वर्तमान गणतंत्र की 61वीं सालगिरह होने वाली है और हमारे देश की आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था सबतरफा संकट में फंसी हुई है। यह व्यवस्था विश्वसनीयता के संकट में फंसी हुई है।
अधिकतम मजदूरों और कामकाजी बुध्दिजीवियों में इस बात पर बहुत गुस्सा है कि हमारे शासक खाद्य पदार्थों तथा अन्य आवश्यक सामग्रियों की असहनीय व लगातार बढ़ती महंगाई को रोकने में असमर्थ हैं।
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वर्तमान गणतंत्र की 61वीं सालगिरह होने वाली है और हमारे देश की आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था सबतरफा संकट में फंसी हुई है। यह व्यवस्था विश्वसनीयता के संकट में फंसी हुई है।
अधिकतम मजदूरों और कामकाजी बुध्दिजीवियों में इस बात पर बहुत गुस्सा है कि हमारे शासक खाद्य पदार्थों तथा अन्य आवश्यक सामग्रियों की असहनीय व लगातार बढ़ती महंगाई को रोकने में असमर्थ हैं।
खुदरा दामों के बढ़ते रहने के बावजूद, अधिकतम किसानों को उत्पादन की बढ़ती कीमतों का सामना करने में दिक्कतें हो रही हैं। अधिक से अधिक किसान कर्जे में डूब रहे हैं और बढ़ती असुरक्षा झेल रहे हैं।
हिन्दोस्तानी गणतंत्र ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने अधिकतम नागरिकों को खुशहाली और सुरक्षा देने के काबिल नहीं है और इच्छुक भी नहीं है। मेहनतकश जनसमुदाय को सिर्फ आर्थिक दुर्दशा और बढ़ती असुरक्षा ही मिल रही है।
सिर्फ टाटा, अंबानी, बिरला और दूसरे इजारेदार पूंजीवादी घरानों की प्रधानता में मुट्टीभर अति अमीर परजीवी तबका ही तेजी से और लगातार खुशहाली प्राप्त कर रहा है तथा उनकी धन संपत्ति में तेजी से विस्तार हो रहा है। हमारे शासक यह ढिंढोरा पीटते हैं कि हिन्दोस्तान अब एक विश्वस्तरीय शक्ति बन गया है, परंतु जिनकी मेहनत से यह दौलत पैदा होती है, उन्हें इस दौलत का कोई हिस्सा नहीं मिलता है।
समाज को लूटकर पाये गये इस धन को पूंजीपतियों के बीच में कैसे बांटा जाये, इस पर उनके आपसी अंतर्विरोध बहुत तीखे हो गये हैं। इजारेदार कंपनियों के बीच आपसी झगड़े इतने तीखे हो गये हैं कि रतन टाटा जैसा बड़े पूंजीपतियों का वरिष्ठ प्रतिनिधि भी राडिया टेप्स के मसले पर, संसद के एक विपक्ष के सदस्य पर कीचड़ उछालने लगा था।
लाखों-करोड़ों रुपयों के घोटालों के हाल के पर्दाफाश से यह स्पष्ट हुआ है कि वर्तमान हिन्दोस्तानी गणतंत्र में राजनीतिक सत्ता इजारेदार पूंजीपतियों और अरबपतियों के हाथों में है, जो राजनीतिक नेताओं से नजदीकी का संबंध रखते हैं। ये मुट्टीभर अति अमीर शोषक अपनी राजनीतिक पार्टियों, वरिष्ठ अफसरों, लाबी करने वाले एजेंटों तथा अन्य हथकंडों के जरिये, अर्थव्यवस्था की दिशा को तय करते हैं और हमारे समाज का भविष्य भी तय करते हैं। इस बात का स्पष्टीकरण, कि हिन्दोस्तानी लोकतंत्र इजारेदार पूंजीपतियों की हुक्मशाही के सिवाय कुछ और नहीं है, इससे जनसमुदाय का असंतोष और गुस्सा खूब बढ़ गया है।
