‘वॉल स्ट्रीट पर कब्ज़ा करो’ आंदोलन

विश्व पूंजीवाद के केन्द्र, अमरीका के न्यूयार्क स्थित वॉल स्ट्रीट से एक मील से भी कम दूरी पर, बीते तीन महीनों में अमरीका और सारी दुनिया को ऐसा दृश्य देखने को मिल रहा है जो लगभग चार दशकों में नहीं देखा गया है।

विश्व पूंजीवाद के केन्द्र, अमरीका के न्यूयार्क स्थित वॉल स्ट्रीट से एक मील से भी कम दूरी पर, बीते तीन महीनों में अमरीका और सारी दुनिया को ऐसा दृश्य देखने को मिल रहा है जो लगभग चार दशकों में नहीं देखा गया है।

मोटे पैसे वाले मैनेजरों और बाकी अमरीकी आम जनता की आमदनियों के बीच बढ़ते अंतर से क्रोधित होकर, प्रान्तीय और राजनीतिक संबंधों को किनारे पर रखकर, कई हजारों प्रदर्शनकारी ऐसी जोश भरी जनसभाओं में इकट्ठे हुये हैं, जैसी कि वियतनाम युध्द के खिलाफ़ प्रदर्शनों के बाद नहीं देखी गयी हैं।

17सितम्बर को ये विरोध प्रदर्शन शुरू हुये। ये जुकोटी पार्क नामक सभा स्थल में शुरू हुये, जिस स्थान का मालिक ब्रुकफील्ड प्रापर्टीज़ नामक एक निजी कंपनी है। यह स्थान इसलिये चुना गया ताकि सरकार कोर्ट आर्डर के बिना प्रदर्शनकारियों को बाहर नहीं निकाल सकेगी।

उस दिन से, हर रोज़ तड़के से शाम तक, प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने वर्तमान ओबामा प्रशासन और भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के खिलाफ़ नारे लगाये हैं, पोस्टर लगाये हैं और तरह-तरह से अपना गुस्सा जाहिर किया है। लोग सरकार की उन नीतियों का विरोध कर रहे हैं, जिनकी वजह से उन्हीं सबसे अमीर अमरीकियों को बड़ी-बड़ी टैक्स छूट मिली है, जो 2008की आर्थिक मंदी के लिये जिम्मेदार थे। प्रदर्शनकारी अमरीका के कोने-कोने से आये हैं, आस-पास से गुजरते हुए लोग भी अक्सर रुककर प्रदर्शन में भाग लेते हैं।

यह विरोध – और शहर व केन्द्र प्रशासन ने उसके साथ कैसा बर्ताव किया है – इससे हमें महत्वपूर्ण सीख मिलती है यह समझने में कि अमरीका और उस देश की जनता की मनोभावना आज क्या है।

इन विरोध प्रदर्शनों के पीछे दसों-लाखों आम अमरीकी मेहनतकशों की निराशा है। लोग, सरकारी व गैर-सरकारी आंकड़ों से तथा प्रतिदिन के अनुभवों से यह देख रहे हैं कि अमरीका के सबसे अमीर तबके और बाकी लोगों की आर्थिक हालतों के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है, और इसमें राज्य खुलेआम व बेझिझक मदद दे रहा है।

आम अमरीकी मेहनतकश आज भी 2008के आर्थिक संकट के परिणामों को झेल रहे हैं। आज अमरीका में बेरोजगारी बीते 50वर्षों में सबसे ज्यादा है। हर रोज छंटनी की खबर मिलती है और अनेक उद्योगों में अनौपचारिक तौर पर, नये कर्मचारियों की भर्ती करने पर रोक लगायी गयी है।

परंतु इन्हीं कंपनियों के ऊंचे पदों के मैनेजरों की आमदनी बढ़ती रही है।

अमरीकी कांग्रेस की बजट शाखा – कांग्रेशनल बजट ऑफिस – की हाल की एक रिपोर्ट से यह जाना गया है कि 1979 से 2007 के बीच, सबसे अमीर 1 प्रतिशत अमरीकियों की आमदमनी (मुद्रास्फीति एडजस्टमैंट और टैक्स कटौती के बाद) औसतन 275 प्रतिशत बढ़ी है। इसी अवधि में, अमरीकी आबादी के बीच के 60 प्रतिशत की औसतन (मुद्रास्फीति एडजस्टमैंट और टैक्स कटौती के बाद) आमदनी सिर्फ 40 प्रतिशत बढ़ी। सबसे नीचे के 20 प्रतिशत की आमदनी सिर्फ 18 प्रतिशत बढ़ी। सबसे अमीर 20 प्रतिशत के हाथों में देश की पूरी आमदनी का 53 प्रतिशत जाता है, यानि बाकी 80 प्रतिशत आबादी की कुल आमदनी से ज्यादा। सबसे ऊपर का सिर्फ 1प्रतिशत तबका पूरे देश की आमदनी का 17प्रतिशत हड़प लेता है।

कुछ और अध्ययनों व रिपोर्टों से इस असमानता की और भयंकर छवि सामने आती है। 2007में फेडरेल रिज़र्व के अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला कि आमदनी, जायदाद और दूसरे माल-संसाधन मिलाकर देश के कुल मूल्य का 73प्रतिशत सबसे अमीर 10प्रतिशत के हाथ में है।

कांग्रेशनल बजट ऑफिस की रिपोर्ट ने खुद ही इस बढ़ती असमानता का ज़िक्र किया और यह भी बताया कि अमरीका की दो मुख्य पार्टियों ने बार-बार सबसे अमीर व्यक्तियों व सबसे बड़ी कंपनियों को जो टैक्स छूट दी हैं, वे इस असमानता की एक मुख्य वजह हैं।

अमरीकी नागरिक नहीं भूले हैं कि 2008-09 में जब उनकी अर्थव्यवस्था तबाही की कगार पर थी, तब पूंजीवादी मीडिया के बहुचर्चित ''मसीहा'' बराक ओबामा के प्रशासन ने बड़े-बड़े बैंकों और वित्त संस्थानों को बचाने के लिये राहत पैकेज दिये थे। उस समय इस कदम को उचित ठहराने के लिये दुनिया को यह तर्क पेश किया गया था कि बैंकों और वित्त संस्थानों को बचाने से नौकरियों की कटौतियां कम हो जायेंगी और इससे आम अमरीकी नागरिकों को मदद मिलेगी। तीन वर्ष बाद, आज वही कंपनियां अभी भी लोगों को नौकरियों से निकाल रही हैं – जब कि उनके ऊपर के मैनेजरों की आमदनी बढ़ती जा रही है।

अमरीकी राज्य द्वारा अधिकतम अमरीकी नागरिकों के हितों की इस खुलेआम उपेक्षा के खिलाफ़ इन प्रदर्शनों को पुलिस की बर्बरता का सामना करना पड़ा है। कैमरा से ली गई तस्वीरों में दिखाई देता है कि कैसे पुलिस प्रदर्शनकारियों की आंखों में काली मिर्च छिड़क रहे हैं, सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है और मुख्य मीडिया संस्थानों, जैसे कि न्यूयार्क टाइम्स के पत्रकारों को भी पुलिस के हमलों व गिरफ्तारियों का सामना करना पड़ा है।

खुद को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहलाने वाले राज्य और अभिव्यक्ति की आजादी व प्रतिवाद के अधिकार को मान्यता देने के उसके दावों की सच्चाई इस पुलिस बर्बरता से स्पष्ट हो जाती है।

परंतु इन प्रतिरोधों और राज्य की प्रतिक्रिया से हमें एक और गंभीर सबक मिलता है।

अमरीकी राज्य की नीतियों का पर्दाफाश करते हुए इतने सारे सबूत के बावजूद, व्यापक समर्थन सहित इतने निरंतर और अडिग प्रतिवादों व जन-आक्रोश के प्रदर्शन के बावजूद, अमरीका के ऊपर के मैनेजर काफी अविचलित नज़र आते हैं।

ऐसा क्यों?

'वाल स्ट्रीट पर कब्ज़ा करो' आंदोलन को एडबस्टर्स नामक एक कनाडा के पूंजीवाद-विरोधी दल ने शुरू किया था। उन्होंने इस विचार को ऑन लाइन फैलाया और उन्हें फौरन लोगों से, खासकर पूरे अमरीका के नौजवानों से खूब समर्थन मिला। उसके बाद कई और दलों ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया है, जिनमें एनोनिमस नामक दल भी एक है, जो यूरोप में जन हित पर खर्च की कटौती के खिलाफ़ विरोधों में सक्रिय था।

परंतु इस आंदोलन का कोई नेतृत्व या स्पष्ट लक्ष्य नहीं है। उसका नारा है – ''हम 99 प्रतिशत है!'' – परंतु अधिकतम अमरीकी मेहनतकशों को खुद अपना भविष्य तय करने में सक्षम बनाने के लिये क्या करना होगा, इस पर उनका कोई स्पष्ट नज़रिया नहीं है। यह आंदोलन इस समय हजारों लोगों और दलों का समूह है, जिनमें अमरीका की अर्थव्यवस्था और प्रशासन कैसा होना चाहिये, इस पर तरह-तरह के विचार हैं। यह आंदोलन की शुरूआत के लिये तो ठीक है, अगर इसका उद्देश्य हो कि इस गुस्से और निराशा को एक ठोस दिशा दी जाये, परिवर्तन का एक ठोस लक्ष्य और नज़रिया दिया जाये।

परंतु आंदोलन में इसका अभाव है।

यह आंदोलन हमें संगठन के महत्व के बारे में सिखाता है। यह विशाल आंदोलन अवश्य सनसनी खबर बनेगी – जैसे कि 1970 के दशक के आंदोलन बने थे, जिनमें युध्द – विरोधी भावनायें, नागरिक अधिकारों की मांगें, नशीली पदार्थों का सेवन व आम अराजकता, सब की खिचड़ी थी। परंतु जैसा कि चार दशक पहले हुआ था, वैसे ही आज यह आंदोलन तब तक कोई मूल परिर्वतन नहीं ला पायेगा, जब तक परिवर्तन की मांग को अगुवाई व मार्गदर्शन देने वाली कोई संगठित ताकत, कोई पार्टी नहीं होगी।

इसका मतलब यह नहीं है कि आंदोलन व्यर्थ है : बिल्कुल नहीं। 'वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो' आंदोलन ने देशभर के नागरिकों का ध्यान आकर्षित किया है, और लगभग हरेक मुख्य शहर में ऐसे आंदोलन उभर रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि अमरीकी राज्य की आर्थिक व राजनीतिक नीतियों से वहां के आम नागरिक कितने अंसतुष्ट हैं।

'वॉल स्ट्रीट पर कब्जा करो' आंदोलन के सबकों को सीखना जरूरी है और आंदोलनकारियों का समर्थन करना जरूरी है, क्योंकि उन्होंने उस ताकत को चुनौती दी है जो, अपनी दीवार पर पड़ी दरारों के बावजूद, आज भी दुनिया का सबसे शक्तिशाली पूंजीवादी और साम्राज्यवादी राज्य है।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *