जॉर्ज बुश तथा टोनी ब्लेयर पर युध्द अपराधी का आरोप

22 नवम्बर को, मलेशिया में स्थित कुआला लुमपुर युध्द संबंधित अपराधों के न्यायाधिकरण ने अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश तथा ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर पर, 2003 के इराक के ख़िलाफ़ हमलों के लिए और बाद में उसके कब्ज़े के लिए युध्द संबंधित अपराधों का दोष लगाया।

22 नवम्बर को, मलेशिया में स्थित कुआला लुमपुर युध्द संबंधित अपराधों के न्यायाधिकरण ने अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश तथा ब्रिटेन के भूतपूर्व प्रधान मंत्री टोनी ब्लेयर पर, 2003 के इराक के ख़िलाफ़ हमलों के लिए और बाद में उसके कब्ज़े के लिए युध्द संबंधित अपराधों का दोष लगाया।

आंग्ल-अमरीकी साम्राज्यवाद की अगुआई में जिस गठबंधन ने इराक पर हमला और कब्ज़ा किया था, उसको इस सिलसिले में किये गये महाभयानक अपराधों के लिए – ख़ून-ख़राबा, घोर यातना, लूट-खसौट इत्यादि के लिए ज़िम्मेदार ठहराने के लिए अनेक पहलकदमियों की श्रृंखला में यह नवीनतम प्रयास है। युध्द संबंधित अपराधों के मलेशियाई न्यायाधिकरण में अनेक प्रख्यात न्यायाधीश तथा न्याय शास्त्री हैं। उनकी सर्वसम्मत राय के मुताबिक, ''इराक के ख़िलाफ़ दोनों मुलज़िमों के द्वारा किये गये युध्द की वजह के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष परिणामों की वजह से 14 लाख से ज्यादा इराकी नागरिक मारे गये हैं और अभी भी मर रहे हैं।'' अक्तूबर में कनाडा में प्रदर्शनकारियों ने मांग उठायी कि जॉर्ज बुश को युध्द संबंधित अपराधों के लिए दोषी ठहराना चाहिए। इराक और अफ़गानिस्तान के ख़िलाफ़ उनके अपराधों के लिए बुश तथा अमरीका के और उच्चतम अधिकारियों को दोषी ठहराने के लिए कुछ दिन पहले ईरानी संसद ने भी प्रक्रिया शुरू की थी। हाल में अमरीका तथा ब्रिटेन के अंदर भी इसी तरीके की अनेक मुहिमों का समर्थन बढ़ रहा है।

इराक के ख़िलाफ़ हमला करने के समर्थन में बुष तथा ब्लेयर ने जितने भी बहाने दिये थे, उन सबका कुआला लुमपुर युध्द संबंधित अपराधों के न्यायाधिकरण ने जांच किया है। इनमें ये बहाने भी शामिल हैं कि ''इराक के पास नरसंहार के शस्त्र हैं'' या सद्दाम हुसैन की वजह से जो लोग खतरे में थे, उनका ''संरक्षण करने की ज़िम्मेदारी'' उनके देशों पर थी। न्यायाधिकरण ने पाया है कि ये सब बहाने झूठे तथा असमर्थनीय थे।

न्यायाधिकरण का अंतिम निर्णय, बुश तथा ब्लेयर को जोरदार तरीके से दोषी ठहराता है। अंतर्राष्ट्रीय कानूनों तथा समझौतों का निर्लज्ज तरीके से उल्लंघन करने वाले बलवान राज्यों के द्वारा गैर-कानूनी तथा असमर्थनीय हमलों के खिलाफ़ दुनिया में शांति तथा राज्यों की संप्रभुता का संरक्षण करने की आवश्यकता का यह निर्णय समर्थन करता है। वह मानता है कि ''वैधता का गुणधर्म यही है कि बलवान तथा दुर्बल, दोनों के लिए सिध्दांत पर आधारित, पूर्वानिमेय एक ही मानदण्ड को लगातार लागू किया जाए। बलवान राज्यों के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के चयनात्मक परिचालन से उसकी वैधता का अवमूल्यन होता है।''

