ईरान के खिलाफ़ आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादी

युध्द की तैयारियां मुर्दाबाद!

ईरान के खिलाफ़ दण्डात्मक आर्थिक प्रतिबंध के साथ-साथ, आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादी खुल्लम-खुल्ला सैन्य हमले की तैयारी में भी लगे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा का हाल में दिया गया बयान कि प्रतिबंधों के लागू होने के लिये समय देना चाहिये, यह दुनिया के मत को मूर्ख बनाने की सिर्फ एक कूटनीतिक चाल है। वास्तव में ईरान के खिलाफ़ सैन्य कार्यवाही की तैयारी जोर-शोर स

युध्द की तैयारियां मुर्दाबाद!

ईरान के खिलाफ़ दण्डात्मक आर्थिक प्रतिबंध के साथ-साथ, आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवादी खुल्लम-खुल्ला सैन्य हमले की तैयारी में भी लगे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा का हाल में दिया गया बयान कि प्रतिबंधों के लागू होने के लिये समय देना चाहिये, यह दुनिया के मत को मूर्ख बनाने की सिर्फ एक कूटनीतिक चाल है। वास्तव में ईरान के खिलाफ़ सैन्य कार्यवाही की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। बर्तानवी अखबारों ने अपने सेना नायकों के बयान को दोहराया है कि ''प्रश्न यह नहीं है कि जंग होगी कि नहीं, बल्कि यह कि जंग कब शुरू होगी – 18 से 24 महीने के अंदर होने की संभावना है।'' दूसरी रिपोर्टों के अनुसार, हमला उससे भी पहले होगा।

आज ईरान पर हमला क्यों हो रहा है? अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा बनाये गये झूठों के जाल और उनके प्रसार माध्यमों के अनुसार, ईरान परमाणु हथियार बनाने की तैयारी में है, जिससे मानवता को ख़तरा है। जब अमरीका ऐसी बात करता है, जिसके पास सबसे भयंकर परमाणु और नरसंहार के हथियार हैं, जिसके पास दुनियाभर के सबसे विशाल युध्द यंत्र हैं, और जिसने दुनियाभर में बिना झिझक हमले किये हैं और कब्जा जमाया है, तब यह सरासर पाखंड के अलावा और कुछ नहीं है। यह अमरीका ही है जिसने अस्सी के दशक में सद्दाम हुसैन को ईरान पर हमला करने के लिये उकसाया था, जिससे ईरान और इराक, दोनों देशों में भयंकर मौत और विनाश हुआ था। यह अमरीका और उसका मित्र इस्राइल ही हैं जिन्होंने लगातार ईरान पर दबाव डाला है और उसे ब्लैकमेल किया है। ईरान ने परमाणु हथियारों को बनाने के कार्यक्रम पर चलने के इल्जाम का खंडन किया है। परन्तु उसने ऐसा कार्यक्रम चलाया भी हो, तो वह उसकी सुरक्षा के अधिकार बतौर जायज है। असली मुद्दा तो यह है कि अमरीका और उसके मित्र देश यह जानते हैं कि पश्चिम एशिया में अपना पूरा आधिपत्य जमाने, यहां के ऊर्जा स्रोतों व लोगों पर प्रभुत्व जमाने की योजना में ईरान उनके लिये एक रुकावट है। ईरान ने लगातार इस्राइली हमलावरों के खिलाफ़ फिलिस्तीनी लोगों के राष्ट्रीय अधिकारों का समर्थन किया है। उसने लगातार अमरीकी ''आतंकवाद के खिलाफ़ जंग'' का पर्दाफाश किया है और संयुक्त राष्ट्र महासभा सहित, विभिन्ना अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ध्यान दिलाया है कि दुनिया भर में अमरीकी साम्राज्यवाद आतंकवाद का स्रोत है।

पिछले दशक के दौरान अफग़ानिस्तान, इराक और लिबिया की बर्बादी के बाद अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके सहयोगी अब सीरिया और ईरान को अपना निशाना बना रहे हैं। ईरानी सीमा के पास अफग़ानिस्तान में दसियों हजारों सैनिकों को तैनात किया गया है। फारस की खाड़ी में अमरीका ने अपने वायुयानवाहक पोतों की संख्या दोगुनी कर दी है। इस क्षेत्र में उपस्थित अमरीकी युध्दपोतों को शीघ्र दागने वाली मशीनगनों व हल्के हथियारों के साथ-साथ टैंकभेदी हथियारों से लैस किया जा रहा है।

