोषणमुक्त समाज बनाने के अपने संकल्प को दोहराया।

यूरोप के सभी प्रमुख शहरों में मई दिवस के प्रदर्शन व रैलियां की गयीं।

लन्दन के ट्रेफेलगार चैक और टाईम्स चैक में विशाल रैलियां हुयीं और शहर के विभिन्न इलाकों में सभायें व प्रदर्शन हुये। ब्रिटेन के दूसरे भागों में भी रैलियां की गयीं। अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों के मज़दूरों ने, दशकों के संघर्षों के जरिये जीते ट्रेड यूनियन अधिकारों व दूसरे अधिकारों, जिन पर आज हमले हो रहे हैं, उनके बचाव के लिए झंडों और नारों को बुलंद किया। उन्होंने अफग़ानिस्तान और इराक में साम्राज्यवादी कब्जे तथा ईरान के खिलाफ़ हमलों की तैयारी के विरोध में आवाज़ उठायी।

दुनियाभर के मेहनतकश लोगों के साथ भाईचारे में और साम्राज्यवादी युद्ध की खिलाफ़त करते हुये, पेरिस में मज़दूरों ने अपने अधिकारों की रक्षा में जुलूस निकाले। उनका साथ अप्रवासी मज़दूरों ने दिया जो अन्यायी अप्रवासी-विरोधी कानूनों का विरोध कर रहे थे। इन कानूनों के द्वारा मेहनतकश लोगों के परिवारों को देश निकाला किया जाता है और परिवार बिखर जाते हैं। पेरिस में ही एक और कार्यवाई में प्रदर्शनकारियों ने, सरकार द्वारा बड़े बैंकों को बचाव राशि देने के विरोध में, एक प्रमुख बहुराष्ट्रीय बैंक की एक शाखा को बंद कर दिया। विद्यार्थी, बेरोजगार नौजवान, महिलायें, बेघर लोग अपनी-अपनी मांगों के साथ मई दिवस के प्रदर्शन में शामिल हुये।

यूनान में, सरकार द्वारा एक के बाद एक कठोर “मितव्ययिता कदमों”, जिनके तहत वेतन और पेंशन में भारी कटौती की जा रही है, इनसे, और लगातार पांचवें साल अर्थव्यवस्था की मंदी से, परेशान हजारों मज़दूरों ने रैलियों और हड़तालों के जरिये अपना बढ़ता गुस्सा और निराशा दर्शायी। ऐथेंस में परिवहन मज़दूरों द्वारा 24 घंटे की हड़ताल से बसें, रेलगाडि़यां और मेट्रो ठप्प हो गयी। नाविकों ने भी चार घंटे के लिये अपना काम रोका। सार्वजनिक क्षेत्र के दफ्तर बंद थे और अस्पताल आपात्कालीन कर्मचारियों के जरिये चलाये गये। इटली, पुर्तगाल और स्पेन के सभी प्रमुख शहरों में “मितव्ययिता” के नाम पर मज़दूरों के अधिकारों के उल्लंघन के विरोध में प्रदर्शन आयोजित किये गये। स्पेन की राजधानी मेड्रिड में बहुत ही अंधकारमय राष्ट्रीय मनोदशा थी क्योंकि लोगों को डर है कि यूनान के जैसे उनके देश को भी बचाव पैकेज लेना पड़ेगा। बेरोजगार नौजवानों को झूठी आशा देने के लिये, लोगों ने स्पेन के प्रधान मंत्री राजोय का मजाक उड़ाया। जरमनी के बर्लिन, स्टुटगार्ट, न्यूरेमबर्ग और हेम्बर्ग जैसे शहरों में मई दिवस के प्रदर्शन और रैलियां की गयीं।

अमरीका के प्रमुख शहरों में 2012 के मई दिवस पर विशाल प्रदर्शन हुये। न्यू न्यू यॉर्क शहर में, तड़के सुबह से देर रात तक, लोगों ने विरोध प्रदर्शन किये। यूनियन चैक में मानो लोगों की बाढ़ आयी थी, जबकि शहर के मध्य से आया जुलूस वॉटर स्ट्रीट में एक विशाल प्रदर्शन में बदल गया। मैनहट्टन में विभिन्न तरह के प्रदर्शन किये गये। इनका मूल विषय था कि मौजूदा व्यवस्था सिर्फ 1प्रतिशत अतिअमीरों के लिये काम करती है और इसे बदलने के लिये बाकि 99 प्रतिशत को एकजुट होना होगा। प्रदर्शनकारियों ने साम्राज्यवादी युद्ध की निंदा की और पूरी दुनिया के मेहनतकश और दबे-कुचले लोगों के साथ भाईचारा प्रकट किया। लॉस एन्जलीस में दसियों हजारों लोगों ने जुलूस में भाग लिया और अप्रवास कानून व नीतियों में बदल की मांग रखी, जिनके द्वारा अप्रवासी मज़दूरों पर हमले होते हैं। उन्होंने प्रण लिया कि वे अप्रवासी मज़दूरों के अधिकारों के लिये संघर्ष करेंगे। इनके अलावा, मई दिवस के कार्यक्रम ओकलैंड, सियाटल, शिकागो, अटलांटा और बहुत से शहरों में किये गये।

