ऑल इंडिया रेलवे इम्प्लॉईज़ कन्फेडरेशन (ए.आई.आर.इ.सी.) के मुंबई विभाग के अध्यक्ष और वेस्टर्न रेलवे मोटरमेन्स एसोसियेशन के प्रतिनिधि, कॉमरेड बी.एस. रथ से साक्षात्कार

म.ए.ल. : 1991 में तब के वित्तमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गयी निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति से पिछले बीस वर्षों में हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है?

म.ए.ल. : 1991 में तब के वित्तमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गयी निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति से पिछले बीस वर्षों में हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है?

बी.एस.रथ. : इस अवधि में रुपये का तेजी से अवमूल्यन हुआ है। 1991 में 15 रुपये का एक डॉलर होता था जो अब 50 रुपये का हो गया है। इसका मतलब है कि रुपये के मूल्य में 300 प्रतिशत से भी ज्यादा की गिरावट हुयी है। अर्थात विश्व बाजारों में हमारी खरीदने की शक्ति में गिरावट आई है। हमारी आयातित वस्तुएं बहुत महंगी हुयी हैं। तकनीकी महंगी हुयी है। जब से हिन्दोस्तानी बाजार को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये खोल दिया गया है, चीन की सस्ती वस्तुओं से हमारे छोटे और मध्यम स्तर के उद्योग बंद हो रहे हैं, जिससे बहुत से लोगों की नौकरियां जा रही हैं। बेरोज़गारी बढ़ गयी है।

भ्रष्टाचार बढ़ गया है। नौकरी पाने के लिये आपको पैसा देना पड़ता है। मज़दूर वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग पर इन नीतियों से बहुत खराब असर पड़ा है।

जब शुरू में इस नीति की घोषणा की गयी थी तब हमें बताया गया था कि विदेशी तकनीकें आयेंगी और अपने उद्योग आधुनिक हो जायेंगे। पर असलियत में क्या हुआ है?

पेय पदार्थों को ही देखिये। पहले बहुत से हिन्दोस्तानी इनके उत्पादन में शामिल थे। पेप्सी और कोक के आने से या तो वे खरीद लिये गये हैं या बंद हो गये हैं। 1993 का हर्षद मेहता घोटाला कैसे हुआ। मनमोहन सिंह, एक अर्थशास्त्री, रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर, उन्हें वित्तमंत्री बनाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सीधे लाया गया था; उन्हें ही हमें यह बताना पड़ेगा कि उन्होंने ऐसा क्यों होने दिया?

पहले, पोस्ट ऑफिस बचत योजना जैसी कम से कम छ: आयकर बचत योजनायें थीं, जिनमें मज़दूर वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के लोग अपनी बचत जमा करते थे। परन्तु ये सब योजनायें गायब हो गयी हैं और लोगों को शेयर और म्यूच्यूअल फंडों में पैसा डालना पड़ रहा है, जिससे सीधे कॉर्पोरेट क्षेत्र को फायदा होता है।

जब 1999 में राजग सरकार सत्ता में आयी, तब राष्ट्रीय टेलीकॉम कंपनियों, एम.टी.एन.एल. और बी.एस.एन.एल. ने अपने रेट बढ़ा दिये ताकि रिलायंस और टाटा जैसी निजी टेलीकॉम कंपनियों को फायदा हो जो बाजार में उतर रहे थे। उस समय प्रमोद महाजन टेलीकॉम मंत्री थे। जबकि पहले 250 मुफ्त की कॉल मिलती थी, कॉल रेट बढ़ाते समय इसको घटा कर 150 कर दिया गया।

दोनों कांग्रेस पार्टी और भाजपा सरकारें एक जैसी नीति चलाती आयी हैं। इनसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों और हिन्दोस्तानी पूंजीपतियों को फायदा हुआ है। उन्होंने अपने कारोबार को बढ़ाया है और बहुत से हिन्दोस्तानी पूंजीपति बहुराष्ट्रीय बन गये हैं।

म.ए.ल. : निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण का रेलवे पर कैसा प्रभाव पड़ा है?

