दिल्ली में प्रथम मजदूर वर्ग गोष्ठी में गंभीर चर्चा हुई :

आगे का रास्ता : एक लक्ष्य, एक कार्यक्रम, राजनीतिक सत्ता के लिये!

एक महत्वपूर्ण और नई दिशा दिखाने वाली दो-दिवसीय गोष्ठी दिल्ली में 23-24 दिसंबर, 2011 को लोक आवाज़ पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रिब्यूटर्स द्वारा आयोजित की गई थी। कम्युनिस्ट आन्दोलन की विभिन्न धाराओं और पार्टियों से कार्यकर्ताओं व संगठनकर्ताओं ने इस गोष्ठी में भाग लिया।

आगे का रास्ता : एक लक्ष्य, एक कार्यक्रम, राजनीतिक सत्ता के लिये!

एक महत्वपूर्ण और नई दिशा दिखाने वाली दो-दिवसीय गोष्ठी दिल्ली में 23-24 दिसंबर, 2011 को लोक आवाज़ पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रिब्यूटर्स द्वारा आयोजित की गई थी। कम्युनिस्ट आन्दोलन की विभिन्न धाराओं और पार्टियों से कार्यकर्ताओं व संगठनकर्ताओं ने इस गोष्ठी में भाग लिया।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के महासचिव, कामरेड लाल सिंह ने चर्चा का प्रारंभ करते हुये, पार्टी की केन्द्रीय समिति की ओर से एक भाषण दिया। उन्होंने मजदूर वर्ग को शासक वर्ग बनने के लिये तैयार करने के लक्ष्य के इर्द-गिर्द कम्युनिस्टों के एकजुट होने की सख्त जरूरत पर जोर दिया।

दो दिनों के दौरान 50 अलग-अलग सहभागियों ने अपनी बातें रखी। चर्चा कार्यदिशा पर केन्द्रित थी। कम्युनिज्म के नाम पर विभिन्न पार्टियों द्वारा बताये गये भटकाववादी रास्तों से क्रान्ति के रास्ते की भिन्नता को समझा गया।

गोष्ठी के दौरान सक्रियता से जिन मुद्दों पर चर्चा की गई, उनमें कुछ मुख्य मुद्दे इस प्रकार थे :

  • पूंजीवाद का विश्व स्तरीय संकट यह दिखाता है कि मजदूर वर्ग को अपने हाथ में राज्य सत्ता लेने और समाजवाद का रास्ता खोलने के लिये संगठित होने की सख्त जरूरत है।
  • हिन्दोस्तानी मजदूर वर्ग में शासक वर्ग बनने की क्षमता है, अगर कम्युनिस्ट अपनी सही भूमिका निभायें और मजदूर वर्ग की उसकी असफलता के लिये दोषी न ठहरायें।
  • मजदूर वर्ग पूंजीपति वर्ग के किसी भी तबके के साथ सत्ता का बंटवारा नहीं कर सकता और न ही उसे करना चाहिये। पूंजीवाद और समाजवाद के बीच कोई मध्य मार्ग या मध्य स्तर नहीं हो सकता।
  • वर्तमान संसदीय लोकतंत्र और हिन्दोस्तानी संघ मजदूर वर्ग के लिये अपनी सत्ता चलाने के साधन नहीं बन सकते। हमें श्रमजीवी लोकतंत्र की व्यवस्था के लिये संघर्ष करना चाहिये और उसकी रचना करनी चाहिये, जिसमें संप्रभुता लोगों के हाथों में हो।
  • भाजपा के साम्प्रदायिक खतरे से राज्य के धर्मनिरपेक्ष ढांचे की हिफाज़त करने की कार्यदिशा से दो दशकों तक मजदूर वर्ग को अपने लक्ष्य से गुमराह किया गया है।

गोष्ठी में शुरू से अंत तक सक्रिय व सजीव चर्चा का वातावरण बना रहा। क्रान्तिकारी कार्यदिशा के इर्द-गिर्द सभी कम्युनिस्टों को एकजुट करने की इच्छा बहुत स्पष्ट दिख रही थी। गुटवाद की भावना, जिसके चलते किसी एक पार्टी के कार्यकर्ता किसी दूसरी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ राजनीतिक विषयों पर चर्चा नहीं करते हैं, इससे मूल रूप से नाता तोड़ा गया।

किसी व्यक्ति या पार्टी को बदनाम नहीं किया गया। क्रान्तिकारी श्रमजीवी दृष्टिकोण की हिफ़ाज़त की गई। ठोस तर्कों के आधार पर, खुद को कम्युनिस्ट कहलाने वाले विभिन्न गलत व खतरनाक विचारों की आलोचना की गई।

गोष्ठी के अंत में जुझारू भावनाओं के साथ, सामूहिक तौर पर यह फैसला लिया गया कि आने वाले समय में देश के अलग-अलग स्थानों पर ऐसी गोष्ठियां आयोजित की जायेंगी, ताकि इस ऐतिहासिक घटना से उत्पन्न हुई ऊर्जा एक इतनी विशाल लहर में बदल जाये जिससे कोई हिन्दोस्तानी कम्युनिस्ट दूर न रह सके और कोई राजनीतिक पार्टी जिसकी उपेक्षा न कर सके।

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