वॉल स्ट्रीट जरनल में हाल की एक रिपोर्ट ने कहा है कि अमरीकी सैनिक संस्थापन ने ईरान के खिलाफ़ अपनी सैन्य कार्यवाईयों की क्षमता बढ़ाने के लिये 10 करोड़ डॉलर मांगे हैं। अमरीकी सेना होर्मज के जलडमरूमध्य में निगरानी रखने के यंत्रों और सुरंगों को खोज निकालने की क्षमताओं को मजबूत कर रही है। ईरान ने अपने ऊपर आर्थिक प्रतिबंध थोपने के बदले में होर्मज के जलडमरूमध्य में जहाज यातायात बंद कर देने की धमकी दी है। ऊपर से धमकी भरे स्वचालित ड्रोन विमान ईरानी हवाई सीमा का उल्लंघन करते हुये उड़ाये जाने लगे हैं।

इसी रिपोर्ट के अनुसार, इसके पहले जनवरी में अमरीकी रक्षा विभाग पेंटागॉन द्वारा, ईरान की परमाणु सुविधाओं पर भयंकर हमले करने के लिये 30,000पौंड वाले बंकर भेदी बमों को और भी उन्नात करने के लिये 8.2 करोड़ डॉलरों की मांग की गयी थी।

ये सभी तैयारियां साफ तरीके से दिखाती हैं कि अमरीकी साम्राज्यवादी और उनके सहयोगी ईरान पर हमला करने की व्यवस्थित ढंग से योजना बना रहे हैं। जैसा कि अफग़ानिस्तान, इराक और लिबिया पर हमलों के अनुभव से दिखता है, ईरान पर हमले से साम्राज्यवादियों द्वारा छेड़ी गई लड़ाई और बर्बादी का दायरा बहुत बढ़ जायेगा और इस क्षेत्र के सभी देशों और लोगों की संप्रभुता व शांति पर इसका अत्याधिक बुरा प्रभाव पड़ेगा।

ईरान के खिलाफ़ साम्राज्यवादी जंग की तैयारियों की एक विशेषता यह है कि इनमें बहुत बार परखे गये साम्राज्यवादी वफ़ादार सेवक, इस्राइली राज्य की खास भूमिका होगी। मार्च महीने की शुरुवात में इस्राइल के रक्षा मंत्री तथा राष्ट्रपति नेतनयाहू ईरान के खिलाफ़ योजनाओं में तालमेल बिठाने के लिये अमरीका के दौरे पर गये थे। विश्लेषकों ने अनुमान लगाया है कि ईरान के खिलाफ़ सबसे पहले हमले के लिये इस्राइल को इस्तेमाल किया जायेगा। इस्राइल व अमरीका के बीच चर्चाओं में, दूसरे मुद्दों के साथ, यह तय किया जा रहा है कि इस हमले के लिये अमरीकी सेना कौन से हथियार इस्राइल को उपलब्ध करायेगी।

इन जंग की खबरों व जंगफरोशी से साम्राज्यवादी एक डर का वातावरण पैदा करना चाहते हैं। उनका लक्ष्य है कि उनके आदेशों के सामने ईरान घुटने टेक दे। ऐसा सोचने में वे ईरानी सरकार और लोगों की मजबूती और संकल्प का अल्पानुमान कर रहे हैं। साम्राज्यवादी ताकतें यह दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि ईरान दुनिया के मंच पर अकेला है कि साम्राज्यवादी सैनिक कार्यवाई और जीत निश्चित है। सच्चाई में, अफग़ानिस्तान व इराक में प्रतिकूल परिस्थिति बनने से, तथा दूसरे देशों पर साम्राज्यवादी हमलों की सफाई का ज्यादा से ज्यादा देशों के सामने पर्दाफाश होने से, अमरीकी साम्राज्यवाद व उसके सहयोगी ही कटघरे में खडे हैं। साम्राज्यवादी दबाव व दादागिरी का विरोध करने में ईरानी लोग कभी डावांडोल नहीं हुये  हैं। अपनी संप्रभुता और इज्जत को बचाव की कोशिशों में हिन्दोस्तान का मज़दूर वर्ग व लोग उनका पूरा समर्थन करते हैं। साम्राज्यवादी हमले को फौरन रोका जाना चाहिये।

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