2010 के साल में दुनियाभर में मज़दूरों और दबे कुचले लोगों के शक्तिशाली संघर्ष हुये। 2010 के साल में दुनियाभर में मज़दूरों और दबे कुचले लोगों के शक्तिशाली संघर्ष हुये।
पूरे सन् 2010 में अफग़ानिस्तानी राष्ट्रभक्तों ने नाटो की कब्जाकारी ताकत की नाक में दम करके रखी। इराक में भी, अमरीकी साम्राज्यवादी अपनी कठपुतली सरकार को वैधता नहीं दिला पाये हैं।
सन् 2010 के साल की शुरुवात गाज़ा में इस्राइली हमलों की सालगिरह की निंदा करने के प्रदर्शनों के साथ हुई। मिश्र, गाज़ा, इस्राइल और दुनिया भर के अन्य बहुत से शहरों में प्रदर्शन किये गये। मिश्र की राजधानी कायरो में 43 देशों से आये 1400 कार्यकर्ताओं ने इस्राइल की गैरकानूनी घेरेबंदी को खत्म करने के लिये गाज़ा की तरफ कूच किया और बहुत सी श्रृंखलाबध्द कार्यवाइयां की। ऑस्ट्रेलिया, अमरीका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन, आयरलैंड, नेदरलैंड और दूसरे देशों में एकता रैलियां आयोजित की गयीं। इसी तरह इस्राइली कमांडों द्वारा 31 मई, 2010 को गाज़ा के लोगों के लिये मानवीय सहायता ले जाने वाले छ: जहाजों पर हमले की निंदा करते हुये दुनिया के बहुत से शहरों में इस्राइली दूतावासों के सामने प्रदर्शन किये गये।
सभी देशों में, मज़दूर वर्ग और लोगों ने शासक वर्ग द्वारा संकट का बोझ मेहनतकश लोगों पर डालने की कोशिशों का जमकर विरोध किया है। खास तौर पर यूरोप के देशों में मेहनतकश लोगों ने अपनी-अपनी सरकारों की योजनाओं के विभिन्न पहलुओं के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन किये। फरवरी 2010 से यूनान के सरकारी कर्मचारियों ने वाक आउटों, धरनों और हड़तालों के जरिये यूनानी सरकार के ”कमरकसी” कदमों का विरोध किया, जिससे यूरोपीय संघ और यूरोपीय केन्द्रीय बैंक के आदेश पर वेतन कटौतियां, कर-वृध्दियां और दूसरे लोक-विरोधी कदम थोपे जा रहे थे। फरवरी 2010 में ही स्पेन के दस शहरों में उनकी सरकार द्वारा ”कमरकसी” कदमों की योजनाओं का विरोध करने के लिये जन प्रदर्शन किये गये। इसी तरह 5 फरवरी, 2010 के दिन पुर्तगाली सरकार की वेतनवृध्दि में रोक के खिलाफ़ 50,000 से भी अधिक सरकारी कर्मचारियों ने लिस्बन शहर की सड़कों पर मार्च किया।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस बगदाद से सिओल तक, टोरांटो से मनीला तक, दुनियाभर में जोश के साथ मनाया गया। यूनान में सरकार द्वारा घोषित ”कमरकसी” पैकेज के विरोध में महिलायें सड़कों पर उतरीं, जिस पैकेज का इरादा संकट का बोझ लोगों पर लादना है। फिलिस्तीन में महिलाओं ने अपने राष्ट्रीय अधिकारों की मांग पर जोर दिया, जबकि बगदाद में महिलायें आंग्ल-अमरीकी फौज द्वारा उनके देश पर कब्जे के खिलाफ़ बाहर निकलीं। इतली, फ्रांस और स्पेन में, उनके देश में प्रवासी मज़दूरों पर हो रहे जातीवादी व नस्लवादी हमलों के खिलाफ महिलाओं के प्रदर्शन हुये। महिलाओं के खिलाफ़ हो रही हिंसा को खत्म करने की मांग ले कर कई हजार महिलाओं ने लंदन में प्रदर्शन किये। दक्षिणी कोरिया में, यूरोपी देशों की तरह, महिलाओं ने गर्भधारण और गर्भपात के अपने अधिकार के समर्थन में प्रदर्शन किये।
