हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति पार्टी के सभी सदस्यों और समर्थकोंहिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति पार्टी के सभी सदस्यों और समर्थकों, देश और विदेश के सभी कम्युनिस्टों तथा क्रांतिकारी मजदूरों, किसानों और बुध्दिजीवियों को नव वर्ष 2011 के अवसर पर हार्दिक क्रांतिकारी अभिवादन करती है।
2010 का वर्ष जब समाप्त हो रहा है, तो हमारे देश का शासक वर्ग घोर संकट में फंसा हुआ है। यह पूंजीवादी व्यवस्था और पूंजीवादी लोकतंत्र की विश्वसनीयता का संकट है। मेहनतकश जनसमुदाय की आंखों के सामने सबसे बड़ी पूंजीवादी इजारेदार कंपनियां, विश्वस्तरीय खिलाड़ी बनने की महत्वाकांक्षा से प्रेरित होकर, समाज को लूटकर उसका अधिक से अधिक हिस्सा हड़पने के लिये आपस में लड़ रही हैं। मजदूर, किसान और बुध्दिजीवी इस बात से बेहद नाराज़ हैं, कि पूंजीपति वर्ग और उसके राजनीतिक प्रतिनिधि, अफसर और जज पूरे समाज को लूटकर खुलेआम अपनी जेबें भर रहे हैं। कम्युनिस्ट और प्रगतिशील ताकतें सड़कों पर उतरकर इस पूंजीवादी लोकतंत्र की कड़ी निंदा कर रही हैं, जिसके चलते शोषित और उत्पीड़ित लोगों के अधिकारों तथा अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करने वालों को राज्य की ताकतों द्वारा मार डाला जाता है या ”आतंकवादी”, ”राष्ट्रविरोधी”, ”रूढ़ीवादी”, इत्यादि करार कर जेलों में बंद कर दिया जाता है।
हिन्दोस्तान की वृध्दि की बड़ी-बड़ी बातें यह हक़ीक़त छिपा नहीं सकती कि आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था सबसे बड़े देशी और विदेशी पूंजीपतियों की अमीरी बढ़ाने की दिशा में चलायी जाती है। यह पूंजीवादी घराने राज्य तंत्र पर अपने नियंत्रण के जरिये पूरे समाज को लूटते हैं। मजदूरों, किसानों और आदिवासियों को चारों तरफ असुरक्षा और आसमान छूनेवाली खाद्य पदार्थों की कीमतों का सामना करते हुये, बहुत कठिनाई से अपनी रोजी-रोटी कमानी पड़ती है।
पूरे देश में मेहनतकश जनसमुदाय के बीच में यह चर्चा चल रही है कि यह वर्तमान व्यवस्था पूंजीपति वर्ग की हुक्मशाही के अलावा कुछ और नहीं है। पूरे समाज पर पूंजीपतियों की हुक्मशाही ही चलती है। हमें इसकी जगह पर एक नयी व्यवस्था और नया राज्य स्थापित करना होगा, एक नया संविधान और कानून व्यवस्था बनानी होगी, जिनके तहत मेहनतकश लोग समाज की दिशा को तय करेंगे, न कि मुट्ठीभर परजीवी लोग। तब मेहनतकश जनसमुदाय उस राज्य सत्ता का इस्तेमाल करके अर्थव्यवस्था को नयी दिशा दिला सकेंगे, ताकि सभी लोगों की जरूरतें पूरी हों।
पूरी दुनिया में पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था घोर संकट में फंसी हुई है। अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, इतली, यूनान, पुर्तगाल और अन्य पूंजीवादी देशों की सरकारें मेहनतकश लोंगों का शोषण करके, मुट्ठीभर वित्ता पूंजीपतियों के मुनाफों की रक्षा करने और उन्हें बढ़ाने की दिशा में खुलेआम काम करते हुये, बदनाम हो चुकी हैं। पेंशन राशि, वेतन तथा काम की हालतों पर हमले, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा पर सरकारी खर्च में कटौती – सरकार के इन कदमों का मजदूर, नौजवान और छात्र जमकर विरोध कर रहे हैं। पूरी दुनिया में मेहनतकश जनसमुदाय विकल्प की तलाश में है।
