5 मई और 5 मई और 7 सितम्बर को पूरे देश में दसों-लाखों मजदूरों ने हड़ताल करके संप्रग सरकार की मजदूर वर्ग विरोधी नीतियों की खिलाफत की। अर्थव्यवस्था के मूल और प्राथमिक क्षेत्रों – विमान, बैंक, बीमा, संचार, परिवहन, कोयला, रक्षा सेवा, बंदरगाह, बिजली और ताप बिजली – के मजदूरों ने हड़ताल में भाग लिया। बड़े-बड़े प्रदर्शनों और सभाओं में मजदूरों ने पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ़ अपना गुस्सा जाहिर किया।
मजदूर खाद्य पदार्थों की कीमतों की अत्यधिक वृध्दि के खिलाफ़ तथा मेहनतकशों पर हो रहे दूसरे हमलों के खिलाफ़ एकजुट हुए। उन्होंने खाद्य और साथ ही साथ, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, परिवहन और बिजली की बढ़ती महंगाई को रोकने के फौरन कदमों की मांग की। हड़ताल में सार्वजनिक क्षेत्र उद्योगों के निजीकरण का विरोध किया गया और श्रम कानूनों के हनन के खिलाफ़ कड़े कदम की मांग की गई। कृषि मजदूरों और उन सभी दूसरे मजदूरों, जिन्हें वर्तमान श्रम कानूनों के तहत कोई सुरक्षा नहीं मिलती, के लिए सुरक्षा तथा एक राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा कोष का निर्माण करके सभी मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ दिलाने की मांग भी रखी गई।
अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में मजदूरों का संघर्ष
राष्ट्रीकृत बैंकों के मजदूर अलग-अलग बैंक शाखाओं के विलयन और मजदूरों की छंटनी के खिलाफ़ आवाज़ उठाते आ रहे हैं तथा बेहतर वेतन और काम की हालतों की मांग कर रहे हैं। वे निजी बहुराष्ट्रीय बैंकों और वित्ता संस्थानों के साथ स्पर्धा करने के दबाव का भी विरोध कर रहे हैं।
मोटरगाड़ी कंपनियों (जैसे कि फोर्ड, ह्युंडाई, वोल्वो और महिन्द्रा) के मजदूर अपना यूनियन बनाने के अधिकार के लिये और वेतन व काम की हालतों को लेकर प्रबंधकों के साथ नये समझौते करने की मांग के साथ संघर्ष करते रहे हैं।
इलेक्ट्रोनिक क्षेत्र के मजदूर यूनियन बनाने के अधिकार और वेतन वृध्दि की मांग को लेकर संघर्ष करते रहे हैं। तमिलनाडू में नोकिया कंपनी के मजदूरों ने प्रबंधकों को तीन वर्षीय वेतन समझौता करने को मजबूर किया, जबकि चैन्नई के निकट स्थित एक सेज़ में नोकिया की सप्लायर कंपनी बीवाईडी इलेक्ट्रोनिक्स के मजदूरों ने अपना यूनियन बनाने के अधिकार के लिए, स्थायी रोजगार, वेतन वृध्दि और प्रतिदिन काम की आठ घंटे की सीमा की मांगों को लेकर संघर्ष किया।
आंगनवाड़ी मजदूर वेतन वृध्दि, पेंशन, नियमित आमदनी और अन्य सुविधाओं की मांग को लेकर, राज्य के स्तर तथा पूरे देश के स्तर पर बहादुरी से विरोध प्रदर्शन करते आये हैं।
एआईआईएमएस, टाटा मेमोरियल और लेडी हार्डिंग जैसे बड़े अस्पतालों के स्वास्थ्य कर्मचारियों ने सुरक्षित रोजगार के अधिकार और भत्तों में संशोधन के लिये तथा तकनीकी व नर्सिंग के काम के आउटसोर्स किये जाने के खिलाफ संघर्ष किया।
पंजाब के बिजली क्षेत्र के लगभग 60,000 कर्मचारी राज्य बिजली बोर्ड के निजीकरण के बाद, अपने वेतन और काम के हालातों की सुरक्षा के लिये संघर्ष करते रहे हैं।
गोदी मजदूरों ने वेतन वृध्दि और नौकरी की सुरक्षा की मांग के साथ, साल में कई बार हड़तालें कीं।
डाक विभाग के ग्रामीण इलाकों में स्थित लगभग 5,000 डाक घरों को बंद करने के फैसले के खिलाफ़ देश भर के लाखों डाक कर्मचारी संघर्ष करते आये हैं। वे ग्रामीण इलाकों में बहुत कम वेतन पर काम कर रहे दो लाख पार्ट टाइम गैर-विभागीय मजदूरों को नियमित करने की मांग कर रहे हैं और रजिस्टर्ड मेल व स्पीड पोस्ट की 100 प्रतिशत डेलीवरी हासिल करने के नाम पर अपने तीव्र शोषण का विरोध कर रहे हैं।
