मणिपुर में परिचर्चा

कामरेड इराबोत की मिसाल आज हमारे लिए क्या माइना रखता है?

इम्फाल और आसपास के जिलों में हर 30 सितम्बर को, मणिपुर के प्रसिध्द कम्युनिस्ट नेता कामरेड इराबोत की यादगार में अनेक सभायें आयोजित करना प्रथागत हो गया है। इस साल के कार्यक्रमों में कामरेड इराबोत की मिसाल आज हमारे लिये क्या माइना रखता है – इस पर बहुत ही जीवंत वाद-विवाद हुआ। नीचे हम थूबाल जिले में काक्छिंग खुनो में हुई एक बड़ी स

कामरेड इराबोत की मिसाल आज हमारे लिए क्या माइना रखता है?

इम्फाल और आसपास के जिलों में हर 30 सितम्बर को, मणिपुर के प्रसिध्द कम्युनिस्ट नेता कामरेड इराबोत की यादगार में अनेक सभायें आयोजित करना प्रथागत हो गया है। इस साल के कार्यक्रमों में कामरेड इराबोत की मिसाल आज हमारे लिये क्या माइना रखता है – इस पर बहुत ही जीवंत वाद-विवाद हुआ। नीचे हम थूबाल जिले में काक्छिंग खुनो में हुई एक बड़ी सभा की रिपोर्ट छाप रहे हैं जो मज़दूर एकता कमेटी को भेजी गयी थी।

वक्ताओं में चेकशपत उच्च विद्यालय के सहायक अध्यापक एम. ज्ञानेश्वर, काक्छिंग खुनो महाविद्यालय के शिक्षक एम. राजेन्द्रनाथ सिंह, समाज सेवक ख. निंग्थेम सिंह व थ. रंजीत सिंह और चेकशपत उच्च विद्यालय के सेवा निवृत्त अध्यापक ख. सनयाईमा सिंह शामिल थे।

चर्चा की शुरूवात ज्ञानेश्वर ने की, जिन्होंने सारांश में इराबोत का इतिहास बताया, इस बात पर ध्यान दिलाते हुये, कि मणीपुर में कम्युनिस्ट आंदोलन की नींव उन्होंने रखी थी।

राजेन्द्रनाथ ने ध्यान दिलाया कि इराबोत ने भाकपा की सदस्यता के लिये आवेदन किया था और उनका आवेदन स्वीकार किया गया था। इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश राज और उस समय की दमनकारी व्यवस्था को खत्म करने के लिये एक व्यापक आंदोलन बनाने का काम पूरी निष्ठा से किया।

रंजीत ने सबलता से कहा कि इराबोत के उदाहरण को मानने का मतलब सिर्फ साल में एक सभा आयोजित करके उनके बारे में बात करना नहीं होता है। इसका मतलब है वर्तमान समय में एक क्रांतिकारी कम्युनिस्ट बनना और अपने समाज की समस्याओं का सामना करना। उन्होंने ध्यान दिलाया कि आज के शासक इराबोत को हानिरहित प्रतिमा में बदल देना चाहते हैं ताकि उसकी राजनीतिक विचारधारा की धार को मंदा किया जा सके। उन्होंने कहा कि इराबोत को एक भगवान या महापुरुष बनाकर उसकी पूजा करना मायने नहीं रखता, बल्कि उसके ध्येय को समझ कर उस पर डटने की महत्ता जरूर है। उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद-लेनिनवाद का विज्ञान दिखाता है कि संकटग्रस्त पूंजीवादी व्यवस्था को हटा कर समाजवाद की स्थापना करना जरूरी है। परन्तु शासक कुलीन पूंजीवादी व्यवस्था को जारी रखना चाहते हैं।

