जन विरोध प्रदर्शन व रैली में पारित संकल्प पत्र
अपने देश सहित दुनिया मानव अधिकारों के सबसे विकृत उल्लंघनों की गवाह है।
जन विरोध प्रदर्शन व रैली में पारित संकल्प पत्र
अपने देश सहित दुनिया मानव अधिकारों के सबसे विकृत उल्लंघनों की गवाह है।
नौकरी, रोटी, कपड़ा और आवास, शिक्षा व स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली, साफ-सफाई लोगों के ये सब अधिकार सरकार द्वारा निर्दयता से कुचले जा रहे हैं। सिर्फ एक ही ''अधिकार'' है – इज़ारेदार पूंजी और वित्तीय अल्पतंत्रवाद द्वारा अधिकतम मुनाफा बनाने का ''अधिकार'', जिसकी रक्षा होती है। दुनियाभर की पूंजीवादी सरकारों द्वारा निजीकरण, उदारीकरण के ज़रिये वैश्वीकरण की नीति पर बेरहमी से लगे रह कर, एक ऐसी परिस्थिति बना दी है जिसमें मज़दूरों, किसानों और अन्य मेहनतकश लोगों को वैश्विक व्यापारी कंपनियों और सट्टेबाजों की कृपा पर छोड़ दिया है।
अमरीका और ब्रिटेन, जो ''मानव अधिकारों'' के समर्थक होने का दावा करते हैं, उन्होंने अपने देशों में और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, अधिकारों के भयानक उल्लंघन किये हैं। अपने खुद के देशों में, उन्होंने अप्रवासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमले किये हैं, उनके लोगों का नस्ली वर्णन किया है, और अनेक फासीवादी कानून बनाये हैं जो नाज़ी जरमनी की याद दिलाते हैं। अंतर्राष्ट्रीय तौर पर, उन्होंने, इस या उस बहाने, देशों और लोगों की संप्रभुता पर हमले करने का रास्ता अपनाया है – इराक, अफ़गानिस्तान व लिबिया पर कब्ज़ा ज़माया गया है और पाकिस्तान, ईरान व दूसरे देशों पर धमकियां दी जा रही हैं।
दुनियाभर में लोगों के ज़मीर के अधिकार पर खूंखार हमला हो रहा है। राजनीतिक और धार्मिक आस्थाओं के आधार पर लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।
63 वर्ष पहले, दूसरे विश्व युध्द के अंत में, संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसम्बर, 1948 को मानव अधिकारों की घोषणा को अपनाया था। मानव अधिकारों के अंतर्गत क्या आना चाहिये, इन चर्चाओं में, दो नज़रियों की टक्कर तब भी थी। सोवियत संघ ने मानव अधिकारों की सबसे व्यापक परिभाषा पर जोर दिया, जिसके अंतर्गत ज़मीर का अधिकार और रोजी-रोटी के अधिकार सुनिश्चित होते थे। घोषणा सिर्फ रस्मी हो, ऐसा सुनिश्चित करने में अमरीका ने दूसरी अनेक ताकतों को नेतृत्व दिया ताकि कुछ भी लागू होना जरूरी न हो।
21 वर्ष पहले, जब सोवियत संघ का पतन हो रहा था, तब अमरीका ने अनेक पूंजीवादी राज्यों को पेरिस चार्टर की घोषणा करने में नेतृत्व दिया। इस चार्टर ने साफ तौर पर घोषणा की कि हर एक देश को ''मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था'' और बहुपार्टीवादी लोकतंत्र अपनाना होगा। इसमें निजी संपत्ति और सर्वाधिक मुनाफा बनाने के पूंजीवादी अधिकारों को ही ''मानव अधिकारों'' की परिभाषा बतायी।
दुनियाभर में मेहनतकश लोग अपने अधिकारों के हनन का प्रतिरोध कर रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि सरकार इन्हें सुनिश्चित करे। वे सैन्यीकरण और साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा शुरू किये आक्रामक युध्दों का विरोध कर रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के अवसर पर, दिल्ली में संसद के बाहर जमा कार्यकर्ता, एकता बना कर संघर्ष करने के दृढ़ निश्चय की घोषणा करते हैं :
- नौकरी, रोटी, कपड़ा और आवास, शिक्षा व स्वास्थ्य, साफ-सफाई के अधिकारों के लिये और उन सबके लिये जो आज हिन्दोस्तान में मानव जिन्दगी के लिये जरूरी हैं;
- ज़मीर के अधिकार के उल्लंघनों के विरोध में – लोगों पर, उनकी धार्मिक और राजनीतिक आस्थाओं के आधार पर हमलों के विरोध में;
- राज्य के आतंक को खत्म करने के लिये, जिनमें राज्य द्वारा आयोजित साम्प्रदायिक नरसंहार शामिल हैं; और इन अपराधों के लिये जिम्मेदार व्यक्तियों को सजा सुनिश्चित करने के लिये;
- ए.एफ.एस.पी.ए. और छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून जैसे निर्दयी कानूनों को रद्द करने के लिये;
- अर्थव्यवस्था को नयी दिशा देने के लिये ताकि यह पूंजीपतियों के मुनाफों को अधिकतम बनाने की दिशा में न हो बल्कि मानव की जरूरतों को केन्द्र बिन्दु बनाये;
- स्वैच्छा के आधार पर हिन्दोस्तानी संघ के पुनर्गठन के लिये, ताकि मानव अधिकार सुनिश्चित हों और लागू हों और संप्रभुता लोगों के हाथ में हो;
- साम्राज्यवादी आक्रमणकारी युध्दों के विरोध में और देशों और लोगों के संप्रभुता के उल्लंघनों के विरोध में;
- दक्षिण एशिया के सभी लोगों के साथ, साम्राज्यवाद व युध्द के विरोध में और शांति व प्रगति के लिये;
- अमरीकी साम्राज्यवाद और नाटो के बलों को दक्षिण एशिया से बाहर फैंकने के लिये;
- एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने के लिये जिसमें लोग फैसले लेने में सक्षम होंगे।