वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अगुवाई में मंत्री समूह ने पिछले वर्ष ''एयर इंडिया की हालत को वापस मोड़ने के लिए एक योजना पेश करने'' के इरादे से एक पैनल गठित किया था। 23 जनवरी को इस पैनल ने मंत्री समूह को अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट की मुख्य बातें ये हैं कि (1) एयर इंडिया के संवर्धन को उपयुक्त स्तर तक लाने के लिए सरकार को एयर इंडिया में पर्याप्त धन डालना चाहिए और (2) एयर इंडिय
वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अगुवाई में मंत्री समूह ने पिछले वर्ष ''एयर इंडिया की हालत को वापस मोड़ने के लिए एक योजना पेश करने'' के इरादे से एक पैनल गठित किया था। 23 जनवरी को इस पैनल ने मंत्री समूह को अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट की मुख्य बातें ये हैं कि (1) एयर इंडिया के संवर्धन को उपयुक्त स्तर तक लाने के लिए सरकार को एयर इंडिया में पर्याप्त धन डालना चाहिए और (2) एयर इंडिया के शेयर को किसी रणनैतिक निजी सांझेदार को बेच देना चाहिए। ''इस समूह का यह पक्का विचार है कि जब एयर इंडिया उपयुक्त विकास दर प्राप्त कर लेता है, तब एयर इंडिया का किसी रणनैतिक सांझेदार के हाथों विनिवेश करना सोचा जा सकता है'', ऐसा हिन्दोस्तान टाईम्स, 24जनवरी, 2012की रिपोर्ट में कहा गया।
इस इरादे से सरकारी पैनल ने यह सिफारिश की है कि सरकार इस वित्तीय वर्ष (2011-12) में 6,750 करोड़ रुपये डाले और नये विमान खरीदने के लिए एयर इंडिया द्वारा लिये गये 18,929 करोड़ रुपये के उधार को चुकाये। एयर इंडिया के अनुसार इस समय उसके 50,000 करोड़ रुपये के कर्जे हैं और 20,000करोड़ रुपये के सम्मिलित नुकसान हैं। उच्च वित्त अधिकारियों और उड्डयन मंत्रालय के अधिकारियों को इस पैनल के लिए नियुक्त किया गया था और पैनल का काम था एयर इंडिया की हालत को वापस बदलने और उसकी वित्तीय स्थिति का पुन: आयोजन करने के प्रस्ताव की जांच करना और उस पर सहमति देना।
यह कदम ऐसे समय पर लिया गया जब यह सारी दुनिया में माना जाता है कि दूसरे देशों की तुलना में, हिन्दोस्तान का घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय विमान परिवहन बड़ी तेजी से बढ़ने वाला एक बाजार है। हमारे देश के विमान क्षेत्र में हिन्दोस्तानी और विदेशी पूंजीवादी हितों की लालच बहुत बढ़ गयी है। हिन्दोस्तान में काम करने वाली सभी विमान कंपनियों में से, एयर इंडिया के पास सबसे बड़े और आधुनिक विमानों का बेड़ा होगा। एयर इंडिया के पास योग्य कर्मचारियों की सबसे बड़ी संख्या है, विमान चालकों से लोडरों तक 40,000 से अधिक कर्मचारी हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिन्दोस्तान के सभी मुख्य शहरों में तथा विदेशों में भूमि तथा रियल एस्टेट के रूप में एयर इंडिया की विशाल स्थायी संपत्ति है। इस समय एयर इंडिया एक मोटी सी दुधारू गाय है जिसका सारा दूध निकाल लिया जायेगा।
एयर इंडिया के निजीकरण की योजना कोई नई बात नहीं है। 90 के दशक में, निजीकरण और उदारीकरण के जरिये भूमंडलीकरण के कार्यक्रम के अंतर्गत, पूंजीपतियों ने ''खुले आसमान की नीति'' की घोषणा की थी। उड्डयन क्षेत्र उस समय एक तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र बन गया था और बड़े पूंजीपतियों को उस क्षेत्र में मोटे मुनाफे बनाने की संभावना दिखी। समाजवाद के नेहरूवीं नमूने की वजह से हमारे देश के पूंजीपति भी उतने बड़े हो चुके थे कि वे राज्य के समर्थन के साथ उड्डयन क्षेत्र में प्रवेश करने की जुर्रत कर सकते थे। इसे ध्यान में रखते हुए, सरकार ने विभिन्न निजी विमान कंपनियों को इंडियन एयरलाइंस के साथ स्पर्धा करने की छूट दी। पहले कांग्रेस पार्टी सरकार, फिर संयुक्त मोर्चा सरकार, फिर राजग और फिर संप्रग सरकारों ने इन निजी विमान कंपनियों को तरह-तरह की सुविधाएं मुहैया करायीं और इसके बदले में इन सरकारों के मंत्रियों और अफसरों की तिजौरियां खूब भरी गईं। 