28 फरवरी की हड़ताल की कामयाबी के लिए दिल्ली की ट्रेड यूनियनों ने 6 फरवरी, 2012 को दिल्ली में एक संयुक्त अधिवेशन किया। इस अधिवेशन में मजदूर एकता कमेटी, एटक, बी.एम.एस., हिन्द मजदूर सभा, ए.आई.यू.टी.यू.सी., सीटू और इंटक ने भाग लिया।
28 फरवरी की हड़ताल की कामयाबी के लिए दिल्ली की ट्रेड यूनियनों ने 6 फरवरी, 2012 को दिल्ली में एक संयुक्त अधिवेशन किया। इस अधिवेशन में मजदूर एकता कमेटी, एटक, बी.एम.एस., हिन्द मजदूर सभा, ए.आई.यू.टी.यू.सी., सीटू और इंटक ने भाग लिया।
इसमें मुख्य ट्रेड यूनियनों के अलावा, दिल्ली परिवहन निगम, दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली नगर निगम, प्राईवेट ट्रांसपोर्ट, एम.टी.एन.एल, बी.एस.एन.एल. आदि कई ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधि भी इस अधिवेशन में शामिल हुए।
इस अधिवेशन में शामिल सभी ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों ने 28 फरवरी की हड़ताल को कामयाब करने का आह्वान दिया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि वर्तमान संप्रग सरकार मजदूर-विरोधी है। महंगाई को लेकर सभी ने संप्रग सरकार की आलोचना की।
अधिवेशन को संबोधित करते हुए मजदूर एकता कमेटी के प्रतिनिधि कॉमरेड बिरजू नायक ने कहा कि पिछले दो वर्षों से जिन 10 सूत्री मांगों को लेकर मुख्य ट्रेड यूनियन हड़ताल पर उतर रहे हैं, वे ऐसी मांगें नहीं हैं, जिन्हें पूरा करना सरकार के वश की बात न हो। ये ऐसी मांगें भी नहीं हैं, जो देश के पूंजीपतियों के हितों के खिलाफ़ हों अर्थात वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में भी इन मांगों को सरकार पूरा कर सकती है।
उन्होंने निजीकरण के संबंध में कहा कि 2001 में राजग सरकार के दौरान, पूंजीपतियों का पहला शिकार मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज थी। उस वक्त सरकार ने कहा कि ब्रेड बनाना सरकार का काम नहीं है। उसके बाद, 'मानवीय मुखौटे' के साथ संप्रग सरकार आयी, उसने निजीकरण को 'अलग-अलग तकनीकी शब्दों' के बहाने से देश की दौलत को पूंजीपतियों को सुपुर्द किया है। अब एयर इंडिया को भी पूंजीपतियों के शिकार के लिए सरकार पूरी तैयारी कर रही है।
यह कहना सही है कि वोट से सरकार बदल सकती है लेकिन मजदूर वर्ग की हालत नहीं। हम जिन्हें भी चुनें, अंतत: वे देश के पूंजीपतियों के प्रबंधक ही साबित होंगे। ऐसा इसलिए कि देश की सत्ता पूंजीपतियों के हाथ में है। इसलिए आज देश में मजदूरों के विगत 65 वर्षों में सरकारें पूंजीपतियों के लिए अच्छी और बेहतर प्रबंधक साबित हुई हैं। इन वर्षों के दौरान देश के पूंजीपतियों ने काफी प्रगति की है। वे अब विदेशी साम्राज्यवादियों के साथ होड़ करने लगे हैं। इनके हौसले अब साम्राज्यवादी हैं। ये भी अपनी पूंजी को दुनिया के अनेक देशों में लगा रहे हैं। ये संसार में वहीं अपनी पूंजी लगायेंगे, जहां इन्हें लगता है कि अधिकतम मुनाफा सुनिश्चित है।
इसलिए पूंजीपतियों से यह उम्मीद करना कि चूंकि वे हिन्दोस्तान के मजदूरों के शोषणकर्ता हैं, उन्हें मजदूर वर्ग पर तरस खाना चाहिए, यह पूंजीपति व उनके पूंजीवादी असूलों के खिलाफ़ है।
मजदूर वर्ग को, पूंजीपतियों के हाथ से सत्ता को अपने हाथ में लेने के लिए तैयारी करनी चाहिए। यही हमारे सामने एक रास्ता है। आइये 28 फरवरी की हड़ताल को कामयाब करें। सत्ता बदलने के लिए नहीं, बल्कि सत्ता को अपने हाथ में लेने की तैयारी के बतौर।
अधिवेशन को संबोधित करने वालों में थे – सुखदेव प्रसाद मिश्रा (बी.एम.एस.) अमरजीत कौर (एटक), हरभजन सिंह सिध्दू (हिन्द मजदूर सभा), आर.के. शर्मा (ए.आई.यू.टी.यू.सी), विरेन्द्र गौड़ (सीटू), रमेश वत्स (इंटक), आदि।