रेल चालकों की मांगों पर गौर करने के लिये केन्द्र ने एक ट्रिब्यूनल स्थापित किया

केन्द्र सरकार ने रेल चालकों की चार मांगों पर गौर करने के लिये न्यायाधीश गौरी शंकर सराफ का एक व्यक्ति वाला ट्रिब्यूनल नियुक्त किया है। ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसियेशन(ए.आई.एल.आर.एस.ए.) की ये लंबे समय से मांग रही हैं और इनके लिये उन्होंने कई बार आंदोलन किये हैं।

केन्द्र सरकार ने रेल चालकों की चार मांगों पर गौर करने के लिये न्यायाधीश गौरी शंकर सराफ का एक व्यक्ति वाला ट्रिब्यूनल नियुक्त किया है। ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसियेशन(ए.आई.एल.आर.एस.ए.) की ये लंबे समय से मांग रही हैं और इनके लिये उन्होंने कई बार आंदोलन किये हैं।

जैसा कि मज़दूर एकता लहर के पिछले अंकों में जानकारी दी गयी है, 10 अक्टूबर 2010 को नयी दिल्ली में स्थानीय श्रम आयुक्त ने घोषणा कर दी थी कि समझौता कार्यवाई असफल हो गयी है और इसमें असहयोग के लिये रेलवे बोर्ड को जिम्मेदार ठहराया है। 

 कानून के हिसाब से, अगर समझौता कार्यवाई को असफल घोषित किया जाता है तो 45 दिन के अंदर एक राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल का गठन होना चाहिये। परन्तु केन्द्र सरकार ने इस बहाने इसके गठन में बहुत देर की कि इन विषयों पर ''मान्यता प्राप्त यूनियनों'' के साथ रेलवे बोर्ड का पहले से ही वार्तालाप जारी है। परन्तु ए.आई.एल.आर.एस.ए. के नेतृत्व में पूरे देश के रेल चालकों के एकजुट संघर्ष के सामने और रेल चालकों द्वारा एक प्रचंड आंदोलन की संभावना को देखते हुये, केन्द्र सरकार को आखिर झुकना पड़ा और एक राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल नियुक्त करना ही पड़ा।

20 फरवरी को मुंबई के बाहरी इलाके कल्याण में एक जन सभा में ए.आई.एल.आर.एस.ए. के नेताओं ने रेल चालकों को संबोधित किया और इस घटना की महत्ता को समझाया।

कॉमरेड बदगुजर ने समझाया कि पहले भी रेल चालकों की परेशानियों पर गौर करने के लिये दो समितियां नियुक्त की जा चुकी हैं। पहला 1947 का राजध्यक्ष ट्रिब्यूनल था और दूसरा 1969 का न्यायाधीश मियाभॉय ट्रिब्यूनल। परन्तु ये ट्रिब्यूनल सिर्फ रेल चालकों की समस्याओं पर गौर करने के लिये नहीं थे बल्कि सभी रेल चालन संबंधी दूसरे कर्मचारियों के लिये भी थे। यह पहली बार है जब रेल चालकों द्वारा उठाई गयी समस्याओं पर गौर करने के लिये एक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया है। न्यायाधीश सराफ का ट्रिब्यूनल रेल चालकों की चार मुख्य मांगों के लिये नियुक्त किया गया है, जो हैं, क) पद वेतन में असंगति, ख) 1981 के सूत्र के अनुसार रनिंग भत्ता निर्धारण, ग) एच.ओ.इ.आर.- रोजगार के घंटों का नियम और घ) सफर की दूरी।

ए.आई.एल.आर.एस.ए. के केन्द्रीय अध्यक्ष, कॉमरेड हनुमय्या ने कहा कि ए.आई.एल.आर.एस.ए. ही एकमात्र संगठन है जो रेल चालकों का सही तरीके से प्रतिनिधित्व करता है। दूसरी ''मान्यता-प्राप्त'' यूनियनों ने तो रेल चालकों की मांगों को प्रस्तुत भी नहीं किया था। रेल चालक हनुमान की तरह होते हैं, और किसी को उन्हें उनके बल का आभास दिलाना पड़ता है। 1974की ऐतिहासिक हड़ताल में ए.आई.एल.आर.एस.ए. सबसे अग्रिम था। हमें अपने संगठन को मजबूत करना चाहिये और संघर्ष को आगे ले जाना चाहिये।

चेन्नई मंडल के कॉमरेड मुरली ने कहा कि रेल मंत्रालय और प्रबंधन पूरी तरह से मज़दूर विरोधी है और हमें रेलवे के सभी मंडलों के बीच अपनी एकता मजबूत करना चाहिये ताकि हम एकताबध्द तरीके से लड़ाई कर सकें। ट्रिब्यूनल तो विलंब करने के और हमें हराने के सरकार के तरीकों में एक है, अत: हमें इसके बारे में कोई भ्रम नहीं होना चाहिये। साथ ही हमें ट्रिब्यूनल के सामने अपनी मांगों की पुष्टि देना चाहिये। हमें अपने अधिकारों के लिये सड़कों पर उतर कर लड़ाई करना चाहिये।

