जनता के खिलाफ़ शासकों के घिनावने अपराधों को कभी बुलाया या माफ़ किया नहीं जा सकता!
गुजरात में मार्च 2002 में मुसलमानों के भयानक जनसंहार के बाद दस वर्ष बीत चुके हैं। उन भयावह दिनों की यादें आज भी पीड़ितों तथा सभी ज़मीर वाले हिन्दोस्तानी लोगों के दिल दहलाती हैं – अहमदाबाद और गुजरात के दूसरे शहरों व गांवों में हथियारबंद गुंडे पेट्रोल बम, त्रिशूल तथा वोटर लिस्ट लिये सड़कों पर घूमते हुये,
जनता के खिलाफ़ शासकों के घिनावने अपराधों को कभी बुलाया या माफ़ किया नहीं जा सकता!
गुजरात में मार्च 2002 में मुसलमानों के भयानक जनसंहार के बाद दस वर्ष बीत चुके हैं। उन भयावह दिनों की यादें आज भी पीड़ितों तथा सभी ज़मीर वाले हिन्दोस्तानी लोगों के दिल दहलाती हैं – अहमदाबाद और गुजरात के दूसरे शहरों व गांवों में हथियारबंद गुंडे पेट्रोल बम, त्रिशूल तथा वोटर लिस्ट लिये सड़कों पर घूमते हुये, मुसलमान लोगों की दुकानों व घरों पर हमला करते, लूटते व आग लगाते हुये, पुरुषों व लड़कों को जिंदा जलाते हुये, महिलाओं व लड़कियों से बलात्कार करते हुये व उनका बेरहमी से कत्ल करते हुये, और तरह-तरह के पाश्विक अत्याचार करते हुये। जनसंहार कई दिनों तक चला, जिसमें हजारों का कत्ल किया गया, लाखों लोग अपने ही शहर में शरणार्थी बन गये और दसों-हजारों बच्चे रातों-रात लावारिस हो गये।
घटनाक्रम से अब सभी वाकिफ़ हैं। निर्विवादित रूप से यह स्पष्ट हो चुका है कि 2002 में हुआ गुजरात में जनसंहार शासक पार्टी द्वारा पूर्वनियोजित व आयोजित किया गया था और उसे राज्य तंत्र के पूरे समर्थन से अंजाम दिया गया था। जनसंहार से कम से कम दो महीने पूर्व से ही मुसलमानों के घरों के पतों पर निशाने लगाकर वोटर लिस्ट, पेट्रोल और दूसरे हथियार इकट्ठे किये गये थे व बांटने के लिये तैयार रखे गये थे। मुसलमानों के खिलाफ़ खुलेआम साम्प्रदायिक प्रचार किया जा रहा था और बड़े सुनियोजित ढंग से मुसलमान विरोधी उन्माद फैलाया जा रहा था। 28 फरवरी, 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर एक टे्रन में 58 कार सेवकों को जिंदा जलाया गया, जो जनसंहार को शुरू करने की तैयारी में किया गया था। गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में मुसलमानों के कत्लेआम को जायज़ ठहराते हुये कहा था कि ''हर क्रिया की समान और उल्टी प्रतिक्रिया होती है''। उन्होंने कार सेवकों की जली हुई लाशों को गोधरा से अहमदाबाद तक सड़क से ले जाने का आयोजन किया, ताकि लोगों को खूब भड़काया जाये। उन्होंने राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की बैठक की और आदेश दिया कि हत्याकारी गिरोहों को खुली छूट दी जाये तथा पूरी सुरक्षा भी दी जाये।
उसके बाद की घटनाओं से, उस जनसंहार को आयोजित करने में गुजरात सरकार व राज्य तंत्र और शासक भाजपा की भूमिका और स्पष्ट हो गयी है। सरकार के आदेश लागू करने वाले पुलिस अधिकारियों को पदोन्नाति का तोहफा दिया गया। जिन पुलिस अधिकारियों ने अपनी-अपनी जगहों पर सरकार के आदेश मानने से इंकार किया या बाद में सरकार की भूमिका का खुलासा किया, उन्हें सज़ा दी गयी। इतना सारा सबूत होने के बावजूद, अदालतों ने बार-बार नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को सफाई दे दी है। दस वर्ष तक जनसंहार के पीड़ितों, जिन्होंने अपने घर-बार, प्रियजन व रोजी-रोटी सब खोये, को सरकार के दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा है। सरकार ने यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश की है असली अपराधियों को कभी न पकड़ा जाये, कभी न सज़ा दी जाये।
