किंगफिशर एयरलाईंस के मजदूरों के संघर्ष का समर्थन करें!

किंगफिशर एयरलाईंस के विमानचालक, कक्ष परिचारक और जमीनी कर्मी, इस घाटे में चलने वाली एयरलाईंस के मालिक द्वारा मज़दूरों की छंटनी कर के और उनका वेतन काट कर, घाटे का बोझ मज़दूरों पर डालने के विरोध में कई महीनों से संघर्ष कर रहे हैं।

किंगफिशर एयरलाईंस के विमानचालक, कक्ष परिचारक और जमीनी कर्मी, इस घाटे में चलने वाली एयरलाईंस के मालिक द्वारा मज़दूरों की छंटनी कर के और उनका वेतन काट कर, घाटे का बोझ मज़दूरों पर डालने के विरोध में कई महीनों से संघर्ष कर रहे हैं।

2 अप्रैल को किंगफिशर एयरलाईंस (के.एफ.ए.) के 7000 से भी अधिक कर्मचारियों ने हड़ताल में उतरने की चेतावनी दी कि अगर प्रबंधन द्वारा उनका दिसम्बर और जनवरी का वेतन 3 अप्रैल की रात तक नहीं जमा कराया जाता है तो कर्मचारी हड़ताल करेंगे। किंगफिशर एयरलाईंस के कर्मचारियों को दिसम्बर से वेतन नहीं दिया गया है। के.एफ.ए. का अध्यक्ष, विजय माल्या ने वादा किया कि ''सभी कनिष्ठ कर्मचारियों को 4 अप्रैल तक वेतन दिया जायेगा। विमानचालकों और इंजीनियरों का वेतन 9 अप्रैल और 10 अप्रैल तक दिया जायेगा।'' यह तो सरासर झूठ निकला। क्योंकि 9 अप्रैल तक कनिष्ठ कर्मचारियों में से एक हिस्से को ही सिर्फ मूल वेतन ही दिया गया था जो उनके बकाया वेतन से बहुत कम था।

जैसा कि अपेक्षा की जा सकती है, अपने परिवार के सदस्यों को भूख से बचाने में, बच्चों को स्कूल भेजने में, घर इत्यादि के लिये मासिक किश्त चुकाने, आदि में कर्मचारियों की परिस्थिति बहुत ही नाजुक है। के.एफ.ए. के अध्यक्ष को भेजे पत्र में कर्मचारियों ने ध्यान दिलाया है कि ''कर्मचारी एक ऐसी अवस्था में पहुंच गये हैं कि आर्थिक तंगी से पैदा हुये तनाव की वजह से कामकाज सुरक्षित तरीके से करना असंभव हो गया है।''

कर्मचारियों ने अपने पत्र में लिखा कि ''पहले भी हमें ऐसे आश्वासन दिये जा चुके हैं कि फलां दिन हमारा वेतन दिया जायेगा। परन्तु, कभी भी आश्वासन पूरा नही होता है। चार महीने से वेतन न मिलने की वजह से कर्मचारियों को लग रहा है कि उनके साथ धोखा किया गया है और अब इस तरह के आश्वासनों में किसी को विश्वास नहीं रहा है। अब हम ऐसी मानसिक परिस्थिति में नहीं हैं कि हम अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभा सकें और अगर हम अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश करेंगे तो हमारे हवाई जहाजों और माननीय अतिथियों की सुरक्षा को खतरा है।''

''बहुत से कर्मचारियों को बैंक से चेतावनी मिल रही है कि किश्त नहीं भरने पर उनके घरों को जब्त कर लिया जायेगा। अन्य कर्मचारियों को अपने बच्चों की फीस भरने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।''

कर्मचारियों को सबसे ज्यादा गुस्सा इस बात पर है कि के.एफ.ए. के अध्यक्ष के पास क्रिकेट टीम का प्रायोजन करने के लिये पैसे हैं पर कर्मचारियों के बकाया वेतन देने के लिये पैसे नहीं हैं। साथ ही वे देखते हैं कि माल्या की ठाठदार जीवन शैली में कोई कमी नहीं आई है।

हालांकि एयरलाईंस के कर्मचारियों की अभी यूनियन नहीं है, उन्होंने विभागों के स्तर पर सभायें कर के वेतन न मिलने पर हड़ताल पर उतरने का फैसला लिया है।

इस बीच, किंगफिशर एयरलाईंस ने विशाल पैमाने पर अपनी सेवा में कटौती की है जिनमें बहुत सी घरेलू उड़ानें और सभी अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें शामिल हैं। पिछले नवम्बर में संकट के पहले की 400 उड़ानों से घट कर अब सिर्फ करीब 100 उड़ाने ही बची हैं। 56 गंतव्य स्थानों से घट कर अब एयरलाईंस सिर्फ 28गंतव्य स्थानों पर जाती है और 40से 50प्रतिशत कर्मचारियों को आगे के आदेशों तक घरों में ही रहने के लिये कहा गया है। वेतन मिलने की असुरक्षा के साथ ही कर्मचारियों को नौकरी की असुरक्षा की भी तकलीफ है।

किंगफिशर एयरलाईंस का मालिक, विजय माल्या शराब के धंधे का नवाब है और हिन्दोस्तान के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक है। वह एक सांसद है और नागरिक विमानन की संसदीय समिति का सदस्य है। किंगफिशर एयरलाईंस में लगाया निवेश भारतीय स्टेट बैंक जैसे सार्वजनिक बैंकों से लगाया सार्वजनिक पैसा है। इन बैंकों ने जनता के पैसे को इस उद्यम में डुबा दिया है और अब किंगफिशर एयरलाईंस उन्हें कह रही है कि इस रकम को डूबे हुये कर्जे के जैसे घोषित किया जाये। इसी तरह किंगफिशर एयरलाईंस सार्वजनिक तेल कंपनियों और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रति भारी तरह से देनदार है। माल्या मज़दूरों का वेतन इसीलिये नहीं दे रहा ताकि वह जनमत तैयार कर सके कि उसकी एयरलाईंस को बचाने के लिये सरकार को सहायता पैकेज देना चाहिये। किंगफिशर एयरलाईंस के मज़दूरों को ऐसे सहायता पैकेज का विरोध करना चाहिये। उन्हें मांग रखनी चाहिये कि माल्या उनका वेतन दे, नहीं तो सरकार उसकी संपत्तिा जब्त करे और उससे बकाया वेतन दे।

किंगफिशर एयरलाईंस के मज़दूरों का संघर्ष पूरी तरह जायज़ है।

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