साथियों,
12 वर्ष पहले, पार्टी के दूसरे महाअधिवेशन में हमने आने वाले क्रांतिकारी तूफानों की तैयारी बतौर हिन्दोस्तान के नव निर्माण का कार्यक्रम बड़े गौरव के साथ पेश किया था। 21वीं सदी की शुरुआत में हमने ऐसे समय पर जनता के सामने इस क्रांतिकारी विकल्प को पेश किया था, जब पूंजीपति यह ऐलान कर रहे थे कि पूंजीवाद, ”मुक्त बाजार सुधारों” और बहुपार्टीवादी प्रतिनिधित्व के लोकतंत्र का कोई विकल्प नहीं है। हमने नव निर्माण का आह्वान ऐसे समय पर दिया था जब देश में विभिन्न ताकतों ने भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के बहाने, पूंजीपतियों की केन्द्र सरकार को चलाने में भाग लेकर, कम्युनिज्म के नाम पर कीचड़ उछाला था। उस समय भाजपा सत्ता में आई ही थी और उसने पोखरण में परमाणु विस्फोट करके, पूंजीपतियों की सैन्यवादी योजनाओं की घोषणा की थी।
12 वर्ष पहले पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था संकट में थी। अगुवा साम्राज्यवादी राज्यों के खिलाफ़ पूरी दुनिया में जोरदार विरोध संघर्ष चल रहे थे, जैसे कि अमरीका के सियेटल में। अमरीकी साम्राज्यवाद की अगुवाई में विश्व साम्राज्यवाद ने फासीवाद और जंग का सहारा लेकर संकट से बचने की कोशिश की। ”आतंकवाद पर जंग” का नारा देकर विश्व साम्राज्यवाद ने लोगों के अधिकारों तथा अधिकारों के लिये संघर्ष करने वाले लोगों, खासतौर पर कम्युनिस्टों पर अप्रत्याशित हमले छेड़ दिये थे। परन्तु इसके बावजूद वे समाज को संकट से नहीं बचा पाये, बल्कि संकट और गहराता गया। मेहनतकशों के अधिकारों पर और हमले होने तथा साम्राज्यवादियों द्वारा नये-नये इलाकों में हमलावर जंग छेड़े जाने के खतरे बढ़ते जा रहे हैं।
12 वर्ष पहले शासक वर्ग घोर संकट में फंसा हुआ था। वह अपने पुराने भरोसा पात्र, कांग्रेस पार्टी के सहारे कुशलता से राज नहीं कर पा रहा था। वह हमलावर, उग्र राष्ट्रवादी, जंगफरोश और साम्राज्यवादी नीतियों सहित भाजपा को सत्ता में लाने की तैयारी कर रहा था। पूंजीपतियों ने देश में सुधारों के तथाकथित दूसरे दौर को शुरू किया, जिसमें सार्वजनिक संपत्तिायों को निजी मुनाफाखोरों के हाथों बेचा गया, हिन्दोस्तानी और विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा लूट के लिये देश की खनिज संपदा को खोल दिया गया और कृषि व्यापार में तेज़ी से उदारीकरण किया गया।
जब मजदूर और किसान अपने अधिकारों की हिफाज़त के लिये सड़कों पर उतर कर आये, तब पूंजीपतियों ने गुजरात में जनसंहार आयोजित किया और मुसलमान विरोधी तथा पाकिस्तान विरोधी उग्र राष्ट्रवाद फैलाया। मुसलमान लोगों का उत्पीड़न, दूसरे अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न, पोटा, अवैध गतिविधि निरोधक कानून, छत्तीसगढ़ पब्लिक सेफ्टी एक्ट जैसे फासीवादी कानून – यह सब पूंजीवादी सुधारों के दूसरे दौर के हमसफर थे।