गुजरात के जनसंहार को शुरू से अंत तक उसी प्रकार से अंजाम दिया गया जैसे कि 1984 में दिल्ली व अन्य शहरों में सिखों के जनसंहार को अंजाम दिया गया था। कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने सिखों के जनसंहार को जायज़ ठहराते हुये कहा था कि ''जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है''।
गुजरात जनसंहार के बाद, कम्युनिस्टों और सभी धर्मों के सैकड़ों लोगों ने शरणार्थी शिविरों में बुरी हालतों से गुज़र रहे जनसंहार पीड़ितों को मदद करने का बीड़ा बहादुरी से उठाया। छात्रों, नौजवानों, कलाकारों, वकीलों, मानव अधिकार कार्यकर्ताओं आदि ने इसमें अहम भूमिका निभाई। राज्य के भारी दमन से जूझते हुये, शासकों द्वारा जानबूझकर फैलाये गये जहर और नफ़रत के माहौल में, उन्होंने आगे आकर पीड़ितों व मृतकों के परिजनों को फिर से जीवन शुरू करने में मदद की – बच्चों को फिर से स्कूल जाने में, महिलाओं को रोजगार के साधन दिलाने में, इत्यादि। अनेक नागरिकों ने वीरता से जनसंहार में राज्य की भूमिका का पर्दाफाश करने की चुनौती उठायी। उनके काम और संघर्ष से यह फिर साबित हुआ, जैसा कि 1984 में भी साबित हुआ था, कि हमारे देश के लोग साम्प्रदायिक नहीं हैं। ये कांग्रेस-भाजपा जैसी शासक वर्ग की पार्टियां ही हैं, जो अपने तंग, खुदगर्ज ऌरादों के खातिर, राज्य तंत्र का इस्तेमाल करके जनसंहार आयोजित करती हैं।
2002 का गुजरात जनसंहार, 1984 का जनसंहार और इस प्रकार के दूसरे जनसंहार यह दिखाते हैं कि वर्तमान संविधान के तहत, हिन्दोस्तान की राजनीतिक व्यवस्था किस प्रकार के 'नेताओं' और शासकों को पैदा करती है। इस संविधान के अनुसार 1984 और 2002 के जैसे जनसंहार किये जाते हैं और गुनहगारों को कभी सज़ा नहीं दी जाती है। इस संविधान के अनुसार और इसके द्वारा आश्रित राजनीतिक व्यवस्था व प्रक्रिया के चलते, नरेन्द्र मोदी जैसे नेता न सिर्फ सत्ता में वापस आ सकते हैं बल्कि हिन्दोस्तान के बड़े पूंजीपतियों व अमरीकी संसद द्वारा हिन्दोस्तान के ''भावी प्रधान मंत्री'' बतौर पेश किये जा सकते हैं। इसी व्यवस्था के अन्दर कांग्रेस पार्टी और भाजपा जैसी गुनहगार और साम्प्रदायिक पार्टियां न सिर्फ टिकी रहती हैं पर शासन भी करती रहती हैं।
गुजरात जनसंहार के बाद दस वर्ष बीत गये हैं पर गुनहगारों को सज़ा नहीं दी गई। इसी तरह, 1984 में सिखों के हत्याकांड के 27 वर्ष बाद भी गुनहगारों को सज़ा नहीं दी गई है। हम इसके अलावा कुछ और उम्मीद भी नहीं कर सकते, क्योंकि साम्प्रदायिक जनसंहार को खत्म करने में न तो कांग्रेस पार्टी को रुचि है, न ही भाजपा को। कांग्रेस पार्टी ने गुजरात के जनसंहार का इस्तेमाल करके खुद को ''धर्मनिरपेक्ष'' रूप में पेश करने की कोशिश की। इसमें भाकपा और माकपा ने उसकी मदद की और बड़ी बेशर्मी से यह भ्रम फैलाया कि केन्द्र में कांग्रेस पार्टी को सत्ता में लाने से साम्प्रदायिक हिंसा और जनसंहार समाप्त हो जायेंगे। पिछले 8 वर्ष से कांग्रेस पार्टी सत्ता में है पर उसने 2002 के जनसंहार को आयोजित करने वाले गुनहगारों को सज़ा देने का कोई कदम नहीं उठाया है। कांग्रेस पार्टी और भाजपा, दोनों ने ही 2002 और 1984 के जनसंहारों का फायदा उठाकर एक दूसरे पर उंगलियां उठाई हैं, ताकि अपने-अपने अपराधों को जायज़ ठहरा सकें। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह पूरी राजनीतिक व्यवस्था ही अपराधी है। साम्प्रदायिक जनसंहार आयोजित करना शासक वर्ग के अस्त्रागार में एक बहुत महत्वपूर्ण अस्त्र है। कांग्रेस पार्टी, भाजपा या शासक वर्ग की कोई और पार्टी अपने इरादों को तथा शासक वर्ग के व्यापक इरादे को हासिल करने के लिये भविष्य में फिर जनसंहार आयोजित करने का मौका नहीं खोना चाहती है।
सिर्फ मजदूर वर्ग, किसान और दूसरे मेहनतकश, चाहे किसी भी धर्म के हों, साम्प्रदायिक हिंसा को समाप्त करने और साम्प्रदायिक हत्याकांड के आयोजकों को सज़ा दिलाने में रुचि रखते हैं। परन्तु वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में मजदूर वर्ग और मेहनतकश लोग पूरी तरह दरकिनार कर दिये जाते हैं, उनके पास शासक पूंजीपति वर्ग के हितों का विरोध करने और अपने हितों की हिफ़ाज़त करने का कोई तंत्र नहीं है।
आज शासक वर्ग की ये पार्टियां और उनके लिये काम करने वाले विभिन्न संस्थान हमारे लोगों पर यह दबाव डाल रहे हैं कि ''माफ़ कर दो, भूल जाओ'' और ''आगे बढ़ो''। पर हमारी जनता शासक वर्ग के इन घिनावने अपराधों को कभी माफ़ नहीं कर सकती, कभी भूल नहीं सकती। हमारे लोगों को कहा गया था कि 1947 के साम्प्रदायिक खून-खराबे को ''भूल जाओ''। शासक वर्ग की राजनीतिक पार्टियों ने हमें बुध्दू बनाने के लिये यह यकीन दिलाया था कि आज़ाद हिन्दोस्तान में ऐसे हत्याकांड फिर कभी न होंगे। इसका अंजाम यही हुआ है कि उसके बाद 1984 का हत्याकांड और बहुत सारे ऐसे साम्प्रदायिक हत्याकांड आयोजित किये गये हैं। चूंकि 1984 के गुनहगारों को कभी सज़ा नहीं दी गई, इसीलिये 2002 का जनसंहार इतने खुलेआम तरीके से आयोजित किया जा सका।
केन्द्र सरकार और न्यायपालिका समेत उसके विभिन्न संस्थान यूं तो कितने बेकसूर लोगों को ''संदिग्ध आतंकवादी'' बताकर कई दशकों तक जेल में बंद कर देते हैं। तो फिर वे जनसंहार आयोजित करने वाले अपराधियों को सज़ा देने में इतनी अनिच्छा क्यों दर्शाते हैं? इसकी यही वजह है कि साम्प्रदायिक जनसंहार आयोजित करना और साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काना शासक पूंजीपति वर्ग के अस्त्रागार का एक हिस्सा है।
मजदूर एकता लहर सभी कम्युनिस्टों और इंसाफ चाहने वाले तथा साम्प्रदायिक हिंसा का अंत चाहने वाले लोगों से आह्वान करती है कि सब एकजुट हो जायें और मजदूर वर्ग व मेहनतकशों को संगठित करें ताकि पूंजीपतियों के इस बर्बर शासन को खत्म किया जाए और मजदूर-मेहनतकशों की अपनी राज्य सत्ता स्थापित की जाये। हमें एक नयी राजनीतिक व्यवस्था और प्रक्रिया की जरूरत है, एक नये संविधान की जरूरत है, जो प्रत्येक नागरिक के मानव अधिकारों को सुनिश्चित करेगा, चाहे उसका कोई भी धर्म या समुदाय हो, जो ऐसे तंत्रों को स्थापित करेगा जिनके जरिये मेहनतकश लोग अपने इन अधिकारों का हनन करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिला सकेंगे। किसानों और दूसरे मेहनतकशों के साथ गठबंधन में मजदूर वर्ग की ऐसी राज्य सत्ता स्थापित करके ही राज्य द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक हिंसा और जनसंहार के इस बार-बार दोहराये जाने वाले त्रासदीपूर्ण सिलसिले को समाप्त किया जा सकता है।