किसानों की ओर राजस्थान व केन्द्र सरकार के बेरुखा रवैया
2005-06 से राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में अनार की पौध लगाने वाले किसानों में से सैंकड़ों दीवालिया हो गये हैं। पिछले चार वर्षों से वे मांग कर रहे हैं कि केन्द्र व राज्य सरकारों के कृषि व बागवानी विभाग, किसानों से किये अपने वादे पूरे करें। परन्तु किसानों की मांगों की कोई सुनवाई नहीं हुयी है। जैसा कि किसान बताते हैं, जिम्मेदारी क
किसानों की ओर राजस्थान व केन्द्र सरकार के बेरुखा रवैया
2005-06 से राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में अनार की पौध लगाने वाले किसानों में से सैंकड़ों दीवालिया हो गये हैं। पिछले चार वर्षों से वे मांग कर रहे हैं कि केन्द्र व राज्य सरकारों के कृषि व बागवानी विभाग, किसानों से किये अपने वादे पूरे करें। परन्तु किसानों की मांगों की कोई सुनवाई नहीं हुयी है। जैसा कि किसान बताते हैं, जिम्मेदारी को एक विभाग से दूसरे विभाग पर थोपने के लिये कागजात तो हिले हैं परन्तु किसानों को कोई ज़मीनी सहायता नहीं मिली है।
याद रहे कि 2005-06 में राष्ट्रीय बागवानी परिषद (एन.एच.बी.) की बागवानी बढ़ावे की योजना के तहत, परिषद के अधिकारी हनुमानगढ़ आये थे और उन्होंने किसानों को अनार के बाग लगाने के लिये प्रोत्साहन दिया था। इन अधिकारियों ने गोष्ठियों सहित जनता के बीच एक अभियान चलाया,और प्रोत्साहनों के वादे किये; उन्होंने बहुत ही मन लुभाने वाला चित्रण किया कि कैसे पारंपरिक फसलों की जगह अनार की बागवानी से किसान अमीर हो जायेंगे। उन्होंने प्रशिक्षण शिविर लगाये। उन्होंने प्रचार सामग्री बांटी जिसमें यह बताया गया कि कैसे हनुमानगढ़ का इलाका अनार बागवानी के लिये खास तौर पर उपयुक्त है। अधिकारियों ने घोषणा की कि लागत का 20प्रतिशत एन.एच.बी. अनुदान के रूप में देगी।
अधिकारियों ने किसानों को खास कंपनियों से आवश्यक वस्तुयें खरीदने के आदेश दिये। उन्होंने इन कंपनियों में काम करने वाले विशेषज्ञों के साथ किसानों की बैठकें करायीं। अधिकारियों ने यह भी घोषणा की कि सिर्फ उन्हीं किसानों को अनुदान मिलेगा जो निम्नलिखित मानकों का पालन करेंगे – किसानों को बागों में डिग्गियां बनानी होंगी, उन्हें बूंद-बूंद पध्दति से सिंचाई करनी होगी, बागों के चारों ओर कटीले तारों से घेरा बनाना पड़ेगा, बैंकों से कर्ज लेना होगा और फिर अनार की पौध लगानी होगी। उन्हें एन.एच.बी. के आदेशों के अनुसार अपने बागानों में कृषि मज़दूरों के लिये आवास बनाने के लिये भी बताया गया। एन.एच.बी. और सरकार पर भरोसा करके जिले के बहुत से किसानों ने 2005से 2008के बीच अपने खेतों को अनार के बागानों में परिवर्तित कर दिया।
इसके लिये उन्होंने डिग्गियां बनाईं, बूंद-बूंद पध्दति से सिंचाई की व्यवस्था की, विद्युत मोटरें व डीज़ल पम्पसेट लगाये, और अपने खेतों में भण्डारन और मज़दूरों के आवास की व्यवस्था की। अनुदान के योग्य बनने के लिये उन्हें बैंकों से ऋण लेने थे जो सभी किसानों ने लिये।
अनार के पेड़ों में तीन साल के बाद फूल आते हैं। जब किसान 2008में एक अच्छी फसल की अपेक्षा कर रहे थे, तब उन्हें पूरी तरह से निराशा मिली क्योंकि उनके अनारों में दाग व बीमारी थी और वे अपने आप फट रहे थे।
