पूर्वी दिल्ली की एक पुनर्वास कालोनी मदनपुर खादर में 31 मार्च, 2012 को महिला दिवस मनाया गया। सभा को पुरोगामी महिला संगठन और लोक राज संगठन ने आयोजित किया था। इस सभा में इस इलाके की घरेलू महिलाओं, स्कूलों और कालेजों के छात्र-छात्राओं, नौजवान लड़के-लड़कियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। सभा की शुरुआत में पुरोगामी महिला संगठन की तरफ से महिला दिवस के ऐतिहासिक संघर्ष पर एक प्रस्तुति पेश की
पूर्वी दिल्ली की एक पुनर्वास कालोनी मदनपुर खादर में 31 मार्च, 2012 को महिला दिवस मनाया गया। सभा को पुरोगामी महिला संगठन और लोक राज संगठन ने आयोजित किया था। इस सभा में इस इलाके की घरेलू महिलाओं, स्कूलों और कालेजों के छात्र-छात्राओं, नौजवान लड़के-लड़कियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। सभा की शुरुआत में पुरोगामी महिला संगठन की तरफ से महिला दिवस के ऐतिहासिक संघर्ष पर एक प्रस्तुति पेश की गयी।
पुरोगामी महिला संगठन की ओर से रेणु ने प्रस्तुति पेश करते हुये समझाया कि लगभग 100 साल पहले अमरीका तथा दुनियाभर के और देशों की महिलाओं ने अपने अधिकारों को पाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने मांग की कि काम के घंटे कम करने चाहिये, अच्छे वेतन मिलने चाहिये, समान काम के समान वेतन मिलना चाहिये, काम के स्थान पर महिलाओं के क्रेच की सुविधा होनी चाहिये और वोट देने का अधिकार होना चाहिये। पूरी दुनिया की महिलाओं के लिये वोट का अधिकार पाना एक बहुत बड़ी जीत थी। रूस की क्रांति में भी महिलाओं के संघर्ष ने अहम भूमिका निभायी। प्रस्तुति को कई लड़कियों और विद्यार्थियों ने बड़े ध्यान से सुना और सराहा।
लोक राज संगठन के प्रतिनिधि धर्मेंद्र कुमार ने सभा को संबोधित करते हुये बताया कि हमारे देश में केवल पूंजीपतियों के लिये लोकतंत्र है, उन्हीं की बातों को सरकार सुनती है और उन्हीं के फायदों के लिये कानून बनाती है। जैसे कि लोग पूरे देश में महंगाई से त्रस्त हैं लेकिन सरकारें खाद्य पर मिलने वाली सबसीडी को यह बहाना देकर खत्म करने पर तुली है कि, सरकार के पास पैसा नहीं है, परन्तु सरकार ने पूंजीपतियों को मंदी से निकालने के लिये लाखों करोड़ रुपये बेल आउट पैकेज़ के नाम पर दिये हैं। लेकिन सरकार ये सब लोगों के नाम पर करती है। हमारे देश में जो मुख्य राजनीतिक पार्टियां, कांग्रेस पार्टी और भाजपा हैं उनका काम है लोगों को बुध्दू बनाना और लोकतंत्र के नाम पर वोट लेकर पूंजीपतियों के लिये काम करना।
उन्होंने बताया कि जिन प्रतिनिधियों को हम चुनते हैं वे पार्टियों के प्रतिनिधि होते हैं न कि लोगों के, ये प्रतिनिधि जीतने के बाद अपनी पार्टी के प्रति जवाबदेह होते हैं, लोगों के प्रति इनकी कोई ज़वाबदेही नहीं होती। हमें इस व्यवस्था को बदलना होगा और अपने बीच में से जनता के प्रतिनिधियों का चयन करके, चुनाव में खड़ा करना होगा। और उस प्रतिनिधि को वापस बुलाने की ताकत भी लोगों के पास होगी। जीतने के बाद प्रतिनिधि को अपने काम का आय और व्यय का पूरा ब्यौरा लोगों के सामने पेश करना होगा। इससे लोगों को पता चलता रहेगा कि क्या काम हो रहा है। इसके लिये देश भर में मजदूरों, किसानों, नौजवानों, कालोनियों के लोगों की समितियां बनानी होंगी। तभी हम पूरी तरह से राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में ले सकते हैं। केवल पांच वर्ष में एक बार वोट दे देने भर से हमारी स्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा।
पुरोगामी महिला संगठन की पूनम ने अपने संबोधन में कहा कि दिल्ली सरकार स्त्री-सशक्तिकरण के नाम पर लोगों के साथ भद्दा मजाक कर रही है। लोगों की जरूरत के समुद्र में सुविधा की एक बूंद जैसी है। वह भी सभी जरूरत मंद लोगों को उपलब्ध नहीं होती है। कोई भी सुविधा दिलाने के लिये लोगों से प्रमाणपत्र मांगा जाता है जबकि ज्यादातर लोगों के पास कोई भी अपनी नागरिकता साबित करने का प्रमाण नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी समस्याओं का समाधान संगठन बनाकर संघर्ष करने से ही हो सकता है।
लोक राज समिति संजय कालोनी से कामरेड लोकेश ने बताया कि राशन से लेकर पानी तक, सरकार लोगों को मुहैया नहीं करवाना चाहती। पानी के लिये लोगों को टैंकरों का घंटों इंतजार करना पड़ता है और तब भी स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं होता है। सरकार राशन प्रणाली को खत्म करने के प्रयास कर रही है। लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं और जिनके पास हैं उन्हें सरकार ने राशन कार्ड के नाम पर एपीएल, बीपीएल, अंतोदय करके लोगों को बांट दिया है। उन्होंने बताया कि संजय कालोनी में सैकड़ों कार्ड हमारी समिति के संघर्ष की बदौलत लोगों को हासिल हुये हैं। उन्होंने लोगों से अपील की कि राज्य सत्ता लेने के लिये हर जगह लोक राज समितियों का निर्माण करें।
सभा का समापन वक्तव्य देते हुये कामरेड संतोष ने कहा कि महिला दिवस दुनिया की हर महिला के लिये गर्व की बात है। आज जो दुनिया में वोट देने का अधिकार लोगों को मिला है उसके लिये 100 साल पहले महिलाओं ने कुर्बानी दी थी। यह महिलाओं की लड़ाई आर्थिक स्थिति को ठीक करने, सामाजिक सुरक्षा और राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में लेने की लड़ाई थी। सही मायने में कहें तो यह एक समाजवादी समाज बनाने के लिये महिलाओं और सभी मेहनतकशों का संघर्ष है।
सभा का समापन एक गीत 'देखो रंग बदल रहा है आसमान का…' से किया गया।