हाल के सप्ताहों में, इजराइल, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी तथा अन्य शक्तियों सहित अमरीकी साम्राज्यवाद तथा उसके दोस्त, ईरान पर दबाव तथा उसकी घेराबंदी बेशुमार बढ़ा रहे हैं। ईरान पर प्रतिबंध बढ़ाने के ब्रिटेन के निर्णय के बाद नवम्बर 27 को ईरानी मजलिस, यानि कि संसद ने ब्रिटेन के साथ अपने संबंध खत्म करने का निर्णय लिया। ब्रिटेन के ख़िलाफ़ जन साधारण के गुस्से ने तेहरान में ब्रिटेन के दूतावास पर कई नौजवानों
हाल के सप्ताहों में, इजराइल, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी तथा अन्य शक्तियों सहित अमरीकी साम्राज्यवाद तथा उसके दोस्त, ईरान पर दबाव तथा उसकी घेराबंदी बेशुमार बढ़ा रहे हैं। ईरान पर प्रतिबंध बढ़ाने के ब्रिटेन के निर्णय के बाद नवम्बर 27 को ईरानी मजलिस, यानि कि संसद ने ब्रिटेन के साथ अपने संबंध खत्म करने का निर्णय लिया। ब्रिटेन के ख़िलाफ़ जन साधारण के गुस्से ने तेहरान में ब्रिटेन के दूतावास पर कई नौजवानों के द्वारा धावा बोलने का रूप धारण किया। इस एक कार्यवाही का साम्राज्यवादियों के ताल पर नाचने वाले दुनियाभर के प्रसार माध्यमों ने बहुत प्रचार किया, लेकिन यह क्यों हुआ, इस पर ज्यादातर चुप्पी थी। इसकी वजह यह है कि ईरान को एक ''हिंसक'' और ''गैर-ज़िम्मेदार'' शक्ति के रूप में साम्राज्यवादी पेश करना चाहते हैं, ताकि उस देश तथा उसकी सरकार को अस्थिर बनाने की उनकी सुनियोजित कोशिश को समर्थन मिले।
साम्राज्यवादी पिट्ठू शाह का तख्तापलट करने का ईरानी इंकलाब 1979 में हुआ। तब से साम्राज्यवादी लगातार कोशिशकरते रहे हैं कि ईरानी राज्य को ''इस्लामी धर्मोन्मत्तों'' के नियंत्रण में एक राक्षस बतौर पेश करें। उस इलाके के अंदर और बाहर भी साम्राज्यवादी दखलंदाज़ी के ख़िलाफ़ ईरानी राज्य एक सुसंगत भूमिका ले रहा है, जिसकी वजह से ईरान पर दबाव बढ़ रहा है।पश्चिमी तथा मध्य एशिया के तेल आदि संसाधनों पर नियंत्रण जमाने के अमरीकी तथा साम्राज्यवादियों के मंसूबों में ईरान एक बहुत बड़ा रोड़ा है।
हाल के कई सालों में ईरानी राज्य ने अपना परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम विकसित करने के कई प्रयास किये हैं। एक संप्रभु स्वतंत्र राज्य होने के नाते यह उसका अधिकार बनता है। लेकिन साम्राज्यवादियों ने यह बहाना बनाकर ईरान को दुनिया के लिए खतरनाक परमाणु शस्त्रों वाली हिंसक शक्ति बतौर पेष किया है। अमरीका की अगुआई में प्रमुख साम्राज्यवादी ताकतों ने ईरान पर विनाशकारी प्रतिबंध लगाए हैं और इसके लिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ का इस्तेमाल किया है। ये प्रतिबंध ईरान के प्रमुख वित्त स्रोत, यानि कि तेल उद्योग पर और उसकी वित्तीय संस्थानों पर भी लगाये हैं। ईरान के कच्चे तेल के ग्राहकों में हिन्दोस्तान भी प्रमुख ग्राहक है। उसके जैसे देशों के सामने उसकी कीमत चुकाना मुश्किल बन गया है क्योंकि ईरान के साथ व्यापार करने वाले हिन्दोस्तानी बैंकों पर बहुत दबाव डाला गया था।
लेकिन खुद तय किये हुए मार्ग से आगे बढ़ने के ईरान के इरादे को प्रतिबंध रोक न सके और इसलिए प्रतिबंधों का नया दौर शुरू हो गया है। ''अरबी वसंत ऋतु'' के नाम पर ईरानी सरकार को अस्थिर बनाकर खुद के हित को संभालने वालों को शासक बनाने की साम्राज्यवादियों की कोशिशें भी निष्फल हुई और इससे उनका गुस्सा और बढ़ गया है। अफ़गानिस्तान पर कब्जे क़ो स्थिर बनाने में निष्फल रहने के बावज़ूद अमरीका और नाटो वहां से अपने बल निकालने की कोशिशों में लगे हुए हैं, इसलिए आने वाले समय में उस देश पर ईरान के प्रभाव के बारे में भी साम्राज्यवादी चिंतित हैं। इन सब कारणों की वजह से ईरान पर दबाव बेशुमार बढ़ रहा है। उस इलाके के अपने हत्यारे को, यानि कि इजराइली राज्य को, अमरीका ने इज़ाज़त दी है कि वह खुल्लम-खुल्ला धमकी दे कि वह ईरान के परमाणु आदि संस्थानों पर प्रथम आक्रमण करेगा। यह बात आम है कि इजराइल तथा अमरीकी गुप्तचर एजेंसी सी.आई.ए., बम विस्फोट आदि तरीकों से इन संस्थानों का अंदर से विनाष करवाने में लगे हुए हैं।
ईरान एक ऐसा देश है जिसके साथ हिन्दोस्तान के लंबे अरसे से घनिष्ट तथा दोस्ताना संबंध है। उस पर दबाव तथा उसका घेरा बिल्कुल नाजायज़ है। अत: हिन्दोस्तान के श्रमजीवी वर्ग तथा लोगों को अमरीकी साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ें बुलंद करनी चाहिए। ईरान पर जो दबाव डाला जा रहा है, वह और कुछ नहीं बल्कि सब देशों के ऊपर साम्राज्यवादियों के सामने घुटने टेकने का तथा अपने विकास का मार्ग खुद तय करने के अपने सार्वभौम अधिकार को त्यागने का दबाव है। कोई भी स्वाभिमानी लोग इसको बर्दाश्त नहीं कर सकते। इस दबाव और ब्लैकमेल के ख़िलाफ़ ईरानी लोगों का तथा सरकार का संघर्ष न्यायोचित है और ज़रूरी है कि उसका समर्थन किया जाए।