हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का आह्वान, 1 मार्च, 2012
8 मार्च, 2012 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसे वक्त आ रहा है जब अपने देश में व दुनियाभर में और भी ज्यादा महिलायें सड़कों पर उतर रही हैं। अपनी बदहाली के विरोध में वे संघर्ष कर रही हैं, और महिला, श्रमिक व मनुष्य होने के नाते, वे अपने अधिकारों की मांग उठा रही हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी की केन्द्रीय समिति का आह्वान, 1 मार्च, 2012
8 मार्च, 2012 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक ऐसे वक्त आ रहा है जब अपने देश में व दुनियाभर में और भी ज्यादा महिलायें सड़कों पर उतर रही हैं। अपनी बदहाली के विरोध में वे संघर्ष कर रही हैं, और महिला, श्रमिक व मनुष्य होने के नाते, वे अपने अधिकारों की मांग उठा रही हैं।
हिन्दोस्तान में महिलायें बढ़ती आर्थिक असुरक्षता तथा महिला मज़दूरों के अतिशोषण के खिलाफ़ अपनी आवाज उठा रही हैं। दैनिक जीवन में उनके खिलाफ़ बढ़ते भ्रष्टाचार व हिंसा का वे विरोध कर रही हैं। अपने देश में हर दिन बलात्कार की खबरें आती हैं जो यह दिखाता है कि महिलाओं को बिना हिंसा और उत्पीड़न के सड़कों पर चलने-फिरने का अधिकार नहीं है।
अनगिनत लड़कियों को जीने के अधिकार तक से वंचित किया गया है; उन्हें जन्म से ही पहले मार दिया जाता है। जो बच जाती हैं उन्हें आर्थिक व राजनीतिक मामलों में लड़कों व पुरुषों से बराबरी से भाग लेने में कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
किसके साथ विवाह करना है, कितने बच्चों को जन्म देना है और कब, ऐसे फैसले लेने के अधिकारों से महिलाओं को वंचित रखा गया है। करोड़ों गर्भवती महिलाओं को सलामती से प्रसव सुनिश्चित करने के लिये प्रशिक्षित देखभाल की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
अपने देश की लड़कियों और महिलाओं को ब्राह्मणवादी जाति प्रथा तथा व्यवहार नियंत्रित करने वाले धार्मिक नियमों के बोझ सहने पड़ते हैं जिससे सामाजिक जीवन में उनकी भूमिका सीमित रह जाती है। पूंजीवाद के बढ़ने से बड़ी संख्या में महिलायें घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर कारखानों और बी.पी.ओ. दफ्तरों तक तो पहुंची हैं, परन्तु साथ ही उनको शोषण और दमन के नये तरीकों का सामना करना पड़ रहा है। इससे उनकी असुरक्षितता, हिंसा व उनके खिलाफ़ अपराधों का स्तर बढ़ा है।
1950 के हिन्दोस्तानी गणराज्य के संविधान ने बर्तानवी साम्राज्यवादियों द्वारा अपनी भूमि व श्रम की लूटपाट करने के लिये बनायी गई बस्तीवादी राज्य की विरासत से नाता नहीं तोड़ा है। जबकि इसने सभी वयस्क महिलाओं और पुरुषों को मत देने के अधिकार से सम्पन्न किया है, परन्तु हिन्दोस्तानी सरकार ने 1935 के कानून की बर्तानवी हिन्दोस्तानी राज्य व्यवस्था की मौलिक आधारशिला को कायम रखा। हिन्दुओं, मुसलमानों और दूसरों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानूनों के साथ, राजतंत्र की साम्प्रदायिक परिभाषा बरकरार रखी गयी। दबे-कुचले लोगों के उत्थान के नाम पर, मतदान क्षेत्रों तथा सरकारी नौकरियों में जाति पर आधारित आरक्षण जारी रखा गया तथा इनका विस्तार किया गया।
कांग्रेस पार्टी ने लोगों की इच्छा पूरी करने के वादे तो किये पर सख्ती से लागू वही किया जो बड़े पूंजीपतियों और बड़े जमीनदारों के हित में था। नेहरू ने घोषणा की कि एक समाजवादी नमूने का समाज बनाया जा रहा है, जबकि सबसे बड़े पूंजीपति घराने तेज़ी से बढ़े और उन्होंने पूरे घरेलू बाजारों पर अपना इजारेदारी कब्ज़ा जमा लिया। मेहनतकश लोगों को दबाने के लिये उन्होंने राज्य का इस्तेमाल किया और अपने देश की भूमि और श्रम की लूटपाट में उन्होंने गोरों का स्थान ले लिया।
