23-25 नवंबर, 2011 के दौरान पश्चिम रेलवे के मोटरमैन ने, वेस्टर्न रेलवे मोटरमैंस एसोसिएशन के झंडे तले संगठित होकर, हड़ताल की। इसकी वजह से ट्रेनों की सेवा अस्त-व्यस्त हो गयी थी। किसी प्लेटफार्म में सिग्नल पार करने के लिये एक मोटरमैन को निलंबित कर दिया गया था,इन फैसले के खिलाफ़ यह हड़ताल की गयी थी।
23-25 नवंबर, 2011 के दौरान पश्चिम रेलवे के मोटरमैन ने, वेस्टर्न रेलवे मोटरमैंस एसोसिएशन के झंडे तले संगठित होकर, हड़ताल की। इसकी वजह से ट्रेनों की सेवा अस्त-व्यस्त हो गयी थी। किसी प्लेटफार्म में सिग्नल पार करने के लिये एक मोटरमैन को निलंबित कर दिया गया था,इन फैसले के खिलाफ़ यह हड़ताल की गयी थी।
ट्रेन सेवाओं के अस्त-व्यस्त हो जाने के कारण, अधिकारियों की मजबूरन मोटरमैन और उनके संगठन को वार्ता के लिये बुलाना पड़ा। जब उन्हें यह आश्वासन दिया गया कि उनकी मांगें सुनी जायेंगी, तब मोटरमैनों ने अपनी हड़ताल रोकी।
यह विदित है कि फरवरी 2006 में रेलवे प्रबंधन ने मौजूदे नियमों का संशोधन किया था और संशोधन स्लिप नं. 203 लागू कर दिया था, जिसके तहत प्लेटफार्म में सिग्नल पर ध्यान देना सिर्फ मोटरमैन की ही जिम्मेदारी बन गई। इस संशोधन से पूर्व, यह मोटरमैन और गार्ड, दोनों की मिली-जुली जिम्मेदारी थी।
इस संशोधन के बाद, 4मोटरमैन को निलंबित किया गया है और पांचवे को, सबसे हाल में, 23 नवंबर, 2011 को निलंबित किया गया। अगर कोई मोटरमैन सिग्नल पार करता है तो उसे फौरन नौकरी से निलंबित कर दिया जाता है।
मोटरमैन ने काफी लंबे अरसे से यह मांग की है कि उन्हें एक सहायक मोटरमैन साथ में दिया जाये। चर्चगेट से विरार तक सफर में मोटरमैन को 125 सिग्नलों पर ध्यान देना पड़ता है। पूरे दिन में उसे 400-500 सिग्नलों पर ध्यान देना पड़ता है। इसके अलावा, उसे पटरियों पर भी ध्यान देना पड़ता है, क्योंकि लोग अक्सर पटरियों को पार करते हैं। इन हालतों में, मोटरमैन पर और काम का बोझ डालना नाजायज़ है। मजदूर एकता लहर ने कई बार भारतीय रेल के मोटरमैनों और इंजन चालकों की अति तनावपूर्ण काम की हालतों के बारे में लिखा है।
यह याद रखा जाये कि 20 वर्ष पहले भारतीय रेल 20 लाख लोगों को रोज़गार देता था। बीते 20 वर्षों में यह संख्या घटकर 13 लाख हो गयी है। चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या आधी कर दी गयी है। तीसरी श्रेणी के कर्मचारियों (जिनमें मोटरमैन और इंजन चालक शामिल हैं) की संख्या नहीं बदलती है, जबकि अफसरों की संख्या दुगुनी हो गयी है। टे्रनों की संख्या भी कई गुना बढ़ गई है।
यह रेलवे प्रबंधन की मजदूर विरोधी नीति का सीधा परिणाम है। मजदूर एकता लहर भारतीय रेल के मोटरमैन और इंजन चालकों की जायज़ मांगों का पूरा समर्थन करती है।