2001 में राजग सरकार ने एक सिंगापुर नीत कंपनी समूह को एयर इंडिया को बेचने की घोषणा की थी, जो प्रस्ताव कामयाब नहीं हो पाया क्योंकि सिंगापुर एयरलाइंस उस प्रस्तावित सौदे से पीछे हट गया था। संप्रग सरकार उसी रास्ते पर आगे चल रही है।
1 मार्च, 2007 को, संप्रग सरकार की छत्रछाया में, इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलयन किया गया। इस विलयन की घोषणा तत्कालीन नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल पटेल ने की, जो हिन्दोस्तानी और विदेशी निजी विमान कंपनियों के साथ अपने व्यक्तिगत संबंधों के लिए मशहूर थे। (राडिया टेप से पता चला कि एयर इंडिया के अध्यक्ष बतौर श्री जाधव की नियुक्ति सरकार द्वारा 111 बोइंग विमानों की खरीदारी को सुनिश्चित करने के लिए की गई थी)।
यह विलयन बहुत नुकसानजनक साबित हुआ। विलयन के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विमान कंपनी एयर इंडिया के नुकसानों को मुनाफेदार घरेलू विमान कंपनी इंडियन एयरलाइंस पर लाद दिया गया। बोइंग कंपनी से 111 विमानों को खरीदने तथा मुनाफेदार अंतर्राष्ट्रीय उड़ान मार्गों को विदेशी विमान कंपनियों को सौंपने के विवादास्पद फैसलों की वजह से एयर इंडिया के नुकसान और बढ़ गये थे।
विलयन का मुख्य उद्देश्य था एयर इंडिया के नुकसानों पर पर्दा डालना, इंडियन एयरलाइंस को खूब लूटना और फिर इस विलयित कंपनी की विमान उद्योग के किसी हिन्दोस्तानी या विदेशी पूंजीपति के हाथों कौड़ियों के मोल पर ''रणनैतिक बिक्री'' करना।
यह योजना शायद अब तक कामयाब हो गयी होती, अगर इसके खिलाफ़ एयर इंडिया के कर्मचारी – विमान चालक, कैबिन क्रू, इंजीनियर, ग्राउंड स्टाफ, आदि बार-बार और डटकर लगातार संघर्ष नहीं कर रहे होते। एयर इंडिया के संघर्षरत कर्मचारियों ने सरकार और एयर इंडिया के प्रबंधन की निजीकरण की योजनाओं का सबके सामने पर्दाफाश किया है तथा इनका विरोध किया है। अप्रैल 2011 में एयर इंडिया के मजदूरों के सफल संघर्ष के बाद संप्रग सरकार को अपनी निजीकरण की योजना से कुछ समय के लिए पीछे हटना पड़ा था। मंत्रियों ने घोषणा कर दी कि निजीकरण करने का कोई पक्का फैसला नहीं था। एयर इंडिया के अप्रिय अध्यक्ष और एमडी को बदल दिया गया। नये तरीके अपनाये गये मगर निजीकरण करने का इरादा छोड़ा नहीं गया।
बीते लगभग दो वर्षों से, एयर इंडिया प्रबंधन और सरकार ने एयर इंडिया के मजदूरों को हड़ताल करने को मजबूर करने का तरीका अपनाया है। यह बहाना देकर कि एयर इंडिया के पास पैसा नहीं है, मजदूरों को अपने वेतनों और भत्तों से वंचित किया गया है। जिस सरकार ने वैश्विक आर्थिक संकट का ऐलान करके विभिन्न पूंजीवादी घरानों के मुनाफों को बचाने के लिए दसों-हजारों करोड़ों रुपये डाले हैं, वह एयर इंडिया के मजदूरों को उनकी जायज़ मेहनताना भी देने से इंकार कर रही है। इससे एयर इंडिया के कर्मचारियों के जीने और काम करने की हालतों पर भारी असर पड़ा है। इसी मुद्दे को लेकर इस महीने के आरंभ में कैबिन क्रू और विमान चालकों ने हड़ताल की थी। विमान चालकों और कैबिन क्रू के वेतन का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा उड़ान भत्ता है और इन कर्मचारियों को अगस्त 2011 से उड़ान भत्ता नहीं दिया गया है!