”पूंजीवाद का कोई विकल्प नहीं है” के नारे के सहित जो आर्थिक हमला छेड़ा गया था, उसके जवाब में हमारी पार्टी ने सभी को खुशहाली और सुरक्षा दिलाने के इरादे से अर्थव्यवस्था को नयी दिशा दिलाने की योजना पेश की। हम पहले कदम बतौर यह सुनिश्चित करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, कि खाद्य का प्रापण और वितरण मजदूरों और किसानों के नियंत्रण में हो। किसी भी पूंजीवादी कंपनी या निजी थोक विक्रेता को खाद्य का व्यापार करने की इज़ाज़त नहीं दी जानी चाहिये। आधुनिक सार्वजनिक वितरण व्यवस्था के तहत जनता के उपभोग की दूसरी सामग्रियों को भी शामिल करने के कदम क्रमश: लिये जाने होंगे।
हमारे नवनिर्माण के कार्यक्रम के तहत हिन्दोस्तान का पुनर्गठन किया जायेगा, ताकि सभी लोगों के मानवीय, लोकतांत्रिक और राष्ट्रीय अधिकारों की गारंटी हो तथा इन्हें प्रदान करना कानूनन बाध्यकारी हो। इनमें ज़मीर का अधिकार, काम करने और सुरक्षित रोजी-रोटी का अधिकार, कश्मीरी, मणिपुरी तथा अन्य लोगों के राष्ट्रीय आत्मनिर्धारण के अधिकार – इन सभी अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा। इन अधिकारों को मान्यता देना और इनकी रक्षा करना राज्य का फर्ज़ होगा।
नवनिर्माण का मतलब है कि पूंजीपति वर्ग की हुक्मशाही की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया के स्थान पर एक नयी राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया स्थापित की जायेगी, जिसमें मेहनतकश जनसमुदाय की हुक्मशाही होगी। ऐसी राजनीतिक व्यवस्था यह सुनिश्चित करने के लिये जरूरी है कि अधिकतम लूट के जरिये इजारेदार पूंजीपतियों की जेबें भरने की अर्थव्यवस्था की वर्तमान दिशा को सभी लोगों की खुशहाली और सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में बदल दिया जाये।
नवनिर्माण का मतलब है कि हिन्दोस्तान की अपने पड़ौसी देशों व अन्य देशों के प्रति साम्राज्यवादी बड़ी ताकत की नीति को बदलकर ऐसे नये संबंध बनाये जायेंगे जो साम्राज्यवादी दादागिरी और जंग के कट्टर विरोध, राजनीतिक अधिकारों में समानता और आर्थिक लेन-देन से आपसी हित पर आधारित होंगे। इसका मतलब है कि दक्षिण एशिया में शांति के लिये पाकिस्तान और यहां के अन्य राज्यों की संप्रभुता की रक्षा करनी होगी।
यह क्रांतिकारी विकल्प हमारे मजदूरों, किसानों और प्रगतिशील बुध्दिजीवियों के दिलों और दिमागों में अपना स्थान लेने लगा है। परन्तु बीते दशक में विभिन्न पार्टियों की गलत और खतरनाक हरकतें भी सामने आयी हैं, जिनकी वजह से जन आंदोलन कमजोर हुआ है।
”राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय अखंडता” की रक्षा के नाम पर, लाल झंडा फहराने वाली कुछ पार्टियों ने कश्मीर और पूर्वोत्तार राज्यों में राष्ट्रीय और मानव अधिकारों के हनन तथा राजकीय आतंकवाद को उचित ठहराया है। ”हिन्दोस्तानी राज्य की धर्मनिरपेक्ष बुनियादों की रक्षा” के नाम पर इन पार्टियों ने सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ़ संघर्ष को भाजपा शासन की जगह पर कांग्रेस पार्टी शासन लाने में तब्दील कर दिया है। ”सांझा न्यूनतम कार्यक्रम” लागू करने के नाम पर, इन पार्टियों ने मजदूरों और किसानों को पूंजीवादी हमले के सामने घुटने टेकने को मजबूर किया है।
साथियों,
