चीनी प्रधानमंत्री की हिन्दोस्तान यात्रा

चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की हाल की हिन्दोस्तान यात्रा के दौरान समाचार माध्यम की प्रतिक्रिया में मुख्य तौर पर वे दो विचार आगे रखे गये जिनका हिन्दोस्तानी राज्य प्रचार करना चाहता था – कि चीन एक महाशक्ति है और एक प्रतिस्पर्धी भी। चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की हाल की हिन्दोस्तान यात्रा के दौरान समाचार माध्यम की प्रतिक्रिया में मुख्य तौर पर वे दो विचार आगे रखे गये जिनका हिन्दोस्तानी राज्य प्रचार करना चाहता था – कि चीन एक महाशक्ति है और एक प्रतिस्पर्धी भी।

दिसम्बर में हुई इस यात्रा के बारे में काफी शोर मचाया गया और यह बताया गया कि इसी वर्ष के अंदर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों की सरकारों के प्रधानों ने हिन्दोस्तान की यात्रा की थी। मीडिया के अनुसार, इन पांचों देशों के नेताओं का एक दूसरे के बाद हिन्दोस्तान आना यह दिखाता है कि विश्वस्तर पर हिन्दोस्तान का प्रभाव बढ़ रहा है।

परंतु साथ ही साथ, अखबारों के मुख्य शीर्षकों में चीनी ड्रैगनका भूत – यानि हिन्दोस्तान के पूर्वोत्तर पड़ौसी देश के हमलावर इरादों – का जिक्र भी होता रहा।

वेन की यात्रा यह दिखलाती है कि हिन्दोस्तान और चीन अपने आपसी संबंध को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। यह भी सच है कि हमारे दोनों देश एक दूसरे को प्रतिस्पर्धी मानते हैं।

चीन और हिन्दोस्तान दुनिया में दो मुख्य, तेजी से बढ़ती हुई, आर्थिक और सैनिक ताकतें हैं। अमरीका के बाद चीन दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और हिन्दोस्तान दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। चीन हिन्दोस्तान का सबसे बड़ा व्यापार सांझेदार है। परंतु चीन के साथ हिन्दोस्तान के व्यापार संतुलन में चीन का पलड़ा ज्यादा भारी है। चीन से हिन्दोस्तान का आयात चीन को किये गये निर्यात से बहुत ज्यादा है। चीनी प्रधानमंत्री के साथ उद्योगपतियों का बहुत बड़ा प्रतिनिधिमंडल आया था जो कि हिन्दोस्तान के उद्योगपतियों के साथ तरह-तरह के समझौते करने आये थे। यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई व्यापार समझौते किये गये। हिन्दोस्तानी सरकार ने यह मांग की कि दवाइयों तथा कुछ और क्षेत्रों में हिन्दोस्तान से निर्यात के लिये चीन उपयुक्त हालातें पैदा करे।

चीनी प्रधानमंत्री की पूरी यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच का तनाव बहुत स्पष्ट था। मनमोहन सिंह सरकार ने मीडिया के द्वारा तनाव को एक संतुलित स्तर तक बनाये रखा, जबकि औपचारिक तौर पर चीनी प्रतिनिधिमंडल के साथ स्वाभाविक रूप से कामकाज जारी रखा गया। परंतु दोनों, हिन्दोस्तान और चीन में कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि हिन्दोस्तानी राज्य और चीनी राज्य यह क्यों नहीं समझ सकते हैं कि दोनों देशों के बीच के आपसी तनाव से हमारे दोनों देशों को कोई फायदा नहीं है, सिर्फ अमरीका को ही फायदा है।

अमरीका ने चीन की वृध्दि का मुकाबला करने के लिये हिन्दोस्तान का इस्तेमाल करने के अपने रणनैतिक इरादे को छिपाने की कोई कोशिश नहीं की है। बीते वर्षों में अमरीकी विदेश विभाग के रणनैतिक दस्तावेजों में बार-बार इस इरादे का स्पष्टीकरण किया गया है। यह भी स्पष्ट है कि अमरीका और हिन्दोस्तान के बीच की नज़दीकी से चीन खुश नहीं है।

फिर हमारे दोनों देश एक दूसरे को क्यों भड़काते रहते हैं?

हिन्दोस्तान चीन को भड़काने के लिये जब चाहे तिब्बती शरणार्थियों का इस्तेमाल करता है, परंतु जब वह चीन को खुश करना चाहता है तब इन शरणार्थियों को प्रदर्शन करने का अधिकार न देने पर भी उतना ही डटा हुआ है। जैसा कि उसने 2008 में बेइजिंग ओलिम्पिक खेलों से पूर्व किया था।

चीन पाकिस्तान के साथ अपने संबंध का इस्तेमाल करके हिन्दोस्तान को तनाव में रखता है। दोनों देश जब चाहे आपसी तनाव को बढ़ाने के लिये एक विवादित सीमा का भी इस्तेमाल करते रहते हैं। दूसरे अवसरों पर, जैसे कि मौसम परिवर्तन और मुख्य आर्थिक विषयों पर वैश्विक वार्ताओं में चीन हिन्दोस्तान का समर्थन करता है।

इस दिखावटी दोमुंहापन को नीति विशेषज्ञ कूटनीति का नाम देते हैं। यह इस सच्चाई का सीधा परिणाम है कि ये दोनों देश खुद साम्राज्यवादी ताकतें हैं और इन दोनों देशों के शासकों को साम्राज्यवाद से कोई विरोध नहीं है। दोनों देशों के शासक अपने अपने देश में मेहनतकशों के शोषण और लूट तथा विदेशों में अन्य राष्ट्रों व लोगों के शोषण और लूट के पक्ष में हैं। असलियत में दोनों देशों के शासक उस स्थान को भरने की आपसी होड़ लगा रहे हैं जो बीते कई दशकों से अमरीका का स्थान रहा है।

तभी तो हमारे दोनों देश मिलकर अमरीकी साम्राज्यवाद का विरोध करने के बजाय एक दूसरे को प्रतिस्पर्धी मानते हैं।

पर इसका यह मतलब नहीं है कि हिन्दोस्तान अमरीका का नौकर है। हिन्दोस्तानी राज्य अपना रणनैतिक खेल चला रहा है और हमेशा सभी रास्ते खुले रखना चाहता है, सिर्फ एक स्पष्ट इरादे के साथ – कि हिन्दोस्तान के पूंजीपति कैसे दुनिया में आगे निकल सकें।

हिन्दोस्तान और चीन के मजदूर वर्ग और मेहनतकशों के हित में यह होगा कि हमारे दोनों देशों के बीच के संबंध आपसी हित और इस इलाके में तथा दुनिया में साम्राज्यवाद विरोध पर आधारित हों। अमरीकी साम्राज्यवाद चीन को काबू में रखने के अपने इरादे से, हिन्दोस्तान के शासकों को चीन के शासकों के खिलाफ़ भड़काने की कोशिश कर रहा है। हमारे दोनों देशों के बीच नजदीकी के संबंधों के प्रयास करते हुए और इस इलाके में शांति बनाये रखने के प्रयास करते हुए, हमारे लोगों को हमेशा चौकन्ने रहना होगा कि हमारे देश के शासक आने वाले समय में कभी भी अपने देश को एक प्रतिक्रियावादी साम्राज्यवादी जंग में फंसा सकते हैं।

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