नये साल पर लोगों को अपने संदेश में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐलान किया कि उनकी सरकार फिर से आम आदमी की सेवा करने का प्रण लेती है। मजदूर और किसान साफ-साफ समझ सकते हैं कि यह कितना बड़ा झूठ है। जिंदगी का अनुभव हर दिन हमें दिखाता है कि यह व्यवस्था असलियत में किस प्रकार काम करती है। यह व्यवस्था इजारेदार पूंजीपतियों के आदेश अनुसार चलती है और आज ये इजारेदार पूंजीपति दुनिया के स्तर के खिलाड़ी बन चुके हैं। संसद में वाद-विवाद का नाटक चलता है, जबकि असली फैसले लेने के काम पर्दे के पीछे किया जाता है। केन्द्र सरकार पूंजीपतियों के शासन को चलाने का काम करती है, परंतु दिखावे के लिये आम आदमी के बारे में मीठी-मीठी बातें सुनाती रहती है।
मेहनतकश जनसमुदाय की बढ़ती जागरूकता को रोकने के लिये, लोगों का ध्यान बंटाने और जनता के गुस्से को गुमराह करने के लिये केन्द्र सरकार जानबूझकर आंध्र प्रदेश में लोगों के बीच गुटवादी झगड़े की आग में घी डाल रही है।
गणतंत्र और उसके संविधान की 61वीं सालगिरह के अवसर पर यह स्पष्ट है कि यह पुराना गणतंत्र संकटग्रस्त है। शासक वर्ग के नेता फिर एक बार वादा करेंगे कि इस उपनिवेशवादी विरासत, इस सड़े हुए राज्य को ‘साफ’ कर देंगे। इस अवसर पर हिन्दोस्तानी सैन्य ताकत और दुनिया में हिन्दोस्तान के बढ़ते प्रभाव को भी दर्शाया जायेगा। शासक वर्ग के नेता फिर से लोगों को अपील करेंगे कि इस गणतंत्र पर भरोसा रखा जाये, हालांकि यह चारों तरफ से सड़ता हुआ ही दिखता है।
मजदूरों, किसानों और मेहनतकश लोगों के लिए इस अवसर पर खुशियां मनाने का कोई कारण नहीं है। इस सड़ते हुए गणतंत्र पर भरोसा रखने का हमारे पास कोई कारण नहीं है, बेशक उसकी सैन्य शक्ति और दुनिया में प्रभाव बढ़ती जा रही है। यह गणतंत्र और उसका संविधान हमारी प्रगति के रास्ते में रूकावट है। आज एक नये संविधान के साथ, नयी बुनियादों पर हमारे देश के नवनिर्माण की जरूरत है। मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदायों को हिन्दोस्तान का यह नवनिर्माण करना होगा।
नववर्ष के संदेश में, प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमें दुखी या निराश नहीं होना चाहिए।
प्रधानमंत्री जी, हम दुखी नहीं, बहुत गुस्से में। हम आपके सुधार कार्यक्रम पर विश्वास नहीं करते, क्योंकि इससे तबाह हो रहे हैं, हमारी असुरक्षा बढ़ रही है। हम आम आदमी की सेवा करने के आपके वादे को झूठ ठहराते हैं क्योंकि हमें साफ दिख रहा है कि आपकी सरकार टाटा, अंबानी और दूसरे बड़े पूंजीपतियों की सेवा कर रही है।
प्रधानमंत्री जी, हम निराश नहीं हैं, हम इस हालत को बदलने के लिये कदम उठाना चाहते हैं। हम इस पुरानी, सड़ी-गली व्यवस्था को बनाये रखना नहीं चाहते हैं। हम नयी शुरूआत करना चाहते हैं।
हम, इस देश के मजदूर, किसान, महिला और नौजवान, समाज को अपने हाथों में लेकर इसकी दिशा तय करना चाहते हैं। हम एक नया संविधान, एक नया हिन्दोस्तानी संघ, मजदूरों और किसानों के गणतंत्रों का स्वेच्छा पर आधारित संघ चाहते हैं। हम अर्थव्यवस्था को ऐसी नयी दिशा दिलाना चाहते हैं, जिसमें सभी मेहनतकशों को खुशहाली और सुरक्षा मिलेगी। हमारे समाज को संकट से निकालने और मानव सभ्यता के महामार्ग पर आगे बढ़ने का यही एकमात्र रास्ता है।