आज भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण का कार्यक्रम, जिसे मनमोहन सिंह ने वित्तामंत्री बतौर 20 साल पहले शुरू किया था, उसका पूरा-पूरा पर्दाफाश हो चुका है। यह स्पष्ट है कि मजदूरों, किसानों और आदिवासियों के शोषण और लूट के जरिये हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों को एक विश्वस्तरीय साम्राज्यवादी ताकत में बदल देना ही इस कार्यक्रम का उद्देश्य है। वर्तमान अर्थव्यवस्था सबसे मूल मानवीय जरूरत – खाद्य – की भी गारंटी नहीं दे सकती। समाज की हर जरूरत – खाद्य, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा इत्यादि को इजारेदार कंपनियों और सट्टेबाज़ों के अधिकतम पूंजीवादी मुनाफे का स्रोत बना दिया गया है।
जैसे पुराना साल खत्म होता है और नया साल शुरू होता है, वैसे हम यह देख रहे हैं कि बड़े पूंजीवादी घराने आपस में खुलेआम स्पर्धा कर रहे हैं और यह सबकी आंखों के सामने खुलेआम हो रहा है। यह इस बात की लड़ाई है कि राज्य और जनता के संसाधनों पर किसका नियंत्रण होगा। सबसे बड़े पूंजीवादी घरानों की इस खुलेआम आपसी लड़ाई की झलक संसद में शासक दल और विपक्ष के बीच लड़ाई में दिख रही है। मेहनतकश लोग यह समझ रहे हैं कि सबसे बड़े पूंजीपति ही यह फैसला करते हैं कि कौन सी पार्टी या गठबंधन सत्ता में आयेगी, कौन मंत्री बनेगा और कौन सी नीतियां अपनाई जायेंगी। लोग यह समझ रहे हैं कि संसद सिर्फ पूंजीपति वर्ग के हितों की रक्षा करता है, न कि मजदूरों और किसानों के हितों की।
साथियों,
पूंजीवादी हमले के खिलाफ़ और हिन्दोस्तान के नवनिर्माण के कार्यक्रम के इर्द-गिर्द जनता की राजनीतिक एकता बनाने के काम ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। शासक वर्ग का संकट हमें आने वाले समय में इस नवनिर्माण के काम को तेज़ी से बढ़ाने का मौका देता है। पूंजीपतियों को इस बात का बहुत डर है कि देश के मजदूर, किसान और प्रगतिशील बुध्दिजीवी प्रतिनिधित्व के लोकतंत्र की इस बदनाम व्यवस्था को पलटकर मेहनतकश जनसमुदाय के शासन की राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया स्थापित कर लेंगे।
वर्तमान व्यवस्था का निरंतर फर्दाफाश करना और वैकल्पिक आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था के इर्द-गिर्द मेहनतकश जनसमुदाय को एकजुट करना हमारी पार्टी का काम है। इस काम के दौरान हमें लगातार उन ताकतों का पर्दाफाश करना होगा तथा उन्हें अलग करना होगा, जो कम्युनिज्म का लाल झंडा फहराती हैं परन्तु पूंजीवाद प्रतिनिधित्व के लोकतंत्र की वर्तमान व्यवस्था और हिन्दोस्तानी संघ के बारे में भ्रम फैलाती हैं। हमें उन ताकतों का भी पर्दाफाश करना होगा तथा उन्हें भी अलग करना होगा, जो व्यक्तिगत आतंकवाद को बढ़ावा देती हैं और इस तरह कम्युनिज्म को बदनाम करने में शासक वर्ग को मदद देती हैं।
नये साल का स्वागत करते हुये हम कम्युनिस्टों को मजदूरों और किसानों का शासन स्थापित करने के लिये मेहनतकश जनसमुदाय को लामबंध करने का काम तेज़ करना होगा और आन्दोलन में पूंजीपति वर्ग के साथ समझौता करने वालों को हराकर कम्युनिस्टों की एकता पुन: स्थापित करने का संघर्ष तेज़ करना होगा।