आर्थिक सुधार कार्यक्रम पर मजदूर-मेहनतकशों के विचार

मजदूर वर्ग और मेहनतकशों की हिमायत करने वाले अखबार और संगठन बतौर, हम मेहनतकशों के नेताओं से यह सवाल कर रहे हैं कि 20 वर्ष पहले शुरू किये गये सुधारों के परिणामों के बारे में हिन्दोस्तान के मेहनतकशों का क्या विचार है। क्या उन सुधारों से मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदाय को फायदा हुआ है या नुकसान?

मजदूर वर्ग और मेहनतकशों की हिमायत करने वाले अखबार और संगठन बतौर, हम मेहनतकशों के नेताओं से यह सवाल कर रहे हैं कि 20 वर्ष पहले शुरू किये गये सुधारों के परिणामों के बारे में हिन्दोस्तान के मेहनतकशों का क्या विचार है। क्या उन सुधारों से मजदूर वर्ग और मेहनतकश जनसमुदाय को फायदा हुआ है या नुकसान? 16-31 अक्तूबर, 2011 के अंक में हमने हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के महासचिव, कामरेड लाल सिंह से साक्षात्कार के साथ इस श्रृंखला की शुरुआत की थी। पिछले अंकों में हमने अर्थव्यवस्था के बैंक, पोर्ट, रेल चालकों, डाक कर्मचारी यूनियन नेताओं, बीमा क्षेत्र तथा मेहनतकशों के विभिन्न संगठनों के नेताओं के साक्षात्कार प्रकाशित किये थे। इस अंक में अर्थव्यवस्था के कुछ और क्षेत्रों के मजदूर नेताओं से साक्षात्कार प्रकाशित कर रहे हैं।

एयर इंडिया एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स एसोसियेशन के अध्यक्ष डॉ. गणेश सबनिस के साथ साक्षात्कार

म.ए.ल. : 1991 में तब के वित्तामंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गयी निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीति से पिछले बीस वर्षों में हिन्दोस्तानी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा है?

जी.एस. : मालिकों को फायदा हुआ है, मेहनतकश लोगों को नहीं। उदाहरण के लिये एयर इंडिया में कुल मिलाकर 40,000 कर्मचारियों में से 10,000 को ठेके पर रखा है। पहले ठेके पर मज़दूर सिर्फ 90 दिन के लिये नौकरी पा सकते थे। अत: सरकार उनको 89 दिन के लिये नियुक्त करती थी और इसके बाद उनकी नौकरी में कुछ दिन की छुट्टी देकर उनकी पुन: नियुक्ति करती थी। 1996-2000 में, ऐसे ''ठेका'' मज़दूरों ने जो एयर इंडिया में दशकों से काम कर रहे थे, न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। एक ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने इन मज़दूरों को स्थायी बनाने का निर्देश दिया। पर अब तो हर जगह मज़दूरों से ठेके पर काम कराया जा रहा है।

ठेका पध्दति के जरिये मज़दूरों को बहुत कम वेतन पर और बिना कोई भत्ता दिये काम पर रखा जा सकता है। मेरी पत्नी एक सरकारी इंजीनियरिंग महाविद्यालय में काम करती है। वहां पी.एच.डी. डिग्री वालों को भी मात्र 4000 रु. प्रति माह पर ठेके पर रखा जाता है।

अमीर और अमीर हो रहे हैं तथा गरीब और गरीब। सकल घरेलू उत्पाद बढ़ रहा है परन्तु न जाने कितने किसान आत्महत्यायें कर रहे हैं। खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान चूम रही हैं और मुद्रास्फीति काबू के बाहर है। चूंकि मेहनतकश लोग खाद्य पदार्थों को खरीद नहीं पा रहे हैं, सरकार को खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाना पड़ा है, नहीं तो भुखमरी बहुत व्यापक हो जायेगी।