फ़ैसले के अंत में यह लिखा है : ''2003 में जो इराक पर हमला हुआ, वह आक्रमण का एक अवैध कृत्य तथा अंतर्राष्ट्रीय अपराध था। अंतर्राष्ट्रीय कानून की किसी भी उचित व्याख्या के तहत उसका समर्थन नहीं हो सकता। बल प्रयोग का नियंत्रण करने वाले कानूनों की बाहरी सीमाओं का वह उल्लंघन करता है। वह कत्लेआम के बराबर है। इराक में जो गैर-कानूनी बल प्रयोग किया गया है, उससे यह खतरा पैदा होता है कि हम फिर से एक ऐसी दुनिया में ढकेले जाएंगे जहां जंगल का कानून, सभ्यता के कानून के ऊपर हावी होता है। इससे इराक के ही नहीं, बल्कि उस पूरे इलाके के और पूरी दुनिया भर के लोगों के मानवाधिकारों पर बहुत बुरा असर होगा।

''संयुक्त राष्ट्र संघ तथा युध्द संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के भविष्य की भी बाज़ी लगी है। इराक में जो अनाधिकृत फौजी कार्यवाही हुई, उससे संयुक्त राष्ट्र संघ के संविधान की सामूहिक सुरक्षितता प्रणाली को क्षति पहुंचती है। दूसरे विश्वयुध्द में जिस प्रकार का नरसंहार हुआ था, उसकी पुनरावृत्ति से मानवता को बचाने के लिए यह प्रणाली बनायी गयी थी। दोनों मुल्जिमों ने कानूनों को तोड़ा। उन्होंने धोखेबाज़ी का बर्ताव किया। युध्द तथा शांति संबंधित अंतर्राष्ट्रीय कानून की उन्होंने कुख्यात अवहेलना की। किसी भी सही सबूत के अभाव से बचाव पक्ष के पास कोई विश्वसनीयता नहीं है। नंगी राजनीतिक तथा आर्थिक आकांक्षाओं को छुपाने के लिए वे मात्र बहाने लगते हैं। इसलिए हमने पाया है कि दोनों मुल्जिमों के ख़िलाफ़ आरोप साबित हुए हैं और उनके बारे में कोई भी मुनासिब संदेह नहीं है। इसलिए हमने पाया है कि दोनों मुल्जिम आरोप पत्र के अनुसार अपराधी हैं और पर्याप्त दोषसिध्दि हुई है।''

न्यायाधिकरण ने मांग उठायी है कि हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय फौजदारी न्यायालय को बुश और ब्लेयर के ख़िलाफ़ युध्द अपराधी बतौर आरोप पत्र दर्ज़ करना चाहिए।

मलेशिया के युध्द संबंधित अपराधों के न्यायाधिकरण का निर्णय एक महत्वपूर्ण तथा समयोचित पहलकदमी है। 1945 में  अमरीकी साम्राज्यवाद ने जापान के ऊपर दो अणु बम बरसाये थे। तब से आज तक खुल्लम-खुल्ला आक्रमण और सभी अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा समझौतों का उल्लंघन उसने बार-बार किया है और अपने फ़ौजी तथा राजनीतिक बल की वजह से उसके ख़िलाफ़ कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी है। साथ-साथ दुनिया भर के विविध नेताओं को बेझिझक उसने युध्द अपराधी तथा तानाशाह करार कर दिया है और उस बहाने से और देशो  के अंदरूनी मामलों में दखलंदाज़ी की है। मलेशिया के न्यायाधिकरण तथा ईरान की संसद के जैसे पहलकदमियों से अमरीकी साम्राज्यवाद तथा उसके अपराधी सहयोगियों के निष्ठुर, कपट और नंगे आक्रमण का पर्दाफाश करने में मदद मिलती है।

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