तमिल नाडू के रबड़ बागानों के मजदूर तथा असम के चाय बागानों के मजदूर बेहतर वेतन और काम की हालतों के लिये संघर्ष करते आये हैं। नगर-निगम मजदूर, बंदरगाह मजदूर, शिक्षक, डाक्टर, नर्स और स्वास्थ्य कर्मचारी अपने काम के शोषण भरे हालातों के खिलाफ़, ठेके पर काम करवाने की प्रक्रिया के खिलाफ़ तथा बेहतर वेतन और काम की हालतों के लिये संघर्ष करते आये हैं।
मुंबई सबरबन ट्रेन चालकों का संघर्ष
4 मई, 2010 को सबरबन ट्रेन चालकों की हड़ताल के कारण मुंबई में यातायात पूरी तरह रुक गई। मुंबई के सबरबन टे्रन कर्मचारी और देश भर में भारतीय रेल के लोको रनिंग कर्मचारी अपने अत्यंत भारी काम के बोझ, बढ़ते शोषण और कम वेतन के खिलाफ़ जुझारू संघर्ष करते आये हैं।
एयर इंडिया के कर्मचारियों की हड़ताल
एयर इंडिया के 20,000 से अधिक इंजीनियरों, जमीनी कर्मचारियों और विमान सेवक कर्मचारियों ने 25 मई की सुबह को अचानक हड़ताल कर दी। यह हड़ताल दो यूनियन नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किये जाने के खिलाफ़ थी, जिन नेताओं ने उनके काम की हालातों की समस्याओं के बारे में मीडिया को बताया था। इस हड़ताल की वजह से एयर इंडिया की घरेलू सेवाएं पूरी तरह रुक गई और कुछ अंतर्राष्ट्रीय विमान सेवाओं में भी रुकावट पड़ी।
प्रवासी मजदूरों के अधिकारों की हिफाजत में
9 जनवरी, 2010 को जब राज्य ने बड़ी धूमधाम से प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन किया था, तो ठीक उसी समय मजदूर संगठनों ने संसद के सामने एक रैली आयोजित की, जिसमें रोजगार के लिये विदेश जाने वाले हिन्दोस्तानी मजदूरों तथा रोजी-रोटी के लिये दूसरे देशों से हिन्दोस्तान आने वाले मजदूरों के अधिकारों के पूर्ण अभाव पर रोशनी डाली गई। मजदूर संगठनों ने देश के अंदर एक प्रांत से दूसरे प्रांत में काम करने के लिये जाने वाले मजदूरों के अधिकारों के अभाव का मुद्दा भी उठाया।
मछली व्यवसाय के मजदूरों का विरोध प्रदर्शन
देशभर में मछली व्यवसाय के मजदूर अपनी मांगों को लेकर जोरदार विरोध प्रदर्शन करते आये हैं। हिन्दोस्तान के लंबे समुद्रतट के कई स्थानों, गुजरात से बंगाल तक और लगभग सभी तटीय शहरों में तथा राजधानी दिल्ली में इनके प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों के दौरान, मजदूरों ने संसद में पारित होने वाले उन कानूनों का डटकर विरोध किया, जिनसे मछली व्यवसाय के मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में होगी।
मनरेगा के मजदूरों का संघर्ष और जीत
राजस्थान में मनरेगा मजदूर ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत दिये जाने वाले अति कम वेतन के खिलाफ़ आंदोलन चलाते आये हैं।
राज्य के मनरेगा वेबसाइट के अनुसार, इस योजना में जबकि पिछले साल मजदूरों को प्रतिदिन 89 रुपये का औसतन वेतन दिया जाता था, तो इस साल सिर्फ 70 रुपये प्रतिदिन का वेतन दिया जा रहा है। राजस्थान की कुछ जगहों पर मनरेगा के तहत मजदूरों को सिर्फ 10 रुपया प्रतिदिन का वेतन मिलता है। यह याद किया जाये कि 2008 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में यह वायदा किया था कि अगर वह जीतकर सरकार में आयेगी तो मनरेगा के न्यूनतम वेतन को प्रतिदिन 100 रुपये से बढ़ाकर 125 रुपये कर देगी। छ: महीनों तक लगातार डटकर संघर्ष करने के बाद दिसम्बर में मजदूरों को जीत हासिल हुई, जब राज्य सरकार ने उनकी मांगें मान ली। राज्य सरकार को यह मानना पड़ा कि मनरेगा के वेतन दर को राज्य के न्यूनतम वेतन दर के साथ जोड़ा जायेगा और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ भी जोड़ा जायेगा। इसके अलावा, मुद्रास्फीति के अनुसार मजदूरों के वेतन समय-समय पर संशोधित किये जायेंगे और मजदूरों को अपना रजिस्टर्ड यूनियन बनाने का अधिकार भी होगा।
उड़ीसा में पास्को द्वारा बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण के खिलाफ़ संघर्ष