यूनान के मेहनतकश लोगों ने अप्रैल 2010 में अपने विशाल प्रदर्शनों को जारी रखा। मार्च 2010 में यूरो क्षेत्र के सभी देशों की सरकारें ब्रसल्स में मिलीं और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ मिल कर यूनान को ”मदद” करने की योजना को स्वीकृति दी। इसकी शर्तों में यूनानी सरकार द्वारा लोगों पर संकट का बोझ लादने के अनिवार्य कड़े कदम शामिल हैं। ऐसी योजना तथा ”ब्रसल्स और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के विदेशियों की यूनान के मामलों में दखलंदाजी” के खिलाफ एथेन्स में दसियों हजार लोग सड़कों पर उतरे।
मई दिवस की रैलियों में भी यूनान के लोग सबसे आगे थे। सड़कों पर प्रदर्शन करते हुये उनके नारे थे – ”अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की अत्याचारी सरकार मुर्दाबाद!”, ”हमारे अधिकारों पर हाथ न लगाओ!, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और यूरोपीय संघ आयोग को बाहर भगाओ!” प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिये पुलिस ने कई बार अश्रु गैस के गोले चलाये, परन्तु प्रदर्शनकारियों ने ”कमरकसी” कदमों के अपने विरोध को दृढ़ता से जारी रखने और बढ़ाने का ऐलान किया। फ्रांस में भी मई दिवस रैलियों का निशाना शासक वर्गों द्वारा संकट का बोझ लोगों पर लादना था, जहां विभिन्न शहरों में 3,00,000 से भी अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। प्रदर्शनों का मुख्य निशाना सरकार द्वारा सेवानिवृत्ति की प्रणाली को ”सुधारना” था, जिससे लोगों को अधिक लम्बे अरसे काम करके ही पूरी पेंशन मिल सकेगी। इसी तरह स्पेन में मई दिवस के प्रदर्शन देश में जगह-जगह मज़दूरों की इस मांग के नारे के साथ किये गये कि ”रोजी-रोटी, अधिकारों की रक्षा और पेंशन की गारंटी!” होनी चाहिये। मज़दूर यह मांग कर रहे हैं कि संकट का बोझ अमीरों को ज्यादा कर देकर अपने कन्धों पर लेना चाहिये।
रूस के इस वर्ष के मॉस्को के मई दिवस प्रदर्शन में लोगों को जोसेफ स्तालिन के चित्र लिये देखा गया। प्रदर्शनकारियों ने लोगों के अधिकारों पर हमले करने और लोकतांत्रिक प्रतिरोध को दबाने के लिये प्रधान मंत्री व्लादिमीर पूतिन की निंदा की। पूरे रूस में करीब 1000 शहरों में कुल मिलाकर 25 लाख लोगों ने मई दिवस रैलियों में भाग लिया। तुर्की के इस्तांबुल शहर के तक्सीम स्क्वायर की मुख्य मई दिवस रैली में 3 लाख से अधिक मज़दूरों ने भाग लिया। सिओल में भी हजारों मज़दूरों ने काम की बेहतर शर्तों और स्थायी नौकरियों की मांग लेकर शहर के बीच से मार्च किया। पूरी दुनिया के लोगों के हो रहे शोषण के विरुध्द संघर्ष के समर्थन में लाखों लोगों ने क्यूबा के हवाना शहर की मुख्य मई दिवस रैली में भाग लिया।
26-27 जून, 2010 को टोरांटो में जी-20 के सम्मेलन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर वहशी दमन का विरोध करने के लिये कनाडा भर में शक्तिशाली प्रदर्शन हुये। जी-8/20 सम्मेलनों ने संकट का बोझ मज़दूरों और दबे कुचले लोगों पर लादने और ईरान व कोरिया जैसे विभिन्न देशों के लोगों के खिलाफ झूठे बहानों के आधार पर उकसाव करने का ऐलान किया था। 26 जून, 2010 के दिन जी-20 के सम्मेलन के अजेंडे का विरोध करने के लिये 30,000 से भी अधिक लोगों ने प्रदर्शन किया।