कनाडा में मई दिवस के कार्यक्रम मोन्ट्रियाल से वेन्कूवर तक, टोरांटो से एडमोंटन तक और देश के दूसरे बहुत से शहरों में किये गये। टोरांटो के नगर परिषद प्रशासनिक भवन पर 3000 लोगों ने रैली में भाग लिया और शहर के मध्य से हो कर पश्चिमी छोर के एक बाग तक जुलूस निकाला। प्रदर्शनों का मूलविषय था अप्रवासी और शरणार्थियों के लिये पूरे अधिकार, मज़दूरों के अधिकार, सामाजिक कार्यक्रमों व जनसुविधाओं में कटौतियों का विरोध, तथा साम्राज्यवादी हमलों और युद्ध का विरोध। अफग़ान महिलाओं के एक समूह ने दुनिया के लोगों पर साम्राज्यवादी आक्रमण और युद्ध की भत्र्सना की और खास तौर पर अफग़ान लोगों पर अमरीका-नाटो के युद्ध की निंदा की। वेन्कूवर में शहर के मध्य से जुलूस निकल कर पूर्वी छोर पर डब्ल्यू 2 सेंटर तक गयी। इसके बाद जन सभायें हुयी जिनमें मई दिवस की महत्ता पर और मज़दूरों की मौजूदा परिस्थिति पर बातें हुयीं। विंडसर, हेमिल्टन, प्रिंस जॉर्ज,बी.सी., आदि से मई दिवस के कार्यक्रमों की खबरें मिलीं। इन प्रदर्शनों में मज़दूरों, शिक्षकों, अस्पताल कर्मचारियों, विद्यार्थियों व नौजवानों, अप्रवासियों, सब ने मिलकर कन्धे से कन्धा मिला कर भाग लिया।

रूस के कई नगरों में मई दिवस के कार्यक्रम आयोजित किये गये। राजधानी मॉस्को में करीब 100,000 लोगों ने रैली में भाग लिया। उन्होंने मॉस्कोके मध्यवर्ती इलाके, कलुशस्काया चैक से लेकर थियेटर चैक तक जुलूस निकाला। यूक्रेन की राजधानी कीव में 6,000से अधिक लोगों ने एक प्रदर्शन में भाग लिया जो वेरस्काया चैक में खत्म हुआ। बहुत से समूहों ने सरकारी मई दिवस कार्यक्रमों का बहिष्कार किया और 6 मई को “10 लाख का जुलूस” आयोजित कर के, सरकार से विरोध प्रकट किया।

क्यूबा में लाखों लोगों ने पारंपरिक मई दिवस उत्सवों में भाग लिया, जिसमें उन्होंने दुनियाभर के लोगों के साथ भाईचारे और क्यूबा के लोगों का, अमरीका व दूसरे साम्राज्यवादी देशों के विरोध में अपनी खुद की व्यवस्था को मजबूत करने का, दृढ़ निश्चय व्यक्त किया। दक्षिणी अमरीका के एक छोर से दूसरे छोर तक बड़ी-बड़ी मई दिवस रैलियां की गयीं – वेनेजुएला के कराकस से लेकर बोलिविया के ला पाज़ तक, ब्राजील के रियो द जनेरो से लेकर चिली के सैंटियागो तक।

कोरिया से लेकर फिलिस्तीन तक, एशिया के सब भागों में मई दिवस धूमधाम से मनाया गया।

फिलिपीन्स में कुछ वामपंथी मज़दूरों ने मनीला में राष्ट्रपति भवन के पास राष्ट्रपति अकीनो का पुतला जलाया। उन्होंने देश की समस्याओं के लिये सीधे तौर पर अकीनो को जिम्मेदार ठहराया और उसे बड़े पूंजीपतियों और अमरीका का एजेन्ट बतलाया। इंडोनेशिया में हजारों मज़दूरों ने राजधानी जकार्ता की मुख्य सड़क से जुलूस निकाला जहां ऐसे प्रदर्शन को न होने देने के लिये 16,000 पुलिस व सैनिकों को तैनात किया था। ताईवान, मलयेशिया, होंग कोंग, हिन्दोस्तान, बंग्लादेश और बहुत से देशों में मई दिवस की रैलियां निकाली गयी। इन रैलियों में सभी मेहनतकश लोगों के बीच भाईचारा और पूंजीपतियों और उनकी सरकारों द्वारा मेहनतकश लोगों पर हमलों का विरोध करने का दृढ़ संकल्प साफ नजर आता था।

दुनिया भर के मज़दूर अब और भी साफ तरीके से समझ रहे हैं कि शोषण की पूंजीवादी व्यवस्था उनकी सभी समस्याओं की जड़ है, कि साम्राज्यवाद सभी युद्धों और विनाश का स्रोत है, और वे इस व्यवस्था को खत्म करके अपने भविष्य की बागडोर अपने हाथों में लेने का संकल्प व्यक्त कर रहे हैं।

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