बी.एस.रथ. : इस अवधि में रेलवे में कोई नयी भर्ती नहीं हुई है। परिणामस्वरूप मौजूदा कर्मचारियों पर कार्यभार बढ़ गया है। ठेका मज़दूरों की संख्या बढ़ी है। जिन अफ़सरों का काम यह सुनिश्चित करना है कि ठेका मज़दूरों को कम से कम न्यूनतम वेतन मिले, उनकी ठेकेदारों के साथ सांठगांठ है।

निजीकरण से आम जनता को मिलने वाली सुविधाओं में कोई बढ़ोतरी नहीं हुयी है। शयनयान में मिलने वाले बिस्तर का उदाहरण लीजिये। बिस्तर इतने निम्न स्तर का हो गया था, फटी और गंदी चादरें, इत्यादि, कि ''महत्वपूर्ण मार्गों'' पर यह सेवा रेलवे को अपने हाथ में लेनी पड़ी। निजीकरण से भोजन का स्तर भी गिरा है।

आधुनिकीकरण के नाम पर उपकरणों को अत्याधिक ज्यादा दाम पर खरीदा जाता है। उदाहरण के लिये, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगरों में चलने वाली मेट्रो रेलगाड़ियों में ऊर्जा मीटरों को लगाया गया है। इनकी बिल्कुल जरूरत नहीं थी क्योंकि नयी रेलगाड़ियों में लगी कम्प्यूटर प्रणाली से यह सूचना अपने आप मिलती है।

अनुमान लगाईये कि रेलवे को इससे कितना नुकसान हुआ है। प्रत्येक ऊर्जा मीटर की कीमत 2 लाख रुपये है। हर रेलगाड़ी के लिये 6 मीटर की लागत 12 लाख रुपये होती है। हर रेलवे में करीब 100 रेलगाड़ियां औसत मानी जा सकती हैं। मुंबई में मध्य और पश्चिम रेलवे में ही 25 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। चारों महानगरों को मिला कर, कुल नुकसान 60 करोड़ से भी ज्यादा होगा!

जबकि यात्री भाड़े पिछले कुछ वर्षों में नहीं बढ़ाये गये हैं, रेलवे ने टिकट आरक्षण और टिकट रद्द करने में नये तरीके से ज्यादा पैसे वसूलने शुरू किये हैं। रेलगाड़ियों के वर्गीकरण को बदल करके ज्यादा पैसा वसूला जाता है।

ए.आई.आर.ई.सी. में हमने एक सर्व हिन्द स्तर पर रेलवे कर्मचारियों का महासंघ बनाने की कोशिश की है। इस महासंघ में रेलवे के चालक (जिनका प्रतिनिधित्व ए.आई.एल.आर.एस.ए. करता है), गार्ड (जिनका प्रतिनिधित्व ऑल इंडिया गार्ड्स कौंसिल करता है), 

स्टेशन मास्टर (जिनका प्रतिनिधित्व ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स ऐसोसियेशन करता है), सिग्नल एवं दूरसंचार कर्मचारी आदि अलग-अलग क्षेत्र के कर्मचारियों को शामिल किया जायेगा। हम कोशिश कर रहे हैं कि सभी रेलवे कर्मचारियों की एकता बने चाहे वे किसी भी पार्टी से क्यों न जुड़े हों। रेलवे सहित आज मज़दूर वर्ग अलग-अलग यूनियनों में बंटा है जिनका नियंत्रण राजनीतिक पार्टियां करती हैं। इससे मज़दूर वर्ग की एकता पर भारी चोट पहुंची है जैसा कि रेलवे में भी हुआ है। ए.आई.आर.ई.सी. में हम इस विभाजन पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं।

म.ए.ल. : निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों का विरोध करने के लिये मज़दूर वर्ग को क्या करना चाहिये?

बी.एस.रथ. : सरकार ने बहुत सारी विकास की परियोजनायें घोषित की हैं। बहुत जगह लोग इनका विरोध कर रहे हैं। किसी भी परियोजना को शुरू करने के पहले इन परियोजनाओं के बारे में सभी प्रभावित लोगों के साथ पूरी चर्चा होना चाहिये कि इनसे क्या लाभ और हानियां होंगी। परियोजना को लागू करना उसके बाद ही होना चाहिये।

एक गाना गाने से कोई देश प्रेमी नहीं बन जाता है। सिर्फ बलिदान से ही कोई देश प्रेमी बनता है।

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