कर्मचारियों की प्रत्येक हड़ताल के बाद सरकार यह घोषणा करती है कि एक महीने का मेहनताना दिया जायेगा। विदित है कि 6 जनवरी, 2012 को एविएशन इंडस्ट्री इंप्लाइज़ गिल्ड ने हड़ताल का नोटिस जारी किया था। यह 8000 सदस्यों का यूनियन है, जिसमें ग्राउंड स्टाफ, इंजीनियर, बुकिंग ऑफिस स्टाफ और चेक-इन स्टाफ भी शामिल हैं।
मजदूरों पर एक और तरीके से हमला किया जा रहा है और वह है भूतपूर्व एयर इंडिया और भूतपूर्व इंडियन एयरलाइंस के कर्मचारियों बतौर उन्हें बांटकर रखना। विलयन के पांच साल बाद भी इन दोनों भूतपूर्व कंपनियों के मजदूरों के वेतन और काम की हालतें भिन्न हैं। विमान चालकों से लेकर, कैबिन क्रू, इंजीनियर, ग्राउंड स्टाफ और कैजुअल मजदूरों तक, एयर इंडिया प्रबंधन ने सोच-समझकर यही नीति चलायी है, ताकि मजदूरों में असुरक्षा की भावना बढ़ती रहे और एक ही प्रबंधन के लिए, समान योग्यता के साथ समान काम करने वाले मजदूरों के बीच आपसी तनाव बनी रहे।
इस मुद्दे पर मजदूरों, खासतौर पर भूतपूर्व इंडियन एयरलाइस के मजदूरों द्वारा बार-बार आंदोलन के बाद, सरकार ने विलयन तथा मजदूरों की मांगों की जांच करने के लिए जस्टिस धर्माधिकारी समिति का गठन किया। मई 2011 को इंडियन कमर्शियल पायलट्स एसोसिएशन (आईसीपीए) के तहत एयर इंडिया के विमान चालकों की हड़ताल के बाद, सरकार ने घोषणा की कि धर्माधिकारी समिति 6महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट देगी। 8महीने बीत चुके हैं पर उस समिति से कोई रिपोर्ट नहीं आयी है। इसलिए मजदूरों का गुस्सा स्वाभाविक है।
नवम्बर 2011 के आरंभ में एयर इंडिया प्रबंधन ने, मई 2011 की हड़ताल के बाद आईसीपीए के साथ किये गये समझौते के अनुसार, खरीदे गये नये बोइंग 787 ड्रीम लाइनर विमानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम की घोषणा की। प्रबंधन ने कहा कि भूतपूर्व इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के विमान चालकों की बराबर संख्या को प्रशिक्षण दिया जायेगा।
इंडियन पायलट्स गिल्ड (आईपीजी-भूतपूर्व एयर इंडिया के चालकों का यूनियन) ने इसका विरोध किया। उन्होंने हड़ताल की धमकी दी और ऐलान किया कि प्रशिक्षण के लिए चुने गये 300 विमान चालकों में से 100 चालक इस्तीफ़ा दे देंगे। उन्होंने आईपीजी और आईसीपीए से सलाह करके एयर इंडिया प्रबंधन द्वारा विमान चालकों के लिए एक सर्वव्यापक रोजगार योजना की मांग की। एयर इंडिया के प्रबंधन ने फौरन प्रशिक्षण योजना को रोक दिया।
प्रशिक्षण योजना के रोके जाने के बाद आईसीपीए ने एयर इंडिया के प्रबंधन को एक पत्र भेजा जिसमें उन्होंने धमकी दी कि 750 विमान चालक एक साथ इस्तीफ़ा देंगे और उन्होंने इसके लिए प्रबंधन से नो ओब्जेक्शन सर्टिफिकेट मांगी।
विमान चालकों के दोनों यूनियनों की शिकायतें जायज़ हैं। इसी प्रकार एयर इंडिया के सभी कर्मचारियों की मांगें भी जायज़ हैं। इन सभी कर्मचारियों को सरकार तथा एयर इंडिया प्रबंधन के दांवपेच को समझना होगा और उसके अनुसार अपनी रणनीति बनानी होगी। कर्मचारियों को अपने बीच फूट डालने के प्रबंधन के इरादों को नाकामयाब करना होगा।
सरकार एक ऐसी हालत पैदा करना चाहती है जिसमें एयर इंडिया के मजदूर (विमान चालक, कैबिन क्रू, इंजीनियर, आदि) तंग आकर एयर इंडिया को छोड़ दें, ताकि छंटनी का काम अपने आप ही हो जाये, एयर इंडिया दिवाला हो जाये और फिर उसे किसी हिन्दोस्तानी या अंतर्राष्ट्रीय निजी कंपनी के हाथों बेचने का बहाना मिल जाये। सरकार के इस उद्देश्य को नाकामयाब करना होगा। एयर इंडिया के यूनियनों का संघ, जिसे गठित किया गया है, उसे मजबूत करना सही दिशा में एक कदम होगा।