सभी मजदूरों के सर्वव्यापी अधिकारों के लिये संघर्ष करें!

निजीकरण और उदारीकरण कार्यक्रम को हरायें!

मई दिवस 2012 के अवसर पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का आह्वान

मजदूर साथियो!

निजीकरण और उदारीकरण कार्यक्रम को हरायें!

मई दिवस 2012 के अवसर पर हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का आह्वान

मजदूर साथियो!

मई दिवस 2012 ऐसे समय पर आ रहा है जब दुनिया भर के पूंजीपतियों ने हमारी रोजी-रोटी और अधिकारों पर सबसे बड़ा हमला छेड़ दिया है। पिछली सदी के 80के दशक में पूंजीपतियों और उनकी सरकारों ने जो विश्वव्यापी मजदूर वर्ग विरोधी हमला छेड़ा था, अब उसे वैश्विक आर्थिक संकट को हल करने के नाम पर और ज्यादा तेज़ कर दिया गया है।

उदारीकरण और निजीकरण के अलावा, मितव्ययिता और संकट प्रबंधन के नाम पर, मजदूरों के अधिकारों को पांव तले रौंद दिया जा रहा है। साथ ही साथ, मजदूरों के विरोध-संघर्ष भी तेज़ हो रहे हैं। अमरीका से कोरिया, हैती, पुर्तो रीको, हिन्दोस्तान तथा बहुत से और देशों में, दुनिया भर में मजदूरों का गुस्सा बढ़ रहा है। हाल के महीनों में म्यानमार, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जापान, मलयेश्यिा, उत्तरी कोरिया, फिलिपींस, दक्षिणी कोरिया, तायवान, थाईलैंड और वियतनाम में बढ़ती हड़तालों की खबर मिली है। चीन में लगातार हड़तालें चली हैं; इंडोनेशिया में पेट्रोल की कीमतों की प्रस्तावित वृद्धि के खिलाफ़ विशाल, विस्तृत, जुझारु प्रदर्शन हुये हैं। अमरीका में मजदूर, बेरोज़गार नौजवान और आप्रवासी मिलकर “एक प्रतिशत”, अति अमीर वित्त पूजीपतियों को अपने गुस्से का निशाना बना रहे हैं।

मई दिवस 2012 ऐसे समय पर आ रहा है जब पूंजी और श्रम के हितों के बीच टकराव बहुत ही तीक्ष्ण है। मजदूर अपनी रोजी-रोटी और अधिकारों की हिफ़ाज़त में संघर्ष तेज़ कर रहे हैं। हर जगह संघर्ष इस सवाल पर तेज़ हो रहा है कि – मजदूर वर्ग और मेहनतकशों की रोजी-रोटी और अधिकारों पर हमला करके, बड़े-बड़े इजारेदार घरानों व वित्तीय अल्पतंत्रों की बचाने की नीति पर चलने को सरकारों को क्यों इजाज़त दी जाये?

हमारे देश में खाद्य और अन्य जरूरी उपभोग की वस्तुओं की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। साथ-साथ, टाटा, अंबानी और दूसरे इजारेदार घरानों के मुनाफे व दौलत भी खूब बढ़ती जा रही हैं। किसानों और अन्य छोटे उत्पादकों का कर्जभार, केन्द्र व राज्य सरकारों का कर्ज़भार उतनी ही तेज़ी से बढ़ता जा रहा है, जितनी बड़ी बैंकों, बीमा कंपनियों और तरह-तरह के सट्टेबाज कंपनियों का बोलबाला।

इस व्यवस्था, जिसमें पूंजीपति वर्ग मजदूरों और किसानों को लूटकर अपना धन बढ़ाता है, इसके खिलाफ़ मजदूरों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इस व्यवस्था में दौलत के उत्पादकों को जीवन और रोज़गार की अत्यंत असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है।