अधिकांश मेहनतकश लोगों की परिस्थिति बेहतर नहीं हुयी है। अपनी यातायात व्यवस्था को ही देखिये। अपनी रेलगाड़ियों में इतनी भीड़ होती है कि रोजमर्रा इनमें जाने वालों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है। सभी क्षेत्रों में ऐसी ही बदहाली है। सरकार खुदरे व्यापार में प्रत्यक्ष पूंजी निवेश (एफ.डी.आई.) को लाना चाहती है। बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां बड़े-बड़े मॉल बनायेंगी। शुरुआत में वे किसानों से अच्छी कीमत पर उत्पाद खरीदेंगी। पर एक बार जब उनके पैर जम जायेंगे तब वे दुनिया के किसी भी कोने से सबसे सस्ता माल खरीदेंगी। तब हिन्दोस्तान के किसानों का क्या होगा?

म.ए.ल. : निजीकरण, उदारीकरण और वैश्वीकरण का एयर इंडिया पर कैसा प्रभाव पड़ा है?

जी.एस. : जैसा कि आप जानते हैं, सरकार ने दोनों राष्ट्रीय हवाई कंपनियों, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस का विलय कर दिया है। विलयन के बाद सालाना आय 13,000 करोड़ रु. हो गयी है जबकि इसके पहले वह 17,000 करोड रु. होती थी। विलयन से एयर इंडिया और इंडियन एयरलाईंस, दोनों की बर्बादी हुयी है। इसके लिये सुव्यवस्थित ढंग से योजना नहीं बनायी गयी थी। विलयन के फैसले में कोई दूरदर्शिता नहीं है। इसको सफल बनाने के लिये आधार कार्य नहीं किया गया था। हवाई मार्गों की ठीक से योजना नहीं बनाई गयी थी। कुछ हवाई जहाज ऐसे मार्गों पर चलाये जा रहे हैं जिसके लिये उनमें क्षमता नहीं है। दोनों प्रबंधनों में आपस बीच बहुत विवाद है।

सरकार ने एयर इंडिया के पुनरुत्थान के लिये एस.बी.आई. केप के साथ डिलोयट नामक एक बहुराष्ट्रीय कंपनी को नियुक्त किया है। इनकी सिफारिश है कि ज़मीनी और इंजीनियरिंग सेवाओं को निजी कंपनियों के हाथ में सौंप देना चाहिये।

अब तक कोचीन, बेंगलूरू, दिल्ली, हैदराबाद की ज़मीनी सेवाओं का चयन करके अलग कर दिया गया है। एक नयी कंपनी, एयर इंडिया ग्राऊंड हेंडलिंग कंपनी व सिंगापोर एयर ट्रांसपोर्ट सर्विसेज़ (एस.ए.टी.एस.) को मिलाकर एक नयी कंपनी का निर्माण किया गया है।

पहले ज़मीनी सेवा विभाग दूसरी विमान सेवाओं से आय प्राप्त करता था और साथ ही एयर इंडिया को मुफ्त सेवा प्रदान करता था। यह एक मुनाफेदार विभाग था। चुनिंदा शहरों में इसका निजीकरण सबसे पहले किया गया। एयर इंडिया-एस.ए.टी.एस. अब एयर इंडिया से पैसे वसूलता है और इसकी आय का 50प्रतिशत एस.ए.टी.एस. को जाता है।

ए.आई.-एस.ए.टी.एस. को अलग करने का काम श्री प्रफुल्ल पटेल ने किया था। श्री जादव से पहले वाले प्रबंध-निदेशक, श्री राघव मेनन को सौदे पर हस्ताक्षर करने के आदेश दिये गये थे। परन्तु उन्हें यह मंजूर नहीं था, और फिर उन्हें हटा कर जादव को पद पर लाया गया था।

अब उनकी कोशिश एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड (ए.आई.ई.एस.एल.) बनाने की है। तीन साल पहले इसे एक अलग कंपनी बतौर पंजीकृत किया गया था। एयर इंडिया से सारे इंजीनियरिंग मालमत्तो को इसके हाथ हस्तांतरित किया जायेगा। तीन साल के लिये वेतन एयर इंडिया द्वारा दिया जायेगा। उनका दावा है कि धीरे-धीरे, यह नई कंपनी मुनाफा बनाने लगेगी और विदेशी हवाई जहाजों को सेवा देगी। वर्तमान में इंजीनियरिंग विभाग सिर्फ एयर इंडिया के हवाई जहाजों को ही सेवा प्रदान करता है।

