ट्रेन चालकों ने देश भर में विरोध प्रदर्शन किया

आल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ ऐसोसिएशन (ए.आई.एल.आर.एस.ए.) ने 15 नवंबर, 2011को अपनी लंबे अरसे की मांगों को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। पूरे देश में इंजन चालकों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिये 24घंटे की हड़ताल की।

आल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ ऐसोसिएशन (ए.आई.एल.आर.एस.ए.) ने 15 नवंबर, 2011को अपनी लंबे अरसे की मांगों को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। पूरे देश में इंजन चालकों ने अपना विरोध प्रकट करने के लिये 24घंटे की हड़ताल की।

पूरे देश में इंजन चालकों ने भोजन लिये बिना डयूटी की। डयूटी के बाद उन्होंने अपने-अपने मुख्यालयों के सामने इकट्ठे होकर धरना दिया। उन्होंने अपनी शिकायतों की सूची बनाकर अधिकारियों को एक ज्ञापन दिया, और यह सूचना दी कि वे आखिरी बार अधिकारियों को नोटिस दे रहे हैं। अपने ज्ञापन में उन्होंने कहा कि चालकों और उनके संगठन ने अपनी समस्याओं को हल करने के लिये सभी कानूनी तरीके इस्तेमाल करने की कोशिश की है। परन्तु अधिकारियों का अड़ियल रवैया देखकर उन्हें अपने संघर्ष के अगले कदम बतौर सीधे टक्कर का रास्ता अपनाना होगा।

यह याद रखा जाये कि 11 अक्तूबर, 2010 को नई दिल्ली स्थित प्रान्तीय श्रम आयुक्त ने कनसिलियेशन प्रक्रिया को नाकामयाब घोषित कर दिया था। अपने आदेश में उन्होंने इसके लिये रेलवे प्रबंधन को दोषी ठहराया, क्योंकि रेलवे प्रबंधन मीटिंगों में उपस्थित नहीं होते थे। कानून के अनुसार, अगर कनसिलियेशन प्रक्रिया नाकामयाब हो जाती है तो कानूनी प्रक्रिया के अगले कदम में सरकार को एक राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल गठित करना पड़ता है। पर ऐसा भी नहीं किया गया। रेलवे अधिकारियों और सरकार की इन मजदूर-विरोधी कार्यवाहियों के खिलाफ़ इंजन चालकों ने इस 24 घंटे की भूख हड़ताल की।

ये सारी गतिविधियां क्या दर्शाती हैं? कि हिन्दोस्तानी राज्य ने त्रिपक्षीय बातचीत, कनसिलियेशन आदि की लंबी-चौड़ी प्रक्रिया बना रखी है। यह देखने में तो, मजदूरों के हित में लगता है, पर असलियत में यह मजदूरों पर हमला करने और उनके संघर्ष को कमजोर करने की प्रक्रिया है। मजदूर अनंत कार्यवाहियों के चक्कर में फंस जाते हैं जबकि प्रबंधन और सरकार को अपनी मजदूर-विरोधी हरकतें करने की पूरी छूट मिल जाती है। यह खास तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र में ट्रेड यूनियन नेताओं को प्रबंधन की तरफ कर देने का एक तरीका है। राज्य के श्रम विभाग और मशीनरी ने बार-बार दिखा दिया है कि वे मजदूरों के हितों की रक्षा करने में अपंग बन जाते हैं। परन्तु पूंजीपतियों के हित में मजदूरों पर जब हमला करना होता है, तब बड़े बलवान बन जाते हैं। इसकी स्पष्ट मिसाल मारूति-सुजुकी में देखने को मिलती है, जहां हरियाणा सरकार ने मजदूरों को अपनी पसंद का यूनियन भी बनाने की इजाज़त नहीं दी। ए.आई.एल.आर.एस.ए. और इसके झंडे तले संगठित इंजन चालक अपने कड़वे अनुभव से इस नतीजे पर पहुंच रहे हैं।

हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, लोक राज संगठन और विभिन्न ट्रेन यूनियनों की पहल के साथ, मुंबई और दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर रेल चालकों के समर्थन में एक संयुक्त अभियान चल रहा है। 14 नवंबर को ए.आई.एल.आर.एस.ए., हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी, लोक राज संगठन, आल इंडिया वोल्टाज़ एंप्लाईज़ फेडरेशन, लड़ाकू गारमेंट मजदूर संघ और दूसरे संगठनों के कार्यकर्ताओं ने शाम को छत्रपति शिवाजी टरमिनस पर हजारों पर्चे बांटे। पर्चे पर 20 टे्रड यूनियनों और जन संगठनों का हस्ताक्षर था। कई लोगों ने रुककर इंजन चालकों की समस्याओं पर चर्चा की। चालकों की असली हालत जानकर वे हैरान हो गये। उन्होंने सरकार के मजदूर-विरोधी, जन-विरोधी रवैये की कड़ी निंदा की।

मजदूर एकता लहर ए.आई.एल.आर.एस.ए. और इंजन चालकों के इस जायज़ संघर्ष का पूरा समर्थन करती है।

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