अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान पर ब्लैकमेल और प्रतिबंधों की नीति को और तेज़ी से लागू कर रहे हैं। खास तौर पर, ईरान राष्ट्र और उसके लोगों के अपना नागरिक परमाणु कार्यक्रम चलाने के अधिकार को ''मानवता के लिये खतरा'' बताकर निशाना बनाया जा रहा है।
अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान पर ब्लैकमेल और प्रतिबंधों की नीति को और तेज़ी से लागू कर रहे हैं। खास तौर पर, ईरान राष्ट्र और उसके लोगों के अपना नागरिक परमाणु कार्यक्रम चलाने के अधिकार को ''मानवता के लिये खतरा'' बताकर निशाना बनाया जा रहा है।
ईरान की सरकार ने ईरानी परमाणु वैज्ञानिक मोस्तफा अहमदी-रोशन की जनवरी 11 को की कई हत्या के लिये इस्राइल और अमरीका व ब्रिटेन को दोषी ठहराया है। मीडिया स्रोतों की रिपोर्टों से जाना जाता है कि इस्राइली मोस्साद के एजेंटों ने वैज्ञानिक की गाड़ी पर बम से हमले को आयोजित किया तथा अन्जाम दिया था, जिसकी वजह से उनकी फौरन मृत्यु हो गई थी।
तेहरान स्थित स्विस दूतावास के जरिये अमरीका को दिये गये प्रतिवाद संदेश में ईरान की सरकार ने कहा है कि ''ईरान इस्लामी गणराज्य इस अमानवीय हत्याकांड की निंदा करता है, अमरीकी सरकार से फौरन इसका कारण बताने की मांग करता है, इसके परिणाम के बारे में चेतावनी देता है और अमरीकी सरकार से मांग करता है कि वह ईरान के नागरिकों के जीवन के खिलाफ़ कोई ऐसी मानवता-विरोधी आतंकवादी हरकत करना बंद करे, जो अंतर्राष्ट्रीय अधिकारों और दायित्वों का उल्लंघन करता हो और अंतर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा हो। इसके अलावा, ईरान इस्लामी गणराज्य की सरकार को इस मुद्दे की छानबीन करने का पूरा अधिकार है''।
ब्रिटिश सरकार को संबोधित प्रतिवाद संदेश में ईरान के विदेश मंत्रालय ने 28 अक्तूबर, 2010 को ब्रिटिश खुफिया विभाग एम.आई. 6 के प्रधान, सर जॉन सॉयर्स की टिप्पणियों का ज़िक्र किया, जिनमें रिपोर्टों के अनुसार, उन्होंने कहा था कि ''परमाणु प्रसार सिर्फ परंपरागत कूटनीति से नहीं हल हो सकता। हमें खुफिया दलों की अगुवाई में कार्यवाही करनी पड़ेगी ताकि ईरान जैसे देशों के लिये परमाणु हथियारों को विकसित करना मुश्किल हो सके।'' ब्रिटिश सरकार के इस रवैये का ईरान की सरकार ने विरोध किया और ब्रिटिश राज्य को इन आतंकवादी हत्याओं के लिये दोषी ठहराया।
विदित है कि बीते दो वर्षों में ईरान के तीन वैज्ञानिकों की इसी प्रकार के आतंकवादी हमलों में हत्या की गई है।
मृत वैज्ञानिक के साथ हमदर्दी जताते हुये और साम्राज्यवादी दखलंदाजी व हुक्मशाही से मुक्त अपना नागरिक परमाणु कार्यक्रम चलाने के ईरान के अधिकार के संघर्ष के समर्थन में, पूरे देश के अनेक विश्वविद्यालयों से हज़ार से अधिक छात्र परमाणु विज्ञान व प्रौद्योगिकी का अध्ययन करने के लिये आगे आये हैं, ताकि वे अपने देश के परमाणु कार्यक्रम में अपनी सेवाओं का योगदान कर सकें।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संस्थान द्वारा नवंबर 2011 में जारी, ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर एक रिपोर्ट के पश्चात, अमरीका, ब्रिटेन और कनाडा ने ईरान के खिलाफ़ नये प्रतिबंधों की घोषणा की। यूरोपीय संघ ने ऐलान किया है कि वह जून 2012 से, ईरान के सेन्ट्रेल बैंक और ईरान के कच्चा तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगायेगा।
यह समझना जरूरी है कि यूरोपीय संघ के कई देश, जिनमें संकट ग्रस्त यूनान भी एक है, ईरान से तेल के आयात पर निर्णायक रूप से निर्भर हैं, और ईरान के साथ तेल के व्यापार के उनके लंबे अरसे से समझौते बने हुये हैं। जर्मनी और फ्रांस की प्रधानता में यूरोपीय संघ शहीद होने का नाटक कर रहे हैं, ''असूलों पर चलने'' का दिखावा कर रहे हैं, हालांकि ईरान पर लगाये गये प्रतिबंधों की वजह से पूरे यूरोप में तेल की कीमतों तथा मेहनतकश लोगों की अर्थव्यवस्था व जीवन की हालतों पर बहुत भारी असर पड़ेगा। सच तो यह है कि लिबिया पर कब्ज़ा करके फ्रांस को तेल का एक और स्रोत मिला है, जो फ्रांस, ब्रिटेन, अमरीका, आदि के नियंत्रण में है।
