भारतीय रेल के पॉइंटमैन परिचालन विभाग (ऑपरेशन डिपार्टमेंट) की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। अंतिम स्टेशनों पर मालगाड़ी या पैसेंजर गाड़ी, खाली होने के उपरांत उसे स्टेशन से हटाना, मरम्मत के लिए गाड़ी के डिब्बों को कारखाने में व कार्यशाला में (वर्कशॉप) पहुँचाना, जिन स्थानों पर गाड़ियाँ नहीं रुकती हैं, वहां झंडी दिखाना तथा रेल पटरी पर अगर कुछ गड़बड़ी आने से पटरी बदलने की क्रिया ठीक से नहीं हो रही हो तो मामूली
भारतीय रेल के पॉइंटमैन परिचालन विभाग (ऑपरेशन डिपार्टमेंट) की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। अंतिम स्टेशनों पर मालगाड़ी या पैसेंजर गाड़ी, खाली होने के उपरांत उसे स्टेशन से हटाना, मरम्मत के लिए गाड़ी के डिब्बों को कारखाने में व कार्यशाला में (वर्कशॉप) पहुँचाना, जिन स्थानों पर गाड़ियाँ नहीं रुकती हैं, वहां झंडी दिखाना तथा रेल पटरी पर अगर कुछ गड़बड़ी आने से पटरी बदलने की क्रिया ठीक से नहीं हो रही हो तो मामूली मरम्मत करके उसे ठीक करने की कोशिश करना आदि – कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां उन्हें निभानी पड़ती हैं। मजदूर एकता लहर के संवाददाता ने उनसे वार्तालाप किया, जिससे कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए। इन्हें हम नीचे पेश कर रहे हैं :
सबसे दुख की बात तो यह है कि पूरे देश भर में गत कई वर्षों से नए पॉइंटमैन की भर्ती नहीं की गई है, जबकि सैकड़ों नई रेल गाड़ियाँ शुरू की गई हैं। केवल मुंबई डिविजन में ही 300 से ज्यादा पद रिक्त हैं। गत पांच साल में केवल वी.टी. स्टेशन पर ही 20 से ज्यादा रेल गाड़ियाँ बढ़ाई गई हैं। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि पूरे देश में क्या हाल होगा!
उन्हें 8 घंटे की शिफ्ट डयूटी करनी होती है। भोजन या चाय का अवकाश निर्धारित नहीं होता है! जरूरत से कम संख्या होने की वजह से प्रबंधन की ओर से उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे आपस में तय करके बारी-बारी से भोजन तथा चायपानी लें। वी.टी. जैसे स्टेशन पर भी कोई कैंटीन की व्यवस्था नहीं है। दूसरे छोटे स्टेशनों पर क्या हालत होंगे, इसकी हम कल्पना कर सकते हैं। 15 अगस्त, 26 जनवरी जैसे 11 राष्ट्रीय छुट्टी के दिन हैं। उन्हें छुट्टी नहीं मिलती क्योंकि रेल के पहियों को घूमते ही रहना है भई! उन्हें दी जाने वाली वर्दी भी हमेशा अपर्याप्त मात्रा में होती है क्योंकि उन्हें खुले में काम करना पड़ता है। ऐसा प्रावधान है कि बरसात के दिनों में रेनकोट दिया जाए, मगर वह भी अक्सर देरी से ही मिलता है। ठंड से बचाव के लिए ऊनी कपड़े भी कभी वक्त पर नहीं दिए जाते।
रेल सुरक्षा से संबधित कई मुद्दे जो सामने आए हैं, उन पर भी सभी को गौर करना आवश्यक है। जब भी कोई रेल दुर्घटना होती है तो रेल प्रशासन तथा मंत्रीगण फटाफट प्रसार माध्यमों के जरिये झूठ फैलाना शुरू करते हैं कि ''किसी न किसी रेल कर्मचारी की लापरवाही की वजह से दुर्घटना घटी है!'' प्रसार माध्यम भी पूरी गैर-जिम्मेदारी के साथ, इस झूठ को फैलाते हैं। अगर आपको यह बताया जाये कि शंटिंग का काम सुरक्षित तौर से करने के लिए आवश्यक हरे तथा लाल रंग के खास टॉर्च भी सभी पॉइंटमैन को नहीं दिए जाते तो आप क्या कहेंगे? कई पॉइंटमैन तो खुद के पैसे से साधारण टॉर्च खरीदते हैं, जिनमें दो रंग नहीं होते और उन्हीं से काम चला लेते हैं। जिनके पास सही टॉर्च होते हैं, उन्हें टॉर्च में आवश्यक बैटरी भी वक्त पर उपलब्ध नहीं करायी जाती है। रेलगाड़ी के डिब्बे को इंजन से अलग करने के बाद, सबसे आखरी डिब्बे के पहियों के आगे लकड़ी के पच्चर (वेज) रखना जरूरी है, ताकि ढलान पर डिब्बे फिसल न जायें। कई बार तो ये पच्चर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होते! करीब 2 महीने पहले, वी.टी. स्टेशन पर पच्चर न होने के कारण देवगिरी एक्सप्रेस के डिब्बे ढलान पर चल पड़े, और फिर सतर्क पॉइंटमैन ने जल्दी से दूसरी ट्रेन के पच्चर निकाल कर इस ट्रेन के सामने रख दिए और एक भयानक दुर्घटना टली थी, ऐसे कुछ सूत्रों ने हमारे संवाददाता को बताया!
इस तरह भारतीय रेल की अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी होने के बावजूद, उपेक्षित पॉइंटमैन, बड़ी मुश्किल से अपनी डयूटी से समय निकालकर रेल कर्मचारियों के सभी संघर्षों में हमेशा ही शामिल होते हैं।