समाजवादी नमूने का समाज बनाने के भ्रम जाल रचने की प्रक्रिया में उन्होंने विभिन्न कानून पास किये जिनमें से कुछ महिलाओं के मौलिक अधिकारों के बारे में थे। परन्तु इनके कार्यान्वयन के प्रावधान या लागू करने के यंत्र नहीं बनाये गये थे जिसकी वजह से ये कानून कागज़ पर ही रहे। उदाहरण के लिये, 1961 का मातृत्व सुविधा कानून उन सभी महिलाओं को, जिन्होंने 80 दिन काम किया हो, कम से कम छ: सप्ताह का वेतन सहित मातृत्व अवकाश का अधिकार देता है; परन्तु असलियत में यह बहुत ही कम महिलाओं को उपलब्ध है। जबकि 1976 के समान वेतन कानून के अनुसार एक जैसी मात्रा और गुणवत्ता के काम के लिये समान वेतन मिलना चाहिये, पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को औसतन करीब दो-तिहाई वेतन ही मिलता है।
नेहरूवी ''समाजवादी नमूने के समाज''ने अपना वादा नहीं निभाया है, यह घोषणा करने वालों में महिलाओं के संगठन सबसे आगे थे। वादों और सच्चाई के बीच की तथा विभिन्न कानूनों और जमीनी असलियत के बीच की गहरी खाई पर उन्होंने ध्यान दिलाया।
महिलाओं और पुरुषों की बढ़ती आशाओं व मांगों के जवाब में शासक पूंजीपति वर्ग ने निजीकरण व उदारीकरण के जरिये वैश्वीकरण का कार्यक्रम शुरू किया। सभी नागरिकों के प्रति राज्य के दायित्व को निभाने के लिये कदम लेने की जगह, उन्होंने उल्टी वकालत की – कि सभी की जरूरतें पूरी करने से राज्य पीछे हटेगा और सभी को तथाकथित मुक्त बाजार में अपना बचाव खुद ही करना होगा। पूंजीवादी विकास के नेहरूवी नमूने की विफलता को समाजवाद की विफलता बताया गया। अंतर्राष्ट्रीय प्रचार लादा गया कि बाजार उन्मुख आर्थिक सुधारों के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इस सबतरफे हमले का सामना करने में महिलायें सबसे आगे रही हैं।
निजीकरण व उदारीकरण के जरिये वैश्वीकरण के झंडे तले किये गये पिछले 20 वर्षों के समाज-विरोधी हमले के खिलाफ़ संघर्ष में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई है। हिन्दोस्तानी इजारेदार पूंजी की वैश्विक प्रभुत्व की दौड़ के साथ-साथ बढ़ा है, राजनीति का अपराधीकरण, राजकीय आतंक का संस्थानीकरण तथा हर तरह की साम्प्रदायिक हिंसा की बार-बार होने वाली घटनायें। इन सबतरफे फाशीवादी हमलों का महिलाओं ने जोरदार विरोध किया है।
अपनी ज़िन्दगी और संघर्षों के अनुभव से महिलायें समझी हैं कि अधिकांश महिलाओं और पुरुषों के सत्ता से वंचित होने के कारण ही उनके अधिकारों का खुलेआम हनन होता है। महिलाओं और अन्य लोगों के अधिकार प्राप्ति के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिये मेहनतकश महिलाओं और पुरुषों को राजनीतिक सत्ता में आना निर्णायक है।
संसद व प्रांतीय वैधानिक निकायों में 33 प्रतिशत आरक्षण की सम्भावना को महिलाओं के सत्ता में आने के संघर्ष में एक महान छूट बतौर बताया गया है। परन्तु मुद्दा तो यह है कि वर्तमान राज्य पूंजीवादी राज का साधन है। लोक सभा और विधान सभाओं में महिलाओं की संख्या बढ़ाने से मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था का वर्ग चरित्र नहीं बदलेगा।
राडिया टेप्स से लेकर 2जी स्पैक्ट्रम तक अनेक घोटालों से इस सच्चाई की पुष्टी हुई है कि जिसे ''दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र'' के नाम से जाना जाता है वहां असलियत में बड़े इजारेदार घरानों के तले, मुट्ठीभर पूंजीपति वर्ग की हुकुमशाही चलती है। यह एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था है जिसकी रचना सुनिश्चित करती है कि टाटा, अंबानी, बिड़ला तथा दूसरे इजारेदार घरानों के हाथों में फैसले लेने की ताकत का नियंत्रण है और इसका इस्तेमाल करके वे अपने आप को जल्दी से जल्दी मालामाल करते हैं। इजारेदार घराने प्रमुख राजनीतिक दलों को तथा उनके चुनावी अभियानों को पैसे देते हैं। वही महत्वपूर्ण विभागों के मंत्रियों का चयन करते हैं और आर्थिक नीतियां निर्धारित करते हैं।
हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी विश्वास करती है कि गैर-प्रतिनिधित्व की मौजूदा व्यवस्था में अपनी जगह बनाने की कोशिश करने के बजाय महिलाओं को एक नयी आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था के लिये लड़ने की जरूरत है।
