भ्रम पैदा करने वाला गणतंत्र

संपादक महोदय,

मैंने मजदूर एकता लहर के अंक जनवरी 16-31, 2012 में आपके अखबार में प्रकाशित लेख ''पूंजीपतियों के संकट-ग्रस्त गणतंत्र की जगह पर मजदूरों और किसानों का गणतंत्र स्थापित करना होगा'' को बड़े ध्यान से पढ़ा।

संपादक महोदय,

मैंने मजदूर एकता लहर के अंक जनवरी 16-31, 2012 में आपके अखबार में प्रकाशित लेख ''पूंजीपतियों के संकट-ग्रस्त गणतंत्र की जगह पर मजदूरों और किसानों का गणतंत्र स्थापित करना होगा'' को बड़े ध्यान से पढ़ा।

यह लेख नौजवानों को बहुत सारी जानकारी देता है। उदाहरण के लिए 1935 का उपनिवेशवादी भारत सरकार अधिनियम हमारे देश के संविधान का आधार था, जो 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। अर्थात बर्तानवी राज जिस तरह से हम हिन्दोस्तानियों की मेहनत और प्राकृतिक संसाधनों को लूटता था, उसी तरह से हम हिन्दोस्तानी आज भी लुटे जा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण हुआ है।

यह तो हमें समझ में आने लगा है कि चुनावों में जितनी भी राजनीतिक पार्टियां सत्ता में आईं उन्होंने सिर्फ बड़े पूंजीपतियों के हितों में काम किया तथा मजदूर, मेहनतकशों के हितों को हर बार पैरों तले रौंद दिया।

हिन्दोस्तानी पूंजीपति अर्थात् जो सत्ताधारी हैं वे इस बात का दावा करते हैं कि हिन्दोस्तान के हालात बदल रहे हैं, परन्तु देखा जाये तो न मजदूर के लिये रोटी है, न शिक्षा है, न रोजगार है। मजदूरों के बच्चे कुपोषण का शिकार बन रहे हैं। उनके पास कोई बेहतर भविष्य नहीं है।

मैं आपकी बातों से सहमत हूं कि इस दकियानूसी, घटिया और भ्रम पैदा करने वाले गणतंत्र की जगह पर मजदूरों, किसानों का मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिध्दांत के आधार पर एक नये गणतंत्र की स्थापना करना होगा, यही कम्युनिस्टों का पवित्र काम है।

कामिनी, नई दिल्ली

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