सभी जगहों पर मजदूर इस बात से बहुत नाराज़ हैं कि अर्थव्यवस्था का प्रबंध करना जिनका काम है – मंत्री, सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों के मैनेजर व अफसर – इन्होंने अपनी ताकत व रुतबे का फायदा उठाकर, मजदूरों द्वारा पैदा किये गये धन को लूटकर, पूंजीपतियों और नेताओं की तिजौरियां भरी हैं और फिर ऐलान किये हैं कि मजदूरों और किसानों के परिवारों की जरूरतें पूरी करने के लिये पैसा नहीं बचा है।

आज यह वक्त की मांग है कि मजदूर वर्ग इसका समाधान पेश करे – उदारीकरण और निजीकरण की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था और आर्थिक कार्यक्रम का विकल्प पेश करे।

मजदूर साथियो!

पूंजीपति वर्ग और उसके वक्ता यह झूठ फैला रहे हैं कि अगर हिन्दोस्तान एक बड़ी ताकत बनना चाहता है तो इसका एक ही तरीका है कि मजदूरों का खूब शोषण किया जाये और मजदूरों के अधिकारों का हनन किया जाये। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि वर्तमान नीतियां मजदूरों के हितों को ”जरूरत से ज्यादा“ सुरक्षा दे रही हैं। फरवरी में इंडियन लेबर कानफरेंस में उन्होंने ऐसा ही कहा था। ”जो ट्रेड यूनियन मजदूरों के अधिकारों के लिये लड़ते हैं, वे पूंजीनिवेश के वातावरण के लिये बुरे हैं“। यह मंत्र जपते हुये, पूंजीपति वर्ग ने मजदूरों के अधिकारों का हनन करने वाले तमाम कदम उठाये हैं। ठेका मजदूरी अब आम बात बन गयी है। यह सिर्फ निजी कंपनियों में ही नहीं है; राजकीय क्षेत्र में भी लगभग आधे मजदूर ठेके पर हैं।

केन्द्रीय श्रम कानूनों को और लचीला बनाने की मांग के साथ-साथ, केन्द्र सरकार ने एक तथाकथित सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008के अन्तर्गत, ”असंगठित क्षेत्र” के मजदूरों के लिये कुछ अलग लाभदायक कदमों का तोहफा दिया है। इसका मकसद है हमारे वर्ग को बांटना, मजदूर बतौर हमारी पहचान को नष्ट करना और मजदूर बतौर हम सभी के अधिकारों को मिट्टी में मिला देना।

काम करने की उम्र के प्रत्येक व्यक्ति को, जो काम करना चाहता है, सामाजिक श्रम प्रक्रिया में हिस्सा लेने का अधिकार है। अगर ऐसे व्यक्ति को उत्पादक और लाभदायक काम नहीं मिलता, तो यह सिर्फ उसकी निजी समस्या नहीं है। काम के अधिकार और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देना, बेरोज़गारों को पर्याप्त मुआवज़ा और सेवा निवृत्ति की उम्र के बाद पर्याप्त समर्थन देना राज्य की जिम्मेदारी है।

वेतनभोगी मजदूर गुलाम नहीं है। वह पूरे समय के लिये किसी मालिक का नौकर नहीं है। वेतनभोगी मजदूर प्रतिदिन निर्धारित घंटों के लिये हफ्ते में 5-6दिन, अपना श्रम बेचता है; बाकी समय उसका अपना है, अपने परिजनों के साथ बिताने के लिये। अतः काम के घंटों पर सख्ती से लागू की गई कानूनी सीमा एक ऐसा अधिकार है जो सभी वेतनभोगी मजदूरों को मिलना चाहिये।

एक दिन या एक महीने के नाम का वेतन मजदूर और उस पर निर्भर परिजनों की परवरिश के लिये पर्याप्त होना चाहिये। अतः सभी मजदूरों का यह अधिकार है कि उन्हें कम से कम निर्धारित न्यूनतम वेतन मिले, जिसे महंगाई और मानव जीवन के न्यूनतम मानदंडों की बढ़ोतरी के साथ-साथ, समय-समय पर बढ़ाना चाहिये। प्रत्येक रोज़गार शुदा मजदूर को काम के दौरान पर्याप्त अवकाश, बीमारी के लिये तथा वार्षिक छुट्टियों, स्वास्थ्य सेवा के बेनिफिट तथा महंगाई के लिये मुआवजे का अधिकार होना चाहिये।