किसानों ने विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया परन्तु उनसे कोई मदद नहीं मिली। जब किसानों ने खुलेआम आवाज़ उठायी, मीडिया को संपर्क किया और हरेक अधिकारी के खिलाफ़ शिकायत दर्ज क़ी तभी सितम्बर 2009 में विभाग के अधिकारी किसानों के खेतों में दौरे पर आये। इनमें कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग के लोग थे। एक महीने बाद महाराष्ट्र के सोलापुर में स्थित केन्द्रीय अनार अनुसंधान केन्द्र से एक टीम आयी। इस टीम ने साफ तरीके से बताया कि फसल को बैक्टीरिया का पाला लगा है। इस टीम ने किसानों पर दोष लगाया कि उन्होंने संक्रमित पौध लगायी है। उन्होंने आरोप लगाया कि किसानों ने अनार की पौध महाराष्ट्र के मालेगांव से खरीदी, जबकि सच्चाई तो यह है कि किसानों ने परिषद के अधिकारियों के आदेशों का पालन किया था।
इसके बाद संबंधित विभाग ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत, बैक्टीरिया पाले का खात्मा करने के लिये जरूरी घास-फूस नाशक, कीटनाशक व खाद के लिये प्रति हेक्टेयर अधिकतम 50 प्रतिशत खर्च, यानि कि 25,000 रु. का अनुदान दिया गया। यह भी सिर्फ उन किसानों को दिया गया जिन्होंने सितम्बर 2007 के पहले अपनी पौध लगाई थी। असलियत में किसानों को 51,000 रु. प्रति हेक्टेयर खर्च करना पड़ा। परन्तु इतने खर्चे के बाद भी फसल को बचाया न जा सका। इसके बाद किसानों ने पूरी आशा खो दी। उन्होंने मुख्यमंत्री और सभी अधिकारियों को पत्र लिखे। पर उनकी मदद के लिये कोई ज़मीनी कार्यवाई नहीं की गयी। इसकी जगह बैंक अपने कर्जे और सूद के लिये किसानों के पीछे पड़ गये हैं। किसान अपनी नियमित आय से भी हाथ धो चुके हैं जो उन्हें पारंपरिक फसलों से मिलती थी। साथ ही उनके ऊपर भारी कर्जे का बोझ है और कई वर्षों तक कोई आय के आसार नहीं हैं।
एक सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, बागवानी विभाग ने 2005-06से 2009-10के बीच सिर्फ हनुमानगढ़ में ही 3लाख अनार की पौध बांटी थी।
फसल की सौ प्रतिशत बर्बादी के बाद राज्य सरकार द्वारा नुकसान भरपाई की किसानों की मांग एकदम सही है। सरकार के विभाग की रिपोर्ट भी 95 प्रतिशत फसल की बर्बादी की पुष्टि करती है। किसानों की जीविका पर इतनी कायरता से हमले के लिये राजस्थान व केन्द्र सरकार जिम्मेदार हैं। किसानों की पूरी बर्बादी केन्द्र और राज्य सरकार की नीति को लागू करने से हुई है, क्योंकि किसानों ने एन.एच.बी. के आदेशों का सख्ती से पालन किया।
इतने सालों से फसल के नष्ट होने पर किसानों ने नुकसान की भरपाई और बैंकों के बढ़ते कर्जे की माफी की मांगें रखी हैं। ये मांगें एकदम जायज़ हैं।
मज़दूर एकता लहर, केन्द व राजस्थान सरकारों के हनुमानगढ़ जिले के अनार किसानों की दयनीय स्थिति पर बेरुखे रवैये की कड़ी निंदा करती है। हम मांग करते हैं कि किसानों द्वारा एन.एच.बी. के आदेशों को पालन करने से पिछले सात सालों से हो रहे घाटे की सरकार तुरंत भरपाई करे। सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि बैंक किसानों के कर्जे को माफ करें।