वीरेन्द्र सिंह सिरोही से साक्षात्कार

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश का औद्योगिक जिला है। यह दिल्ली की पूर्वी सीमा पर स्थित है। यह औद्योगिक क्षेत्र, गुड़गांव तथा नोएडा से पुराना इतिहास रखता है। अनुमान है कि इस जिले में करीब 2 लाख से ज्यादा मजदूर विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों – साहिबाबाद, मोहननगर, लोनी रोड, जीटी रोड, मेरठ रोड, बुलंदशहर रोड, पटेल नगर, अमृतनगर, हापुड़ रोड़, डासना, ट्रोनिका सीटी, जिंदल नगर आदि में छोटे और बड़े उद्योग में काम करते

गाजियाबाद उत्तर प्रदेश का औद्योगिक जिला है। यह दिल्ली की पूर्वी सीमा पर स्थित है। यह औद्योगिक क्षेत्र, गुड़गांव तथा नोएडा से पुराना इतिहास रखता है। अनुमान है कि इस जिले में करीब 2 लाख से ज्यादा मजदूर विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों – साहिबाबाद, मोहननगर, लोनी रोड, जीटी रोड, मेरठ रोड, बुलंदशहर रोड, पटेल नगर, अमृतनगर, हापुड़ रोड़, डासना, ट्रोनिका सीटी, जिंदल नगर आदि में छोटे और बड़े उद्योग में काम करते हैं। यहां मजदूरों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ी है और पूंजीपतियों और सरकार दोनों से टक्कर लिया है।  सरकारी आंकड़े के मुताबिक, यहां 14160  छोटी लघु इकाईयां और 145 बड़े उद्योग हैं।

इस अंक में, मजदूर एकता लहर ने गाजियाबाद में काम करने वाले मजदूरों की स्थिति पर प्रकाश डालने के लिए का. वीरेन्द्र सिंह सिरोही, जो हिन्द मजदूर सभा के प्रांतीय सचिव है, से साक्षात्कार लिया है। वे 1973 से मजदूर आंदोलन से जुड़े हुए हैं। वे डी.सी.एम. से टाईम ऑफिसर पद से बर्खास्त किये गये, जब उन्होंने वहां के मजदूरों को संगठित करना शुरू किया। साक्षात्कार के कुछ अंश यहां प्रकाशित किये जा रहे है :

म.ए.ल. : गाजियाबाद के औद्योगिक क्षेत्रों के उद्योगों में क्या-क्या उत्पादन किया जाता है?

का. वी.एस. सिरोही : शीतल पेय व खाद्य उत्पाद, तंबाकू, सूती वस्त्र, ऊनी-रेशम-सिंथेटिक वस्त्र, कागज व कागज-उत्पाद, प्रिंटिंग, रबर, प्लास्टिक, पेट्रोलियम, रासायनिक व रासायनिक उत्पाद, गैर-धातु खनिज़, धातु उत्पाद, बुनियादी धातु उत्पाद, मशीनरी उपकरण व पुर्जे, विद्युत मशीनरी उपकरण व पुर्जे, परिवहन उपकरण व पुर्जे, दवा तथा सौंदर्य प्रसाधन, चीनी, जल शुध्दीकरण, इत्यादि के बड़े और छोटे उद्योग हैं, जिसमें मजदूर काम करते हैं।

म.ए.ल. : आपकी यूनियन कहां-कहां है?

का. वी.एस. सिरोही : सभी प्रकार के उद्योगों में जिनका जिक्र मैंने ऊपर किया है, यूनियन हस्तक्षेप करती है। हमारी ईंट भट्ठा और निर्माण मजदूरों की यूनियनें भी हैं।

म.ए.ल. : आपकी यूनियन अभी कहां-कहां संघर्ष कर रही है? 

का. वी.एस. सिरोही : एलाइड निप्पोन लि., ग्रेजियानो ट्रांसमिशन लि. (ग्रेटर नोएडा), हीरालाल मनोहरलाल संस, एवरेडी बैटरी, मोदी पेंट, टी.सी. हेल्थ केयर, एल.जी. इलेक्ट्रोनिक्स, हौलेंड ट्रेक्टर, सेमसुंग इलेक्ट्रोनिक्स, मोदी स्टील, मोदी कपड़ा मिल, सेमटेल इलेक्ट्रोनिक्स डिवाइसिस आदि में वेतन, मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा, अस्थायी श्रमिकों को पक्का किये जाने आदि का संघर्ष चल रहा है।

म.ए.ल. : यहां के मजदूरों की काम के हालत पर थोड़ा प्रकाश डालिए।

का. वी.एस. सिरोही : यहां ज्यादातर मजदूर बिहार और उत्तर प्रदेश से हैं। यहां के ज्यादातर उद्योगों में ठेके पर काम होता है। स्थायी मजदूर ठेके पर काम करने वाले मजदूरों की अपेक्षा बहुत कम हैं। दस-दस साल ठेके पर काम करने के बावजूद उन्हें पक्का नहीं किया जाता है। जबकि काम स्थायी प्रकृति के हैं। पक्के और ठेके मजदूरों के बीच वेतनमान से लेकर सामाजिक सुरक्षा तक भेदभाव बरता जाता है। यहां के कई उद्योगों में मजदूर स्थायी किये जाने की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। जिन फैक्ट्रियों या उद्योगों में मजदूर, अपने अधिकारों के लिये आंदोलन करते हैं, वहां 8घंटे की डयूटी है। अन्यथा 12घंटे जबरदस्ती काम लिया जाता है, यही नियत हो चुकी है।