विदेशी हवाई जहाजों को सेवा प्रदान करने के लिये यूरोपीयन एवीएशन सेफ्टी एजेंसी (ई.ए.एस.ए.) और अमरीका की फेडरल एवीएशन अथॉरिटी (डी.जी.सी.ए.) के प्रमाणीकरण की आवश्यकता है। वर्तमान में हम डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डी.जी.सी.ए.) द्वारा स्थापित मानकों का अनुसरण करते आये हैं। इन संस्थाओं से प्रमाणीकरण के लिये हमें अपनी आधारभूत सुविधाओं में सुधार करना होगा। हमें अपने सभी हेंगरों को पूरी तरह डस्टप्रूफ बनाना होगा और नयी सुविधायें तैयार करनी होंगी। हमारे पास अभी 31 हेंगर हैं पर उनमें एक भी डस्टप्रूफ हेंगर नहीं है। इनको डस्ट प्रुफ बनाने के लिये बहुत बड़ा खर्चा करना पड़ेगा। ये पैसा कहां से आयेगा?

सरकार ने नागपुर में एक उच्चतम तकनीक की विमान मरम्मत की सुविधा स्थापित करने के लिये बोईंग कंपनी के साथ एक समझौता किया है। ऐसा इसीलिये किया गया है क्योंकि नागपुर श्री प्रफुल्ल पटेल का मतदान क्षेत्र है। नागपुर में बड़े विमानों के अवतरण की  सुविधा नहीं है। मुंबई से विमान के इंजन को मरम्मत के लिये नागपुर ले जाना असंभव सा ही है। यह सब देखकर बाद में बोईंग ने समझौता खारिज कर दिया।

इंजीनियरिंग सेवाओं को अलग करने के लिये एक कारण यह दिया गया है कि वेतन का खर्चा बहुत ज्यादा है जिसके कारण एयर इंडिया घाटे में है। परन्तु सच्चाई तो यह है कि एयर इंडिया के इंजीनियरों को निजी क्षेत्र की और खास तौर पर अंतर्राष्ट्रीय हवाई जहाज कंपनियों के मुकाबले बहुत कम वेतन मिलता है। नयी कंपनी में वेतन और भी कम किया जायेगा। अत: एक ही काम के लिये दो तरह के कर्मचारी होंगे – एक ठेके पर काम करेंगे और दूसरे तथाकथित ''स्थायी'' होंगे। इन दोनों तरह के कर्मचारियों में अनबन  होगी। एयर इंडिया में इंजीनियर बतौर काम करने के लिये एक लाईसेंस की जरूरत होती है। इसे प्राप्त करने के लिये कई वर्षों के प्रशिक्षण की जरूरत होती है। आधुनिक हवाई जहाजों की मरम्मत और देखभाल के प्रशिक्षण के लिये सरकार हर इंजीनियर पर 10 लाख रु. से भी अधिक खर्च करती है। हमें एयर इंडिया के साथ एक बंधपत्र पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं कि हम कम से कम फलां वर्षों के लिये यह काम करेंगे। एक बार कोई ठेके पर नियुक्त किया जायेगा तो वह सरकारी खर्चे पर प्रशिक्षण लेकर निजी कंपनियों में नौकरी करना पसंद करेगा।

अब सब तरह के विमानों की देखभाल, मरम्मत और पूरी जांच के साथ मरम्मत (एम.आर.ओ.) करने के लिये ए.आई.ई.एस.एल. को बनाया जा रहा है। पर इसे सफल बनाने के लिये कोई साफ दूरदर्शी नज़रिया नहीं है। हमने एयर इंडिया प्रबंधन से पूछा है कि अगर एम.आर. ओ. फायदेमंद धंधा हो सकता था तो जेट एयरवेज और किंगफिशर आदि ने अपने एम.आर.ओ. धंधे क्यों नहीं शुरू किये हैं?

