साक्षात्कार – तरूण कुमार मुखर्जी, उपाध्यक्ष, बैंक ऑफ इंडिया इंप्लाईज यूनियन, कनॉट प्लेस

म.ए.ल. : आपकी क्या-क्या मागें हैं? विशेष मांगें क्या हैं?

म.ए.ल. : आपकी क्या-क्या मागें हैं? विशेष मांगें क्या हैं? बैंकों में निजीकरण की प्रक्रिया चल रही है, इसके बारे में आप क्या सोचते हैं?

मुखर्जी : 1991 में जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने थे, तब उन्होंने देश को यह बताया था कि उदारीकरण, निजीकरण के ज़रिये भूमंडलीकरण से ही देश का उध्दार होगा। ग्लोबल ट्रस्ट बैंक, जिसके उद्धाटन के समय उन्होंने कहा कि ग्लोबल बैंक  राष्ट्रीयकृत बैंकों को टक्कर देगा, यह रोल मॉडल होगा, लेकिन देखो वह ग्लोबल बैंक डूब गया। उसको बचाने के लिये ओ.बी.सी. को उसका अधिग्रहण करना पड़ा। 1991 से पूरे मजदूर वर्ग की हालत नीचे की ओर गई है जबकि कुछ मुट्ठीभर  पूंजीपतियों को इसका बहुत लाभ हुआ है। थोड़ा जीवनस्तर बढ़ा, लेकिन महंगाई खा गई। कुल मिलाकर देखें तो लोगों का क्या हाल है? ममता बैनर्जी, कोलकाता में हड़ताल के खिलाफ़ हैं। कल तक जो निजीकरण के खिलाफ़ थी, आज वह कह  रही है कि हड़ताल गलत है। इन राजनीतिज्ञों का चरित्र यही है।

जहां तक बैंकिंग क्षेत्र या वित्तीय क्षेत्र है, इसमें जो वित्ता की गड़बड़ी होती है, उसमें सरकार की भूमिका है। चेयरमैंन की नियुक्ति सरकार करती है। आपने किंगफिशर को इतना पैसा दे दिया है और वह एन.पी.ओ. हो गयी है। माल्या के पास पैसे की कमी नहीं है। उसके दूसरे यूनिट्स बड़े अच्छे चल रहे हैं। क्या होता है कि यह एक यूनिट के लिये पैसे लेते हैं, दूसरे यूनिट में इस पैसे को डाल देते हैं। अभी वित्ता मंत्री ने बोला है एन.पी.ओ. को मैं सब्सीडाइज करूंगा और ब्याज को रोल ओवर करूंगा।

म.ए.ल. : क्या मजदूर वर्ग राज्य सत्ता ले सकता है?

मुखर्जी : इसमें थोड़ा समय लगेगा। उसका एक कारण तो यह है कि हमारे यहां मजदूर वर्ग को बहुत तरीके से बांटा गया है। जातियता, क्षेत्र के नाम तथा श्रम कानूनों में संशोधन करके ऐसा किया गया है। एक छोटा सा उदाहरण देता हूं कि जो निजी क्षेत्र के बैंकों में मजदूर हैं, उन्हें ऑफिसर करार दिया जाता है, जिनको कभी भी निकाला जा सकता है। सुबह या शाम को बुलाकर उनको कहा जा सकता है कि इस पे स्लिप पर अपना हिसाब लो, कल से मत आओ। सिटी बैंक, एचएसबीसी – ये सब बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं।  इन्होंने कह दिया है कि हम अपने स्टाफ की संख्या कम कर देंगे। इस ढांचे में हम कुछ नहीं कर सकते हैं, जब तक व्यवस्था नहीं बदलेगी। दूसरा, आप कहेंगे कि वर्कमैंन का डायरेक्टर होता है बोर्ड में। वह एक होता है। 15 में से एक होता है। वर्कमैंन डायरेक्टर को विपरीत नोट देते हैं, तो वह कहता है कि बहुमत मजदूरों की नहीं है और हम बहुमत पर चलेंगे।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *