पंजाब चुनाव का नतीजा :

सिर्फ मज़दूरों और किसानों की सत्ता ही पंजाब को संकट से बाहर निकाल सकती है!

हाल में हुये पंजाब विधान सभा चुनाव में, कुल 117 सीटों में से 68 जीत कर अकाली दल-भाजपा गठबंधन सत्ता में कायम रहा है, जबकि कांग्रेस पार्टी को कुल मिला कर 46 सीटें मिली हैं। पूंजीवादी ''विशेषज्ञ'' दावा करते हैं कि पंजाबी लोगों ने अपने ''लोकतांत्रिक अधिकार''का उपयोग कर के अकाली

सिर्फ मज़दूरों और किसानों की सत्ता ही पंजाब को संकट से बाहर निकाल सकती है!

हाल में हुये पंजाब विधान सभा चुनाव में, कुल 117 सीटों में से 68 जीत कर अकाली दल-भाजपा गठबंधन सत्ता में कायम रहा है, जबकि कांग्रेस पार्टी को कुल मिला कर 46 सीटें मिली हैं। पूंजीवादी ''विशेषज्ञ'' दावा करते हैं कि पंजाबी लोगों ने अपने ''लोकतांत्रिक अधिकार''का उपयोग कर के अकाली दल-भाजपा गठबंधन को सत्ता में कायम रखा है। परन्तु शुरूआत से ही यह साफ था कि किसी भी राजनीतिक गुट के पास पंजाब और उसके मेहनतकश लोगों के भविष्य के लिये कोई ख्याल नहीं थे। पंजाब के बहादुर लोगों के लिये आखिर आगे का क्या रास्ता है? इसे समझने के लिये हमें अर्थव्यवस्था और राज्य की वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति पर निगाह डालनी होगी।

पंजाब की अर्थव्यवस्था अधिकांश तौर पर कृषि पर आधारित है जिसमें हाल में कुछ खास औद्योगिक विकास नहीं हुआ है। साठ और सत्तार के दशकों में हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों ने पंजाब को देश का गेहूं व चावल का अन्न भंडार बनाने का फैसला लिया। पंजाब ''हरित क्रांति'' का एक अहम केन्द्र बना, जिसका उद्देश्य था गेहूं और चावल के सुरक्षित भंडार बनाकर पूंजीवादी बाजारों को बढ़ावा देना। गेहूं और चावल के उत्पाद को राज्य की एजेंसियां गारन्टी की कीमतों पर खरीदती थीं। इन नीतियों का नतीजा था कि मुट्ठीभर पूंजीपति किसान व पूर्व जमीनदार अमीर हुये जबकि अधिकांश किसानों की बदहाल परिस्थिति कायम रही। उस वक्त पूंजीपतियों की रुचि कृषि में पूंजीवादी संवर्धन की थी जिसके लिये उन्होंने किसानों को सस्ते दामों में बीज व सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध करायी, और साथ में गारंटी के दामों पर सरकारी खरीदी सुनिश्चित की। इससे उपभोक्ता और औद्योगिक वस्तुओं के लिये घरेलू बाजार में विस्तार हुआ तथा बड़े पूंजीपतियों ने जबरदस्त मुनाफा बनाया।

90 के दशक और उसके पश्चात के पूंजीवादी ''सुधारों'' के परिणामस्वरूप, बड़े पूंजीपति क्रमश: सार्वजनिक वितरण प्रणाली को तोड़ते जा रहे हैं। बढ़ती लागत कीमतों और सरकारी खरीद की अपर्याप्त कीमतों के सामने किसानों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। इससे बड़े पैमाने पर किसान दिवालिया हुये हैं। एक वैश्वीकृत बाजार में पूंजीवादी कृषि और व्यापारिक खेती के लिये रासायनिक खाद, कीटनाशक तथा सुनिश्चित सिंचाई जरूरी होती है। इन लागत वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं परन्तु फसल के लिये किसानों को मिलने वाली कीमतों में घोर अनिश्चिति रही है। थोक बाजार में बड़े इजारेदार पूंजीपतियों के नियंत्रण के कारण किसानों को फसलों की उचित कीमत नहीं मिली हैं। फलस्वरूप, किसान कर्जे के बोझ में दबे हुये हैं। पर्याप्त सार्वजनिक सिंचाई साधनों के अभाव के कारण, तेजी से निजी टयूबवेलों के इस्तेमाल से, जमीन में पानी का स्तर तेजी से गिरा है। पंजाब में 1998 और 2008 के बीच, किसानों की आत्महत्याओं की अनुमानित संख्या 20,000 से 40,000 के बीच आंकी गयी है जो कि पंजाब के किसानों के दिवालियापन का अनुमान देती है।