फ्रांस की सरकार द्वारा संसद में पेंशन सुधारों की योजनाओं की प्रस्तुति के विरोध में पूरे देश में 4 सितम्बर, 2010 से प्रदर्शन शुरू हुये। तब से फ्रांस में लगातार आम हड़तालें चल रही हैं, जिनमें दसियों लाख मज़दूर, विद्यार्थी और नौजवानों ने हिस्सा लिया है। फ्रांस के मेहनतकश लोग रोमा लोगों के समर्थन में भी जोश से उतरे, जिन्हें फ्रांसिसी सरकार अन्यायपूर्ण तरह से देश से निकाल रही थी। 14 सितम्बर, 2010 को फ्रांस की सीनेट ने बुर्का और पर्दा पहनने पर प्रतिबंध पारित किये थे जिससे खास तौर पर मुस्लिम धर्म के लोगों को निशाना बनाया जा रहा था। ऐसे फासीवादी और नस्लवादी हमलों को फ्रांस के समूचे लोगों ने दो टूक जवाब दिया जब उन्होंने अपने विरोध प्रदर्शनों से यह दिखाया कि रोमा लोगों पर हमला, वे अपने पर हमला समझते हैं।
29 सितम्बर, 2010 को पूरे यूरोप की 13 राजधानियों तथा दूसरे नगरों में, मज़दूरों ने तालमेल के साथ विरोध प्रदर्शनों की लहर में भाग लिया। ये प्रदर्शन यूरोपीय आयोग द्वारा यूरोपीय संघ की सभी सरकारों पर वित्तीय नियंत्रण के कठोर कदमों की योजना शुरू करने के विरोध में किये गये थे। यूरोपीय संघ आयोग ने वित्तीय जुर्माना लगाने की धमकी दी थी उन सरकारों पर जो उन कदमों को लागू नहीं कर रही हैं। इसीलिये मुख्य विरोध बेल्जियम के ब्रसल्स शहर में आयोजित किया गया था क्योंकि वहां यूरोपीय संघ आयोग का मुख्यालय है।
नवम्बर और दिसम्बर 2010 के दौरान, ब्रिटेन में विश्वविद्यालयों की शिक्षा पर सरकारी खर्च में कटौतियां करने और विश्वविद्यालयों की फीस सालाना 3,290 पौंड से बढ़ा कर 9,000 पौंड तक करने की सरकार द्वारा छूट देने के विरोध में दसियों हजारों विद्यार्थी लगातार प्रदर्शनों में शामिल हुये हैं। लिबरल डेमोक्रेट गठबंधन सरकार ने स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा तथा दूसरे सामाजिक क्षेत्रों में भारी कटौतियों की योजनायें घोषित की हैं और इन हमलों के खिलाफ मज़दूर वर्ग, विद्यार्थियों और नौजवानों का भारी विरोध है।
बंग्लादेश के वस्त्र मज़दूरों ने 10 और 12 दिसम्बर, 2010 को फैक्टरी मालिकों द्वारा कानूनी वेतन देने की मांग को लेकर भारी विरोध प्रदर्शन किये हैं। पुलिस ने मज़दूरों पर डंडों और अश्रु गैस से हमला किये, परन्तु मजदूरों ने बहादुरी से इसका जवाब दिया। इन विरोध प्रदर्शनों की वजह से बहुत से कारखानों को लगातार कई दिनों तक बंद रखना पड़ा है। यह ध्यान में रखने योग्य है कि बंग्लादेश के वस्त्र कारखानों में 30 लाख मज़दूर काम करते हैं, और जो वस्त्र यहां बनाये जाते हैं, उनको बेच कर अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड की कंपनियां जबरदस्त मुनाफा बनाती हैं जबकि मज़दूरों को बहुत ही कम वेतन दिया जाता है।
जुलाई 2010 में पाकिस्तान के फैसलाबाद क्षेत्र में, न्यूनतम वेतन में प्रस्तावित 17 प्रतिशत बढ़ोतरी को लागू करने की मांग ले कर लाखों बिजली कर्धा मज़दूरों ने 24 दिन की हड़ताल की। मज़दूरों को राज्य द्वारा भयानक हमलों का सामना करना पड़ा। अंत में 29 जुलाई को 25,000 मज़दूरों द्वारा आयुक्त के कार्यालय तक के प्रदर्शन के बाद मज़दूरों ने सारी मांगें जीतीं और हड़ताल समाप्त हुई।
2010 के पूरे साल में दुनियाभर के लोगों ने अपने ऊपर और अपने वर्ग बंधुओं पर हमलों का दिलेरी से सामना किया है। शासकों द्वारा आर्थिक संकट का बोझ लोगों पर लादने की कोशिशों का हर जगह जबरदस्त प्रतिरोध किया गया है।