निंग्थेम ने कहा कि इराबोत की सालगिरह हर तरह के लोग मनाते हैं, जिनमें आज के तथाकथित नेता भी शामिल हैं जो अपनी रक्षा के लिये सशस्त्र अंगरक्षकों के बिना कहीं नहीं जाते हैं। वे इराबोत को एक कवि, खेल-कूद का उत्साही या समाज सुधारक के जैसे पेश करते हैं। परन्तु सबसे महत्व की बात है कि इराबोत हर तरह के दमन और शोषण के खिलाफ लड़े। उन्होंने याद दिलाया कि इराबोत ने ''पूंजीवाद'' शीर्षक की एक किताब लिखी थी जिसमें उन्होंने पूंजीवादी व्यवस्था पर मार्क्सवाद के सबक को समझाया था कि सर्वहारा क्रांति जरूरी है। अंत में उन्होंने कहा कि इराबोत की मिसाल पर चलने का मतलब है पूंजीवादी लोकतंत्र और राजकीय आतंक के जरिये चलने वाले राज को खत्म करने का संघर्ष करना, उपनिवेशवादी राज्य और लूट-खसौट की अर्थव्यवस्था को खत्म करना और उज्ज्वल समाजवादी भविष्य का रास्ता खोलना।

हिजम इराबोत सिंह, जिन्हें आम तौर पर जननेता इराबोत के नाम से जाना जाता है, उनका जन्म 30 सितम्बर 1896 को मणिपुर के इम्फाल में पिशूम ओईनाम लीकाय में हुआ था। वे उपनिवेशवाद-विरोधी योध्दा थे, एक कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थे और साथ ही राजनीतिज्ञ, कवि, नाटककार और सामाजिक कार्यकर्ता थे।

इराबोत ने मणिपुर की पहली राजनीतिक पार्टी स्थापित की जिसका नाम निखिल मणिपुरी हिन्दू महासभा था। बाद में इसका नाम बदल कर निखिल मणिपुरी महासभा कर दिया गया। उन्होंने बहुत से जनसंगठन बनाये जिनमें मणिपुरीकिसान यूनियन या कृषक सभा, ऑल मणिपुर यूथ लीग, मणिपुर महिला समालिनी, मणिपुर स्टूडेंट फेडरेशन और प्रजा संघ शामिल हैं। उन्हें 1940 में बंदी बना कर सिल्हट जेल भेज दिया गया। वहां उनकी मुलाकात हिन्दोस्तानी कम्युनिस्ट नेताओं से हुई और कम्युनिस्ट साहित्य से उनका परिचय हुआ।

इराबोत की जेल से रिहाई 20 मार्च 1943 को हुई पर उन्हें मणिपुर लौटने की इजाजत नहीं दी गयी। वे काचर जिले में किसानों और चाय बागान मज़दूरों के साथ रहने लगे। इनके बीच उन्होंने सांस्कृतिक दस्ते बनाये। उन्होंने बंबई में हुये भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पहले महाअधिवेशन में भाग लिया। बंगाल की मायमेंसिंग जिले में हुयी सर्व हिन्द किसान सभा में उन्होंने काचर के प्रनिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। उन्होंने 1948 की फरवरी-मार्च में कलकत्ता में हुये भाकपा के दूसरे महाअधिवेशन में भी भाग लिया।

1948 में मणिपुर विधानसभा चुनाव में, इराबोत उतलू निर्वाचन क्षेत्र से कृषक सभा के उम्मीदवार बतौर चुनाव लड़े और जीत कर आये। उसी साल उन्होंने मणिपुर में भाकपा की पहली जिला समिति का गठन किया। उन पर एक पुलिस वाले पर गोली चलाने का आरोप लगाया गया जिसकी वजह से उन्हें भूमिगत होना पड़ा। इसके बाद स्वतंत्रता के बाद की हिन्दोस्तानी सरकार ने कृषक सभा और प्रजा संघ को गैरकानूनी घोषित कर दिया। उन्हें मणिपुर विधान सभा से भी अवैध घोषित कर दिया गया। 26 सितम्बर 1951 में उनकी मृत्यु अंग्गो पहाड़ियों में मलेरिया की वजह से हुयी। 

 

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