जबकि पंजाब आर्थिक संकट से घिरा हुआ है, राज्य के सामाजिक सूचक भी वैसे ही अथाह गिरे हुये हैं। महिलाओं की सामाजिक हालातों में पंजाब, हर 1000 पुरुषों की तुलना में 846 महिलाओं के साथ, सबसे निचले स्थान पर आता है। इस राज्य में कन्या भ्रूण हत्याओं की दर देश भर में सबसे ज्यादा है।

बेरोज़गारी, खास तौर पर पंजाब के पढ़े-लिखे नौजवानों के बीच, बहुत ज्यादा है। अत्याधिक बेरोज़गारी के साथ-साथ नौजवानों के बीच नशीली दवाओं की आदतें भी बहुत व्यापक है।

पिछले कुछ दशकों से पंजाब की राजनीति में दो प्रमुख पार्टियों का बोलबाला रहा है – एक अकाली दल के नेतृत्व में जिसमें भाजपा की छोटी भूमिका है और दूसरा कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में। वर्तमान पंजाब के लोगों के गहरे सामाजिक आर्थिक संकट प्रत्यक्ष रूप से इन दोनों गुटों द्वारा लागू की गयी नीतियों के कारण ही है। फिर भी ये पार्टियां ढिठाई से दावा करती हैं कि वे लोगों के हित में काम करती हैं।

अकाली दल का दावा है कि वह पंजाब के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, खास तौर पर किसानों का। अकाली दल-भाजपा गठबंधन 2012 के विधान सभा चुनावों में इस झूठे प्रचार से आया है कि उन्होंने पिछले चुनावों के आश्वासनों को पूरा किया है। 23 जनवरी 2012 के उनके चुनावी घोषणापत्र में उन्होंने गरीब भूमिहीन किसानों के परिवारों को भूमि देने का, 5 साल में 10 लाख नयी नौकरियां तैयार करने का, नौजवानों को 1000 रु. प्रति माह बेरोजगारी भत्ता देने का, छोटे जोत के किसानों को सरकारी कर्मचारियों के जैसे भविष्य निधि देने का और इसी तरह के बहुत से वादे किये थे। परन्तु सच्चाई तो है कि अकाली दल या कोई भी पार्टी सिर्फ बड़े-बड़े वादे करके लोगों की समस्याओं का हल नहीं निकाल सकती है। मौजूदा पूंजीवादी कृषि व व्यापार ने किसानों को विनाश की कगार पर खड़ा किया है। राज्य की अर्थव्यवस्था को एक नयी दिशा दिए बगैर लोगों के हितों की रक्षा नहीं हो सकती है।

चुनाव जीतने के पश्चात अकाली दल-भाजपा गठबंधन के वादों से उल्टे लक्ष्य हैं। लोगों को मूर्ख बना कर कि वे लोगों के हित में काम करेंगे, ऐसे वादों के साथ ही वे सत्ता में आये हैं। परन्तु उनका असली लक्ष्य है यह सुनिश्चित करना कि राज्य व देश के पूंजीपतियों के मुनाफे हर हालत में अधिकतम हों, चाहे वे लोगों के जीवन व रोजगार को बलिदान देकर ही क्यों न हो।

मौजूदा राजनीति व चुनावी प्रक्रिया लोगों को पूरी तरह किनारे करती हैं। उनका एक ही अधिकार है कि वे इस या उस पूंजीवादी पार्टी या गठबंधन को वोट देकर जितायें ताकि वे पूंजीपतिओं के हित के लिये उन पर शासन करें। मौजूदा स्थिति को बदलने के लिये मज़दूरों व किसानों को पूंजीपतियों से सत्ता छीननी होगी। यह सिर्फ मज़दूरों और किसानों की सत्ता ही होगी जो पंजाब के लोगों की सैकड़ों समस्याओं का स्थायी समाधान निकाल सकती है।

दूसरी जगहों की तरह ही, पंजाब में भी कम्युनिस्टों को लोगों को पूंजीवादी लोकतंत्र की जगह श्रमिकों के लोकतंत्र को स्थापित करने की जरूरत के लिये जागरुक करने और उन्हें संगठित करने की आवश्यकता है। उन्हें हिन्दोस्तान के नवनिर्माण के कार्यक्रम को आगे बढ़ाना होगा जिसका लक्ष्य है, मज़दूरों व किसानों की सत्ता स्थापित करना, अर्थव्यवस्था को अधिकांश लोगों के हित में एक नयी दिशा देना, सब तरह के शोषण का अंत करना और हिन्दोस्तान को स्वैच्छा पर आधारित लोगों व राष्ट्रों के एक संघ बतौर गठित करना। सिर्फ इसी तरह पंजाब के मज़दूर व किसान, जैसे कि हिन्दोस्तान के अन्य इलाकों के मज़दूर व किसान, एक गौरवमय लोगों के जैसे अपना भविष्य खुद तय कर सकेंगे।

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