30,000 स्थायी कर्मचारियों में से सरकार 23,000 को ज़मीनी सेवाओं तथा देखभाल करने वाली अलग-अलग कंपनियों में करना चाहती है। एयर इंडिया के पास सिर्फ 7,000 कर्मचारी बचेंगे, यानि कि विमान चालक और परिचारक। पहले से ही उन्होंने परिचारकों को ठेके पर लेना शुरू कर दिया है।

वे एयर इंडिया की जमीन को बेचना चाहते हैं जो मुंबई में ही करीब 300एकड़ है और बहुत सी भूमि-भवन संपदा है। अंत में वे एयर इंडिया को बीमार बता कर उसे बेच देंगे।

एयर इंडिया के प्रबंधन ने ऐसी नीतियां अपनायी हैं जो सीधे तौर पर हिन्दोस्तानी और विदेशी निजी विमान कंपनियों के हित में हैं। उदाहरण के लिये, एयर इंडिया और दूसरी विमान कंपनियों के बीच द्विपक्षीय समझौते हैं जिसके अनुसार किसी भी हवाई मार्ग पर कितने यात्री दोनों कंपनियां ले जा सकती हैं पहले से ही निश्चित किया गया है। परन्तु इस बहाने कि एयर इंडिया के पास पर्याप्त हवाई जहाज नहीं हैं, एयर इंडिया का एक हिस्सा हिन्दोस्तानी और विदेशी निजी विमान कंपनियों को दे दिया गया है।

इसके साथ ही लाभकारी मार्ग और समय निजी विमान कंपनियों को दिये गये हैं। उदाहरण के लिये, मुंबई से दिल्ली के मार्ग पर प्रात: 7 से 8 बजे की उड़ानें सबसे ज्यादा मांग में रहती हैं। ये समय निजी विमान कंपनियों को दिया गया है और एयर इंडिया के पास प्रात: 4 से 5 बजे के समय की उड़ानें हैं जो रोज़ाना खाली जाती हैं!

अगस्त 2011 से एयर इंडिया के कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं दिया गया है। हमें सिर्फ 33 प्रतिशत वेतन दिया जा रहा है जो हमारा मूल वेतन है। इसके अतिरिक्त का 67 प्रतिशत वेतन, जिसमें भत्तो और हकदारी होती है, वह नहीं दिया जा रहा है। अक्टूबर से हमें पूरा मूल वेतन भी नहीं दिया जा रहा है। इसका मतलब है कि पिछले दो महीनों से हम काम पर हैं और अपने परिवार चला रहे हैं परन्तु हमें एक पैसा भी नहीं मिला है! हमें बताया जा रहा है कि एयर इंडिया की जो भी कमाई है उसमें से पहले तेल कंपनियों को ईंधन का पैसा और बैंकों के उधार पर ब्याज चुकाया जायेगा। इसके बाद हमारे वेतन के लिये कुछ बचता ही नहीं है। हम बहुत धैर्य रखते आये हैं पर अब हमारी सहनशीलता की सीमा आ गयी है।

बिना वेतन के काम करने के और पहले की वित्तीय जिम्मेदारियों के मानसिक तनाव की वजह से इंजीनियरों से गलतियों की संख्या बढ़ रही हैं। फलस्वरूप उन्हें अनुशासन संबंधी कार्यवाइयों का सामना करना पड़ रहा है। विमान कंपनी की सुरक्षा को भी इससे  ख़तरा है।

मैं मज़दूर एकता लहर से अनुरोध करता हूं कि एयर इंडिया के कर्मचारियों की परिस्थिति की सच्चाई को सामने लाये और प्रबंधन की गलत नीतियों का पर्दाफाश करे।

म.ए.ल. : आपके समय के लिये, आपको धन्यवाद। हमने एयर इंडिया के कर्मचारियों के संघर्ष का सदैव समर्थन किया है और उनकी परिस्थिति को सबके सामने लाने के लिये लेख छापते आये हैं। हम ऐसा ही भविष्य में करते रहेंगे।

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