कहने का अर्थ है कि इस क्षेत्र के मजदूरों की हालत, देश के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की हालत जैसी ही है। यहां श्रम कानूनों का उल्लंघन, न्यूनतम वेतन का न मिलना, संविधान की धारा 14, 16, 19 तथा 20 का उल्लंघन तथा मजदूरों का अपना संगठन या यूनियन बनाने के पहले ही उन पर दमन इत्यादि समस्याओं से मजदूरों का सामना होता ही रहता है।

म.ए.ल. : आप मजदूरों के बीच, पिछले चार दशक से निरंतर काम कर रहे हैं। मजदूरों के हितों में देश की संसद, न्याय व्यवस्था या प्रशासन कितनी उपयोगी है?

का. वी.एस. सिरोही : सरकार, संसद, न्याय व्यवस्था, प्रशासन, पुलिस और फौज आदि पूंजीवादी व्यवस्था के अंग हैं। ये वर्तमान व्यवस्था को मजबूत और विस्तार करने तथा मजदूर वर्ग के वैचारिक और सक्रिय आंदोलन को कुंठित करने का काम करते हैं।

म.ए.ल. : उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

का. वी.एस. सिरोही : अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और निजीकरण का देशी-विदेशी पूंजीपतियों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा है। पूंजीवादी-साम्राज्यवादी शासकों ने अपने अंतर्विरोधों को हल करने के लिए इस नीति को अपनाया है। पूंजीपति देश के श्रमिकों के श्रम के लिए सबसे कम कीमत देकर, ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बना रहे हैं। ठेकेदारी प्रथा, जो स्थायी प्रकृति के काम में गैर-कानूनी है, धड़ल्ले से पूंजीपति इस्तेमाल कर रहे हैं। मुनाफा कमाने के जरूरी मापदंड बतौर ठेकेदारी को स्थायी कर दिया गया है। मजदूरों की लूट हो रही है। चंद पूंजीपतियों के पास पूंजी संकेन्द्रित हो रही है।

म.ए.ल. : इस नीति के खिलाफ़ हमें क्या करना चाहिए?

का. वी.एस. सिरोही : देश के मजदूर वर्ग को इसके खिलाफ़ एकजुट होकर निरंतर जनवादी तरीके से आंदोलन को चलाना चाहिए। बिना संयुक्त कार्यवाही के शासन सुधरने वाला नहीं है। पूंजीवादी सरकार, देशी-विदेशी कंपनियों को भारी छूट देती है। दूसरी ओर, किसानों को खाद, बीज, पानी इत्यादि दिलाने तथा मजदूरों के आवास तथा उनकी सामाजिक सुरक्षा पर होने वाली रियायत को समाप्त कर रही है, जबकि पूंजीपतियों को दी जाने वाली छूट से यह बहुत कम है।

म.ए.ल. : क्या मजदूर वर्ग को आगे आकर हिन्दोस्तान की सत्ता पर अपना दावा ठोकना चाहिए, क्योंकि वह बहुसंख्यक और अपने श्रम और बुध्दि से पूरे समाज को चलाता है?

का. वी.एस. सिरोही : हिन्दोस्तान की वर्तमान सत्ता पूंजीपतियों के पास है। जिस भी वर्ग के पास राज्य सत्ता होती है, वह राज्य उसी वर्ग की हिफ़ाज़त करता है। राज्य सत्ता पर मजदूरों और किसानों का नेतृत्व स्थापित किया जाये, उससे सहमत हैं। हमें वास्तविक परिस्थितियों को समझकर, मजदूर वर्ग की विचारधारा के अनुसार, वैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए मजदूर आंदोलन तेज करना होगा। इसमें हमें, बेरोजगारी, महंगाई, आर्थिक असमानता, शिक्षा नीति इत्यादि सभी पहलुओं को लेकर जनता के बीच जाना होगा।

देश की सरमायदारी पार्टियां, देश की जनता को जातिवाद, क्षेत्रीयतावाद और धार्मिक आधार पर मूर्ख बना रही हैं। जनता आसानी से पूंजीपतियों की पार्टियों और साम्राज्यवादियों के प्रचार का शिकार हो जाती हैं। हमें मजदूरों में मजदूर वर्ग की राजनीतिक चेतना को पैदा करना होगा।

म.ए.ल. : उत्तर प्रदेश की नयी सरकार से आप क्या उम्मीद करते हैं?

का. वी.एस. सिरोही : नयी सरकार से कुछ भी उम्मीद करना, मूर्खता होगी। यहां चेहरे बदलते हैं, व्यवस्था और नीतियां नहीं, जो देश के मजदूरों और किसानों के खिलाफ़ होती हैं।

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