बेंगलूरू से कॉमरेड पार्थसारथी ने कहा कि पिछले तीन सालों से हम लगातार संघर्ष करते आये हैं। अगर आप रेल मज़दूरों के बीच के सारे ट्रेड यूनियनों को देखेंगे तो पायेंगे कि सिर्फ ए.आई.एल.आर.एस.ए. ही है जो संघर्ष के रास्ते पर चल रहा है।

पश्चिम रेलवे रेल चालकों के पुराने नेता कॉमरेड बी.एस. रथ ने रेल चालकों को हमले की तैयारी के लिये बुलावा दिया। हमारे अधिकारों से हमें कैसे वंचित किया जाता है, इसके बारे में हमें पूरे मज़दूर वर्ग का ध्यान आकर्षित करना चाहिये। हमारा काम न केवल बहुत मुश्किल है,हमारा अवकाश का समय भी हमारे घरों से दूर होता है, जिससे हम अन्य मज़दूरों के मुकाबले अपने परिवारों के साथ बहुत कम समय बिताते हैं।

सर्व हिन्द महासचिव, कॉमरेड एम. एन. प्रसाद ने कहा कि ए.आई.एल.आर.एस.ए. का जन्म संघर्ष में ही हुआ था। पूरी व्यवस्था पूंजीपति वर्ग के नियंत्रण में है। सिर्फ अपनी ताकत के बल पर हम रेल चालक राष्ट्रीय मुद्दों पर सरकार की नीतियों को नहीं बदल सकते हैं।

मज़दूर वर्ग के सभी तबकों को एकता से संघर्ष करने की जरूरत है। इसी तरह रेल चालकों की मांगों को पाने के लिये सिर्फ कुछ मंडलों का संघर्ष काफी नहीं है। पूरे हिन्दोस्तान में संघर्ष होना चाहिये। अगर हम रेलों को 30 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से चलायेंगे तो किसी को पता भी नहीं चलेगा, परन्तु अगर हम इन्हें 105 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से चलायेंगे तो कोई हमारी अनदेखी नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि 28 फरवरी को सर्व हिन्द हड़ताल है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आयोजन करने वाली यूनियनों ने ए.आई.एल.आर.एस.ए. जैसी रेलवे की यूनियन को इसकी तैयारी में शामिल करना महत्वपूर्ण नहीं समझा है और न ही इसमें भाग लेने के लिये हमें बुलाया है।

सी.ए.जी. के रिपोर्ट के अनुसार हिन्दोस्तानी रेलवे सबसे ज्यादा भ्रष्ट है। पिछले साल रेलवे ने 80 करोड़ टन माल वाहन का लक्ष्य रखा था, पर असलियत में 90 करोड़ टन माल वाहन किया। फिर भी रेलवे घाटे में क्यों चल रही है? रेलवे के पास देख-रेख के लिये भी पैसे नहीं हैं, फिर नया आधारभूत ढांचा जोड़ना तो दूर की बात है। यह मंत्रियों और अफसरों द्वारा रेलवे की लूट का नतीजा है।

ए.आई.एल.आर.एस.ए. द्वारा लगातार संघर्ष की वजह से ममता बैनर्जी ने पुलिस को तहकीकात करने के लिये निर्देश दिया है, यह पता लगाने के लिये कि हम माओवादी हैं या वामपंथी, दक्षिणपंथी या मध्यवादी हैं। परन्तु हमने उन्हें बता दिया है कि हम इनमें से कोई भी नहीं हैं। हम मज़दूरों का मोर्चा हैं। हम लगातार संघर्ष में हैं। 1975 में इंदिरा गांधी ने संसद में 20 मिनट भाषण दिया था कि कैसे वो ए.आई.एल.आर.एस.ए. को खत्म कर देगी। अगर एक टीवी भेजा जा सकता है जहां उसकी आत्मा हो, तो वो खुद देख पायेगी कि हम मरे नहीं हैं बल्कि बलवान हुये हैं।

अंत में उन्होंने घोषणा की कि 24फरवरी 2012को देश भर में रेलवे मंडल प्रबंधन के दफ्तरों के सामने प्रदर्शन किये जायेंगे और अपने ज्ञापन दिये जायेंगे।

ए.आई.एल.आर.एस.ए. के नेतृत्व में, अपने अधिकारों की रक्षा में रेल चालकों के सिध्दांतवादी संघर्ष को मज़दूर एकता लहर सलाम करता है।

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