महिला मजदूरों को पुरुषों के समान काम के लिये समान वेतन का अधिकार होना चाहिये। उन्हें पर्याप्त मातृत्व अवकाश, कार्यस्थल पर शिशु पालन सुविधा और देर रात तक काम करने पर सुरक्षा का अधिकार होना चाहिये।

सभी रोज़गार शुदा मजदूरों का यह अधिकार है कि वे अपने यूनियन व संगठन बनायें और मिलकर अपने हित के लिये मालिकों पर दबाव डालें। उन्हें हड़ताल करने का अधिकार है, यह सुनिश्चित करने के लिये कि उनके अधिकारों का हनन न हो। ये सब सर्वव्यापी अधिकार हैं।

हमें यह मांग करनी होगी कि हमारे अधिकार सर्वव्यापक और अलंघनीय हों। हमें यह सुनिश्चित करने के सक्षम तंत्रों की मांग को लेकर संघर्ष करना होगा, कि इन अधिकारों का हनन करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाये।

मजदूर साथियो!

निजीरकण, चाहे किसी भी तरीके से किया जाये, मजदूर वर्ग के रोज़गार की सुरक्षा और दूसरे मूल अधिकारों पर एक हमला है। निजीकरण का यह आधार है कि बड़ी इजारेदार पूंजीवादी कंपनियों को अपने अधिकतम मुनाफों के लिये कहीं भी जाकर कुछ भी करने का अधिकार होना चाहिये। निजीकरण का यह मतलब है कि राज्य आवश्यक नागरिक सुविधायें मुहैया कराने के अपने दायित्व से पीछे हट रहा है।

निजीकरण का उद्देश्य है आर्थिक और सामाजिक कार्यवाही के हर क्षेत्र को इजारेदार पूंजीपतियों के अधिकतम निजी मुनाफों का स्रोत बना देना। समाज की समस्याओं को हल करना तो दूर, निजीकरण की वजह से ये समस्यायें और बिगड़ जाती हैं तथा भविष्य में और गहरे संकटों की हालतें पैदा हो जाती हैं। यह न सिर्फ एक मजदूर-विरोधी हमला है बल्कि पूरे समाज के आम हितों पर एक हमला है।

मजदूर वर्ग की पार्टियों और संगठनों को किसी भी प्रकार के निजीकरण का कोई औचित्य नहीं स्वीकार करना चाहिये। यह मान लेना कि “घाटे पर चल रही” सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों का निजीकरण किया जाना ठीक है, यह पूंजीवादी कार्यक्रम के साथ समझौता है। मजदूर वर्ग आन्दोलन में ऐसे समझौताकारी विचारों को फैलने नहीं देना चाहिये।

हमारी मांग यह होनी चाहिये कि सभी प्रकार के निजीकरण को फौरन रोका जाये और जो निजीकरण हो चुका है उसे वापस लिया जाये।

मजदूर साथियो!

हमारे देश में लूट की व्यवस्था वैश्विक साम्राज्यवादी व्यवस्था से जुड़ी हुयी है। यह मेहनतकश जनसमुदाय की पीठ पर एक असहनीय बोझ है। इजारेदार वित्त पूँजी, देशी व विदेशी, अधिकतम जनता से वसूलती है, मजदूरों के वेतनों से, किसानों की आमदनी से और देश के कुदरती संसाधनों से यह आर्थिक व्यवस्था न सिर्फ मानवीय उत्पादक ताकतों को अति शोषण व बेरोज़गारी के द्वारा नष्ट कर रही है, बल्कि यह प्रकृति का भी विनाश कर रही है।

