21 जनवरी 2012 को चेन्नई के मीनमबक्कम हवाई अड्डे के कारगो दफ्तर के सामने एयर इंडिया कैजुअल वर्कर्स यूनियन (ए.आई.सी.डब्ल्यू.यू.) ने अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिये एक परामर्शक सभा की। यूनियन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने काम के बुरे हालातों और इन हाला
21 जनवरी 2012 को चेन्नई के मीनमबक्कम हवाई अड्डे के कारगो दफ्तर के सामने एयर इंडिया कैजुअल वर्कर्स यूनियन (ए.आई.सी.डब्ल्यू.यू.) ने अपने आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिये एक परामर्शक सभा की। यूनियन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने काम के बुरे हालातों और इन हालातों के प्रति प्रबंधन की उदासीनता पर गुस्सा जाहिर किया। मज़दूरों की समस्याओं का हल निकालने के लिये, प्रबंधन का ध्यानाकर्षण करने के, मज़दूरों और उनकी यूनियन द्वारा लिये कदमों के बारे में उन्होंने विस्तार में बताया। यूनियन ने अपनी काम करने की शर्तों के बारे में प्रबंधन से विविध सूचना प्राप्त करने के लिये, सूचना अधिकार कानून के तहत, जानकारी मांगी थी। परन्तु उन्हें कोई जवाब नहीं मिला है। हालांकि एयर इंडिया संगठन बतौर अब एक है, इसमें, एक ही छत के नीचे एक जैसा ही काम करने वाले, पहले के एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस के मज़दूरों के वेतन के लिये दो अलग-अलग नियमावलियां हैं। 2011 में हुये इंडियन कमर्शियल पायलट्स एसोसियेशन के आंदोलन से भी यह बात साफ तरीके से उजागर हुयी थी। अनौपचारिक मज़दूरों के संदर्भ में, पूर्व एयर इंडिया के मज़दूरों को सलाना 365 दिन काम मिलता है, जबकि पूर्व इंडियन एयरलाईंस के मज़दूरों को सिर्फ 210 दिन काम मिलता है, और इसके आधार पर उनकी एकता तोड़ी जा रही है। मज़दूरों ने अपनी समस्या के बारे में न्यायमूर्ति धर्माधिकारी समिति के सामने भी प्रतिनिधित्व किया है। इस समिति का गठन संगठन के अंदर उठी इन सब असंगतियों का समाधान निकालने के लिये किया गया था।
इसके पहले दिसम्बर 2011 के पहले सप्ताह में, ए.आई.सी.डब्ल्यू.यू के कार्यकर्ता अपनी चिंताओं और मांगों को सामने रखने के लिये कर्मचारी-संबंधी महाप्रबंधक से मिले थे। परन्तु प्रबंधन ने उनकी मांगों पर कोई कार्यवाही नहीं की। मज़दूरों पर प्रबंधन का हमला भी और तेज हो रहा है। सभी प्रस्थापित तौर-तरीकों का उल्लंघन करते हुये, प्रबंधन ने हाल में परिसर छोड़ते समय मज़दूरों के हवाई अड्डे के प्रवेशपत्र वापस लेना शुरू कर दिया है। हालांकि प्रबंधन ने सालाना 210 दिन काम देना मंजूर किया है, वास्तव में जब मज़दूर काम के लिये आते हैं उन्हें बहुत बार इस बहाने से वापस भेज दिया जाता है कि उनके लिये काम नहीं है, जबकि ठेके पर काम दिया जा रहा है। इन मुद्दों और मज़दूरों की दूसरी शिकायतों को सुनने के लिये प्रबंधन यूनियन के कार्यकर्ताओं से मिलने को भी तैयार नहीं है। एक ऐसा संगठन जो हिन्दोस्तानी लोगों से वसूले करों से बनाया गया है, वह निजी कार्पोरेशनों से भी बुरी तरह बर्ताव कर रहा है और बिल्कुल अविश्वसनीय तरीके से काम कर रहा है। इस ''सार्वजनिक क्षेत्र'' के एयर इंडिया का प्रबंधन इस संगठन को और इसके अंदर होने वाले सामान्य काम को ही तोड़-फोड़ रहा है। अलग-अलग तरीके से वे यह इसीलिये कर रहे हैं ताकि विमान चालकों, कक्ष परिचारिकों, देखभाल कर्मचारियों और अनौपचारिक मज़दूरों के मनोबल को तोड़ा जा सके। कार्यकर्ता बताते हैं कि न केवल यह मज़दूरों और कर्मचारियों के खिलाफ एक अपराध है बल्कि यह पूरे देश और अपने लोगों के प्रति एक अपराध है।
एक तरफ नागरिक विमानन मंत्रालय और प्रमुख प्रबंध संचालक (सी.एम.डी.) एयर इंडिया को लूटने और इसे दीवालिया करने के लिये ओवरटाइम काम कर रहा हैं ताकि इसका निजीकरण किया जा सके, दूसरी तरफ, प्रबंधन व मंत्रालय कह रहे हैं कि विमान कंपनी को चलाने और इसके मज़दूरों और कर्मचारियों के वेतन देने के लिये पैसे नहीं हैं! कार्यकर्ताओं ने इस बात का पर्दाफाश किया है कि कैसे प्रबंधन योजनाबध्द तरीके से एयर इंडिया को घाटे में चलाने के लिये काम करता आया है, और कैसे इसका मालमत्ता निजी कंपनियों को सौगात में दिया जा रहा है और इसकी तिजौरी लूटी जा रही है। यूनियन के नेताओं ने ध्यान दिलाया है कि उच्च प्रबंधन टाटा, जेट एयरवेज, सिंगापोर एयरलाइंस व लुफ्थांसा जैसे निजी कंपनियों के इशारे पर काम कर रहा है जिससे एयर इंडिया का निजीकरण करके सस्ते में उनके हाथों में आ सके। उन्होंने ध्यान दिलाया है कि सरकार और पूंजीपतियों की एयर इंडिया के निजीकरण की अपराधी योजना के विरोध में एयर इंडिया का पूरा श्रमिक बल एकजुट है।
अनौपचारिक मज़दूरों ने स्थायी नौकरी की और स्थायी मज़दूरों को मिलने वाले सभी अधिकारों की अपनी, लंबे अरसे से उठायी, मांगों को दोहराया। मज़दूरों ने अपने आंदोलन को और तीव्र बनाने की ठान ली है और वे 15 फरवरी को दफ्तर के फाटक के सामने प्रदर्शन करेंगे। जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती, तब तक मज़दूर आराम नहीं करेंगे।