म.ए.ल.
म.ए.ल. : रेलवे में किस प्रकार की समस्या है?
रमेश यादव : 2004 से पेंशन स्कीम के समाप्त किये जाने को लेकर, जो नौजवान भर्ती हो रहे हैं, उनमें बहुत गुस्सा है। नई पेंशन नीति का हम पुरजोर विरोध करते हैं। यह एक ज्वलंत मुद्दा है। निजीकरण और ठेकेदारी के खिलाफ़ मजदूरों में बहुत गुस्सा है। हमारी फेडरेशन के नेतृत्व ने आह्वान किया है कि रेलवे को बंद करने का बुलावा कभी भी दिया जा सकता है, इसके लिए ज्यादा से ज्यादा मजदूर तैयार रहें।
म.ए.ल. : केन्द्र तथा राज्य में कांग्रेस तथा भाजपा जैसी तमाम राजनीतिक पार्टियां आती-जाती हैं। मजदूर वर्ग की समस्या वहीं की वहीं बनी हुई है। ऐसे में आप क्या सोचते हैं?
रमेश यादव : पूरे हिन्दोस्तान में जो भी मजदूर संगठन हैं, उनका ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों से जुड़ाव है। राजनीतिक पार्टियों की भाषा कुछ और होती है जब वे विपक्ष में होती हैं। जब वे सरकार में आती हैं तो उनकी भी भाषा वही हो जाती है, जो आज की सरकार की है।
हमारी मांग है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भी देश के श्रम कानून लागू हों। जो बीमार प्राईवेट कंपनियां हैं, किंगफिशर जैसे उद्योग हैं, सरकार को उन पर पैसा नहीं लुटाना चाहिये। रेलवे का निजीकरण करके सरकार उसे भी बीमार कारखाना बनाने की कोशिश कर रही है। जो भी रेल मंत्री बनता है, वह रेलवे को चूस कर चला जाता है। रेलवे पर पैसा नहीं लगाया जाता है। माल गाड़ियों में सुधार करें। रेलवे टै्रक को ठीक करें। जो पैसा सरकार को देना चाहिये, बजट में वह पैसा दें। यह उद्योग ठीक-ठाक चलता रहे और यह मुनाफे वाला उद्योग बना रहे। इसकी लूट-खसौट न हो।