बढ़ती खाद्य कीमतों की समस्या को हल करने के लिये अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देनी पड़ेगी। इजारेदार पूँजी के अधिकतम मुनाफों को सुनिश्चित करने की वर्तमान दिशा को बदलकर, उसे मेहनतकशों के जीवन स्तर व उत्पादक क्षमता को लगातार ऊंचा उठाने की दिशा में चलाना होगा। इस समाधान में पहला कदम एक सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की स्थापना है, जिसमें जनता के उपभोग की सभी चीजें सभी को उपलब्ध होंगी।

सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था का यह मतलब है कि समाज और राज्य को सभी आवश्यक चीज़ों, खास कर मूल खाद्य पदार्थों के प्रापण, भंडारण यातायात व आपूर्ति की जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी। इन सभी चीजों को मुनासिब दाम पर मेहनतकशों को मुहैया करानी पड़ेगी और किसानों को स्थायी व लाभदायक दाम सुनिश्चित कराने होंगे।

सर्वव्यापी सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की कुंजी व्यापार पर सामाजिक मालिकी और नियंत्रण की स्थापना है। जरूरी चीजों के भंडार का अधिकतम भाग निजी मुनाफाखोरों के हाथ में नहीं होना चाहिये।

मजदूर साथियो!

अर्थव्यवस्था को नई दिशा दिलाने के लिये हमें अपने हाथ में राज्य सत्ता लेनी होगी। जीवन का अनुभव हमें दिखाता है कि सिर्फ एक पार्टी को सत्ता से हटाकर, किसी दूसरी पार्टी को वोट देकर सत्ता पर बिठाकर, हम राज्य सत्ता तक नहीं पहुँच सकते। हमें राजनीति व्यवस्था को ही बदलनी पड़ेगी। इस मई दिवस पर हम कार्ल मार्क्स की सीख को याद करें, कि श्रमजीवी वर्ग इस सड़ी-गली पूंजीवादी व्यवस्था की कब्र खोदने वाला है और यह मजदूर वर्ग को शासक वर्ग बनाने का पहला कदम है।

मजदूर साथियो!

तरह-तरह से पूंजीपति वर्ग के साथ समझौता करने की लाइन की वजह से हमारे एकजुट संघर्ष को बहुत हानि हुई है। इनमें एक ऐसी लाइन है कि कांग्रेस पार्टी “कम बुरी” है और भाजपा का “धर्मनिरपेक्ष विकल्प” है। एक और लाइन है कुछ पार्टियों के तीसरे मोर्चे के बारे में भ्रम फैलाना, जो पूंजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग दोनों के हितों की सेवा करेगी। हमें अपने संघर्ष को फिर से इन संसदीय दांवपेचों को शिकार नहीं बनने देना चाहिये।

हमें अपने स्वतंत्र कार्यक्रम को इर्द-गिर्द मजबूती से एकजुट होना चाहिये। हमारा उद्देश्य है मजदूरों और किसानों का राज कायम करना। हमें उन सभी मजदूरों और किसानों के अधिकारों के लिये संघर्ष करना होगा, जो पूंजीवादी हमले और बड़ी कंपनियों द्वारा भूमि अधिग्रहण की वजह से लुट रहे हैं और तबाह हो रहे हैं। हमें प्रत्येक क्षेत्र और उद्योगों में अपने यूनियनों को मजबूत करना होगा, ताकि हम पंूजीवादी कार्यक्रम का जमकर विरोध कर सकें।

इजारेदार पूंजीपतियों के शासन के स्थान पर मजदूरों और किसानों का राज स्थापित करने के उद्देश्य के साथ, एक कार्यक्रम और सांझी मांगों की सूची के इर्द-गिर्द एकजुट होकर हम अडिग संघर्ष करें!

पूंजीवाद और पूंजीपति वर्ग का राज मुर्दाबाद!

मजदूरों और किसानों का राज स्थापित करने के उद्देश्य के इर्द-गिर्द एकजुट हों!

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *