कई वर्षों से सिरिया अमरीकी साम्राज्यवाद के निशाने पर रहा है। यह पश्चिम एशिया में अमरीकी साम्राज्यवाद के सिपाही – जाउनवादी इस्राइली राज्य – के निशाने पर भी रहा है, जिसके साथ उसकी सांझी सीमा रेखा है। सिरिया को रणनैतिक महत्व वाला इलाका, गोलान हाईट्स पर 1967 से इस्राइल ने गैर कानूनी कब्ज़ा कर रखा है। हाल के सप्ताहों और महीनों में, लिबिया में सत्ता परिवर्तन करने में कामयाब होने के बाद, एंग्लो-अमरी
कई वर्षों से सिरिया अमरीकी साम्राज्यवाद के निशाने पर रहा है। यह पश्चिम एशिया में अमरीकी साम्राज्यवाद के सिपाही – जाउनवादी इस्राइली राज्य – के निशाने पर भी रहा है, जिसके साथ उसकी सांझी सीमा रेखा है। सिरिया को रणनैतिक महत्व वाला इलाका, गोलान हाईट्स पर 1967 से इस्राइल ने गैर कानूनी कब्ज़ा कर रखा है। हाल के सप्ताहों और महीनों में, लिबिया में सत्ता परिवर्तन करने में कामयाब होने के बाद, एंग्लो-अमरीकी साम्राज्यवाद ने सत्ता परिवर्तन के मकसद से सिरिया के अंदर गृहयुध्द छेड़ा है। सरकारी बलों और एंग्लो-अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा संगठित बलों के बीच मुठभेड़ों में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई है।
सिरिया में सत्ता परिवर्तन की साम्राज्यवादी कोशिशों का मज़दूर वर्ग और लोगों को दृढ़ता से विरोध करना चाहिये। सत्ता परिवर्तन की सफाई में दी जा रही ''लोकतंत्र'' व ''मानव अधिकारों'' की दुहाई स्वीकार्य नहीं है। मुद्दा यह नहीं है कि सिरिया में मौजूदा हुकूमत का स्वभाव क्या है। मुद्दा तो है कि किसी देश में वहां की राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था को तय करने का अधिकार वहां के लोगों को है, या किसी साम्राज्यवादी ताकत को? हमारी पार्टी का निश्चित तौर पर मानना है कि देश के लोग ही यह तय कर सकते हैं। जो लोग विदेशी समर्थन की मांग करते हैं वे या तो जानबूझकर या अनजाने में साम्राज्यवाद को दखलंदाजी का बहाना देते हैं। साम्राज्यवादी जब अपने ही मज़दूरों की इच्छा का आदर नहीं करते, तो कब्जा किये दूसरे देशों के मज़दूरों की इच्छा के आदर करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता है।
इस समय, पश्चिम एशिया में अमरीकी साम्राज्यवाद का मुख्य निशाना ईरान है। ईरान पर धमकियों और दबाव से सभी परिचित हैं। सिरिया की मुसीबत है कि (1) वह ईरान का मित्र देश है (2) उसने अमरीकी साम्राज्यवाद और इस्राइल के सामने घुटने नहीं टेके हैं (3) वह लेबनान में हिजबोल्लाह का समर्थन करता है। सिरिया रूस का भी मित्र देश है। सिरिया पर हमले का लक्ष्य है उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया के तेल से सम्पन्न रणनैतिक इलाके पर एंग्लो-अमरीकी आधिपत्य जमाना। सिरिया के बाद अगला निशाना ईरान होगा।
अमरीकी साम्राज्यवाद ने सिरिया के गृहयुद्ध में विरोधी सैनिक बलों को आर्थिक समर्थन देने के लिये तुर्की को उकसाया है। उन्होंने तथाकथित “अरब लीग”, जो कि अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा नियंत्रित एक गठबंधन है, उसे सिरिया के खिलाफ़ प्रतिबंध लगाने और सैन्य कार्यवाईयां करने की धमकी देने के लिये प्रेरित किया है।
4 फरवरी को, रूस और चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक प्रस्ताव को वीटो कर दिया, जिसके तहत, अन्य चीजों के साथ, सिरिया में अस्साद सरकार पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा आर्थिक प्रतिबंध लगाने की अनुमति दी जाने वाली थी, ताकि महीनों से देश में हो रही हिंसा के बाद उसे पद छोड़ने के लिये बाध्य किया जा सके। इस प्रस्ताव को पारित करने के लिये कई महीनों से अमरीका और उसके यूरोपीय मित्र देश प्रयास करते रहे हैं और दबाव के साथ पूरी कोशिश की गयी थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के दूसरे सदस्य भी इस विफल प्रस्ताव में आर्थिक प्रतिबंधों के बाद और कार्यवाई की धमकी भी थी। इसमें कहा गया था कि अगर अस्साद सरकार 15 दिन के अंदर प्रस्ताव का पालन नहीं करती तो उसके खिलाफ़ “और कदम”लिये जा सकते हैं। इससे साफ था कि लिबिया के जैसे सिरिया में भी एक भारी-भरकम सैनिक कार्यवाई की योजना थी। जैसा सभी को मालूम है, नाटो द्वारा महीनों तक लिबिया पर बमबारी से पूरे देश को तहस नहस किया गया और हजारों लोग मारे गये और घायल हुये।
खास तौर पर लिबिया पर आक्रमण के बाद, हिन्दोस्तानी सरकार ने भी दूसरे देशों में विदेशी हस्तक्षेप पर विरोध करने का नाटक किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सिरिया पर बैठक में हिन्दोस्तानी सरकार द्वारा एंग्लो-अमरीकी दबाव के सामने घुटने टेकने की जोरदार निंदा की जानी चाहिये। यह एक बार फिर दिखाता है कि हिन्दोस्तानी शासक वर्ग इस असूल को नहीं मानता है कि किसी भी देशको दूसरे देशकी संप्रभुता पर, किसी भी बहाने, हमला करने का कोई अधिकार नहीं है।
पश्चिम एशिया और फारस की खाड़ी के इलाके में साम्राज्यवादी ताकतें एक ऐसी भयानक स्थिति थोपने की कोशिश कर रही हैं, जिससे इस इलाके और आस-पास के सभी देशों की संप्रभुता और शांति को खतरा है। हिन्दोस्तानी मज़दूर वर्ग को सिरिया के मामलों में विदेशी हस्तक्षेप का दृढ़ता से विरोध करना चाहिये।