संपादक महोदय,
मजदूर एकता लहर के अंक 1-15 जनवरी, 2012 में 'पूंजीवादी सरकारों के पास गहराते आर्थिक संकट का कोई समाधान नहीं है', इस लेख का अध्ययन हमने पार्टी के अपने एक बुनियादी संगठन में किया और चर्चा की, इसके बाद हम अपनी समझ के अनुसार यह पत्र आपको लिख रहे हैं।
संपादक महोदय,
मजदूर एकता लहर के अंक 1-15 जनवरी, 2012 में 'पूंजीवादी सरकारों के पास गहराते आर्थिक संकट का कोई समाधान नहीं है', इस लेख का अध्ययन हमने पार्टी के अपने एक बुनियादी संगठन में किया और चर्चा की, इसके बाद हम अपनी समझ के अनुसार यह पत्र आपको लिख रहे हैं।
वर्तमान आर्थिक संकट को सरमायदारी सरकारों के द्वारा हल न कर पाने के संदर्भ में लेख ने बहुत स्पष्ट तरीके से समझाया है।
इस लेख में एक जगह पर अर्थशास्त्र में इस्तेमाल होने वाले शब्द 'मुद्रास्फीति' आया है। उदाहरण के लिए एक वाक्य 'ज्यादा से ज्यादा, ऐसी नीति कुछ थोड़े समय के लिये राहत दे सकती है, परन्तु मुनाफा, ब्याज, किराया, टैक्स और मुद्रास्फीति के रूप में लगातार जो विशाल धन राशि मेहनतकशों से लूटी जाती है, जो प्रतिदिन उनकी खरीदारी की ताकत को घटाती रहती है, उसके असर को यह नहीं मिटा सकती है।' में मुद्रास्फीति शब्द आया है।
इसमें मुद्रास्फीति से किस प्रकार मेहनतकशों से लूट होती है, पूरी तरह समझने में साथी कामयाब नहीं हुए हैं। हमारी समझ में मुद्रास्फीति का मतलब है – मुद्रा विस्तार में वृध्दि। अर्थात मुद्रा (विनिमय का साधन – नोट, पैसा) व स्फीति (विस्तार)। मुद्रा के फैलाव के कारण मुद्रा का मूल्य कम हो जाता है, जिसके कारण उसकी खरीद-क्षमता कम हो जाती है। इस कारण सभी वस्तुओं की मूल्य में वृध्दि होती है। उदाहरण के लिए 2010 में एक सौ रुपए में जितना सामान आता था, अगर 2011 में उसे खरीदने के लिए दो सौ रुपए की जरूरत पड़ती है तो इसका मतलब है बाजार में आज दुगुनी मुद्रा है। 2010में जितने रुपये बाजार में थे, 2011 में उसके दुगुने रुपये को छापा गया।
इससे यह समझने में मुश्किल हो रही है कि इससे पूंजीपति किस प्रकार लूट करते हैं। मुद्रास्फीति शब्द के संबंध में हमारी जो समझ है, वह ठीक है या नहीं उसके बारे में भी आप हमें स्पष्ट करने की कृपा करें।
धन्यवाद
आपका,
ललन सिंह, नई दिल्ली