उड़ीसा के जगतसिंह पुर और जाजपुर तथा अन्य इलाकों के लोग राज्यतंत्र की पूरी मदद के साथ दक्षिण कोरियाई इस्पात इजारेदार कंपनी, पोस्को द्वारा बलपूर्वक भूमि अधिग्रहण का जमकर विरोध करते आये हैं। लोगों ने परियोजना को किसी और स्थान पर हटाने की मांग की है क्योंकि इससे हजारों किसानों और आदिवासियों के जीवन और रोजी-रोटी पर असर पड़ेगा।
किसानों ने परमाणु बिजली संयंत्र के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध किया
हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गोरखपुर-कुम्हारिया गांव के किसान सरकार द्वारा अपनी भूमि के अधिग्रहण के खिलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं। न्यूक्लियर पावर कारपोरेशन आफ इंडिया लि. (एनआईपीसीएल) वहां एक बिजली संयंत्र स्थापित करना चाहता है। 23 अगस्त को आंदोलित किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में फतेहाबाद शहर में लघु सचिवालय के सामने धरना दिया।
शिक्षकों और विश्वविद्यालय कर्मचारियों का अपने अधिकारों के लिए संघर्ष
पूरे आंध्रप्रदेश राज्य से आये शिक्षकों ने दिसम्बर में हैदराबाद में एक विशाल प्रदर्शन किया। शिक्षक, कर्मचारी, मजदूर और पेंशनधारी कर्मचारियों की संयुक्त समिति द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन में यह मांग रखी गई कि पूरे राज्य में जो 400,000 सरकारी नौकरियों के रिक्त स्थान हैं उन्हें भरे जायें, आउटसोर्सिंग खत्म किया जाये और शिक्षकों की अप्रेंटिस प्रणाली (जिसके तहत शिक्षकों को बहुत कम वेतन पर कम समय के लिये लगाया जाता है) को भी खत्म किया जाये। मणिपुर में प्राथमिक स्तर से उच्च माध्यमिक स्तर तक, सरकारी स्कूलों के शिक्षकों ने बेहतर वेतन और काम की हालतों की मांग के साथ दिसम्बर में हड़ताल की।
1 दिसम्बर को देशभर के लगभग 200 विश्वविद्यालयों के हजारों कर्मचारियों ने शिक्षा के लिए सरकारी कोष में बढ़ोतरी की मांग को लेकर संसद पर प्रदर्शन किया। उन्होंने शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद के छ: प्रतिशत आवंटन की मांग की तथा शिक्षा के निजीकरण का विरोध किया।
देशभर के किसानों ने प्रदर्शन किया
देशभर के सैकड़ों किसानों ने किसान स्वराज यात्रा में भाग लिया। उन्होंने 2 अक्तूबर को गुजरात के साबरमती से अपनी यात्रा शुरू की और विभिन्न राज्यों के विभिन्न शहरों – आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, उत्तार प्रदेश, बिहार, इत्यादि – से गुजरते हुए, 11 दिसम्बर को नई दिल्ली के राजघाट पर एक विशाल रैली की।
यात्रा के दौरान जगह-जगह पर आयोजित रैलियों में आंदोलित किसानों ने बताया कि उदारीकरण और भूमंडलीकरण की नीतियों के चलते, कृषि सामग्रियों और उत्पादों के क्षेत्र को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए खोल दिये जाने की वजह से, किसान तबाह हो रहे हैं। इन नीतियों की वजह से देश के अलग-अलग इलाकों में बड़ी संख्या में किसान कर्जे में फंस रहे हैं और किसानों की आत्महत्या की घटनाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। अन्य मांगों के अलावा, उन्होंने यह मांग की कि सरकार नियंत्रित दाम पर कृषि की जरूरी सामग्रियां और सिंचाई को मुहैया कराये, लाभदायक दाम पर उत्पादों की खरीदी की गारंटी दे और फसल खराब होने पर मुआवज़ा भी दे।
कम्युनिस्टों का काम
सभी तबकों के मेहनतकश लोग वर्तमान व्यवस्था से नाखुश हैं और इसमें परिवर्तन चाहते हैं। इन तमाम मेहनतकशों को वर्तमान पूंजीवादी शोषण की व्यवस्था को खत्म करके मजदूर मेहनतकश की हुकूमत की स्थापना करने के कार्यक्रम के इर्द-गिर्द लामबंध करना कम्युनिस्टों का काम है। सभी मेहनतकशों के साथ गठबंधन बनाकर मजदूर वर्ग की हुकूमत जब स्थापित होगी तब यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि अर्थव्यवस्था को चलाने में मेहनतकशों की जरूरतों को प्राथमिकता दी जायेगी, न कि इजारेदार पूंजीपतियों की लालच को, जैसा कि आज होता है।