ईरान तेल के व्यापार पर निर्णायक रूप से निर्भर है, जैसा कि इराक और लिबिया भी हुआ करते थे। ईरान पर लगाये गये इन प्रतिबंधों का ईरान के लोगों पर कितना कठोर प्रभाव पड़ेगा, उसके बारे में न तो अमरीका कोई बात करता है, न ही ब्रिटेन या यूरोपीय संघ। वे सिर्फ अपने लिये इन महत्वपूर्ण तेल संसाधनों को हथियाने तथा चीन, हिन्दोस्तान व पूर्वी एशियाई देशों जैसे उनके संभावित प्रतिस्पर्धियों को इन तेल संसाधनों से वंचित करने के साम्राज्यवादी मंसूबों से प्रेरित हैं। हिन्दोस्तानी राज्य ने जो रवैया अपनाया है, कि वह यूरोपीय संघ या अमरीका के प्रतिबंधों को नहीं मानेगा और सिर्फ संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिबंधों को ही मानेगा, इसके पीछे यह एक वजह है। साथ ही साथ, इन सभी देशों पर प्रतिबंधों को मानने का बहुत दबाव डाला जा रहा है।
ईरान के कच्चा तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की अमरीका की धमकियों के जवाब में, ईरान के अधिकारियों ने अपनी चेतावनी को दोहराया है कि अगर अमरीका ईरान के तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है तो ईरान अपने हितों की रक्षा हेतु, होरमज़ जलसंयोजी को बंद कर देगा और ''उस रास्ते से तेल के एक भी बूंद को जाने नहीं देगा।'' होरमज़ जलसंयोजी ईरान के इलाके में है। उस इलाके के तेल पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिये ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने खाड़ी के जिन विभिन्न राज्यों का गठन किया है, उन्हें उसी रास्ते से अपने तेल का निर्यात करना पड़ता है।
होरमज़ जलसंयोजी तेल के संचार के लिये दुनिया के सबसे अहम रास्तों में से एक है। उसे रोकने के ईरान के किसी भी प्रयास के खिलाफ़, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने ईरान पर जंग भी छेड़ने की धमकी दी है।
पी 5+1 देशों के समूह, जिसके सदस्य हैं रूस, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और अमरीका, उसने भी ईरान पर प्रतिबंध लगाने के मामले पर कई बार चर्चा की है। हिन्दोस्तान जैसे विभिन्न देशों को ईरान के साथ व्यापार और दूसरे आर्थिक संबंध बनाने से रोकने की कोशिशें की जा रही हैं।
ईरान के खिलाफ़ इस हमलावर रुख़ और इन हमलों के चलते, अमरीकी साम्राज्यवादी इस्राइल को पूरा समर्थन और प्रश्रय देते रहते हैं तथा उसे ईरान के खिलाफ़ उकसाते रहते हैं। हाल के समाचार के अनुसार, इस्राइल ने अमरीका की अनुमति के बगैर ही, ईरान पर हमला करने की धमकी दी है।
ईरान के अनेक देशों, जैसे कि तुर्की, इक्वाडोर, लातिनी अमरीकी देशों वेनेजुएला, निकारागुआ और क्यूबा, आदि के साथ, पारस्परिक हित के आधार पर, कूटनीनिक, आर्थिक और अन्य संबंध है। मध्य पूर्व इलाके को परमाणु अस्त्र मुक्त क्षेत्र बनाने के लिये प्रयास कर रहे देशों में ईरान की अगुवा भूमिका है।
ईरान एक प्राचीन सभ्यता वाला देश है, जिसके लोग देशभक्त हैं और अपने देश पर गर्व करते हैं। ईरान अपनी संप्रभुता की हिफ़ाजत में तथा किसी भी साम्राज्यवादी दखलंदाजी या हुक्मशाही से मुक्त, अपनी आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को चलाने के अपने अधिकार के लिये अडिग रवैया अपनाता रहा है। इसीलिये वह अमरीका और दूसरी साम्राज्यवादी ताकतों के गले में कांटा बना हुआ है। अमरीका की अगुवाई में साम्राज्यवादियों ने ईरान को क्रूर ब्लैकमेल और दबाव तथा कठोर प्रतिबंधों का निशाना बना रखा है, जिससे ईरान की जनता के जीवन पर काफी खतरनाक असर पड़ सकता है। परन्तु ईरान की सरकार और लोग इस साम्राज्यवादी दबाव तले झुक नहीं रहे हैं। हिन्दोस्तान के मजदूर वर्ग और मेहनतकश ईरान की जनता का पूरा समर्थन करते हैं और ईरान के खिलाफ़ अमरीका नीत साम्राज्यवादी ब्लैकमेल और प्रतिबंधों की कड़ी निंदा करते हैं।
ईरानी वैज्ञानिक की हत्या
ईरानी वैज्ञानिक की हत्या इस्राइल ने करवायी।