महिलाओं के राजनीतिक जागरण में पहला व्यवहारिक कदम है महिला बतौर अपनी सांझी समस्याओं व सांझे संघर्ष पर चर्चा करने के लिये एक साथ आना। महिलाओं को अपने खुद के संघर्ष के संगठन की जरूरत है ताकि राजनीति में सहभाग लेने में तथा महिला बतौर व मानव बतौर अपने अधिकारों को स्पष्ट रूप से कहने व उनको सुरक्षित करने में वे सक्षम हों।
सभी वेतनभोगी मज़दूरों और कर्मचारियों में महिलायें एक तिहाई हिस्सा हैं। संगठित मज़दूर वर्ग और महिलाओं के संघर्ष में उनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। जो यूनियनों के संघर्ष में अनुभवी हैं, महिलाओं को महिला बतौर संगठित करने में उनकी अहम भूमिका है।
कम्युनिस्ट महिलाओं को महिलाओं के संगठन को बनाने और मजबूत करने में सक्रियता से भाग लेना चाहिये, ताकि महिलाओं के अधिकारों के लिये बिना-समझौते संघर्ष करने का उदाहरण मिले। उन्हें उस समाज की दृष्टिकोण और झलक दिखानी चाहिये जिसमें महिलायें मुक्त होंगी।
मोहल्लों, बस्तियों और गांवों में लोगों की समितियों के रूप में नयी राज्य सत्ता की नींव बनाने की सख्त जरूरत है। लोगों की सत्ता के ऐसे साधन बनाने और मजबूत करने में महिलाओं की निर्णायक भूमिका है।
समाज को मौजूदा दलदल से बाहर निकालने में महिलाओं को हिस्सा लेना होगा। पूंजीवाद से समाजवाद के क्रांतिकारी परिवर्तन से उन्हें कोई हानि नहीं है बल्कि सबतरफा लाभ है। समाजवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सामाजिक उत्पादन के साधनों से निजी सम्पत्तिा के साथ-साथ वर्ग शोषण का खात्मा होता है। सामाजिक उत्पादन व पुनरुत्पादन की प्रक्रिया सामाजिक योजना के साथ होती है ताकि आबादी की बढ़ती जरूरतों और उत्पादक शक्ति को बढ़ाने के लिये जरूरी निवेश की पूर्ति की जा सके। समाज की ऐसी व्यवस्था में महिलाओं के लिये स्वस्थ्य जीवन तथा काम की परिस्थिति तैयार होगी जिसमें सभी के लिये सुरक्षित प्रसव की सुनिश्चिति होगी। सामाजिक योजना में महिला मुक्ति और समाज व परिवार के मामलों में महिलाओं द्वारा पुरुषों के बराबर भाग लेने की जरूरत की मान्यता होगी।
2012 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर, हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी सभी देशों की महिलाओं को सलाम करती है जो अधिकारों की सुरक्षा व पुष्टि के लिये संघर्ष कर रही हैं। हम महिलाओं को आह्वान देते हैं कि महिला, श्रमिक और मनुष्य होने के नाते अपने अधिकारों की सुरक्षा में अपने संगठित संघर्ष को मजबूत करें और दृढ़ता से एक हों।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर जारी अह्वान – महिलाओं को मानव, महिला और श्रमिक होने के नाते, अपने अधिकार पाने के लिये संगठित होना होगा और एकजुटता से संघर्ष करना होगा! – इस शीर्षक स्पष्ट करता है कि एक महिला को – मानव, महिला और श्रमिक होने के नाते उसके बहुत सारे अधिकार होते हैं। लेकिन उसको राज्य द्वारा कोई भी अधिकार दिये नहीं जाते हैं। यह आह्वान बहुत अच्छे तरीके से महिलाओं, पुरुषों, नौजवानों, विद्यार्थियों को चेतनशील बनाने के लिये सार्थक है।
इस अह्वान में बहुत स्पष्ट तरीके से सझाया गया है कि जो भी कानून बने थे वे सिर्फ कागजों तक सीमित रहे। चाहे 1961 में बना मातृत्व कानून हो या फिर 1976 में बना समान वेतन का कानून हो! इनको अमली जामा आज तक नहीं पहनाया गया। ये कानून इस देश की राजनीतिक व्यवस्था और न्याययिक व्यवस्था की सच्चाई दर्शाते हैं।
इस आह्वान से यह पूरी तरह साफ होता है कि आज भी हमारे देश में महिला सुरक्षित नहीं है – न तो काम की जगह पर, न ही आने-जाने के वक्त, न ही घर में और आज भी प्रसव के वक्त सबसे ज्यादा महिलाओं की मौत हमारे देश में होती है। इन सबके प्रति सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है जबकि हमारे देश में हर ऊँचे-ऊँचे पदों पर महिलाएं विराजमान हैं।
पार्टी के आह्वन में मूल्यांकन बहुत ही अच्छा है – कम्युनिस्ट महिलाओं को इसमें अगुवाई देनी होगी और एक समाजवादी देश की रचना करनी होगी, तब ही जाकर एक शोषणरहित समाज बनाया जा सकता है।