कोरिया प्रायद्वीप में तनाव

संपादक

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महोदय, मज़दूर एकता लहर के दिसम्बर 16-31, 2010 के अंक में कोरियाई प्रायद्वीप में अमरीकी साम्राज्यवाद की दखलंदाजी के बारे में लेख छापने के लिये मैं आपका शुक्रगुजार हूं। हाल के हादसे, इस क्षेत्र में अमरीका और दक्षिण कोरिया द्वारा किये गये युध्द अभ्यास और इस अतिउकसाऊ माहौल, जिसके कारण उत्तरी कोरिया द्वारा दोनों देशों के विवादित टापू पर गोलीबारी में कई गैरसैनिक लोगों की जानें गयी हैं, इस परिप्रेक्ष्य में हुये हैं। चीन को सीमित रखने के लिये जरूरी अपनी जबरदस्त सैन्य उपस्थिति को जारी रखने के लिये अमरीका की लगातार उकसाऊ हरकतों के बारे में इस लेख में ध्यान आकर्षित किया गया है।

दुनिया के लोगों की सहानुभूति हमेशा कोरिया के लोगों के साथ रही है क्योंकि शीत युध्द की अवधि के पहले कुछ वर्षों में कोरिया के लोगों को अपने देश के क्रूर विभाजन का सामना करना पड़ा था। दुनिया के लोगों को अमरीकी साम्राज्यवाद की भूमिका के बारे में कोई भ्रम नहीं है और उन्होंने कोरिया के विभाजन को बनाये रखने की हमेशा निंदा की है तथा कोरिया के लोगों के एकीकरण की इच्छा की हिमायत की है। कहा जाता है कि विभाजित दो देशों के बीच का सैन्य शासन रहित क्षेत्र ऐसी जगह है, जहां से भविष्य के युध्द के लिये चिंगारी सुलगने की संभावना है। अवश्य ही, यह नहीं कहा जाता कि युध्द इन देशों और पास के अन्य देशों के हित में नहीं है। युध्द, खास तौर पर साम्राज्यवाद के हित में ही है, जो इसे अपने मतलब के लिये और अपने रणनैतिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिये इस्तेमाल करते हैं।

दुनिया के लोगों ने दो विश्व युध्दों के और शीत युध्द के कटु सबकों से सीखा है कि उन्हें युध्द में उलझना नहीं चाहिये। लोगों के लिये सबक यह है कि उन्हें अलग-अलग राष्ट्रों के बीच विवादों को युध्द द्वारा निपटाने के विरोध में एक मंच पर एकजुट होना होगा। इस सिध्दांत के आधार पर मेहनतकश लोगों को संगठित करने में कम्युनिस्टों का नेतृत्व में होना निहायत जरूरी है। जंगफरोशी के अजेंडे वाले पूंजीपति वर्ग को परास्त करना ही मेहनतकश लोगों की जीत की एक आधारशिला है।

भवदीय,

एस. नायर, कोची

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