चेन्नई में 26 फरवरी को हुई एक अहम विचार गोष्ठी में तामिल नाडु के विभिन्न भागों से कम्युनिस्ट और मजदूर वर्ग के संगठनकर्ता आकर्षित हुये। गोष्ठी का आयोजन हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की तामिलनाडु इलाका कमेटी ने किया था। कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति की ओर से कामरेड लाल सिंह द्वारा पेश किये गये विचारों पर इस गोष्ठी में चर्चा हुई। इन विचारों को मजदूर वर्ग के लिये राज्य सत्ता को
चेन्नई में 26 फरवरी को हुई एक अहम विचार गोष्ठी में तामिल नाडु के विभिन्न भागों से कम्युनिस्ट और मजदूर वर्ग के संगठनकर्ता आकर्षित हुये। गोष्ठी का आयोजन हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की तामिलनाडु इलाका कमेटी ने किया था। कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति की ओर से कामरेड लाल सिंह द्वारा पेश किये गये विचारों पर इस गोष्ठी में चर्चा हुई। इन विचारों को मजदूर वर्ग के लिये राज्य सत्ता को अपने हाथ में लेने की ज़रूरत के शीर्षक सहित एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया गया है।
गोष्ठी के आरंभ में कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के इस हाल के प्रकाशन को तामिल में मौखिक प्रस्तुत किया गया। चर्चा के मुख्य विषय, जो प्रकाशन में संकलित हैं, इस प्रकार है :
- पूंजीवाद का संकट मजदूर वर्ग को अपने हाथ में राजनीतिक सत्ता लेने और समाजवाद का रास्ता खोलने, तथा सभी पुरानी, दमनकारी सामाजिक व्यवस्थाओं के अवशेषों को मिटाने के लिये संगठित करने की सख्त ज़रूरत को दिखाता है।
- हिन्दोस्तानी मजदूर वर्ग में शासक वर्ग बनने की क्षमता है, अगर कम्युनिस्ट अपनी उचित भूमिका निभायें।
- कम्युनिस्टों को किसानों को यह समझाना होगा कि उनका मुख्य दुश्मन इजारेदार कंपनियों की अगुवाई में पूंजीपति वर्ग है, जो मजदूर वर्ग का भी मुख्य दुश्मन है।
- वर्तमान हिन्दोस्तानी संघ उपनिवेशवाद की विरासत है, विभिन्न राष्ट्रों, राष्ट्रीयताओं और लोगों के लिये एक कारागार है; कि उसकी ''एकता और अखंडता'' की रक्षा करने के बजाय, हमें स्वेच्छा के आधार पर उसके पुनर्गठन के लिये संघर्ष करना चाहिये।
- कांग्रेस पार्टी और भाजपा, दोनों बड़े पूंजीपतियों के एक ही कार्यक्रम को लागू करने पर वचनबध्द हैं। उनकी बातों और प्रचार में अन्तर है परन्तु वे दोनों एक ही वर्ग के हितों की सेवा करती हैं।
- पूंजीवाद और समाजवाद के बीच कोई मध्य मार्ग या मध्य चरण नहीं है; राजनीतिक सत्ता या तो मजदूर वर्ग के हाथ में होगी या पूंजीपति वर्ग के हाथ में। इसके अलावा कोई और संभावना नहीं है।
- वर्तमान राज्य और संसदीय लोकतंत्र मजदूर वर्ग की सत्ता के साधन नहीं हो सकते। हमें समाज की नींव पर सत्ता के नये उपकरणों का निर्माण करना होगा और श्रमजीवी लोकतंत्र की व्यवस्था, जिसमें जनता संप्रभु होगी, उसके लिये संघर्ष करना होगा।
इस प्रस्तुति के बाद बड़े उत्साह के साथ चर्चा चली। नौजवान मजदूरों ने यह सवाल किया कि वे अपने काम की जगह पर अपने अधिकारों के हनन के खिलाफ़ संघर्ष को कैसे आगे बढ़ा सकते हैं। मजदूर वर्ग की परिभाषा से संबंधित कई सवाल उठाये गये तथा उनका जवाब दिया गया।
मजदूर-किसान गठबंधन के सवाल पर लंबी चर्चा हुई। एक सवाल यह उठाया गया कि मजदूर वर्ग द्वारा अपना अधिनायकत्व स्थापित करने का क्या मतलब है? गरीब और मंझोले किसानों के लिये यह क्या माइना रखता है? चर्चा के दौरान यह समझाया गया कि सामंतवाद, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवादी लूट के सभी अवशेषों को मिटाते हुये, पूंजीवाद की जगह पर समाजवाद की स्थापना करने का मजदूर वर्ग का कार्यक्रम गरीब और मंझोले किसानों के लिये सबसे ज्यादा हितकारी है। छोटे पैमाने पर उत्पादन की जगह पर अवश्य ही बड़े पैमाने पर उत्पादन स्थापित किया जायेगा। पूंजीपति वर्ग के नेतृत्व में, यह अत्यंत क्रूर और खूनी प्रक्रिया है। मजदूर वर्ग के नेतृत्व में, इसे किसानों की छोटी-छोटी जमीन की टुकड़ियों के स्वैच्छिक समुदायीकरण के जरिये हासिल किया जायेगा।
चीन में क्रान्ति की उपलब्धियों और कमियों तथा उस अनुभव से जरूरी सबकों पर भी चर्चा हुई। यह समझाया गया कि 1949 की चीनी क्रान्ति की जीत के बाद चीन में कई मुख्य प्रगतियां हुई थीं। सामंती अत्याचार और विदेशी साम्राज्यवादी प्रभुत्व के बोझ के मिटाये जाने से बड़ी-बड़ी उत्पादक ताकतें उभर कर आयीं और मेहनतकश जनसमुदाय के जीवन स्तर में बहुत उन्नति हुयी। लेकिन वह क्रान्ति पूंजीवाद और श्रम के सभी प्रकार के शोषण को मिटाने के पड़ाव तक आगे नहीं बढ़ पायी, जो कि राष्ट्रीय पूंजीपति समेत अनेक वर्गों की मिली-जुली हुकूमत स्थापित करने की कार्यदिशा का पालन करने का परिणाम था।
गोष्ठी के अंत में सभी इस बात पर सहमत थे कि यह बहुत ही लाभदायक चर्चा थी, कि यह मात्र चर्चा की शुरुआत थी। कई और सत्रों में इस पर चर्चा करने की जरूरत है। तामिल नाडु की कई जगहों में छोटी-बड़ी सभायें व गोष्ठियां आयोजित करने की आवश्यकता है – यह सभी का विचार था। ''पूंजीवादी सांप के विनाश का दिन आ रहा है'', इस क्रान्तिकारी तामिल गीत के साथ गोष्ठी का समापन हुआ।